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मुनव्वर राना ने पाकिस्तान को दिया था करारा जवाब, भारत-पाक बंटवारे की बयां की थी कहानी

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 15, 2024, 10:15 AM IST

Updated : Jan 15, 2024, 3:43 PM IST

Munawwar Rana Mujahirnama: मुनव्वर राना ने देश के विभाजन का दर्द झेला था. उनका पूरा परिवार उस वक्त पाकिस्तान चला गया. इस दर्द को उन्होंने अपनी किताब 'मुजाहिरनामा' में बयान किया.

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लखनऊ: भारत की आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ और भारत का दूसरा टुकड़ा पाकिस्तान बन गया, उस दौर में जिस तरह देश से पलायन हुआ, मुनव्वर राना के कई रिश्तेदार वतन छोड़कर पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनके पिता ने यहीं रुकना चुना. वो कोलकाता जो तब कलकत्ता था, वहां जाकर बस गए. इन सभी घटनाओं का असर मुनव्वर के जेहन में गहरे से उतर गया था.

उन्होंने पलायन पर बाद में मुजाहिरनामा नज्म लिखी, जिसे देश ही नहीं, विदेश में भी बहुत सराहा गया. मुनव्वर राना ने देश के विभाजन का दर्द झेला था. उनका पूरा परिवार उस वक्त पाकिस्तान चला गया. इस दर्द को उन्होंने अपनी किताब 'मुजाहिरनामा' में बयान किया. एक ही रदीफ काफिये पर उन्होंने करीब 500 शेर कहे. दरअसल, मुजाहिरनामा उन लोगों का दर्द है, जो बंटवारे के समय पाकिस्तान चले गए थे. मुजाहिरनामा के जरिये पाकिस्तान की हुकूमत को उन्होंने एक करारा जवाब भी दिया.

मुजाहिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आये हैं

तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आये हैं

वुजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है

कि हम उजलत में जमुना का किनारा छोड़ आये हैं,

तयम्मुम के लिए मिट्टी भला किस मुंह से हम ढूंढ़ें,

कि हम शफ्फाक गंगा का किनारा छोड़ आये हैं,

हमें तारीख भी इक खान- ऐ- मुजरिम में रखेगी,

गले मस्जिद से मिलता इक शिवाला छोड़ आये हैं,

ये खुदगर्जी का जज्बा आज तक हमको रुलाता है,

कि हम बेटे तो ले आये भतीजा छोड़ आये हैं,

न जाने कितने चेहरों को धुआं करके चले आये,

न जाने कितनी आंखों को छलकता छोड़ आये हैं,

गले मिलती हुई नदियां गले मिलते हुए मजहब,

इलाहाबाद में कैसा नजारा छोड़ आए हैं,

शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,

कि हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं....

मुनव्वर वो अजीम शायर थे, ज‍ो खुद को दूसरों की आंखों में परखे जाने से पहले खुद की आंखों के आईने में परखते. उनकी ल‍िखी और पढ़ी नज्में, शेर-ओ-शायर‍ियां उनके चाहने वालों के ह‍िस्से में क‍िसी दुआ की तरह बनकर आईं. अब यही 'दुआएं' हजारों धड़कते द‍िलों में हमेशा उनकी अनमोल तस्वीर बनकर रहेंगी. मुनव्वर वो अजीम शायर थे, ज‍ो खुद को दूसरों की आंखों में परखे जाने से पहले खुद की आंखों के आईने में परखते.

उनकी ल‍िखी और पढ़ी नज्में, शेर-ओ-शायर‍ियां उनके चाहने वालों के ह‍िस्से में क‍िसी दुआ की तरह बनकर आईं. अब यही 'दुआएं' हजारों धड़कते द‍िलों में हमेशा उनकी अनमोल तस्वीर बनकर रहेंगी. उनके जाने से राजधानी में शोक की लहर दौड़ गई. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुनव्वर राना के निधन पर शोक व्यक्त किया है.

मुनव्वर की प्रमुख किताबें: नीम के फूल, कहो जिल्ले इलाही से, मां, घर अकेला हो गया, चेहरे याद रहते हैं, फिर कबीर, मुनव्वर राना की सौ गजलें, बगैर नक्शे का मकान, सफेद जंगली कबूतर, गजल गांव, मोर पांव, पीपल छांव, सब उसके लिए, बदन सराय, जंगली फूल, नए मौसम के फूल, मुजाहिरनामा.

मुनव्वर का परिवार: शायर मुनव्वर अपनी मां आयशा खातून से सबसे ज्यादा मुहब्बत करते रहे. छह भाइयों और एक बहन के परिवार में सबसे बड़े बेटे मुनव्वर को भी उनकी मां अपना सबसे करीबी मानती रहीं. उनकी मां का इंतेकाल साल 2016 में हुआ था. उर्दू और अरबी में अच्छी महारत रखने वाली मां आयशा खातून का बेटे के तसव्वुर में ताजिंदगी अलग मुकाम रहा. उनके परिवार की नींव को सबसे ज्यादा मजबूती मुनव्वर के पिता सैयद अनवर अली राना ने दी. मूल रूप से रायबरेली के रहने वाले सैयद अनवर अली ने देश की आजादी से पहले ट्रांसपोर्ट का बिजनेस डाला था. उनका परिवार संपन्न लोगों में गिना जाता था.

उनके छह बेटों में मुनव्वर सबसे बड़े थे, जिनकी बचपन से ही साहित्य में रुचि थी. मुनव्वर के अलावा उनके दूसरे भाई इस्माइल राना, राफे राना, जमील राना, शकील राना सभी ने पिता का बिजनेस संभाला और उनकी पहचान ट्रांसपोर्टर के तौर पर बनी. एक मझले भाई याहिया राना का इंतेकाल हो गया था, वहीं मुनव्वर की इकलौती बहन शाहीन कतर में रहती हैं. मुनव्वर की शादी के बाद वो लखनऊ में बस गए थे, यहां उनकी पांच बेटियां हुईं. वो अपनी मां के बाद अपनी बेट‍ियों से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते थे.

उनकी बेट‍ियों में सुमैया राना सबसे बड़ी हैं. सुमैया में अपने पिता की झलक साफ मिलती है. वो साहित्य में भी काफी सक्र‍िय रही हैं. वर्तमान में वो समाजवादी पार्टी उप्र में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महिला सभा एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद पर हैं. सुमैया के पति वासिफुद्दीन सिव‍िल इंजीनियर हैं. दूसरे नंबर की बेटी फौजिया राना बिहार कांग्रेस में हैं, फौजिया के पति खुर्रम अहसन पटना में रहते हैं और कॉलेज संचालक हैं.

तीसरे और पांचवें नंबर की बेटी अर्श‍िया राना और हिबा राना हाउसवाइफ हैं. अर्श‍िया के पत‍ि अलीम अब्बासी और हिबा राना के पति सैय्यद साकिब बिल्डर हैं. वहीं चौथे नंबर की बेटी उरुषा राना भी राजनीति में सक्र‍िय हैं. उरुषा उप्र महिला सभा कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और उनके पति इमरान सिद्दीकी बिल्‍ड‍िंग कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं. सभी पांच बेट‍ियों के बाद सबसे छोटा बेटा है तबरेज राना. तबरेज भी ट्रांसपोर्ट कंपनी संभालते हैं और उनकी पत्नी नायला राना हाउसवाइफ हैं. उनकी बेटी उरुषा को छोड़कर सभी बेट‍ियां और बेटे लखनऊ में ही रहते हैं.

मुनव्वर राना विवादों से रहा पुराना नाता: मुनव्वर का विवादों से भी गहरा नाता रहा है. 2022 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव से पहले मुनव्वर ने कहा था कि योगी आदित्यनाथ अगर दोबारा मुख्यमंत्री बने तो यूपी छोड़ दूंगा. दिल्ली-कोलकाता चला जाऊंगा. मेरे पिता ने पाकिस्तान जाना मंजूर नहीं किया लेकिन अब बड़े दुख के साथ मुझे यह शहर, यह प्रदेश, अपनी मिट्टी को छोड़ना पड़ेगा.

मुनव्वर ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री के कंधे पर हाथ रखकर ही बुरा कर दिया, जिसकी वजह से उन्होंने उत्तर प्रदेश में भेदभाव फैला दिया. इस सरकार ने सिर्फ नारा दिया, सबका साथ सबका विकास का, हुआ कुछ नहीं. इनका बस चले तो प्रदेश से मुसलमानों को छुड़वा दें. उनके लिए दिल्ली कोलकाता गुजरात ज्यादा सुरक्षित है. साल 2021 में मुनव्वर रानाने बेटे तबरेज पर हुई फायरिंग के बाद खुद की जान को खतरा बताते हुए गंभीर सवाल उठाए थे. जबकि साल 2020 में कार्टून विवाद को लेकर फ्रांस में स्कूल टीचर की गला रेतकर हत्या करने की घटना को मुनव्वर ने जायज ठहराया था.

उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि अगर मजहब मां के जैसा है, अगर कोई आपकी मां का, या मजहब का बुरा कार्टून बनाता है या गाली देता है तो वो गुस्से में ऐसा करने को मजबूर है. मुनव्वर ने किसान आंदोलन पर ट्विटर पर एक शेर लिखा था, जिस पर विवाद हो गया. अपने इस शेर में राना ने संसद को गिरा कर खेत बनाने की बात कही और सेठों के गोदामों को जला देने की बात कही थी. हालांकि, विवाद होने पर उन्होंने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था.

ये भी पढ़ेंः मुनव्वर राना को 'मां' ने दिलाई शोहरत की बुलंदियां, महबूब और मुहब्बत को भी शब्दों से किया बयां

लखनऊ: भारत की आजादी के बाद जब देश का बंटवारा हुआ और भारत का दूसरा टुकड़ा पाकिस्तान बन गया, उस दौर में जिस तरह देश से पलायन हुआ, मुनव्वर राना के कई रिश्तेदार वतन छोड़कर पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनके पिता ने यहीं रुकना चुना. वो कोलकाता जो तब कलकत्ता था, वहां जाकर बस गए. इन सभी घटनाओं का असर मुनव्वर के जेहन में गहरे से उतर गया था.

उन्होंने पलायन पर बाद में मुजाहिरनामा नज्म लिखी, जिसे देश ही नहीं, विदेश में भी बहुत सराहा गया. मुनव्वर राना ने देश के विभाजन का दर्द झेला था. उनका पूरा परिवार उस वक्त पाकिस्तान चला गया. इस दर्द को उन्होंने अपनी किताब 'मुजाहिरनामा' में बयान किया. एक ही रदीफ काफिये पर उन्होंने करीब 500 शेर कहे. दरअसल, मुजाहिरनामा उन लोगों का दर्द है, जो बंटवारे के समय पाकिस्तान चले गए थे. मुजाहिरनामा के जरिये पाकिस्तान की हुकूमत को उन्होंने एक करारा जवाब भी दिया.

मुजाहिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आये हैं

तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आये हैं

वुजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है

कि हम उजलत में जमुना का किनारा छोड़ आये हैं,

तयम्मुम के लिए मिट्टी भला किस मुंह से हम ढूंढ़ें,

कि हम शफ्फाक गंगा का किनारा छोड़ आये हैं,

हमें तारीख भी इक खान- ऐ- मुजरिम में रखेगी,

गले मस्जिद से मिलता इक शिवाला छोड़ आये हैं,

ये खुदगर्जी का जज्बा आज तक हमको रुलाता है,

कि हम बेटे तो ले आये भतीजा छोड़ आये हैं,

न जाने कितने चेहरों को धुआं करके चले आये,

न जाने कितनी आंखों को छलकता छोड़ आये हैं,

गले मिलती हुई नदियां गले मिलते हुए मजहब,

इलाहाबाद में कैसा नजारा छोड़ आए हैं,

शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,

कि हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं....

मुनव्वर वो अजीम शायर थे, ज‍ो खुद को दूसरों की आंखों में परखे जाने से पहले खुद की आंखों के आईने में परखते. उनकी ल‍िखी और पढ़ी नज्में, शेर-ओ-शायर‍ियां उनके चाहने वालों के ह‍िस्से में क‍िसी दुआ की तरह बनकर आईं. अब यही 'दुआएं' हजारों धड़कते द‍िलों में हमेशा उनकी अनमोल तस्वीर बनकर रहेंगी. मुनव्वर वो अजीम शायर थे, ज‍ो खुद को दूसरों की आंखों में परखे जाने से पहले खुद की आंखों के आईने में परखते.

उनकी ल‍िखी और पढ़ी नज्में, शेर-ओ-शायर‍ियां उनके चाहने वालों के ह‍िस्से में क‍िसी दुआ की तरह बनकर आईं. अब यही 'दुआएं' हजारों धड़कते द‍िलों में हमेशा उनकी अनमोल तस्वीर बनकर रहेंगी. उनके जाने से राजधानी में शोक की लहर दौड़ गई. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुनव्वर राना के निधन पर शोक व्यक्त किया है.

मुनव्वर की प्रमुख किताबें: नीम के फूल, कहो जिल्ले इलाही से, मां, घर अकेला हो गया, चेहरे याद रहते हैं, फिर कबीर, मुनव्वर राना की सौ गजलें, बगैर नक्शे का मकान, सफेद जंगली कबूतर, गजल गांव, मोर पांव, पीपल छांव, सब उसके लिए, बदन सराय, जंगली फूल, नए मौसम के फूल, मुजाहिरनामा.

मुनव्वर का परिवार: शायर मुनव्वर अपनी मां आयशा खातून से सबसे ज्यादा मुहब्बत करते रहे. छह भाइयों और एक बहन के परिवार में सबसे बड़े बेटे मुनव्वर को भी उनकी मां अपना सबसे करीबी मानती रहीं. उनकी मां का इंतेकाल साल 2016 में हुआ था. उर्दू और अरबी में अच्छी महारत रखने वाली मां आयशा खातून का बेटे के तसव्वुर में ताजिंदगी अलग मुकाम रहा. उनके परिवार की नींव को सबसे ज्यादा मजबूती मुनव्वर के पिता सैयद अनवर अली राना ने दी. मूल रूप से रायबरेली के रहने वाले सैयद अनवर अली ने देश की आजादी से पहले ट्रांसपोर्ट का बिजनेस डाला था. उनका परिवार संपन्न लोगों में गिना जाता था.

उनके छह बेटों में मुनव्वर सबसे बड़े थे, जिनकी बचपन से ही साहित्य में रुचि थी. मुनव्वर के अलावा उनके दूसरे भाई इस्माइल राना, राफे राना, जमील राना, शकील राना सभी ने पिता का बिजनेस संभाला और उनकी पहचान ट्रांसपोर्टर के तौर पर बनी. एक मझले भाई याहिया राना का इंतेकाल हो गया था, वहीं मुनव्वर की इकलौती बहन शाहीन कतर में रहती हैं. मुनव्वर की शादी के बाद वो लखनऊ में बस गए थे, यहां उनकी पांच बेटियां हुईं. वो अपनी मां के बाद अपनी बेट‍ियों से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते थे.

उनकी बेट‍ियों में सुमैया राना सबसे बड़ी हैं. सुमैया में अपने पिता की झलक साफ मिलती है. वो साहित्य में भी काफी सक्र‍िय रही हैं. वर्तमान में वो समाजवादी पार्टी उप्र में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महिला सभा एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद पर हैं. सुमैया के पति वासिफुद्दीन सिव‍िल इंजीनियर हैं. दूसरे नंबर की बेटी फौजिया राना बिहार कांग्रेस में हैं, फौजिया के पति खुर्रम अहसन पटना में रहते हैं और कॉलेज संचालक हैं.

तीसरे और पांचवें नंबर की बेटी अर्श‍िया राना और हिबा राना हाउसवाइफ हैं. अर्श‍िया के पत‍ि अलीम अब्बासी और हिबा राना के पति सैय्यद साकिब बिल्डर हैं. वहीं चौथे नंबर की बेटी उरुषा राना भी राजनीति में सक्र‍िय हैं. उरुषा उप्र महिला सभा कांग्रेस में प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और उनके पति इमरान सिद्दीकी बिल्‍ड‍िंग कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं. सभी पांच बेट‍ियों के बाद सबसे छोटा बेटा है तबरेज राना. तबरेज भी ट्रांसपोर्ट कंपनी संभालते हैं और उनकी पत्नी नायला राना हाउसवाइफ हैं. उनकी बेटी उरुषा को छोड़कर सभी बेट‍ियां और बेटे लखनऊ में ही रहते हैं.

मुनव्वर राना विवादों से रहा पुराना नाता: मुनव्वर का विवादों से भी गहरा नाता रहा है. 2022 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव से पहले मुनव्वर ने कहा था कि योगी आदित्यनाथ अगर दोबारा मुख्यमंत्री बने तो यूपी छोड़ दूंगा. दिल्ली-कोलकाता चला जाऊंगा. मेरे पिता ने पाकिस्तान जाना मंजूर नहीं किया लेकिन अब बड़े दुख के साथ मुझे यह शहर, यह प्रदेश, अपनी मिट्टी को छोड़ना पड़ेगा.

मुनव्वर ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री के कंधे पर हाथ रखकर ही बुरा कर दिया, जिसकी वजह से उन्होंने उत्तर प्रदेश में भेदभाव फैला दिया. इस सरकार ने सिर्फ नारा दिया, सबका साथ सबका विकास का, हुआ कुछ नहीं. इनका बस चले तो प्रदेश से मुसलमानों को छुड़वा दें. उनके लिए दिल्ली कोलकाता गुजरात ज्यादा सुरक्षित है. साल 2021 में मुनव्वर रानाने बेटे तबरेज पर हुई फायरिंग के बाद खुद की जान को खतरा बताते हुए गंभीर सवाल उठाए थे. जबकि साल 2020 में कार्टून विवाद को लेकर फ्रांस में स्कूल टीचर की गला रेतकर हत्या करने की घटना को मुनव्वर ने जायज ठहराया था.

उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि अगर मजहब मां के जैसा है, अगर कोई आपकी मां का, या मजहब का बुरा कार्टून बनाता है या गाली देता है तो वो गुस्से में ऐसा करने को मजबूर है. मुनव्वर ने किसान आंदोलन पर ट्विटर पर एक शेर लिखा था, जिस पर विवाद हो गया. अपने इस शेर में राना ने संसद को गिरा कर खेत बनाने की बात कही और सेठों के गोदामों को जला देने की बात कही थी. हालांकि, विवाद होने पर उन्होंने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था.

ये भी पढ़ेंः मुनव्वर राना को 'मां' ने दिलाई शोहरत की बुलंदियां, महबूब और मुहब्बत को भी शब्दों से किया बयां

Last Updated : Jan 15, 2024, 3:43 PM IST
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