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मुख्य न्यायमूर्ति का संदेश: संविधान को अपने जीवन में गीता की तरह आत्मसात करें

संविधान दिवस के अवसर पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर ने संविधान पर अपना संदेश दिया है. उन्होंने कहा कि संविधान को अपने जीवन में गीता की तरह आत्मसात करें.

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संविधान दिवस पर मुख्य न्यायमूर्ति का संदेश.
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Published : Nov 26, 2019, 10:10 PM IST

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर ने कहा कि हर नागरिक को देश के संविधान को अपने जीवन की गीता बनाना चाहिए. यह मात्र एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक-राजनीतिक दस्तावेज है.

मुख्य न्यायमूर्ति ने 70वें संविधान दिवस के मौके पर गोमती नगर स्थित हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच परिसर के ऑडिटोरियम में आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता शिरकत किया. सेमिनार का विषय था ‘राष्ट्र के तौर पर भारत का विकास और हमारे संवैधानिक मूल्य विषय पर मोलते हुए, मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि जब हम 70वें संविधान दिवस की एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं, तो इसका आशय यह भी है कि हम राष्ट्र के तौर पर भारत के 70 सफल वर्षों की बधाई दे रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हमसे अलग होकर हमारी पड़ोसी मुल्क अस्तित्व में आया, लेकिन आज उसे एक सफल राष्ट्र नहीं कहा जाता. हमारी सफलता का कारण है कि 26 नवम्बर 1949 को हमारे पास खुद का तैयार किया हुआ, एक लिखित पूर्ण संविधान था. मुख्य न्यायमूर्ति ने इस विषय पर बोलते हुए, संविधान की समानता की भावना पर भी विस्तार से चर्चा की.

समानता की भावना पर आधारित है संविधान
उन्होंने संविधान के समाजवादी व पंथ निरपेक्ष भावना का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा समाजवाद तत्कालीन सोवियत संघ अथवा चीन द्वारा अपनाया गया समाजवाद नहीं है. बल्कि यह समानता की भावना पर आधारित है. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लेख करते हुए, इसे बखुबी समझाया. इस अवसर पर उन्होंने अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों को निभाने की भी अपील की. उन्होंने सुधारात्मक कानूनों के निर्माण और लागू होने की आवश्यकता पर भी बल दिया.

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए, लखनऊ बेंच के वरिष्ठ न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के साथ-साथ संविधान के प्रारूप समिति के सदस्यों कृष्णा स्वामी अय्यर, केएम मुंशी व बीएन राव आदि को भी याद किया. उन्होंने कहा कि जब हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ तो बहुत से देशों को शंका थी कि यह सफल होगा, लेकिन आज उनकी आशंका निर्मूल साबित हो चुकी है.

कार्यक्रम का संचालन न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने किया. अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देशों में उनके संविधान सफल नहीं हो सके, लेकिन भारत सफल हुआ क्योंकि भारतीय सहमति और सहिष्णुता की भावना रखते हैं.

बापू पर दास्तानगोई का भी आयोजन
इस अवसर पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन में भय को कैसे हराया, उनके जीवन के इस पहलू पर हिमांशु वाजपेई ने दास्तानगोई के माध्यम से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि किस प्रकार महात्मा गांधी ने न सिर्फ अपने भय को हराया बल्कि देशवासियों के मन से अंग्रेजों का भय निकाल दिया.

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर ने कहा कि हर नागरिक को देश के संविधान को अपने जीवन की गीता बनाना चाहिए. यह मात्र एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक-राजनीतिक दस्तावेज है.

मुख्य न्यायमूर्ति ने 70वें संविधान दिवस के मौके पर गोमती नगर स्थित हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच परिसर के ऑडिटोरियम में आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता शिरकत किया. सेमिनार का विषय था ‘राष्ट्र के तौर पर भारत का विकास और हमारे संवैधानिक मूल्य विषय पर मोलते हुए, मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि जब हम 70वें संविधान दिवस की एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं, तो इसका आशय यह भी है कि हम राष्ट्र के तौर पर भारत के 70 सफल वर्षों की बधाई दे रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हमसे अलग होकर हमारी पड़ोसी मुल्क अस्तित्व में आया, लेकिन आज उसे एक सफल राष्ट्र नहीं कहा जाता. हमारी सफलता का कारण है कि 26 नवम्बर 1949 को हमारे पास खुद का तैयार किया हुआ, एक लिखित पूर्ण संविधान था. मुख्य न्यायमूर्ति ने इस विषय पर बोलते हुए, संविधान की समानता की भावना पर भी विस्तार से चर्चा की.

समानता की भावना पर आधारित है संविधान
उन्होंने संविधान के समाजवादी व पंथ निरपेक्ष भावना का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा समाजवाद तत्कालीन सोवियत संघ अथवा चीन द्वारा अपनाया गया समाजवाद नहीं है. बल्कि यह समानता की भावना पर आधारित है. उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लेख करते हुए, इसे बखुबी समझाया. इस अवसर पर उन्होंने अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों को निभाने की भी अपील की. उन्होंने सुधारात्मक कानूनों के निर्माण और लागू होने की आवश्यकता पर भी बल दिया.

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए, लखनऊ बेंच के वरिष्ठ न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के साथ-साथ संविधान के प्रारूप समिति के सदस्यों कृष्णा स्वामी अय्यर, केएम मुंशी व बीएन राव आदि को भी याद किया. उन्होंने कहा कि जब हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ तो बहुत से देशों को शंका थी कि यह सफल होगा, लेकिन आज उनकी आशंका निर्मूल साबित हो चुकी है.

कार्यक्रम का संचालन न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने किया. अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देशों में उनके संविधान सफल नहीं हो सके, लेकिन भारत सफल हुआ क्योंकि भारतीय सहमति और सहिष्णुता की भावना रखते हैं.

बापू पर दास्तानगोई का भी आयोजन
इस अवसर पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन में भय को कैसे हराया, उनके जीवन के इस पहलू पर हिमांशु वाजपेई ने दास्तानगोई के माध्यम से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि किस प्रकार महात्मा गांधी ने न सिर्फ अपने भय को हराया बल्कि देशवासियों के मन से अंग्रेजों का भय निकाल दिया.

‘संविधान को अपने जीवन में गीता की तरह आत्मसात करें' 
संविधान दिवस पर मुख्य न्यायमूर्ति का संदेश 
विधि संवाददाता 
लखनऊ। ‘हर नागरिक को देश के संविधान को अपने जीवन की गीता बनाना चाहिए। यह मात्र एक राजनीतिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक-राजनीतिक दस्तावेज है। इसे इसी रूप में हमें लेना चाहिए।‘ 
    यह उद्गार व्यक्त किये, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति गोविन्द माथुर ने। उन्होंने 70वें संविधान दिवस के मौके पर गोमती नगर स्थित हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच परिसर के ऑडिटोरियम में आयोजित सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता शिरकत किया। सेमिनार का विषय था ‘राष्ट्र के तौर पर भारत का विकास और हमारे संवैधानिक मूल्य’। विषय पर मोलते हुए, मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि जब हम 70वें संविधान दिवस की एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं, तो इसका आशय यह भी है कि हम राष्ट्र के तौर पर भारत के 70 सफल वर्षों की बधाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमसे अलग होकर हमारी पड़ोसी मुल्क अस्तित्व में आया लेकिन आज उसे एक सफल राष्ट्र नहीं कहा जाता। हमारी सफलता का कारण है कि 26 नवम्बर 1949 को हमारे पास खुद का तैयार किया हुआ, एक लिखित पूर्ण संविधान था। मुख्य न्यायमूर्ति ने इस विषय पर बोलते हुए, संविधान की समानता की भावना पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने संविधान के समाजवादी व पंथ निरपेक्ष भावना का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारा समाजवाद तत्कालीन सोवियत संघ अथवा चीन द्वारा अपनाया गया समाजवाद नहीं है बल्कि यह समानता की भावना पर आधारित है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लेख करते हुए, इसे बखुबी समझाया। इस अवसर पर उन्होंने अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों को निभाने की भी अपील की। उन्होंने सुधारात्मक कानूनों के निर्माण और लागू होने की आवश्यकता पर भी बल दिया। 
     कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए, लखनऊ बेंच के वरिष्ठ न्यायमूर्ति पंकज कुमार जायसवाल ने बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के साथ-साथ संविधान के प्रारूप समिति के सदस्यों कृष्णा स्वामी अय्यर, केएम मुंशी व बीएन राव आदि को भी याद किया। उन्होंने कहा कि जब हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ तो बहुत से देशों को शंका थी कि यह सफल होगा लेकिन आज उनकी आशंका निर्मूल साबित हो चुकी है। 
   कार्यक्रम का संचालन न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय ने किया। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देशों में उनके संविधान सफल नहीं हो सके। लेकिन भारत सफल हुआ क्योंकि भारतीय सहमति और सहिष्णुता की भावना रखते हैं। 
   इस अवसर पर न्यायमूर्तिगण शबीहुल हसनैन, राजीव सिंह, संगीता चन्द्रा, सौरभ लवानिया, एआर मसूदी, विवेक चौधरी आदि ने शिरकत की। वहीं महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह, स्टेट सर्विस ट्रिब्युनल के पूर्व न्यायमूर्ति एसके सक्सेना, शासकीय अधिवक्ता विमल श्रीवास्तव व मुख्य स्थाई अधिवक्ता जेके सिन्हा समेत कई वरिष्ठ अधिवक्ता, न्यायिक अधिकारीगण व अवध बार के सदस्य मौजूद रहे।

बापू पर दास्तानगोई का भी आयोजन (बॉक्स) 
इस अवसर पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन में भय को कैसे हराया, उनके जीवन के इस पहलू पर हिमांशु वाजपेई ने दास्तानगोई के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किस प्रकार महात्मा गांधी ने न सिर्फ अपने भय को हराया बल्कि देशवासियों के मन से अंग्रेजों का भय निकाल दिया।   

(कैप्शन- सम्बोधित करते हुए, मुख्य न्यायमूर्ति व मंच पर न्यायमूर्तिगण पंकज कुमार जायसवाल और देवेन्द्र कुमार उपाध्याय) 


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Chandan Srivastava
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