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लखनऊ : शहर की खूबसूरती को बढ़ा रहा सआदत अली का मकबरा

सआदत अली खां का मकबरा लखनऊ के कैसरबाग क्षेत्र में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के ठीक बगल में स्थित है. मकबरे को उनके बेटे गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाया था.

सआदत अली का मकबरा
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Published : Mar 3, 2019, 5:47 PM IST

लखनऊ : अवध का इतिहास बहुत पुराना है. हिन्दू ग्रंथों और मान्यताओं के हिसाब से यह अवधपुरी है, लेकिन मुस्लिम शासकों ने यहां आने के बाद लखनऊ को अपना ठिकाना बना लिया. प्राचीन काल में इसे लखनपुरी के नाम से भी जाना जाता था. आधुनिक भारत में मुगलों की गतिविधियां बढ़ने की वजह से लखनपुरी लखनऊ में तब्दील हो गया और इसे नवाबों का शहर कहा जाने लगा.

इस दौरान मुगलों ने कई इमारते बनवाईं, जो आज भी लखनऊ की शान बढ़ा रही हैं. उनमें से एक है नवाब सआदत अली खां का मकबरा. इसे सआदत अली के बेटे ने बनवाया था. इस मकबरे को देखने के लिए आज भी लोग यहां आते हैं. सआदत अली खां का मकबरा लखनऊ के कैसरबाग क्षेत्र में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के ठीक बगल में स्थित है. सआदत अली के मकबरे को उनके बेटे गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाया था. इस मकबरे को गाजीउद्दीन हैदर ने वहीं पर बनवाया था, जहां वह खुद युवराज की हैसियत से रहा करते थे.

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सआदत अली का मकबरा.


लखौरी ईटों से निर्मित इस इमारत पर चुने के मसाले से प्लास्टर और अलंकरण किया गया है. प्रत्येक कोने पर स्तंभ युक्त छतरी है, जिसके ऊपर गुंबद है. मुंडेरों पर अनेक छोटी मीनारें और गुम्बदों की सजावट है. मुख्य कक्ष तल विन्यास में अष्टकोणीय है, जिसकी फर्श को शतरंज के बोर्ड की भांति काले और सफेद संगमरमर के पत्थरों से सुसज्जित किया गया है. नवाब को इस तल के नीचे तहखाने में उत्तर-दक्षिण दिशा में दफनाया गया है. अलग से बनाई गई सीढ़ियां एक सकरे रास्ते की ओर जाती हैं, जहां नवाब सआदत अली खान और उनके भाइयों के कब्र हैं. पिछले बरामदे से नवाब सआदत अली खां की तीन बेगम के कब्र हैं, जबकि पूर्वी भाग में स्थित तीन कब्र उनकी तीन बेटियों की हैं.

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क्या है खासियत
नवाब सआदत अली खां का मकबरा जिस भवन में स्थित है, वह भवन बेहद ही खूबसूरत है. हवादार महल नुमा यह भवन आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है. दीवारों पर लगे प्लास्टर और संगमरमर की फर्श शीतलता प्रदान करती है. यही वजह है कि गर्मी के दिनों में भी इस भवन में गर्मी का एहसास नहीं होता है. भवन काफी ऊंचाई पर बना हुआ है. चारबाग रेलवे स्टेशन से महज 15 मिनट की दूरी तय करके यहां तक पहुंचा जा सकता है. अमीनाबाद से सटा हुआ कैसरबाग जहां पर यह मकबरा शहर की खूबसूरती को बढ़ा रहा है.

लखनऊ : अवध का इतिहास बहुत पुराना है. हिन्दू ग्रंथों और मान्यताओं के हिसाब से यह अवधपुरी है, लेकिन मुस्लिम शासकों ने यहां आने के बाद लखनऊ को अपना ठिकाना बना लिया. प्राचीन काल में इसे लखनपुरी के नाम से भी जाना जाता था. आधुनिक भारत में मुगलों की गतिविधियां बढ़ने की वजह से लखनपुरी लखनऊ में तब्दील हो गया और इसे नवाबों का शहर कहा जाने लगा.

इस दौरान मुगलों ने कई इमारते बनवाईं, जो आज भी लखनऊ की शान बढ़ा रही हैं. उनमें से एक है नवाब सआदत अली खां का मकबरा. इसे सआदत अली के बेटे ने बनवाया था. इस मकबरे को देखने के लिए आज भी लोग यहां आते हैं. सआदत अली खां का मकबरा लखनऊ के कैसरबाग क्षेत्र में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के ठीक बगल में स्थित है. सआदत अली के मकबरे को उनके बेटे गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाया था. इस मकबरे को गाजीउद्दीन हैदर ने वहीं पर बनवाया था, जहां वह खुद युवराज की हैसियत से रहा करते थे.

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सआदत अली का मकबरा.


लखौरी ईटों से निर्मित इस इमारत पर चुने के मसाले से प्लास्टर और अलंकरण किया गया है. प्रत्येक कोने पर स्तंभ युक्त छतरी है, जिसके ऊपर गुंबद है. मुंडेरों पर अनेक छोटी मीनारें और गुम्बदों की सजावट है. मुख्य कक्ष तल विन्यास में अष्टकोणीय है, जिसकी फर्श को शतरंज के बोर्ड की भांति काले और सफेद संगमरमर के पत्थरों से सुसज्जित किया गया है. नवाब को इस तल के नीचे तहखाने में उत्तर-दक्षिण दिशा में दफनाया गया है. अलग से बनाई गई सीढ़ियां एक सकरे रास्ते की ओर जाती हैं, जहां नवाब सआदत अली खान और उनके भाइयों के कब्र हैं. पिछले बरामदे से नवाब सआदत अली खां की तीन बेगम के कब्र हैं, जबकि पूर्वी भाग में स्थित तीन कब्र उनकी तीन बेटियों की हैं.

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क्या है खासियत
नवाब सआदत अली खां का मकबरा जिस भवन में स्थित है, वह भवन बेहद ही खूबसूरत है. हवादार महल नुमा यह भवन आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है. दीवारों पर लगे प्लास्टर और संगमरमर की फर्श शीतलता प्रदान करती है. यही वजह है कि गर्मी के दिनों में भी इस भवन में गर्मी का एहसास नहीं होता है. भवन काफी ऊंचाई पर बना हुआ है. चारबाग रेलवे स्टेशन से महज 15 मिनट की दूरी तय करके यहां तक पहुंचा जा सकता है. अमीनाबाद से सटा हुआ कैसरबाग जहां पर यह मकबरा शहर की खूबसूरती को बढ़ा रहा है.

Intro:लखनऊ। अवध का इतिहास बहुत पुराना। हिन्दू ग्रंथों और मान्यताओं के हिसाब से यह अवध पूरी है। अवध पूरी के नरेश यानी राजा भगवान राम थे। मूल अवध अयोध्या रहा है। लेकिन मुस्लिम शासकों के आने के बाद उन लोगों ने लखनऊ को अपना ठिकाना बनाया। मान्यता है कि इसे भगवान राम के अनुज लक्ष्मण ने बसाया था। यही वजह है कि प्राचीन काल में इसे लक्षणपूरी के नाम से भी जाना जाता था। आधुनिक भारत में मुगलों की गतिविधियां बढ़ने की वजह से लखनपुरी लखनऊ में तब्दील हो गयी और इसे नवाबों का शहर कहा गया। अवध के नवाबों की एक लंबी श्रृंखला रही है। इस दौरान उन लोगों ने कई इमारतें बनवाईं जो आज भी लखनऊ की शान बढ़ा रही हैं। उनमे से नवाब सआदत अली खां का मकबरा भी है। जिसे सआदत अली के नहीं रहने पर उनके बेटे ने बनवाया था। उस मकबरे को देखने के लिए आज भी लोग आते हैं।


Body:अवध के नवाबों की लंबी श्रंखला रही है। उनमें से प्रमुख नामों में से एक नवाब सआदत अली खा भी थे। नवाब सआदत अली खां अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह के परदादा थे। सआदत अली खां का मकबरा लखनऊ के कैसरबाग क्षेत्र में भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के ठीक बगल में स्थित है। सआदत अली के मकबरे को उनके बेटे गाजीउद्दीन हैदर ने बनवाया था। इस मकबरे को गाजी उद्दीन हैदर ने वहीं पर बनवाया था जहां वह खुद युवराज की हैसियत से रहा करते थे। गाज़ी उद्दीन हैदर के बेटे अमजद खान थे। उनके बेटे वाजिद अली शाह थे। हालांकि इतिहास में अमजद खान के बारे में बहुत कुछ नहीं मिलता है।

यह मकबरा नवाब सआदत अली खां ( 1798-1814 ईसवी ) के बेटे तथा उत्तराधिकारी बादशाह गाजी उद्दीन हैदर (1814-1827) द्वारा अपने पिता के लिए उस भवन परिसर के स्थान पर बनवाया गया था जहां वह स्वयं युवराज की हैसियत से निवास करते थे।

लखौरी ईटों से निर्मित इस इमारत पर चुने के मसाले से प्लस्तर तथा अलंकरण किया गया है। मुख्य कक्ष के दो ओर वाह्य भाग में आयताकार बरामदे हैं। प्रत्येक कोने पर स्तंभ युक्त छतरी है। जिसके ऊपर गुंबद है। मुंडेरों पर अनेक छोटी मीनारें एवं गुम्बदों की सजावट है। मुख्य गुंबद खरबूजे के आकार का है। मुख्य कक्ष तल विन्यास में अष्टकोणीय है। जिसकी फर्श को शतरंज के बोर्ड की भांति काले एवं सफेद संगमरमर के पत्थरों से सुसज्जित किया गया है। नवाब को इस तल के नीचे तहखाने में उत्तर दक्षिण दिशा में दफनाया गया है। अलग से बनाई गई सीढ़ियां एक सकरे रास्ते की ओर जाती हैं। जहां नवाब सआदत अली खान एवं उनके भाइयों की कब्रें हैं। पिछले बरामदे से नवाब सआदत अली खां की तीन बेगम की कब्रें हैं। जबकि पूर्वी भाग में स्थित तीन कब्रे उनकी तीन बेटियों की हैं।

क्या है खासियत

नवाब सआदत अली खां का मकबरा जिस भवन में स्थित है, वह भवन बेहद ही खूबसूरत है। हवादार महल नुमा यह भवन आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है। दीवारों पर लगे पलस्तर और संगमरमर की फर्श शीतलता को प्रदान करने वाली है। यही वजह है कि गर्मी के दिनों में भी इस भवन में गर्मी का एहसास नहीं होता है। भवन काफी उचाई पर बना हुआ है। पूरे परिसर में फूल पौधे और हरियाली इस प्रकार से है कि कोई भी पहुंचे उसका मन मोह लेगी। चारबाग रेलवे स्टेशन से महज 15 मिनट की दूरी तय करके यहां तक पहुंचा जा सकता है। अमीनाबाद से सटा हुआ कैसरबाग जहां पर यह मकबरा शहर की खूबसूरती को बढ़ा रहा है।


Conclusion:रिपोर्ट- दिलीप शुक्ला, 9450663213
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