लखनऊ : धरती को बचाने का आशय है इसकी रक्षा के लिए पहल करना. न तो इसे लेकर कभी सामाजिक जागरूकता दिखाई गई और न राजनीतिक स्तर पर कभी कोई ठोस पहल की गई. दरअसल पृथ्वी बहुत व्यापक संरचना है, इसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जु़ड़े अन्य कारक भी शामिल हैं. विश्व में देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन आधुनिकत की राह में दिन-ब-दिन दुनियाभर में ऐसी चीजों का इस्तेमाल बढ़ गया है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. साथ ही लोग इस तरह से जीवन जी रहे हैं, जिससे पर्यावरण खतरे में है. इंसान और पर्यावरण के बीच गहरा संबंध है. प्रकृति के बिना जीवन संभव नहीं हैं. ऐसे में प्रकृति के साथ इंसानों को तालमेल बिठाना होता है. इसके इतर लगातार वातावरण दूषित हो रहा है. जिससे कई तरह की समस्याएं बढ़ रही हैं, जो हमारे जनजीवन को प्रभावित करने के साथ कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की वजह भी बन रही हैं.
विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक एसएम प्रसाद ने बताया कि ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक परत है. ओजोन लेयर हमें सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है. ओजोन की परत की खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी. ओजोन (O3) आक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बनने वाली एक गैस है. वैज्ञानिक प्रसाद के अनुसार क्लोरोफ्लोरोकार्बन ओजोन परत में होने वाले विघटन के लिए उत्तरदायी है. इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफार्म, कार्बन टेट्राक्लोरिड आदि रसायन पदार्थ भी ओजोन को नष्ट करने में सक्षम है. इन रासायनिक पदार्थों को ही ओजोन क्षरण पदार्थ कहते हैं. यह एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर व प्लास्टिक आदि के इस्तेमाल में प्रमुखता से उत्सर्जित होते हैं. ओजोन परत के बढ़ते क्षय के कारण अनेक दुष्प्रभाव हो सकते हैं. जैसे सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणें धरती पर वायुमंडल में प्रवेश कर सकती हैं. जो बेहद ही गर्म होती हैं और पेड़-पौधों व जीव जंतुओं के लिए हानिकारक होती हैं. शरीर में इन किरणों की वजह से त्वचा का कैंसर, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं. यह किरणें मानव शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करती हैं.
भूजल विशेषज्ञ डॉ. आरएस सिन्हा बताते हैं कि प्रदेश की 653 स्थानीय निकायों में से 622 में पेयजल की आपूर्ति पूरी तरह से भूजल पर ही निर्भर है. कहीं 50 मीटर तो कहीं 100 मीटर तक. यह हाल है उन शहरों का, जहां हर साल धरती की गगरी से पानी कम हो रहा है. सूखते नलकूप और पोखर पानी के इस दर्द की कहानी को खुद ही बयां कर रहे हैं. अगर शहरी क्षेत्रों पर ही नजर डालें तो पानी के संभावित संकट को लेकर तस्वीर डरावनी सी लगती है. लखनऊ, कानपुर नगर, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा, अलीगढ़, मेरठ में बीते 10 से 15 वर्षों में भूजल स्तर में 10 से 12 मीटर की गिरावट आई है.
लखनऊ के इन इलाकों में पानी की किल्लत
प्रदेश स्तर पर लखनऊ की स्थिति सबसे भयावह है. यहां जल का दोहन प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में हर दिन करीब 40 लाख लीटर हो रहा है. जलकल महकमा नलकूपों से 35.6 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति प्रतिदिन कर रहा है. इसके अलावा बहुमंजिला भवन, होटल, अस्पताल, औद्योगिकी क्षेत्र, सरकारी और गैर सरकारी कार्यालयों, रेलवे और घरों में लगे करीब एक लाख सबमर्सिबल पंपों व गहरी बोरिंग से सौ करोड़ लीटर पानी निकाला जाता है. लखनऊ में बिना बेरोक- टोक के करीब 140 करोड़ लीटर भूजल का दोहन हो रहा है.
पर्यावरणविद वीपी श्रीवास्तव ने कहा कि मौजूदा समय में लगातार जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण मौसम में परिवर्तन हो रहा है. उत्तर प्रदेश सबसे घनी आबादी वाला राज्य है. सर्वाधिक वाहन उत्तर प्रदेश राज्य में चलते हैं. प्रदूषण और क्लाइमेट चेंज के कारण ही पर्यावरण प्रदूषित हुआ है. इसके लिए हमें और आपको साथ में मिलकर पर्यावरण को बचाना है. मौजूदा समय में बगैर मौसम बारिश हो रही है. बारिश के महीने में बारिश नहीं हो रही है. बरसात के महीने में बारिश नहीं हो रही है. सर्दी का महीना पूरा निकल जाने के बाद आखिरी के 10 दिनों में सर्दी पड़ रही है. यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण ही हो रहा है. जलवायु परिवर्तन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. मार्च के महीने में कभी बारिश नहीं होती थी, लेकिन इस बार मार्च में बारिश होने से किसानों की फसल बर्बाद हुई है. इसलिए हमें अपने पर्यावरण को हरा-भरा करने की जरूरत है. जितना संभव हो सके पेड़ पौधे लगाएं. आवश्यकता के अनुसार ही घर के बाहर रहें. बेवजह गाड़ियों को न चलाएं.