लखनऊ : समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी लोकसभा के उपचुनाव में डिंपल यादव (Mainpuri loksabha seat Dimple yadav) को प्रत्याशी घोषित कर एक तीर से कई समीकरण साधने का प्रयास किया है. पहला, मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत पर परिवार में मची कलह को शांत कर लिया है. दूसरे डिंपल के प्रत्याशी घोषित होते ही शिवपाल यादव की दावेदारी को भी खत्म कर दिया है. अब शिवपाल कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर हो सकते हैं. लेकिन सवाल यह है कि फिरोजाबाद और कन्नौज के दो संसदीय चुनाव हार चुकी डिंपल यादव क्या इस बार भाजपा के चक्रव्यूह को भेद सकेंगी. इस चुनाव में उन्हें विपक्ष के साथ परिवार से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
मैनपुरी संसदीय सीट (Mainpuri loksabha seat yadav voter) यादव बहुल सीट है. 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां 16 लाख से अधिक वोटर रजिस्टर्ड थे, जिनमें से 38 फीसदी यादव बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं. मैनपुरी लोकसभा सीट में मुलायम सिंह यादव का गांव सैफई भी आता है. मुलायम सिंह यादव के जीवनकाल में इस सीट से यादव परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं हारा (yadav family politics in UP). मुलायम सिंह यादव के अलावा 2004 में धर्मेंद्र यादव और 2014 में तेजप्रताप यादव भी मैनपुरी लोकसभा सीट से जीते. यह पहला मौका है जब मुलायम सिंह यादव की दुनिया में नहीं हैं और मैनपुरी लोकसभा सीट पर उनकी बहू डिंपल यादव ने दावेदारी की है. इससे पहले डिंपल यादव फिरोजाबाद संसदीय सीट और कन्नौज संसदीय सीट का चुनाव हार चुकी हैं. हालांकि डिंपल यादव के खाते में कन्नौज संसदीय सीट से निर्विरोध चुनाव जीतने का रिकार्ड भी शामिल है.
अखिलेश यादव ने क्यों बनाया डिंपल यादव को उम्मीदवार : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल यादव को मैनपुरी लोकसभा सीट (Mainpuri loksabha seat) पर होने वाले उपचुनाव (Mainpuri byelection 2022) में उम्मीदवार बनाकर बड़ा दांव खेला है. डिंपल के जरिये उन्होंने मुलायम सिंह यादव की विरासत पर अपनी दावेदारी पुख्ता कर ली है. डिंपल यादव को कैंडिडेट बनाने के बाद परिवार के दूसरे दावेदारों को भी एकजुट रखना आसान होगा. दांव यह है कि नाराज शिवपाल सिंह यादव भी डिंपल की उम्मीदवारी का खुलकर विरोध नहीं कर सकेंगे. डिंपल यादव और शिवपाल सिंह यादव के रिश्ते अच्छे हैं. वह बड़ी बहू की तरह डिंपल यादव का सम्मान करते हैं. यही कारण है कि अखिलेश यादव ने पत्नी को पिता की विरासत आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सौंप दी. डिंपल यादव के अलावा अगर कोई और उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरता तो परिवार में बिखराव की आशंका बढ़ सकती थी. पहले चर्चा थी कि इस सीट से तेजप्रताप यादव को सपा टिकट दे सकती है. रामगोपाल यादव भी तेजप्रताप को चुनाव लड़ाने के पक्ष में थे. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव धीरे-धीरे करके अब रामगोपाल यादव से दूर होने की कोशिश कर रहे हैं और इसलिए वह पत्नी डिंपल यादव को आगे बढ़ा रहे हैं.
अगर डिंपल चुनाव जीत जाती हैं तो लोकसभा में मुलायम परिवार का सदस्य ही समाजवादी पार्टी का प्रतिनिधित्व करेगा. वह पहले से ही पार्टी का महिला चेहरा भी रही हैं. राजनीतिक विश्लेषक मनमोहन कहते हैं कि अखिलेश यादव ने पारिवारिक सीट परिवार में रखने के लिए डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतार दिया है. अखिलेश को उम्मीद है कि डिंपल यादव (Dimple yadav ) के चुनाव लड़ने से शिवपाल सिंह यादव पूरी तरह से उनका साथ देंगे और विरोध भी नहीं करेंगे. इसके अलावा तेज प्रताप यादव और रामगोपाल यादव के स्तर पर भी परिवार को एक करने में मदद मिलती रहेगी. दिल्ली में केंद्रीय राजनीति में तीसरा मोर्चा बनने की स्थिति में डिंपल यादव के सहारे अखिलेश यादव अपनी सियासत को भी आगे बढ़ाते रहेंगे. इसके अलावा मुलायम सिंह यादव की असली वारिस उनकी बहू डिंपल यादव रहे, अखिलेश ने कैंडिडेट बनाकर यह यह तय कर दिया है. डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारने से यादव परिवार का मैनपुरी की जनता से भावनात्मक रिश्ता जुड़ा रहेगा.
दो चुनाव हार चुकी हैं डिंपल यादव : डिंपल यादव (Dimple yadav ) का सियासी सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. डिंपल अपना पहला चुनाव हार गई थीं. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने दो सीटों फिरोजाबाद और कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ा. बाद में उन्होंने फिरोजबाद सीट छोड़ दी थी. समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव में डिंपल यादव को वहां से उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन कांग्रेसी नेता राज बब्बर से वह चुनाव हार गईं थीं. इसके बाद 2012 में जब अखिलश यादव मुख्यमंत्री बने तो कन्नौज लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हुआ था. तब वह निर्विरोध निर्वाचित हुईं. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह कन्नौज सीट से दोबारा सांसद निर्वाचित हुईं. हालांकि 2019 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
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