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'लूटा' ने शुरू किया कॉमन मिनिमम सिलेबस का विरोध, डिप्टी सीएम को लिखा पत्र

प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों में एक समान सिलेबस लागू करने की नीति का विरोध शुरू हो गया है. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) ने उच्च शिक्षा मंत्री को इसके विरोध में पत्र लिखा है. जिसमें कॉमन सिलेबस को लागू न करने और नई शिक्षा नीति को भी बिना तैयारी के नए सत्र से न लागू करने की नसीहत दी गई है.

'लूटा' ने शुरू किया कॉमन मिनिमम सिलेबस का विरोध
'लूटा' ने शुरू किया कॉमन मिनिमम सिलेबस का विरोध
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Published : May 25, 2021, 5:24 AM IST

लखनऊ: प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ दिनेश शर्मा प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों में एक समान सिलेबस लागू करना चाहते हैं, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय से इसके खिलाफ विरोध शुरू हो गया है. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) ने सोमवार को उपमुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कॉमन सिलेबस को लागू न करने को कहा है. साथ ही, नई शिक्षा नीति को भी बिना तैयारी के नए सत्र से लागू न करने की नसीहत दी है. शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. विनीत वर्मा और महामंत्री डॉ. राजेंद्र वर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्थानों की ऑटोनॉमी की बात कही गई है. लेकिन, इस व्यवस्था से विश्वविद्यालय के अधिकारों को छीना जा रहा है. कॉमन मिनिमम सिलेबस (सी एम एस) की व्यवस्था राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी) की मूल भावना के एकदम विपरीत है.


इन मुद्दों पर उठाई है आपत्ति

  • विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण विभागों में बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा आधारभूत संरचना, संसाधनों की उपलब्धता, समय की मांग, शिक्षकों की विशेषज्ञता आदि के दृष्टिगत किया जाता है. समय-समय पर आवश्यकतानुसार इसे संशोधित भी किया जाता है.
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु 9.3 तथा 11.6 में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि इस नीति के तहत संकाय और संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा दिया जाएगा. इसके अतिरिक्त बिंदु संख्या 13.4 के अनुसार संकाय सदस्यों को स्वीकृत फ्रेमवर्क के भीतर पाठ्य पुस्तकों के चयन तथा असाइनमेंट और आकलन की प्रक्रियाओं को निर्मित करने के साथ ही साथ अपने स्वयं के पाठ्यक्रम संबंधी और शैक्षणिक प्रक्रियाओं को रचनात्मक रूप से निर्मित करने की स्वतंत्रता दी जाएगी.
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 छात्रों को अधिकाधिक संख्या में पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाने पर जोर देती है. जबकि कॉमन मिनिमम सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत छात्रों के लिए पाठ्यक्रमों की उपलब्धता को सीमित कर देगा.
  • उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है. एक क्षेत्र की आधारभूत संरचना, संसाधन एवं आवश्यकता दूसरे क्षेत्र से बिल्कुल अलग है. अतः कॉमन सिलेबस पूरे राज्य में लागू करना बिल्कुल उचित नहीं होगा.

इसे भी पढ़ें- बाजारों और मंडियों में लोगों की भीड़, प्रशासन के दावे हवाई

  • पूरे राज्य में कई विश्वविद्यालय और हजारों की संख्या में महाविद्यालय हैं. इन सभी के संसाधन और एकेडमिक क्षमता में भारी असमानता है. कॉमन सिलेबस बनाते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया. ऐसे में पूरे राज्य के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू किया छात्रों के साथ अन्याय होगा.
  • उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र के बिंदु 4 के अनुसार क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस समान होना चाहिए. क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस का कॉमन होना कोई जरूरी नहीं है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
  • नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए सभी विश्वविद्यालयों /महाविद्यालयों का आधारभूत ढांचा दुरुस्त करने तथा पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था किया जाना आवश्यक है, जो कि अभी तक नहीं है.
  • प्रदेश भर में छात्रों की भारी संख्या के लिए कौशल विकास के कोर्स तथा इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त संस्थानो की व्यवस्था अभी तक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों द्वारा नहीं की गई है. ऐसे में यदि आधी अधूरी तैयारी के साथ जल्दबाजी में आगामी सत्र से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया, तो यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा.

लखनऊ: प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ दिनेश शर्मा प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों में एक समान सिलेबस लागू करना चाहते हैं, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय से इसके खिलाफ विरोध शुरू हो गया है. लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा) ने सोमवार को उपमुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कॉमन सिलेबस को लागू न करने को कहा है. साथ ही, नई शिक्षा नीति को भी बिना तैयारी के नए सत्र से लागू न करने की नसीहत दी है. शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. विनीत वर्मा और महामंत्री डॉ. राजेंद्र वर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्थानों की ऑटोनॉमी की बात कही गई है. लेकिन, इस व्यवस्था से विश्वविद्यालय के अधिकारों को छीना जा रहा है. कॉमन मिनिमम सिलेबस (सी एम एस) की व्यवस्था राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 (एनईपी) की मूल भावना के एकदम विपरीत है.


इन मुद्दों पर उठाई है आपत्ति

  • विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों के लिए पाठ्यक्रम का निर्माण विभागों में बोर्ड ऑफ स्टडीज द्वारा आधारभूत संरचना, संसाधनों की उपलब्धता, समय की मांग, शिक्षकों की विशेषज्ञता आदि के दृष्टिगत किया जाता है. समय-समय पर आवश्यकतानुसार इसे संशोधित भी किया जाता है.
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बिंदु 9.3 तथा 11.6 में स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि इस नीति के तहत संकाय और संस्थागत स्वायत्तता को बढ़ावा दिया जाएगा. इसके अतिरिक्त बिंदु संख्या 13.4 के अनुसार संकाय सदस्यों को स्वीकृत फ्रेमवर्क के भीतर पाठ्य पुस्तकों के चयन तथा असाइनमेंट और आकलन की प्रक्रियाओं को निर्मित करने के साथ ही साथ अपने स्वयं के पाठ्यक्रम संबंधी और शैक्षणिक प्रक्रियाओं को रचनात्मक रूप से निर्मित करने की स्वतंत्रता दी जाएगी.
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 छात्रों को अधिकाधिक संख्या में पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाने पर जोर देती है. जबकि कॉमन मिनिमम सिलेबस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विपरीत छात्रों के लिए पाठ्यक्रमों की उपलब्धता को सीमित कर देगा.
  • उत्तर प्रदेश एक बहुत बड़ा राज्य है. एक क्षेत्र की आधारभूत संरचना, संसाधन एवं आवश्यकता दूसरे क्षेत्र से बिल्कुल अलग है. अतः कॉमन सिलेबस पूरे राज्य में लागू करना बिल्कुल उचित नहीं होगा.

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  • पूरे राज्य में कई विश्वविद्यालय और हजारों की संख्या में महाविद्यालय हैं. इन सभी के संसाधन और एकेडमिक क्षमता में भारी असमानता है. कॉमन सिलेबस बनाते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया. ऐसे में पूरे राज्य के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में एक समान पाठ्यक्रम लागू किया छात्रों के साथ अन्याय होगा.
  • उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी पत्र के बिंदु 4 के अनुसार क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस समान होना चाहिए. क्रेडिट ट्रांसफर के लिए सभी विश्वविद्यालयों में सिलेबस का कॉमन होना कोई जरूरी नहीं है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
  • नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए सभी विश्वविद्यालयों /महाविद्यालयों का आधारभूत ढांचा दुरुस्त करने तथा पर्याप्त संसाधन की व्यवस्था किया जाना आवश्यक है, जो कि अभी तक नहीं है.
  • प्रदेश भर में छात्रों की भारी संख्या के लिए कौशल विकास के कोर्स तथा इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग के लिए पर्याप्त संस्थानो की व्यवस्था अभी तक विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों द्वारा नहीं की गई है. ऐसे में यदि आधी अधूरी तैयारी के साथ जल्दबाजी में आगामी सत्र से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया, तो यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा.
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