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नेपाल से पैदल ही महाकुंभ के लिए निकले दंपत्ति, 500 किमी का तय करेंगे सफर, सनातन धर्म का प्रचार करना मकसद - NEPAL COUPLE WALKING TOUR

पति उल्टे पांव जबकि पत्नी सामान लिए चलती है पीछे, सुल्तानपुर पहुंचने पर देखने के लिए जुटी भीड़.

सनातन के लिए पैदल यात्रा कर रहे दंपत्ति.
सनातन के लिए पैदल यात्रा कर रहे दंपत्ति. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 11, 2025, 9:37 AM IST

सुल्तानपुर : प्रयागराज में 13 जनवरी से चल रहे दिव्य और भव्य महाकुंभ में आस्था के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. इसी क्रम में नेपाल के रहने वाले रूपन दास पैदल ही महाकुंभ के लिए निकल पड़े हैं. वह पत्नी के साथ पैदल ही करीब 500 किमी की यात्रा कर रहे हैं. खास बात ये है कि वह उल्टे पांव चल रहे हैं.

सोमवार को सुल्तानपुर पहुंचे दंपत्ति. (Video Credit; ETV Bharat)

नेपाल से निकलकर गोरखपुर से होकर दंपत्ति अयोध्या पहुंचे. रामलला के दर्शन के बाद अब वे प्रयागराज महाकुंभ जा रहे हैं. सोमवार को वह सुल्तानपुर पहुंचे. 13 दिनों से वह चल रहे हैं. वह रोड के किनारे उल्टे पांव चलते हैं, जबकि उनकी पत्नी पतिरानी सिर पर जरूरी सामान उठाए उनके पीछे चलती हैं. पयागीपुर पहुंचने पर उन्हें देखने के लिए भीड़ जुट गई.

रूपन दास (58) ने ईटीवी भारत को बताया कि वे नेपाल के बांके जिले के कोहलपुर नगर पालिका वार्ड नंबर 7 के लखनवार गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने 13 दिन पहले अपने गांव के हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद यह यात्रा शुरू की थी. वह गोरखपुर से होकर अयोध्या पहुंचे. रामलला का दर्शन किया.

वह पैदल ही 500 किमी का सफर तय कर महाकुंभ मेले में जा रहे हैं. रूपन दास ने बताया कि सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए वह पदयात्रा कर रहे हैं. सनातन सभी धर्मों में श्रेष्ठ है. सनातन एक-दूसरे के साथ सम्मान से रहना सिखाता है. ऐसा किसी और धर्म में नहीं है. इस यात्रा की प्रेरणा उन्हें भगवान से मिली.

रूपन दास ने बताया कि वह रोड के किनारे उल्टे पांव चलते हैं जबकि पत्नी उनके पीछे सामान लिए चलती है. रास्ते में कोई मिल जाता है तो उससे लकड़ी आदि का इंतजाम करा लेते हैं. कुछ लोग चावल-दाल आदि भेंट कर देते हैं. इसे पकाकर दोनों खाते हैं. खुद किसी से कुछ मांगते नहीं हैं.

इस बीच स्थानीय निवासी डॉ. कुंवर दिनकर प्रताप सिंह ने अपने साथी अंशू श्रीवास्तव और अरुण कुमार मिश्रा के साथ पहुंच गए. उन्होंने दंपत्ति को भोजन की पेशकश की. इस पर दंपत्ति ने मना कर दिया. बाद में काफी कहने पर गन्ने का रस पीया. गुड़ भी खाया.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ 30वां दिन; माघ पूर्णिमा स्नान से पहले संगम पर बढ़ने लगी भीड़, नया ट्रैफिक प्लान लागू, 13 तक वाहनों की एंट्री बंद

सुल्तानपुर : प्रयागराज में 13 जनवरी से चल रहे दिव्य और भव्य महाकुंभ में आस्था के कई रंग देखने को मिल रहे हैं. इसी क्रम में नेपाल के रहने वाले रूपन दास पैदल ही महाकुंभ के लिए निकल पड़े हैं. वह पत्नी के साथ पैदल ही करीब 500 किमी की यात्रा कर रहे हैं. खास बात ये है कि वह उल्टे पांव चल रहे हैं.

सोमवार को सुल्तानपुर पहुंचे दंपत्ति. (Video Credit; ETV Bharat)

नेपाल से निकलकर गोरखपुर से होकर दंपत्ति अयोध्या पहुंचे. रामलला के दर्शन के बाद अब वे प्रयागराज महाकुंभ जा रहे हैं. सोमवार को वह सुल्तानपुर पहुंचे. 13 दिनों से वह चल रहे हैं. वह रोड के किनारे उल्टे पांव चलते हैं, जबकि उनकी पत्नी पतिरानी सिर पर जरूरी सामान उठाए उनके पीछे चलती हैं. पयागीपुर पहुंचने पर उन्हें देखने के लिए भीड़ जुट गई.

रूपन दास (58) ने ईटीवी भारत को बताया कि वे नेपाल के बांके जिले के कोहलपुर नगर पालिका वार्ड नंबर 7 के लखनवार गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने 13 दिन पहले अपने गांव के हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद यह यात्रा शुरू की थी. वह गोरखपुर से होकर अयोध्या पहुंचे. रामलला का दर्शन किया.

वह पैदल ही 500 किमी का सफर तय कर महाकुंभ मेले में जा रहे हैं. रूपन दास ने बताया कि सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए वह पदयात्रा कर रहे हैं. सनातन सभी धर्मों में श्रेष्ठ है. सनातन एक-दूसरे के साथ सम्मान से रहना सिखाता है. ऐसा किसी और धर्म में नहीं है. इस यात्रा की प्रेरणा उन्हें भगवान से मिली.

रूपन दास ने बताया कि वह रोड के किनारे उल्टे पांव चलते हैं जबकि पत्नी उनके पीछे सामान लिए चलती है. रास्ते में कोई मिल जाता है तो उससे लकड़ी आदि का इंतजाम करा लेते हैं. कुछ लोग चावल-दाल आदि भेंट कर देते हैं. इसे पकाकर दोनों खाते हैं. खुद किसी से कुछ मांगते नहीं हैं.

इस बीच स्थानीय निवासी डॉ. कुंवर दिनकर प्रताप सिंह ने अपने साथी अंशू श्रीवास्तव और अरुण कुमार मिश्रा के साथ पहुंच गए. उन्होंने दंपत्ति को भोजन की पेशकश की. इस पर दंपत्ति ने मना कर दिया. बाद में काफी कहने पर गन्ने का रस पीया. गुड़ भी खाया.

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