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नवाबों की नगरी में है मिनी 'अयोध्या', यहां घर-घर हैं मंदिर

राजधानी के सआदतगंज में मां मसानी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं को अनायास अपनी ओर खींचता है. इस ऐतिहासिक मंदिर पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. बताया जाता है कि यहां करीब 112 मंदिर हैं. यही वजह है कि इसे मिनी अयोध्या भी कहा जाता है. यहां के मंदिर मुगल-ए-आजम के जमाने से स्थापित हैं.

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मां मसानी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं को करता है आकर्षित.
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Published : Jan 22, 2021, 12:54 PM IST

लखनऊ: नवाबों की नगरी में भी एक छोटी अयोध्या है. यहां 'हर घर में मंदिर हर जन पुजारी' की होने की मान्यता है. राजधानी के सआदतगंज इलाके में 100 से ज्यादा मंदिर इतिहास को समेटे हुए हैं. इन मंदिरों में कई रहस्य छुपे हुए हैं. सुबह-शाम आरती और शंखनाद से इलाका गुंजायमान हो जाता है.

मां मसानी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं को करता है आकर्षित.
लखनपुरी के नाम से जाना जाता था लखनऊ
इतिहासकारों का दावा है कि वर्तमान के लखनऊ को प्राचीन काल में लक्ष्मण पुरी और लखनपुर के नाम से जाना जाता था. मान्यता है कि अयोध्या के राजा राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को भेंट के तौर पर लखनऊ समर्पित किया था. लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई. में की थी.
ये प्रमुख मंदिर हैं स्थापित
सआदतगंज इलाके में अन्नपूर्णा देवी, मन पूर्णा देवी, गाजी शाह का मंदिर, मसानी माता मंदिर, राधा कृष्ण ठाकुर द्वारा, पंचमुखी शिव, बांके बिहारी ठाकुर द्वारा, कन्हैयालाल ठाकुरद्वारा, वीरू मल ठाकुरद्वारा, चुन्नीलाल मंदिर के साथ-साथ कई शिवलिंग स्थापित हैं. यह सभी अलग अलग स्वरूप में हैं. यहां पर मुख्य मंदिर मसानी माता का है. इनके चारों ओर शिवलिंग, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, भैरव जी, नरसिंह भगवान, संतोषी माता, मां दुर्गा, हनुमान जी, साईं बाबा, विष्णु भगवान और संकटा माता के दिव्य स्वरुप के दर्शन होते हैं.
पीढ़ियों से कर रहे मंदिर की सेवा
सेवादार रजनी श्रीमाली बताती हैं उनके पूर्वज मंदिर के सेवादार थे. अब वो स्वयं मंदिर में बतौर सेवादार कार्यरत हैं. रजनी बताती हैं कि मसानी देवी मंदिर का अपना एक इतिहास है. बताया जाता है कि जहां पर मसानी देवी मंदिर स्थापित है. पहले वहां पर श्मशान था. जानकार बताते हैं कि एक हजार साल पूर्व मसानी माता गोमती नदी तट से सआदतगंज स्थित श्मशान के पास होकर गुजर रहीं थी, तभी उनकी ठेलिया दलदल में फंस गई. काफी कोशिशों के बावजूद ठेलिया नहीं निकल सकी. उसी दौरान मसानी माता खुद वहीं विराजमान हो गईं. धीरे-धीरे मसानी देवी प्रचलित हो गईं. मंदिर में श्री गणेश, हनुमान जी, संतोषी माता, दुर्गा माता, लक्ष्मी माता, भगवान शिव, माता पार्वती, भैरो बाबा, नरसिंह भगवान और सांई बाबा की प्रतिमा श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है.
आसपास के घरों में हैं करीब 112 मंदिर
वीरू मल ठाकुरद्वारा के महंत बाबा राम दास बताते हैं कि यहां करीब 112 मंदिर हैं. यही वजह है कि इसे मिनी अयोध्या कहा जाता है. यहां के मंदिर बहुत पुराने हैं. मुगगल-ए-आजम के जमाने से यहां मंदिर स्थापित हैं.
सहादत खां बुरान मुल्क के नाम से जाना जाता है सहादतगंज
इतिहासविद् योगेश प्रवीन बताते हैं प्राचीन समय में लखनऊ लखनपुर था और अयोध्या से जुड़ा था. एक जमाने में यहां मंदिरों की बड़ी तादाद थी और यह बावन गंज का मोहल्ला कहलाता था. तकिया बूदली से बीबीपुर तक बावन गंज लगता है. इनमें सहादतगंज काफी प्राचीन है. नवाब सहादत खां बुरान मुल्क के नाम से सहादतगंज बसा है. सहादतगंज में एक बुनियाद मंजिल थी जो उनके महल और कोठी की आखिरी निशानी थी. अब वहां खंडहर मिलते हैं. शेष जगह पर खेती किसानी होती है. यहां के लिए एक मशहूर कहावत है
घर-घर मंदिर जन-जन पुजारी.

बुद्धेश्वर महादेव इसके एक सिरे पर हैं. पार्वती का मंदिर मसानी के नाम से है. उनका नाम इस्मसानी भी है. ऐसा कहा जाता है कि शिव श्मशान के देवता हैं. मसानी का मंदिर केवल मथुरा, बनारस और लखनऊ में है. इस मंदिर में कौड़िया चढ़ती हैं. इतिहासकार का दावा है कि दरियापुर यह विदित करता है कि कभी गोमती यहां से होकर गुजरी थी. वह बताते हैं कि अन्नपूर्णा मंदिर में एक जमाने में 15 दिन तक सांझी होती थी. इसमें बृज और बुंदेलखंड से टोलियां आती थीं. जो 15 दिन तक रुकती थीं. इस पर अमृतलाल नागर के बेटे शरद नागर ने पूरा ग्रंथ लिखा हुआ है.

लखनऊ: नवाबों की नगरी में भी एक छोटी अयोध्या है. यहां 'हर घर में मंदिर हर जन पुजारी' की होने की मान्यता है. राजधानी के सआदतगंज इलाके में 100 से ज्यादा मंदिर इतिहास को समेटे हुए हैं. इन मंदिरों में कई रहस्य छुपे हुए हैं. सुबह-शाम आरती और शंखनाद से इलाका गुंजायमान हो जाता है.

मां मसानी देवी का मंदिर श्रद्धालुओं को करता है आकर्षित.
लखनपुरी के नाम से जाना जाता था लखनऊ
इतिहासकारों का दावा है कि वर्तमान के लखनऊ को प्राचीन काल में लक्ष्मण पुरी और लखनपुर के नाम से जाना जाता था. मान्यता है कि अयोध्या के राजा राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को भेंट के तौर पर लखनऊ समर्पित किया था. लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफउद्दौला ने 1775 ई. में की थी.
ये प्रमुख मंदिर हैं स्थापित
सआदतगंज इलाके में अन्नपूर्णा देवी, मन पूर्णा देवी, गाजी शाह का मंदिर, मसानी माता मंदिर, राधा कृष्ण ठाकुर द्वारा, पंचमुखी शिव, बांके बिहारी ठाकुर द्वारा, कन्हैयालाल ठाकुरद्वारा, वीरू मल ठाकुरद्वारा, चुन्नीलाल मंदिर के साथ-साथ कई शिवलिंग स्थापित हैं. यह सभी अलग अलग स्वरूप में हैं. यहां पर मुख्य मंदिर मसानी माता का है. इनके चारों ओर शिवलिंग, भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, भैरव जी, नरसिंह भगवान, संतोषी माता, मां दुर्गा, हनुमान जी, साईं बाबा, विष्णु भगवान और संकटा माता के दिव्य स्वरुप के दर्शन होते हैं.
पीढ़ियों से कर रहे मंदिर की सेवा
सेवादार रजनी श्रीमाली बताती हैं उनके पूर्वज मंदिर के सेवादार थे. अब वो स्वयं मंदिर में बतौर सेवादार कार्यरत हैं. रजनी बताती हैं कि मसानी देवी मंदिर का अपना एक इतिहास है. बताया जाता है कि जहां पर मसानी देवी मंदिर स्थापित है. पहले वहां पर श्मशान था. जानकार बताते हैं कि एक हजार साल पूर्व मसानी माता गोमती नदी तट से सआदतगंज स्थित श्मशान के पास होकर गुजर रहीं थी, तभी उनकी ठेलिया दलदल में फंस गई. काफी कोशिशों के बावजूद ठेलिया नहीं निकल सकी. उसी दौरान मसानी माता खुद वहीं विराजमान हो गईं. धीरे-धीरे मसानी देवी प्रचलित हो गईं. मंदिर में श्री गणेश, हनुमान जी, संतोषी माता, दुर्गा माता, लक्ष्मी माता, भगवान शिव, माता पार्वती, भैरो बाबा, नरसिंह भगवान और सांई बाबा की प्रतिमा श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है.
आसपास के घरों में हैं करीब 112 मंदिर
वीरू मल ठाकुरद्वारा के महंत बाबा राम दास बताते हैं कि यहां करीब 112 मंदिर हैं. यही वजह है कि इसे मिनी अयोध्या कहा जाता है. यहां के मंदिर बहुत पुराने हैं. मुगगल-ए-आजम के जमाने से यहां मंदिर स्थापित हैं.
सहादत खां बुरान मुल्क के नाम से जाना जाता है सहादतगंज
इतिहासविद् योगेश प्रवीन बताते हैं प्राचीन समय में लखनऊ लखनपुर था और अयोध्या से जुड़ा था. एक जमाने में यहां मंदिरों की बड़ी तादाद थी और यह बावन गंज का मोहल्ला कहलाता था. तकिया बूदली से बीबीपुर तक बावन गंज लगता है. इनमें सहादतगंज काफी प्राचीन है. नवाब सहादत खां बुरान मुल्क के नाम से सहादतगंज बसा है. सहादतगंज में एक बुनियाद मंजिल थी जो उनके महल और कोठी की आखिरी निशानी थी. अब वहां खंडहर मिलते हैं. शेष जगह पर खेती किसानी होती है. यहां के लिए एक मशहूर कहावत है
घर-घर मंदिर जन-जन पुजारी.

बुद्धेश्वर महादेव इसके एक सिरे पर हैं. पार्वती का मंदिर मसानी के नाम से है. उनका नाम इस्मसानी भी है. ऐसा कहा जाता है कि शिव श्मशान के देवता हैं. मसानी का मंदिर केवल मथुरा, बनारस और लखनऊ में है. इस मंदिर में कौड़िया चढ़ती हैं. इतिहासकार का दावा है कि दरियापुर यह विदित करता है कि कभी गोमती यहां से होकर गुजरी थी. वह बताते हैं कि अन्नपूर्णा मंदिर में एक जमाने में 15 दिन तक सांझी होती थी. इसमें बृज और बुंदेलखंड से टोलियां आती थीं. जो 15 दिन तक रुकती थीं. इस पर अमृतलाल नागर के बेटे शरद नागर ने पूरा ग्रंथ लिखा हुआ है.

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