लखनऊ: नवजात बच्चों में पाई जाने वाली हाइपोस्पेडियस नाम की बीमारी के लिए इंटरनेशनल जर्नल्स में 10 से 50% तक की विफलता दर दर्ज की जा चुकी है. ऐसे में केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डाक्टरों की टीम ने हाइपोस्पेडियस नामक बीमारी का पहली ही बार में सफल सर्जरी करते हुए बड़ी उपलब्धी हासिल की है.
8 लाख खर्च करने पर भी नहीं मिला था सफल इलाज
हरदोई निवासी एक मरीज को 4 वर्षों तक दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में 8 बार सर्जरी कराई, पर उसका सफल इलाज नहीं हो सका. इस सर्जरी में मरीज के 8 लाख रुपये से अधिक खर्च हो गए, लेकिन इलाज सफल नहीं हो सका. वहीं किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने इसका पहली बार में ही सफल इलाज किया.
8 बार सर्जरी कराने के बाद भी असफलता
केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष और इस सर्जरी को सफल बनाने वाले डॉ. एसएन कुरील कहते हैं कि इस बीमारी की सर्जरी करने के लिए विश्व स्तर पर 20% तक कॉम्प्लिकेशन दर्ज हुए हैं. यह सर्जरी मरीज में 8 बार फेल होकर हमारे पास आई थी, जिसमें सफलता की दर और भी कम हो जाती है. इन सब के बावजूद हमने सर्जरी कर पहली बार में ही सफल इलाज किया.
तेजी से बढ़ रहा बच्चों में हाइपोस्पेडियस का आंकड़ा
केजीएमयू के डॉ. कुरील ने बताया कि हमने अपनी नई सर्जिकल तकनीक की वजह से ही इस सर्जरी को पहली बार में सफल बनाया. हम इस बात का दावा करते हैं कि यह तकनीक ही इस सर्जरी का शत-प्रतिशत इलाज है. वैश्विक स्तर पर आंकड़ों की बात की जाए तो 10 साल पहले तक जहां 500 बच्चों में किसी एक को यह बीमारी होती थी, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़ने से ढ़ाई सौ बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी सामने आ रही है.
क्यों होती हाइपोस्पेडियस बीमारी
केजीएमयू के डॉ. एसएन कुरील बताते हैं कि यह बीमारी लाइफस्टाइल बदलने के कारण तो बढ़ ही रही है, साथ ही गर्भवती महिलाओं में खानपान की वजह से भी यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है. जब भी गर्भवती महिला को एक निश्चित मात्रा से अधिक एस्ट्रोजन मिलता है, तो उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा यह बीमारी कभी-कभी जेनेटिक भी हो सकती है और कुछ अन्य वजहें भी हैं. इस बीमारी से बच्चे में फिजिकल डिस्टरबेंस के साथ साइकोलॉजिकल डिस्टरबेंस भी होते हैं.