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केजीएमयू के डाक्टरों ने किया 'हाइपोस्पेडियस' का सफल इलाज, जानिए कैसे - up news

यूपी के लखनऊ केजीएमयू के डाक्टरों ने नवजात बच्चों में होने वाले हाइपोस्पेडियस का सफल इलाज किया. डाक्टरों ने बताया कि यह बीमारी 10 साल पहले  वैश्विक स्तर पर 500 बच्चों में से किसी एक को होती थी, लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़ रहा है.

हाइपोस्पेडियस का सफल इलाज.
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Published : Sep 5, 2019, 10:33 AM IST

लखनऊ: नवजात बच्चों में पाई जाने वाली हाइपोस्पेडियस नाम की बीमारी के लिए इंटरनेशनल जर्नल्स में 10 से 50% तक की विफलता दर दर्ज की जा चुकी है. ऐसे में केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डाक्टरों की टीम ने हाइपोस्पेडियस नामक बीमारी का पहली ही बार में सफल सर्जरी करते हुए बड़ी उपलब्धी हासिल की है.

हाइपोस्पेडियस का सफल इलाज.

8 लाख खर्च करने पर भी नहीं मिला था सफल इलाज
हरदोई निवासी एक मरीज को 4 वर्षों तक दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में 8 बार सर्जरी कराई, पर उसका सफल इलाज नहीं हो सका. इस सर्जरी में मरीज के 8 लाख रुपये से अधिक खर्च हो गए, लेकिन इलाज सफल नहीं हो सका. वहीं किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने इसका पहली बार में ही सफल इलाज किया.


8 बार सर्जरी कराने के बाद भी असफलता
केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष और इस सर्जरी को सफल बनाने वाले डॉ. एसएन कुरील कहते हैं कि इस बीमारी की सर्जरी करने के लिए विश्व स्तर पर 20% तक कॉम्प्लिकेशन दर्ज हुए हैं. यह सर्जरी मरीज में 8 बार फेल होकर हमारे पास आई थी, जिसमें सफलता की दर और भी कम हो जाती है. इन सब के बावजूद हमने सर्जरी कर पहली बार में ही सफल इलाज किया.


तेजी से बढ़ रहा बच्चों में हाइपोस्पेडियस का आंकड़ा
केजीएमयू के डॉ. कुरील ने बताया कि हमने अपनी नई सर्जिकल तकनीक की वजह से ही इस सर्जरी को पहली बार में सफल बनाया. हम इस बात का दावा करते हैं कि यह तकनीक ही इस सर्जरी का शत-प्रतिशत इलाज है. वैश्विक स्तर पर आंकड़ों की बात की जाए तो 10 साल पहले तक जहां 500 बच्चों में किसी एक को यह बीमारी होती थी, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़ने से ढ़ाई सौ बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी सामने आ रही है.


क्यों होती हाइपोस्पेडियस बीमारी
केजीएमयू के डॉ. एसएन कुरील बताते हैं कि यह बीमारी लाइफस्टाइल बदलने के कारण तो बढ़ ही रही है, साथ ही गर्भवती महिलाओं में खानपान की वजह से भी यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है. जब भी गर्भवती महिला को एक निश्चित मात्रा से अधिक एस्ट्रोजन मिलता है, तो उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा यह बीमारी कभी-कभी जेनेटिक भी हो सकती है और कुछ अन्य वजहें भी हैं. इस बीमारी से बच्चे में फिजिकल डिस्टरबेंस के साथ साइकोलॉजिकल डिस्टरबेंस भी होते हैं.

लखनऊ: नवजात बच्चों में पाई जाने वाली हाइपोस्पेडियस नाम की बीमारी के लिए इंटरनेशनल जर्नल्स में 10 से 50% तक की विफलता दर दर्ज की जा चुकी है. ऐसे में केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डाक्टरों की टीम ने हाइपोस्पेडियस नामक बीमारी का पहली ही बार में सफल सर्जरी करते हुए बड़ी उपलब्धी हासिल की है.

हाइपोस्पेडियस का सफल इलाज.

8 लाख खर्च करने पर भी नहीं मिला था सफल इलाज
हरदोई निवासी एक मरीज को 4 वर्षों तक दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में 8 बार सर्जरी कराई, पर उसका सफल इलाज नहीं हो सका. इस सर्जरी में मरीज के 8 लाख रुपये से अधिक खर्च हो गए, लेकिन इलाज सफल नहीं हो सका. वहीं किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने इसका पहली बार में ही सफल इलाज किया.


8 बार सर्जरी कराने के बाद भी असफलता
केजीएमयू के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष और इस सर्जरी को सफल बनाने वाले डॉ. एसएन कुरील कहते हैं कि इस बीमारी की सर्जरी करने के लिए विश्व स्तर पर 20% तक कॉम्प्लिकेशन दर्ज हुए हैं. यह सर्जरी मरीज में 8 बार फेल होकर हमारे पास आई थी, जिसमें सफलता की दर और भी कम हो जाती है. इन सब के बावजूद हमने सर्जरी कर पहली बार में ही सफल इलाज किया.


तेजी से बढ़ रहा बच्चों में हाइपोस्पेडियस का आंकड़ा
केजीएमयू के डॉ. कुरील ने बताया कि हमने अपनी नई सर्जिकल तकनीक की वजह से ही इस सर्जरी को पहली बार में सफल बनाया. हम इस बात का दावा करते हैं कि यह तकनीक ही इस सर्जरी का शत-प्रतिशत इलाज है. वैश्विक स्तर पर आंकड़ों की बात की जाए तो 10 साल पहले तक जहां 500 बच्चों में किसी एक को यह बीमारी होती थी, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़ने से ढ़ाई सौ बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी सामने आ रही है.


क्यों होती हाइपोस्पेडियस बीमारी
केजीएमयू के डॉ. एसएन कुरील बताते हैं कि यह बीमारी लाइफस्टाइल बदलने के कारण तो बढ़ ही रही है, साथ ही गर्भवती महिलाओं में खानपान की वजह से भी यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है. जब भी गर्भवती महिला को एक निश्चित मात्रा से अधिक एस्ट्रोजन मिलता है, तो उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा यह बीमारी कभी-कभी जेनेटिक भी हो सकती है और कुछ अन्य वजहें भी हैं. इस बीमारी से बच्चे में फिजिकल डिस्टरबेंस के साथ साइकोलॉजिकल डिस्टरबेंस भी होते हैं.

Intro:लखनऊ। कभी-कभी नवजात बच्चों में कुछ ऐसी विकृतियां हो जाती हैं जिसके इलाज के लिए उनके माता-पिता को ना केवल कई अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ जाते हैं, पर साथ ही कई गुना खर्च भी बढ़ जाता है। इन्हीं नवजात में विकृतियों में से एक बीमारी है हाइपोस्पेडियस। इस बीमारी के लिए इंटरनेशनल जर्नल्स में भी 10 से 50% तक की विफलता दर दर्ज की जा चुकी है।


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इस बीमारी के लिए हरदोई निवासी एक मरीज को 4 वर्षों तक दिल्ली के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में 8 बार सर्जरी करवानी पड़ी पर उस का सफल इलाज नहीं हो सका। इस सर्जरी में लगभग ₹8 लाख से भी अधिक का खर्च भी वहन हुआ। वही किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में यह सर्जरी पहली बार में ही सफल हुई।

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष और इस सर्जरी को सफल बनाने वाले डॉक्टर एसएन कुरील कहते हैं कि यह सर्जरी सभी मायनों में सबसे अलग है क्योंकि सबसे पहले यह हाइपोस्पेडियाज की सर्जरी है। इस सर्जरी के नए मामलों में भी विश्व स्तर पर 20% तक के कॉम्प्लिकेशंस दर्ज हुए हैं। इसके अलावा इस मरीज में यह सर्जरी 8 बार फेल होकर हमारे पास आई थी जिसमें सफलता की दर और भी कम हो जाती है। इन सब के बावजूद हमने सर्जरी कर पहली बार में ही सफल इलाज किया।

डॉ कुरील कहते हैं कि हमने अपनी नई सर्जिकल तकनीक की वजह से ही इस सर्जरी को पहली बार में सफल बना दिया और हम इस बात का दावा करते हैं कि यह तकनीक ही इस सर्जरी का शत-प्रतिशत इलाज है। वह कहते हैं कि वैश्विक स्तर पर आंकड़ों की बात की जाए तो 10 साल पहले तक जहां 500 बच्चों मैं किसी एक को या बीमारी होती थी वहीं अब यह आंकड़ा बढ़ रहा है फिलहाल अब ढाई सौ बच्चों में से एक बच्चे में यह बीमारी सामने आ रही है।

डॉ कुरील कहते हैं कि अमूमन नए मामलों में इस सर्जरी में लगभग पौने 2 घंटे का समय लगता है, लेकिन इस बच्चे की सर्जरी में हमें लगभग 3 घंटे का समय लगा क्योंकि इसमें हमें बच्चे की पहले की सर्जरी में हुए डैमेज को भी देखना था। बच्चे की 'वेसल व्यूअर' जांच में चार मुख्य वसेल में से 3 मैसेज डैमेज पाई गई थी एक डोरसोमेडियल वैसे ही बची थी जिसके सहारे हमने इस सर्जरी को पूरा किया।

इस बीमारी को होने के कारणों के बारे में डॉक्टर कुरील कहते हैं कि यह बीमारी लाइफ़स्टाइल चेंजेज की वजह से तो बढ़ ही रही है पर साथ ही गर्भवती महिलाओं में खानपान की वजह से भी यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है। वह कहते हैं कि जब भी गर्भवती महिला को एक निश्चित मात्रा से अधिक एस्ट्रोजन मिलता है तो उसके गर्भ में पल रहे बच्चे को यह बीमारी होने की आशंका बढ़ जाती है। इसके अलावा यह बीमारी कभी-कभी जेनेटिक भी हो सकती है और कुछ अन्य वजहें भी हैं जिनका पता अभी नहीं चल पाया है।

डॉक्टर कुरील कहते हैं कि यह बीमारी जन्मजात होती है। इस बीमारी की वजह से एक बच्चे में फिजिकल डिस्टरबेंस के साथ साइकोलॉजिकल डिस्टरबेंस भी होते हैं। साथ ही आगे चलकर उसे नए रिश्ते बनाने में भी परेशानी होती है।



Conclusion:इस सर्जरी को सफल बनाने में पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के डॉक्टर एसएन कुरील के साथ डॉक्टर अर्चिका गुप्ता, डॉक्टर राहुल कुमार, एनेस्थीसिया विभाग से डॉ विनीता सिंह और उनकी टीम और ओटी सिस्टर वंदना और उनकी टीम शामिल रहे।

बाइट- डॉक्टर एसएन कुरील, विभागाध्यक्ष, पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग, केजीएमयू

पीटीसी- रामांशी मिश्रा
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