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आईआईटीआर जैसे इंस्टिट्यूशन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण, सरकार करे सपोर्टः साइंटिस्ट

उत्तर प्रदेश के लखनऊ में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) ने शुक्रवार को अपना 54वां वार्षिक दिवस समरोह मनाया. इस मौके पर बेंगलुरु के पूर्व वैज्ञानिक और पद्मभूषण से सम्मानित प्रो. पी बलराम ने कहा कि इस प्रकार के इंस्टिट्यूशंस व यूनिवर्सिटीज को सरकार से ज्यादा मदद मिलनी चाहिए.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च ने शुक्रवार को अपना 54वां वार्षिक दिवस समरोह मनाया.
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Published : Nov 15, 2019, 7:28 PM IST

लखनऊ. वैज्ञानिक और शोध संस्थान देश की प्रगति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में आईआईटीआर, सीएसआईआर जैसा इंस्टिट्यूशंस, यूनिवर्सिटीज और हायर एजुकेशन संस्थानों के सामने कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं. संस्थानों का दायरा कम होता जा रहा है, बजट कम किया जा रहा है और फैकल्टी का रिक्रूटमेंट नहीं हो पा रहा है. इसका नुकसान यहां काम कर रहे फैकल्टी को उठाना पड़ रहा है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च ने शुक्रवार को अपना 54वां वार्षिक दिवस समरोह मनाया.

इसके अलावा जो शोधार्थी यहां पर आ रहे हैं, उनके भविष्य के साथ भी अन्याय हो रहा है. ऐसे में इस प्रकार के इंस्टिट्यूशंस व यूनिवर्सिटीज को सरकार से ज्यादा मदद मिलनी चाहिए. ये बातें शुक्रवार को भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के पूर्व वैज्ञानिक और पद्मभूषण से सम्मानित प्रो. पी बलराम ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के 54वें वार्षिक दिवस समारोह में कही.

इस मौके पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के निदेशक प्रो. आलोक धवन ने संस्थान की प्रगति रिपोर्ट के बारे में बताते हुए संस्थान के कार्यों की समीक्षा की. इस दौरान उन्होंने स्वच्छ भारत कौशल भारत, नमामि गंगे, स्किल इंडिया डेवलपमेंट जैसे कार्यक्रमों के लिए संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी भी दी. उन्होंने बताया कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ यह संस्थान 2015 से ही अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर रहा है. वार्षिक दिवस समारोह के अवसर पर संस्थान में 2020 के लिए संस्थान का कैलेंडर जारी किया. साथ ही संस्थान के तमाम वैज्ञानिकों को उनके विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित भी किया गया.

आईआईटीआर जैसे इंस्टिट्यूशन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आजकल आईआईटीआर, सीएसआईआर जैसा इंस्टिट्यूशंस, यूनिवर्सिटी इन सबको सरकार से ज्यादा सर्पोट मिलना चाहिए. अभी चार-पांच साल से सपोर्ट कम हो गई है. वैज्ञानिकों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है.
-प्रो. पी बलराम, पद्मभूषण, पूर्व वैज्ञानिक

लखनऊ. वैज्ञानिक और शोध संस्थान देश की प्रगति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, लेकिन मौजूदा समय में आईआईटीआर, सीएसआईआर जैसा इंस्टिट्यूशंस, यूनिवर्सिटीज और हायर एजुकेशन संस्थानों के सामने कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही हैं. संस्थानों का दायरा कम होता जा रहा है, बजट कम किया जा रहा है और फैकल्टी का रिक्रूटमेंट नहीं हो पा रहा है. इसका नुकसान यहां काम कर रहे फैकल्टी को उठाना पड़ रहा है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च ने शुक्रवार को अपना 54वां वार्षिक दिवस समरोह मनाया.

इसके अलावा जो शोधार्थी यहां पर आ रहे हैं, उनके भविष्य के साथ भी अन्याय हो रहा है. ऐसे में इस प्रकार के इंस्टिट्यूशंस व यूनिवर्सिटीज को सरकार से ज्यादा मदद मिलनी चाहिए. ये बातें शुक्रवार को भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के पूर्व वैज्ञानिक और पद्मभूषण से सम्मानित प्रो. पी बलराम ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के 54वें वार्षिक दिवस समारोह में कही.

इस मौके पर इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के निदेशक प्रो. आलोक धवन ने संस्थान की प्रगति रिपोर्ट के बारे में बताते हुए संस्थान के कार्यों की समीक्षा की. इस दौरान उन्होंने स्वच्छ भारत कौशल भारत, नमामि गंगे, स्किल इंडिया डेवलपमेंट जैसे कार्यक्रमों के लिए संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी भी दी. उन्होंने बताया कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ यह संस्थान 2015 से ही अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर रहा है. वार्षिक दिवस समारोह के अवसर पर संस्थान में 2020 के लिए संस्थान का कैलेंडर जारी किया. साथ ही संस्थान के तमाम वैज्ञानिकों को उनके विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित भी किया गया.

आईआईटीआर जैसे इंस्टिट्यूशन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आजकल आईआईटीआर, सीएसआईआर जैसा इंस्टिट्यूशंस, यूनिवर्सिटी इन सबको सरकार से ज्यादा सर्पोट मिलना चाहिए. अभी चार-पांच साल से सपोर्ट कम हो गई है. वैज्ञानिकों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है.
-प्रो. पी बलराम, पद्मभूषण, पूर्व वैज्ञानिक

Intro:लखनऊ। वैज्ञानिक शोध संस्थान देश की प्रगति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं लेकिन इसी प्रगति में यदि कोई बाधाएं उत्पन्न करें तो इससे न केवल संस्थान बल्कि उसके कर्मचारियों को भी खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के 54 वें वार्षिक दिवस के मौके पर आई वैज्ञानिक और पद्म भूषण से सम्मानित प्रकृति बलराम ने भी कुछ ऐसी ही बात कही।


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इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के 54 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में वार्षिक दिवस समारोह का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आये बेंगलुरु के पूर्व वैज्ञानिक और पद्मभूषण प्रो पी बलराम ने कहा कि वार्षिक दिवस समारोह में कई ऐसी चीजें शामिल होती हैं जो हमारी सफलताओं और असफलताओं की कुंजी होती हैं मौजूदा समय में वैज्ञानिक शोध संस्थानों के सामने कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही है संस्थानों का दायरा कम होता जा रहा है और बजट कम किया जा रहा है इसका नुकसान यहां काम कर रहे फैकल्टी को उठाना पड़ रहा है इसके अलावा जो शोधार्थी यहां पर आ रहे हैं उनके भविष्य के साथ भी अन्याय हो रहा है।

इस अवसर पर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के निदेशक प्रोफेसर आलोक धवन ने संस्थान की प्रगति रिपोर्ट पढ़ी और संस्थान के कार्यों की समीक्षा की इस दौरान उन्होंने स्वच्छ भारत कौशल भारत नमामि गंगे स्किल इंडिया डेवलपमेंट जैसे तमाम मिशन कार्यक्रमों के लिए संस्थान में किए जा रहे कार्यों की जानकारी भी दी उन्होंने बताया कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ यह संस्थान 2015 से ही अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर रहा है।


Conclusion:वार्षिक दिवस समारोह के अवसर पर संस्थान में 2020 के लिए संस्थान का कैलेंडर जारी किया। इस अवसर पर संस्थान के तमाम वैज्ञानिकों को उनके विशिष्ट सेवा के लिए सम्मानित भी किया गया।

बाइट- पद्म भूषण डॉ पी बलराम, पूर्व वैज्ञानिक

बाइट- प्रो आलोक धावन, निदेशक, आईआईटीआर

रामांशी मिश्रा
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