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हाईकोर्ट ने राज्य सरकार पर लगाया 50 हजार का हर्जाना, नौकरी बचाने के लिए पांच मुकदमे लड़ चुके शिक्षक के मामले में आदेश - 50 हजार का हर्जाना

नौकरी बचाने के लिए 21 साल में पांच-पांच मुकदमे लड़ने के लिए एक शिक्षक को मजबूर किये जाने पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने राज्य सरकार (UP Government) पर पचास हजार रुपये का हर्जाना लगाया है.

लखनऊ हाईकोर्ट
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Published : Aug 5, 2021, 8:50 PM IST

लखनऊ : नौकरी बचाने के लिए 21 साल में पांच-पांच मुकदमे लड़ने के लिए एक शिक्षक को मजबूर किये जाने पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow High Court) ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने राज्य सरकार (UP Government) पर पचास हजार रुपये का हर्जाना लगाया है. न्यायालय ने कहा कि बार-बार के आदेश के बावजूद माध्यमिक शिक्षा विभाग के याची सहायक शिक्षक की नियुक्ति मामले में यथोचित आदेश नहीं किया जाना उसका उत्पीड़न है.


यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की एकल पीठ ने प्रमोद कुमार की सेवा सम्बंधी याचिका पर दिया. वर्तमान याचिका में याची ने अपर मुख्य सचिव, माध्यमिक शिक्षा के 26 अप्रैल 2019 के आदेश को चुनौती दी थी. जिसमें एक बार याची के नियुक्ति के दावे को खारिज किया गया था. न्यायालय ने उक्त आदेश को निरस्त करते हुए स्क्रूटनी कमेटी के प्रस्ताव के मुताबिक निर्णय लेने को कहा है. वहीं न्यायालय ने याची को पचास हजार रुपये का हर्जाना देने के आदेश के साथ-साथ यह भी कहा है कि सरकार चाहे तो हर्जाने की यह रकम 26 अप्रैल 2019 का आदेश पारित करने वाले अधिकारी से वसूल सकती है.


क्या है मामला

याची का कहना था कि वर्ष 1999 में विषय विशेषज्ञ के पद पर भर्ती में उसका चयन हो गया. उसने हरदोई के आरआर इंटर कॉलेज में ज्वाइन भी कर लिया. हालांकि नियुक्तियां कुछ अनियमितताएं पाये जाने के कारण रोक दी गयी. एक अभ्यर्थी अवधेश कुमार ने हाईकोर्ट की शरण ली, जिस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पूरी भर्ती प्रक्रिया को रद् करने के बजाय एक स्क्रूटनी कमेटी बनाकर अनियमित नियुक्तियों को अलग करने व सही नियुक्तियों को जारी रखने का आदेश दिया. उक्त आदेश के बाद स्क्रूटनी कमेटी ने अन्य अभ्यर्थियों के साथ-साथ याची की नियुक्ति को भी सही पाया. लेकिन, विभाग द्वारा याची के नियुक्ति के दावे को खारिज कर दिया गया. इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिस पर न्यायालय ने वर्ष 2000 में ही विभाग को याची के मामले पर स्क्रूटनी कमेटी की रिपोर्ट व अन्य अभ्यर्थी के मामले को दृष्टिगत रखते हुए निर्णय लेने का आदेश दिया. लेकिन, विभाग द्वारा पुनः याची के दावे को खारिज कर दिया गया. इस प्रकार विभाग याची के दावे को खारिज करता रहा और याची हाईकोर्ट की शरण लेता रहा.

इसे भी पढ़ें - 'VIP स्टेटस के लिए सरकारी सुरक्षा की संस्कृति ठीक नहीं, समाज और राष्ट्रहित में काम करने वालों को ही दी जाए सरकारी सुरक्षा'

लखनऊ : नौकरी बचाने के लिए 21 साल में पांच-पांच मुकदमे लड़ने के लिए एक शिक्षक को मजबूर किये जाने पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow High Court) ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने राज्य सरकार (UP Government) पर पचास हजार रुपये का हर्जाना लगाया है. न्यायालय ने कहा कि बार-बार के आदेश के बावजूद माध्यमिक शिक्षा विभाग के याची सहायक शिक्षक की नियुक्ति मामले में यथोचित आदेश नहीं किया जाना उसका उत्पीड़न है.


यह आदेश न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन की एकल पीठ ने प्रमोद कुमार की सेवा सम्बंधी याचिका पर दिया. वर्तमान याचिका में याची ने अपर मुख्य सचिव, माध्यमिक शिक्षा के 26 अप्रैल 2019 के आदेश को चुनौती दी थी. जिसमें एक बार याची के नियुक्ति के दावे को खारिज किया गया था. न्यायालय ने उक्त आदेश को निरस्त करते हुए स्क्रूटनी कमेटी के प्रस्ताव के मुताबिक निर्णय लेने को कहा है. वहीं न्यायालय ने याची को पचास हजार रुपये का हर्जाना देने के आदेश के साथ-साथ यह भी कहा है कि सरकार चाहे तो हर्जाने की यह रकम 26 अप्रैल 2019 का आदेश पारित करने वाले अधिकारी से वसूल सकती है.


क्या है मामला

याची का कहना था कि वर्ष 1999 में विषय विशेषज्ञ के पद पर भर्ती में उसका चयन हो गया. उसने हरदोई के आरआर इंटर कॉलेज में ज्वाइन भी कर लिया. हालांकि नियुक्तियां कुछ अनियमितताएं पाये जाने के कारण रोक दी गयी. एक अभ्यर्थी अवधेश कुमार ने हाईकोर्ट की शरण ली, जिस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को पूरी भर्ती प्रक्रिया को रद् करने के बजाय एक स्क्रूटनी कमेटी बनाकर अनियमित नियुक्तियों को अलग करने व सही नियुक्तियों को जारी रखने का आदेश दिया. उक्त आदेश के बाद स्क्रूटनी कमेटी ने अन्य अभ्यर्थियों के साथ-साथ याची की नियुक्ति को भी सही पाया. लेकिन, विभाग द्वारा याची के नियुक्ति के दावे को खारिज कर दिया गया. इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की, जिस पर न्यायालय ने वर्ष 2000 में ही विभाग को याची के मामले पर स्क्रूटनी कमेटी की रिपोर्ट व अन्य अभ्यर्थी के मामले को दृष्टिगत रखते हुए निर्णय लेने का आदेश दिया. लेकिन, विभाग द्वारा पुनः याची के दावे को खारिज कर दिया गया. इस प्रकार विभाग याची के दावे को खारिज करता रहा और याची हाईकोर्ट की शरण लेता रहा.

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