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विश्व जनसंख्या दिवस: जागरूकता की कमी से फेल हो रही सरकारी योजनाएं

परिवार नियोजन को लेकर सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जाती हैं. हालांकि ये योजनाएं जमीनी स्तर तक पहुंचने में दम तोड़ देती हैं और इनका कोई खास असर नहीं दिखता. सरकार की ओर से इन योजनाओं को लेकर बड़ पैमाने पर खर्च भी किया जाता है, लेकिन जागरूकता के अभाव में ये योजनाएं कोई खास असर नहीं छोड़ पातीं.

डॉ. बद्री विशाल सिंह.
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Published : Jul 11, 2019, 10:49 AM IST

लखनऊ: जनसंख्या दिवस पर प्रदेश भर में तमाम तरह की परिवार नियोजन और जागरूकता के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, लेकिन ये कार्यक्रम जमीन पर नहीं पहुंच रहे हैं. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या इसका सटीक प्रमाण है. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 22 करोड़ के पास पहुंच चुकी है, जिससे साफ है कि परिवार नियोजन की तमाम योजनाएं अभी भी जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रही हैं.

जानकारी देते डॉ. बद्री विशाल सिंह.

हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. उसका उद्देश्य परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक करना होता है, जिससे की देश की बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सके. इसके तहत तमाम तरह की योजनाएं भी सरकार द्वारा चलाई जाती है. इन योजनाओं के तहत लोगों को यह समझाया जाता है कि परिवार को कैसे नियोजित किया जाए, जिससे आने वाले दिनों में तमाम दिक्कतों को समय रहते हम खत्म किया जा सके. बात करें उत्तर प्रदेश की तो 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या करीब 19 करोड़ रही जो कि विश्व के शीर्ष 5 देशों से पीछे है.

कौन-कौन सी सरकारी योजनाएं हैं प्रमुख
परिवार नियोजन के लिए सरकार की ओर से तमाम तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं. इसके तहत सरकारी अस्पतालों पर कन्डोम, पुरुष नसबंदी और महिला नसबंदी, कॉपर टी, अंतरा इंजेक्शन, छाया टेबलेट जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन योजनाओं के दम पर ही सरकारें परिवार नियोजन की बात करती है.

नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ
परिवार नियोजन की कई योजनाएं लंबे समय से चलती आ रही हैं. कई सरकारों ने इन योजनाओं पर जमकर काम भी किया. तमाम तरह की योजनाएं भी लाई गईं, लेकिन इन सब के पीछे जो बड़े फेलियर के रूप में देखा जा रहा है वह स्टरलाइजेशन है. इसे सबसे बड़ी समस्या के तौर पर देखा गया है. गर्भनिरोधक की सही समझ और जानकारी के साथ ही उपयोग की कमी को बढ़ती जनसंख्या के मुख्य कारण के तौर पर देखा जाता है.

परिवार नियोजन का बोझ महिलाओं पर ज्यादा
आंकड़ों की बात करें तो 53.3% आबादी मॉडर्न गर्भनिरोधक तरीकों को अपनाती है. वहीं केलव 0.3 प्रतिशत पुरुष ही नसबंदी करवाते हैं. इससे यह स्पष्ट है कि देश की महिलाओं पर परिवार नियोजन का बोझ सबसे ज्यादा है.

भ्रांतियों के बीच चल रही योजनाएं
पुरुषों में नसबंदी को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां सामने आती रहती हैं. इन भ्रांतियों में यह भी कहा जाता है कि नसबंदी आदि करवाने की वजह से वह किसी तरह का भारी काम नहीं कर पाएंगे. वहीं विशेषज्ञों की मानें तो ऐसी कोई दिक्कत जीवन भर नहीं आती है. इन बातों से स्पष्ट है कि लोगों में जागरूकता की बेहद कमी है.

लखनऊ: जनसंख्या दिवस पर प्रदेश भर में तमाम तरह की परिवार नियोजन और जागरूकता के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, लेकिन ये कार्यक्रम जमीन पर नहीं पहुंच रहे हैं. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या इसका सटीक प्रमाण है. उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 22 करोड़ के पास पहुंच चुकी है, जिससे साफ है कि परिवार नियोजन की तमाम योजनाएं अभी भी जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रही हैं.

जानकारी देते डॉ. बद्री विशाल सिंह.

हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. उसका उद्देश्य परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक करना होता है, जिससे की देश की बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सके. इसके तहत तमाम तरह की योजनाएं भी सरकार द्वारा चलाई जाती है. इन योजनाओं के तहत लोगों को यह समझाया जाता है कि परिवार को कैसे नियोजित किया जाए, जिससे आने वाले दिनों में तमाम दिक्कतों को समय रहते हम खत्म किया जा सके. बात करें उत्तर प्रदेश की तो 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या करीब 19 करोड़ रही जो कि विश्व के शीर्ष 5 देशों से पीछे है.

कौन-कौन सी सरकारी योजनाएं हैं प्रमुख
परिवार नियोजन के लिए सरकार की ओर से तमाम तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं. इसके तहत सरकारी अस्पतालों पर कन्डोम, पुरुष नसबंदी और महिला नसबंदी, कॉपर टी, अंतरा इंजेक्शन, छाया टेबलेट जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन योजनाओं के दम पर ही सरकारें परिवार नियोजन की बात करती है.

नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ
परिवार नियोजन की कई योजनाएं लंबे समय से चलती आ रही हैं. कई सरकारों ने इन योजनाओं पर जमकर काम भी किया. तमाम तरह की योजनाएं भी लाई गईं, लेकिन इन सब के पीछे जो बड़े फेलियर के रूप में देखा जा रहा है वह स्टरलाइजेशन है. इसे सबसे बड़ी समस्या के तौर पर देखा गया है. गर्भनिरोधक की सही समझ और जानकारी के साथ ही उपयोग की कमी को बढ़ती जनसंख्या के मुख्य कारण के तौर पर देखा जाता है.

परिवार नियोजन का बोझ महिलाओं पर ज्यादा
आंकड़ों की बात करें तो 53.3% आबादी मॉडर्न गर्भनिरोधक तरीकों को अपनाती है. वहीं केलव 0.3 प्रतिशत पुरुष ही नसबंदी करवाते हैं. इससे यह स्पष्ट है कि देश की महिलाओं पर परिवार नियोजन का बोझ सबसे ज्यादा है.

भ्रांतियों के बीच चल रही योजनाएं
पुरुषों में नसबंदी को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां सामने आती रहती हैं. इन भ्रांतियों में यह भी कहा जाता है कि नसबंदी आदि करवाने की वजह से वह किसी तरह का भारी काम नहीं कर पाएंगे. वहीं विशेषज्ञों की मानें तो ऐसी कोई दिक्कत जीवन भर नहीं आती है. इन बातों से स्पष्ट है कि लोगों में जागरूकता की बेहद कमी है.

Intro:जनसंख्या दिवस पर देश भर में प्रदेश भर में तमाम तरह के परिवार नियोजन व जागरूकता के कार्यक्रम किए जाते हैं। लेकिन इन सब कार्यक्रम जमीन पर नहीं पहुंच रहे हैं। इसका सीधा साफ प्रमाण है उत्तर प्रदेश की जनसंख्या अब लगभग 22 करोड़ के पास पहुंच चुकी है जिससे साफ है कि परिवार नियोजन की तमाम योजनाएं जमीन पर है ही नहीं।


Body:11 जुलाई को हर साल विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। उसका उद्देश्य परिवार नियोजन के प्रति लोगों को जागरूक करना जिससे की देश की बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाई जा सके। इसके तहत तमाम तरह की योजनाएं भी सरकार द्वारा चलाई जाती है। जिसके तहत लोगों को यह समझाया जाता है की परिवार को कैसे नियोजित किया जाए ?जिससे कि आने वाले दिनों में तमाम दिक्कतों को कैसे समय रहते हम खत्म कर सकते हैं।लेकिन इस दिन को मनाने की वजह दुनिया में बढ़ती जनसंख्या है।बढ़ती जनसंख्या को देखकर एक सर्वे के अनुसार यह बात कही जा रही है कि 2050 तक 70 फ़ीसदी जनसंख्या लगभग हर शहर में होगी। बात करें उत्तर प्रदेश की तो 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 19 करोड़ के आसपास रही जो कि विश्व के शीर्ष 5 देशों से पीछे हैं। लेकिन हालिया आंकड़ों में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 22 करोड़ के आंकड़े को छू रही है। लगभग तीन करोड़ का इजाफा जनसंख्या में पिछले 10 सालों में हो गया है।

क्या है सरकारी प्रमुख योजनाएं

परिवार नियोजन के लिए यूं तो तमाम तरह की योजनाएं सरकार द्वारा चलाई जाती हैं। जिसके तहत सरकारी अस्पतालों पर कॉन्डम ,पुरुष नसबंदी व महिला नसबंदी ,कॉपर टैबलेट प्रसव के पहले व प्रसव के बाद ,अंतरा इंजेक्शन तीन-तीन महीने के अंतर पर ,छाया टेबलेट हर हफ्ते एक यह सभी योजनाएं हैं। इन योजनाओं के दाम पर ही सरकारे परिवार नियोजन की बाते होती है।

नहीं पहुंच पा रही योजनाएं लोगों तक


इन सब के पीछे के कारणों की चर्चा की जाए तो परिवार नियोजन प्रोग्राम लंबे समय से चलते आ रहे हैं कई सरकारों ने इस पर जमकर काम भी किया। तमाम तरह की योजनाएं भी लाएं। लेकिन इन सब के पीछे जो बड़े फेलियर के रूप में देखा जा रहा है वह स्टरलाइजेशन है यह सबसे बड़ी समस्या के तौर पर देखा गया है। गर्भनिरोधक की सही समझ जानकारी और उपयोग की कमी ही बढ़ती जनसंख्या के मुख्य कारण के तौर पर देखी जाती है।


परिवार नियोजन का बोझ महिलाओं पर ज्यादा

आंकड़ों की बात करें तो 53.3% आबादी मॉडर्न गर्भनिरोधक तरीकों को अपनाती है। आयुषी डी को 1.5% आबादी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स को 4.1% और कंडोम स्कोर 5.6 प्रतिशत जनसंख्या इस्तेमाल करती है ।सिर्फ 36% महिलाएं ही इस्तेमाल कर पा रही है। लेकिन पुरुष इन सब में पीछे हैं। सिर्फ 0.3% पुरुष ही नसबंदी करवाते हैं। जो कि बताता है कि देश की महिलाओं के ऊपर ही परिवार नियोजन का सबसे ज्यादा बोझ है।

योजनाओं को लेकर के हैं तमाम भ्रांतियां

पुरुषों में नसबंदी को लेकर हो तो तमाम तरह की बातें और प्रकरण सामने आते रहते है।जिसमें उनकी तरफ से कहा जाता है। कि नसबंदी आदि करवाने की वजह से वह किसी तरह का भारी काम नहीं कर पाएंगे। जबकि विशेषज्ञों की माने तो ऐसी कोई दिक्कत जीवन भर नहीं आती है ।लेकिन तमाम तरह की बातें यहां पर पुरुषों द्वारा सामने आ रही हैं जो कि साफ़ बताती हैं कि लोगों को जागरूकता की बेहद कमी है।

बाइट- बद्री विशाल सिंह,निदेशक, परिवार कल्याण


Conclusion:एन्ड
शुभम पाण्डेय
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