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संजय सेठ को MLC बनाने से रामनाईक ने किया था इंकार - संजय सेठ को एमएलसी बनाने के प्रस्ताव को राज्यपाल ने दो बार किया था खारिज

समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ बीजेपी में शामिल हो गए. आपको बताते चलें कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने दो बार संजय सेठ को विधान परिषद में सदस्य मनोनीत किए जाने के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था.

बीजेपी की सदस्यता लेते संजय सेठ.
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Published : Aug 10, 2019, 9:18 PM IST

Updated : Aug 10, 2019, 11:41 PM IST

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ ने शनिवार को दिल्ली में बीजेपी का दामन थाम लिया. आपको बताते चलें कि संजय सेठ को 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दो बार उन्हें विधान परिषद में सदस्य मनोनीत किए जाने के लिए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को प्रस्ताव दिया था. इसके बावजूद राज्यपाल राम नाईक ने उन्हें एमएलसी बनाए जाने के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए सरकार को वापस भेज दिया था.

संजय सेठ को एमएलसी बनाने से राज्यपाल ने किया था इनकार.

वित्तीय अनियमितताओं के लगे थे आरोप-
इस नामंजूरी को लेकर राज्यपाल ने तर्क दिया था कि संजय सेठ कई ठिकानों पर इनकम टैक्स और अन्य एजेंसियों के ताबड़तोड़ छापेमारी थी. जिसमें संजय सेठ पर तमाम तरह के वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे. साथ ही करीब 100 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति मिली थी. जो जप्त कर ली गई थी और उसको लेकर तमाम तरह के सवाल भी उठे थे.

अखिलेश सरकार ने दो बार भेजा था प्रस्ताव-
इसको ध्यान में रखते हुए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक में अखिलेश यादव के दो-दो बार प्रस्ताव भेजने के बावजूद उन्हें एमएलसी मनोनीत करने की फाइल को नामंजूर करते हुए अखिलेश यादव को वापस भेज दी थी. जिसको लेकर तमाम तरह का टकराव भी सरकार और राजभवन के बीच देखने को मिला था.

बसपा और सपा के करीबी रहे हैं संजय सेठ-
समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पहले संजय से बहुजन समाज पार्टी के काफी करीबी रहे हैं. वहीं बसपा और सपा की सरकार के दौरान उन्होंने लखनऊ में तमाम बड़ी इमारत और अन्य कई तरह के बड़े प्रोजेक्ट चलाएं.

इसके साथ ही लखनऊ की कई बेशकीमती जमीनों पर उन्होंने अपने प्रोजेक्ट शुरू किए थे. यही कारण थे कि 2015 में उनके तमाम ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी और बड़ी मात्रा में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे.

राजनीतिक संरक्षण के लिए थामा भाजपा का दामन-
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा है कि बदले हुए समय में केंद्र में बीजेपी और उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की ही सरकार है और अब संजय सेठ को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है. यही कारण है कि उन्होंने कार्रवाई से बचने के लिए भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा है.

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने दी जानकारी-
समाजवादी पार्टी की सरकार की तरफ से जो नाम भेजे गए थे और राज्यपाल जी ने उसे मना किया था उसके पीछे जो कारण था कि विधान परिषद में जो ख्याति प्राप्त लोगों को भेजा जाना होता है, लेकिन वह उस क्षेत्र से नहीं थे. ऐसे में राज्यपाल ने उसको आपत्ति जताई थी और बाद में राज्यपाल की आपत्ति वाजिब भी मिली.

अब संजय सेठ भारतीय जनता पार्टी की नीतियों से प्रभावित होकर राष्ट्रवाद के साथ जुड़ रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम से कदम मिलाकर वह आगे बढ़ना चाह रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी में उनका स्वागत है और जहां तक उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं की जांच की बात है. तो वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए हैं और वह अपना जवाब देंगे.

राजनीतिक गलियारों में संजय सेठ के भाजपा का दामन थामने के बाद यह चर्चा तेजी से हो रही है, कि वाले संजय सेठ अब अपने राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए वह बीजेपी में शामिल हुए हैं. वहीं बीजेपी का तर्क है कि वह बीजेपी की नीतियों से प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हुए हैं.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ ने शनिवार को दिल्ली में बीजेपी का दामन थाम लिया. आपको बताते चलें कि संजय सेठ को 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दो बार उन्हें विधान परिषद में सदस्य मनोनीत किए जाने के लिए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को प्रस्ताव दिया था. इसके बावजूद राज्यपाल राम नाईक ने उन्हें एमएलसी बनाए जाने के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए सरकार को वापस भेज दिया था.

संजय सेठ को एमएलसी बनाने से राज्यपाल ने किया था इनकार.

वित्तीय अनियमितताओं के लगे थे आरोप-
इस नामंजूरी को लेकर राज्यपाल ने तर्क दिया था कि संजय सेठ कई ठिकानों पर इनकम टैक्स और अन्य एजेंसियों के ताबड़तोड़ छापेमारी थी. जिसमें संजय सेठ पर तमाम तरह के वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे. साथ ही करीब 100 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति मिली थी. जो जप्त कर ली गई थी और उसको लेकर तमाम तरह के सवाल भी उठे थे.

अखिलेश सरकार ने दो बार भेजा था प्रस्ताव-
इसको ध्यान में रखते हुए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक में अखिलेश यादव के दो-दो बार प्रस्ताव भेजने के बावजूद उन्हें एमएलसी मनोनीत करने की फाइल को नामंजूर करते हुए अखिलेश यादव को वापस भेज दी थी. जिसको लेकर तमाम तरह का टकराव भी सरकार और राजभवन के बीच देखने को मिला था.

बसपा और सपा के करीबी रहे हैं संजय सेठ-
समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पहले संजय से बहुजन समाज पार्टी के काफी करीबी रहे हैं. वहीं बसपा और सपा की सरकार के दौरान उन्होंने लखनऊ में तमाम बड़ी इमारत और अन्य कई तरह के बड़े प्रोजेक्ट चलाएं.

इसके साथ ही लखनऊ की कई बेशकीमती जमीनों पर उन्होंने अपने प्रोजेक्ट शुरू किए थे. यही कारण थे कि 2015 में उनके तमाम ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी और बड़ी मात्रा में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे.

राजनीतिक संरक्षण के लिए थामा भाजपा का दामन-
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा है कि बदले हुए समय में केंद्र में बीजेपी और उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की ही सरकार है और अब संजय सेठ को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है. यही कारण है कि उन्होंने कार्रवाई से बचने के लिए भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा है.

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने दी जानकारी-
समाजवादी पार्टी की सरकार की तरफ से जो नाम भेजे गए थे और राज्यपाल जी ने उसे मना किया था उसके पीछे जो कारण था कि विधान परिषद में जो ख्याति प्राप्त लोगों को भेजा जाना होता है, लेकिन वह उस क्षेत्र से नहीं थे. ऐसे में राज्यपाल ने उसको आपत्ति जताई थी और बाद में राज्यपाल की आपत्ति वाजिब भी मिली.

अब संजय सेठ भारतीय जनता पार्टी की नीतियों से प्रभावित होकर राष्ट्रवाद के साथ जुड़ रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम से कदम मिलाकर वह आगे बढ़ना चाह रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी में उनका स्वागत है और जहां तक उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं की जांच की बात है. तो वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए हैं और वह अपना जवाब देंगे.

राजनीतिक गलियारों में संजय सेठ के भाजपा का दामन थामने के बाद यह चर्चा तेजी से हो रही है, कि वाले संजय सेठ अब अपने राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए वह बीजेपी में शामिल हुए हैं. वहीं बीजेपी का तर्क है कि वह बीजेपी की नीतियों से प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हुए हैं.

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लखनऊ। बिल्डर से राजनेता बने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पिछले दिनों राज्यसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने वाले संजय सेठ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए।
खास बात यह है कि यह वही संजय सेठ हैं जिन्हें 2015 में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के दो दो बार प्रस्ताव दिए जाने के बावजूद उन्हें विधान परिषद में सदस्य मनोनीत किए जाने से इनकार कर दिया था और राम नायक ने एमएलसी ना बनाए जाने के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए सरकार को वापस भेज दिया था और यह तर्क दिया था।
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वर्ष 2015 में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने की विधान परिषद में जिन लोगों को मनोनीत किया जाना है ऐसे में संजय सेठ सहित अन्य 2 लोग हैं वह उस श्रेणी में नहीं आते हैं खास बात से राम नाईक का यह बयान भी आया था कि संजय सेठ बिल्डर है और वित्तीय नेताओं के आरोपी और दागी भी है ऐसे में वह किसी भी हालत में उन्हें विधान परिषद सदस्य नहीं बना सकते हैं।



Body:तत्कालीन राज्यपाल के यह सब कुछ करने के पीछे जो तर्क दिया था उसके अनुसार बिल्डर से राजनेता बनने वाले संजय सेठ के कई ठिकानों पर इनकम टैक्स व अन्य एजेंसियों के ताबड़तोड़ छापेमारी थी संजय सेठ पर तमाम तरह के वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे और करीब 100 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति मिली थी जिसे जप्त कर ली गई थी और उसको लेकर तमाम तरह के सवाल भी उठे थे इन्हीं सब को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक में अखिलेश यादव के दो दो बार प्रस्ताव भेजने के बावजूद उन्हें एमएलसी मनोनीत करने की फाइल को नामंजूर करते हुए अखिलेश यादव को वापस भेज दी थी जिसको लेकर तमाम तरह का टकराव भी सरकार और राजभवन के बीच देखने को मिला था लेकिन राज्यपाल जरा सा भी प्रभावित नहीं हुए और उन्होंने संजय सेठ को एमएलसी नहीं बनाया तो नहीं बनाया।
बसपा और सपा के करीबी रहे हैं संजय सेठ
समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पहले संजय से बहुजन समाज पार्टी के काफी करीब रहे हैं और बसपा और सपा की सरकार के दौरान उन्होंने काफी मात्रा में लखनऊ में तमाम बड़ी इमारत और अन्य कई तरह के बड़े प्रोजेक्ट चलाएं और बड़े बिल्डर के रूप में अपनी पहचान बना डाली लखनऊ की कई बेशकीमती जमीनों पर उन्होंने अपने प्रोजेक्ट शुरू किए थे और यही तमाम सारे कारण थे कि 2015 में उनके तमाम ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी और बड़ी मात्रा में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे।
राजनीतिक संरक्षण के लिए भाजपा का दामन थामा
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा है कि बदले हुए समय में केंद्र में बीजेपी और उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की ही सरकार है और अब संजय सेठ को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है यही कारण है कि वह अपनी तमाम जांचों से बचने के लिए भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा है 2015 और 2016 में इंकम टैक्स ने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की थी।


बाईट
शलभमणि त्रिपाठी, प्रदेश प्रवक्ता भाजपा

उस समय जो एमएलसी बनाने की बात थी और वह एमएलसी नहीं बन पाए थे जहां तक मेरी जानकारी है उस पर कुछ तकनीकी कारणों से यह सब हुआ था समाजवादी पार्टी की सरकार की तरफ से जो नाम भेजे गए थे और राज्यपाल जी ने उसे मना किया था उसके पीछे जो कारण था कि विधान परिषद में जो ख्याति प्राप्त लोगों को भेजा जाना होता है लेकिन वह उस क्षेत्र से नहीं थे ऐसे में राज्यपाल ने उसको आपत्ति लगाई थी और बाद में राज्यपाल की आपत्ति वाजिब भी मिली थी अब वह संजय सेठ भारतीय जनता पार्टी की नीतियों से प्रभावित होकर राष्ट्रवाद के साथ जुड़ रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम से कदम मिलाकर वह आगे बढ़ना चाह रहे हैं भारतीय जनता पार्टी में उनका स्वागत है और जहां तक उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं की जांच है भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए हैं और वह अपना जवाब देंगे और जो व्यक्ति इस प्रकार के कारोबार करता है बिजनेसमैन होता है उसे इस प्रकार की प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है। वह उसको लेकर जवाब देंगे।



Conclusion:राजनीतिक गलियारों में संजय सेठ के भाजपा का दामन थामने के बाद यह चर्चा तेजी से हो रही है कि हमेशा सत्ता के साथ रहने वाले संजय सेठ अब अपने राजनीतिक संरक्षण और उनके तमाम तरह के प्रोजेक्ट्स है उनको लेकर वह बीजेपी में शामिल हुए हैं वहीं बीजेपी का तर्क है कि वह कार्यकर्ता के रूप में बीजेपी में शामिल हुए हैं और बीजेपी की नीतियों से प्रभावित हुए हैं।
Last Updated : Aug 10, 2019, 11:41 PM IST
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