लखनऊ: समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद संजय सेठ ने शनिवार को दिल्ली में बीजेपी का दामन थाम लिया. आपको बताते चलें कि संजय सेठ को 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दो बार उन्हें विधान परिषद में सदस्य मनोनीत किए जाने के लिए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक को प्रस्ताव दिया था. इसके बावजूद राज्यपाल राम नाईक ने उन्हें एमएलसी बनाए जाने के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए सरकार को वापस भेज दिया था.
वित्तीय अनियमितताओं के लगे थे आरोप-
इस नामंजूरी को लेकर राज्यपाल ने तर्क दिया था कि संजय सेठ कई ठिकानों पर इनकम टैक्स और अन्य एजेंसियों के ताबड़तोड़ छापेमारी थी. जिसमें संजय सेठ पर तमाम तरह के वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे. साथ ही करीब 100 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति मिली थी. जो जप्त कर ली गई थी और उसको लेकर तमाम तरह के सवाल भी उठे थे.
अखिलेश सरकार ने दो बार भेजा था प्रस्ताव-
इसको ध्यान में रखते हुए तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक में अखिलेश यादव के दो-दो बार प्रस्ताव भेजने के बावजूद उन्हें एमएलसी मनोनीत करने की फाइल को नामंजूर करते हुए अखिलेश यादव को वापस भेज दी थी. जिसको लेकर तमाम तरह का टकराव भी सरकार और राजभवन के बीच देखने को मिला था.
बसपा और सपा के करीबी रहे हैं संजय सेठ-
समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पहले संजय से बहुजन समाज पार्टी के काफी करीबी रहे हैं. वहीं बसपा और सपा की सरकार के दौरान उन्होंने लखनऊ में तमाम बड़ी इमारत और अन्य कई तरह के बड़े प्रोजेक्ट चलाएं.
इसके साथ ही लखनऊ की कई बेशकीमती जमीनों पर उन्होंने अपने प्रोजेक्ट शुरू किए थे. यही कारण थे कि 2015 में उनके तमाम ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी और बड़ी मात्रा में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे थे.
राजनीतिक संरक्षण के लिए थामा भाजपा का दामन-
राजनीतिक गलियारों में अब यह चर्चा है कि बदले हुए समय में केंद्र में बीजेपी और उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी की ही सरकार है और अब संजय सेठ को राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है. यही कारण है कि उन्होंने कार्रवाई से बचने के लिए भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा है.
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता शलभमणि त्रिपाठी ने दी जानकारी-
समाजवादी पार्टी की सरकार की तरफ से जो नाम भेजे गए थे और राज्यपाल जी ने उसे मना किया था उसके पीछे जो कारण था कि विधान परिषद में जो ख्याति प्राप्त लोगों को भेजा जाना होता है, लेकिन वह उस क्षेत्र से नहीं थे. ऐसे में राज्यपाल ने उसको आपत्ति जताई थी और बाद में राज्यपाल की आपत्ति वाजिब भी मिली.
अब संजय सेठ भारतीय जनता पार्टी की नीतियों से प्रभावित होकर राष्ट्रवाद के साथ जुड़ रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कदम से कदम मिलाकर वह आगे बढ़ना चाह रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी में उनका स्वागत है और जहां तक उनके खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं की जांच की बात है. तो वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए हैं और वह अपना जवाब देंगे.
राजनीतिक गलियारों में संजय सेठ के भाजपा का दामन थामने के बाद यह चर्चा तेजी से हो रही है, कि वाले संजय सेठ अब अपने राजनीतिक संरक्षण पाने के लिए वह बीजेपी में शामिल हुए हैं. वहीं बीजेपी का तर्क है कि वह बीजेपी की नीतियों से प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हुए हैं.