लखनऊ: नए बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस प्रकार से बेसिक शिक्षा से जुड़े हर पहलुओं पर खुलकर बातचीत की. उससे लोगों को उम्मीद जगी है कि अब उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों की स्थिति में सुधार होगा. सतीश द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान प्रेरणा ऐप के लागू किए जाने के कारणों, प्रेरणा ऐप के विरोध को रोकने के लिए सरकार के कदम और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर उठ रहे सवालों का खुलकर जवाब दिया.
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि वह छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे. उस नाते समय-समय पर पूरे उत्तर प्रदेश की और देश की शिक्षा व्यवस्था को अपने संगठन के स्तर पर विचार करते रहते थे. समय-समय पर सरकार को ज्ञापन देते रहते थे. अपने अधिवेशनों में प्रस्ताव पारित करते रहते थे.
राज्यमंत्री ने बताया कि जब विभाग मिला तो उन्हें लगा कि एक शिक्षक होने के नाते उनकी जिम्मेदारी और भी ज्यादा है. जैसा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश की बेसिक शिक्षा का कायाकल्प करना चाहते हैं. इस बात को ध्यान में रखकर के जो योजनाएं लागू की जा सकती थीं, जो नए कदम उठाने की जरूरत थी, उसे तीन से चार दिनों में ब्लू प्रिंट बनाकर जारी कर दिया गया.
शिक्षा में सुधार के लिए प्रेरणा ऐप, परेशान करने के लिए नहीं
प्रेरणा ऐप के विरोध पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है. ज्यादतर शिक्षक प्रेरणा एप के पक्ष में हैं. वह इसका स्वागत कर रहे हैं. उसका कारण यह है कि कुछ लोग अधिकारियों से मिलीभगत करके स्कूल नहीं आते थे. जिसको लेकर पूरा शिक्षक समुदाय बदनाम होता है. इसलिए अधिकांश शिक्षक यह चाह रहे हैं कि प्रेरणा ऐप लागू हो. सभी लोग पढ़ाने आएं. बेसिक शिक्षा मंत्री होने के नाते हमारी भी प्राथमिकता में है कि बाकी सारी चीजें धीरे-धीरे ठीक हो जाएं, लेकिन सबसे पहली प्राथमिकता है कि स्कूल में अध्यापक पहुंचे और पढ़ाएं.
नौकरी के वक्त कोई शर्त नहीं, तो अब क्यों
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि जब हम बेरोजगार होते हैं और नौकरी चाहते हैं, तो कोई शर्त हम सरकार के सामने नहीं रखते. तब तो हम कहीं भी जाकर नौकरी करने को तैयार रहते हैं. जब नौकरी में आ जाते हैं तो तमाम सवाल खड़े करते हैं. या तो पहले ही उन्हें तय कर लेना चाहिए कि घर के पास नौकरी मिलेगी तो करेंगे और नहीं मिली तो नहीं करेंगे. हम सब लोगों ने अपने अपने घर से 200 से 250 किलोमीटर दूर नौकरी की है.
अक्टूबर में ट्रांसफर खुलेंगे, महिलाओं को मिलेगी विशेष सुविधा
दूसरी बात हम एक पक्ष पर नहीं ध्यान दे रहे हैं. हमको इस असुविधा के बारे में पता था कि बहुत सारे शिक्षक घर से बहुत दूर हैं. इसलिए अंतर्जनपदीय और अंतरा दोनों ट्रांसफर खोलने जा रहे हैं. अक्टूबर में सभी अध्यापकों से ऑनलाइन आवेदन मांगेंगे. लोगों की सुविधा के अनुसार गृह जनपद में ही नहीं उनके ब्लॉक, न्याय पंचायत,ग्राम पंचायत के पास ट्रांसफर देने जा रहे हैं. स्थानांतरण की अवधि पांच साल की थी, अब उसे हमने तीन साल कर दिया है. महिलाओं के लिए एक साल करने जा रहे हैं ताकि महिला शिक्षिकाओं की समस्याओं का हल हो.
शिथिलता बरती गई
सतीश द्विवेदी ने कहा कि अगर एक दिन देर हो जाए तो हमारे ऊपर कार्रवाई हो जाएगी. उसको भी शिथिल कर दिया गया है. अगर महीने में तीन दिन तक इस प्रकार से देरी होती है तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. उसके लिए स्पष्टीकरण मांगा जाएगा कि क्यों देर हुई, लेकिन जिसको रोज-रोज देर होगा. उसका सीधा सा मतलब है कि वह शिक्षक स्कूल नहीं आना चाहता है और न हीं पढ़ाना चाहता है.
कान्वेंट स्कूल हमारे मॉडल नहीं
उन्होंने बताया कि कॉन्वेंट स्कूलों को वह अपना मॉडल मानकर नहीं चल रहे हैं. उनका अनुशरण नहीं कर रहे हैं. बेसिक शिक्षा के स्कूलों ने अपने पैटर्न पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी है. आज पूरे देश में जितने उच्च अधिकारी हैं या राजनेता, अच्छे अधिवक्ता, इंजीनियर उनमें से अधिकांश परिषदीय स्कूलों से निकले हुए छात्र हैं. स्ट्रक्चर ऐसा है कि किसी को कॉपी करने की जरूरत नहीं है. प्रयास बस वह इतना ही कर रहे हैं कि शिक्षक स्कूल आएं और पढ़ाएं.