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नौकरी के वक्त कोई शर्त नहीं तो अब क्यों: शिक्षा राज्यमंत्री - प्रेरणा ऐप

उत्तर प्रदेश के नए बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने प्रेरणा ऐप के साथ ही शिक्षा में सुधार को लेकर चर्चा की.

बेसिक शिक्षा मंत्री.
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Published : Sep 6, 2019, 9:24 PM IST

लखनऊ: नए बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस प्रकार से बेसिक शिक्षा से जुड़े हर पहलुओं पर खुलकर बातचीत की. उससे लोगों को उम्मीद जगी है कि अब उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों की स्थिति में सुधार होगा. सतीश द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान प्रेरणा ऐप के लागू किए जाने के कारणों, प्रेरणा ऐप के विरोध को रोकने के लिए सरकार के कदम और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर उठ रहे सवालों का खुलकर जवाब दिया.

ईटीवी भारत से बातचीत करते राज्यमंत्री सतीश द्विवेदी.


बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि वह छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे. उस नाते समय-समय पर पूरे उत्तर प्रदेश की और देश की शिक्षा व्यवस्था को अपने संगठन के स्तर पर विचार करते रहते थे. समय-समय पर सरकार को ज्ञापन देते रहते थे. अपने अधिवेशनों में प्रस्ताव पारित करते रहते थे.

राज्यमंत्री ने बताया कि जब विभाग मिला तो उन्हें लगा कि एक शिक्षक होने के नाते उनकी जिम्मेदारी और भी ज्यादा है. जैसा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश की बेसिक शिक्षा का कायाकल्प करना चाहते हैं. इस बात को ध्यान में रखकर के जो योजनाएं लागू की जा सकती थीं, जो नए कदम उठाने की जरूरत थी, उसे तीन से चार दिनों में ब्लू प्रिंट बनाकर जारी कर दिया गया.

शिक्षा में सुधार के लिए प्रेरणा ऐप, परेशान करने के लिए नहीं
प्रेरणा ऐप के विरोध पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है. ज्यादतर शिक्षक प्रेरणा एप के पक्ष में हैं. वह इसका स्वागत कर रहे हैं. उसका कारण यह है कि कुछ लोग अधिकारियों से मिलीभगत करके स्कूल नहीं आते थे. जिसको लेकर पूरा शिक्षक समुदाय बदनाम होता है. इसलिए अधिकांश शिक्षक यह चाह रहे हैं कि प्रेरणा ऐप लागू हो. सभी लोग पढ़ाने आएं. बेसिक शिक्षा मंत्री होने के नाते हमारी भी प्राथमिकता में है कि बाकी सारी चीजें धीरे-धीरे ठीक हो जाएं, लेकिन सबसे पहली प्राथमिकता है कि स्कूल में अध्यापक पहुंचे और पढ़ाएं.

नौकरी के वक्त कोई शर्त नहीं, तो अब क्यों
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि जब हम बेरोजगार होते हैं और नौकरी चाहते हैं, तो कोई शर्त हम सरकार के सामने नहीं रखते. तब तो हम कहीं भी जाकर नौकरी करने को तैयार रहते हैं. जब नौकरी में आ जाते हैं तो तमाम सवाल खड़े करते हैं. या तो पहले ही उन्हें तय कर लेना चाहिए कि घर के पास नौकरी मिलेगी तो करेंगे और नहीं मिली तो नहीं करेंगे. हम सब लोगों ने अपने अपने घर से 200 से 250 किलोमीटर दूर नौकरी की है.

अक्टूबर में ट्रांसफर खुलेंगे, महिलाओं को मिलेगी विशेष सुविधा
दूसरी बात हम एक पक्ष पर नहीं ध्यान दे रहे हैं. हमको इस असुविधा के बारे में पता था कि बहुत सारे शिक्षक घर से बहुत दूर हैं. इसलिए अंतर्जनपदीय और अंतरा दोनों ट्रांसफर खोलने जा रहे हैं. अक्टूबर में सभी अध्यापकों से ऑनलाइन आवेदन मांगेंगे. लोगों की सुविधा के अनुसार गृह जनपद में ही नहीं उनके ब्लॉक, न्याय पंचायत,ग्राम पंचायत के पास ट्रांसफर देने जा रहे हैं. स्थानांतरण की अवधि पांच साल की थी, अब उसे हमने तीन साल कर दिया है. महिलाओं के लिए एक साल करने जा रहे हैं ताकि महिला शिक्षिकाओं की समस्याओं का हल हो.

शिथिलता बरती गई
सतीश द्विवेदी ने कहा कि अगर एक दिन देर हो जाए तो हमारे ऊपर कार्रवाई हो जाएगी. उसको भी शिथिल कर दिया गया है. अगर महीने में तीन दिन तक इस प्रकार से देरी होती है तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. उसके लिए स्पष्टीकरण मांगा जाएगा कि क्यों देर हुई, लेकिन जिसको रोज-रोज देर होगा. उसका सीधा सा मतलब है कि वह शिक्षक स्कूल नहीं आना चाहता है और न हीं पढ़ाना चाहता है.

कान्वेंट स्कूल हमारे मॉडल नहीं
उन्होंने बताया कि कॉन्वेंट स्कूलों को वह अपना मॉडल मानकर नहीं चल रहे हैं. उनका अनुशरण नहीं कर रहे हैं. बेसिक शिक्षा के स्कूलों ने अपने पैटर्न पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी है. आज पूरे देश में जितने उच्च अधिकारी हैं या राजनेता, अच्छे अधिवक्ता, इंजीनियर उनमें से अधिकांश परिषदीय स्कूलों से निकले हुए छात्र हैं. स्ट्रक्चर ऐसा है कि किसी को कॉपी करने की जरूरत नहीं है. प्रयास बस वह इतना ही कर रहे हैं कि शिक्षक स्कूल आएं और पढ़ाएं.

लखनऊ: नए बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस प्रकार से बेसिक शिक्षा से जुड़े हर पहलुओं पर खुलकर बातचीत की. उससे लोगों को उम्मीद जगी है कि अब उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों की स्थिति में सुधार होगा. सतीश द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान प्रेरणा ऐप के लागू किए जाने के कारणों, प्रेरणा ऐप के विरोध को रोकने के लिए सरकार के कदम और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर उठ रहे सवालों का खुलकर जवाब दिया.

ईटीवी भारत से बातचीत करते राज्यमंत्री सतीश द्विवेदी.


बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि वह छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे. उस नाते समय-समय पर पूरे उत्तर प्रदेश की और देश की शिक्षा व्यवस्था को अपने संगठन के स्तर पर विचार करते रहते थे. समय-समय पर सरकार को ज्ञापन देते रहते थे. अपने अधिवेशनों में प्रस्ताव पारित करते रहते थे.

राज्यमंत्री ने बताया कि जब विभाग मिला तो उन्हें लगा कि एक शिक्षक होने के नाते उनकी जिम्मेदारी और भी ज्यादा है. जैसा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश की बेसिक शिक्षा का कायाकल्प करना चाहते हैं. इस बात को ध्यान में रखकर के जो योजनाएं लागू की जा सकती थीं, जो नए कदम उठाने की जरूरत थी, उसे तीन से चार दिनों में ब्लू प्रिंट बनाकर जारी कर दिया गया.

शिक्षा में सुधार के लिए प्रेरणा ऐप, परेशान करने के लिए नहीं
प्रेरणा ऐप के विरोध पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है. ज्यादतर शिक्षक प्रेरणा एप के पक्ष में हैं. वह इसका स्वागत कर रहे हैं. उसका कारण यह है कि कुछ लोग अधिकारियों से मिलीभगत करके स्कूल नहीं आते थे. जिसको लेकर पूरा शिक्षक समुदाय बदनाम होता है. इसलिए अधिकांश शिक्षक यह चाह रहे हैं कि प्रेरणा ऐप लागू हो. सभी लोग पढ़ाने आएं. बेसिक शिक्षा मंत्री होने के नाते हमारी भी प्राथमिकता में है कि बाकी सारी चीजें धीरे-धीरे ठीक हो जाएं, लेकिन सबसे पहली प्राथमिकता है कि स्कूल में अध्यापक पहुंचे और पढ़ाएं.

नौकरी के वक्त कोई शर्त नहीं, तो अब क्यों
बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि जब हम बेरोजगार होते हैं और नौकरी चाहते हैं, तो कोई शर्त हम सरकार के सामने नहीं रखते. तब तो हम कहीं भी जाकर नौकरी करने को तैयार रहते हैं. जब नौकरी में आ जाते हैं तो तमाम सवाल खड़े करते हैं. या तो पहले ही उन्हें तय कर लेना चाहिए कि घर के पास नौकरी मिलेगी तो करेंगे और नहीं मिली तो नहीं करेंगे. हम सब लोगों ने अपने अपने घर से 200 से 250 किलोमीटर दूर नौकरी की है.

अक्टूबर में ट्रांसफर खुलेंगे, महिलाओं को मिलेगी विशेष सुविधा
दूसरी बात हम एक पक्ष पर नहीं ध्यान दे रहे हैं. हमको इस असुविधा के बारे में पता था कि बहुत सारे शिक्षक घर से बहुत दूर हैं. इसलिए अंतर्जनपदीय और अंतरा दोनों ट्रांसफर खोलने जा रहे हैं. अक्टूबर में सभी अध्यापकों से ऑनलाइन आवेदन मांगेंगे. लोगों की सुविधा के अनुसार गृह जनपद में ही नहीं उनके ब्लॉक, न्याय पंचायत,ग्राम पंचायत के पास ट्रांसफर देने जा रहे हैं. स्थानांतरण की अवधि पांच साल की थी, अब उसे हमने तीन साल कर दिया है. महिलाओं के लिए एक साल करने जा रहे हैं ताकि महिला शिक्षिकाओं की समस्याओं का हल हो.

शिथिलता बरती गई
सतीश द्विवेदी ने कहा कि अगर एक दिन देर हो जाए तो हमारे ऊपर कार्रवाई हो जाएगी. उसको भी शिथिल कर दिया गया है. अगर महीने में तीन दिन तक इस प्रकार से देरी होती है तो उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी. उसके लिए स्पष्टीकरण मांगा जाएगा कि क्यों देर हुई, लेकिन जिसको रोज-रोज देर होगा. उसका सीधा सा मतलब है कि वह शिक्षक स्कूल नहीं आना चाहता है और न हीं पढ़ाना चाहता है.

कान्वेंट स्कूल हमारे मॉडल नहीं
उन्होंने बताया कि कॉन्वेंट स्कूलों को वह अपना मॉडल मानकर नहीं चल रहे हैं. उनका अनुशरण नहीं कर रहे हैं. बेसिक शिक्षा के स्कूलों ने अपने पैटर्न पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी है. आज पूरे देश में जितने उच्च अधिकारी हैं या राजनेता, अच्छे अधिवक्ता, इंजीनियर उनमें से अधिकांश परिषदीय स्कूलों से निकले हुए छात्र हैं. स्ट्रक्चर ऐसा है कि किसी को कॉपी करने की जरूरत नहीं है. प्रयास बस वह इतना ही कर रहे हैं कि शिक्षक स्कूल आएं और पढ़ाएं.

Intro:नोट- यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी से विशेष बातचीत की गई इसका वीडियो फाइल लाईव यू से tik tok with satish dwivedi के नाम से भेज दी गयी है।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के नए बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार सतीश द्विवेदी पदभार संभालने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस प्रकार से बेसिक शिक्षा से जुड़े हर पहलुओं पर खुलकर बातचीत की। उससे लोगों को उम्मीद जगी है कि अब उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों की स्थिति में सुधार होगा। सतीश द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान प्रेरणा के लागू किए जाने के कारणों, प्रेरणा एप के विरोध को रोकने के लिए सरकार के कदम और शिक्षकों की समस्याओं को लेकर उठ रहे सवालों का खुलकर जवाब दिया।


Body:बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने कहा कि देखिए हम छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता रहे। उस नाते समय-समय पर पूरे उत्तर प्रदेश की और देश की शिक्षा व्यवस्था को, वह चाहे बेसिक शिक्षा, माध्यमिक हो या उच्च शिक्षा, हम अपने संगठन के स्तर पर विचार करते रहते थे। समय-समय पर सरकार को ज्ञापन देते रहते थे। अपने अधिवेशनों में प्रस्ताव पारित करते रहते थे। यह तो पहला कारण था।


बाद में शिक्षक होने के नाते और फिर विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षक राजनीति में सक्रिय होने के नाते फिर इन मामलों से जुड़ गए। इधर अपने दो ढाई साल के विधायक बनने के बाद अपने क्षेत्र में जब भ्रमण पर होता था, तो स्कूलों पर जरूर जाता था। बच्चों से बात करता था। वहां के शिक्षकों से बात करता था। उनकी भी परेशानी हम समझना चाहते थे। तो इसलिए बहुत सारी चीजें ऐसे ही ध्यान में थीं।

जब विभाग मिला तो मुझे लगा कि एक शिक्षक होने के नाते मेरी जिम्मेदारी और भी ज्यादा है। जैसा कि हमारे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी प्रदेश की बेसिक शिक्षा का कायाकल्प करना चाहते हैं। तो उसको ध्यान में रख कर के जो योजनाएं लागू की जा सकती थीं, जो नए कदम उठाने की जरूरत थी, उसे तुरंत ही तीन से चार दिनों में ब्लू प्रिंट बना कर हमने जारी कर दिया। क्योंकि हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम धीमी गति से कोई प्रयोग करें। दो ढाई साल का और समय बचा है। उसमें हमें काम करना है। इसलिए हमने अपना एक्शन प्लान जारी किया।

शिक्षा में सुधार के लिए प्रेरणा एप, परेशान करने के लिए नहीं

प्रेरणा एप के विरोध पर उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है। ज्यादतर शिक्षक प्रेरणा एप के पक्ष में है। वह इसका स्वागत कर रहे हैं। उसका कारण यह है कि कुछ लोग अधिकारियों से मिलीभगत करके स्कूल नहीं आते थे। नहीं पढ़ाते थे। उसको लेकर पूरा शिक्षक समुदाय बदनाम होता है। इसलिए अधिकांश शिक्षक यह चाह रहे हैं कि प्रेरणा एप लागू हो। सभी लोग पढ़ाने आएं। जब यह स्थिति ठीक होगी। तो उनकी भी छवि बेहतर मानी जाएगी। अच्छी मानी जाएगी क्योंकि जो नहीं पढ़ाने आते हैं उन लोगों के साथ उनकी भी छवि खराब मानी जाती है जो हर दिन पढ़ाने आते हैं। समाज को भी लगेगा कि अध्यापक स्कूल में आते हैं। पढ़ाते हैं। एक बेसिक शिक्षा मंत्री होने के नाते हमारी भी प्राथमिकता में है कि बाकी सारी चीजें धीरे-धीरे ठीक हो जाएंगी लेकिन सबसे पहली प्राथमिकता है कि स्कूल में अध्यापक पहुंचे और पढ़ाएं।

नौकरी के वक्त कोई शर्त नहीं, तो अब क्यों

बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी कहते हैं कि दो बातें हैं। जब हम बेरोजगार होते हैं और नौकरी चाहते हैं, तो कोई शर्त हम सरकार के सामने नहीं रखते। तब तो हम कहीं भी जाकर नौकरी करने को तैयार रहते हैं। जब नौकरी में आ जाते हैं तो तमाम सवाल खड़े करते हैं। या तो पहले ही उन्हें तय कर लेना चाहिए कि घर के पास नौकरी मिलेगी तो करेंगे और नहीं मिली तो नहीं करेंगे। हम सब लोगों ने अपने अपने घर से 200 से 250 किलोमीटर दूर नौकरी की है।

अक्टूबर में ट्रांसफर खुलेंगे, महिलाओं को विशेष सुविधा

दूसरी बात हम एक पक्ष पर नहीं ध्यान दे रहे हैं। हमको इस असुविधा के बारे में पता था कि बहुत सारे शिक्षक घर से बहुत दूर हैं। इसलिए अंतर्जनपदीय और अंतरा दोनों ट्रांसफर खोलने जा रहे हैं। अक्टूबर में सभी अध्यापकों से ऑनलाइन आवेदन मांगेंगे। लोगों की सुविधा के अनुसार गृह जनपद में ही नहीं उनके ब्लॉक में, उनके न्याय पंचायत में, उनके ग्राम पंचायत के पास ट्रांसफर देने जा रहे हैं। स्थानांतरण की अवधि पांच साल की थी, अब उसे हमने तीन साल कर दिया है। महिलाओं के लिए एक साल करने जा रहे हैं। ताकि महिला शिक्षिकाओं की समस्याओं का हल हो। उसकी शादी के बाद उसे अपने ससुराल जाना है तो भी वह अपना स्थानांतरण करा सके।

शिथिलता बरती गयी

सतीश द्विवेदी ने कहा कि इतना ही नहीं लोगों ने कहा कि अगर एक दिन देर हो जाए तो हमारे ऊपर कार्यवाही हो जाएगी। उसको भी शिथिल कर दिया गया है। अगर महीने में तीन दिन तक इस प्रकार से देरी होती है तो उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। केवल आपसे उसके लिए स्पष्टीकरण मांगा जाएगा कि क्यों देर हुई। लेकिन जिसको रोज-रोज देर होगा। उसका सीधा सा मतलब है कि वह शिक्षक स्कूल नहीं आना चाहता है। नहीं पढ़ाना चाहता। तो समाज कैसे स्वीकार कर सकता है। इस पर तो कार्रवाई करनी पड़ेगी।

कान्वेंट स्कूल हमारे मॉडल नहीं

कॉन्वेंट स्कूलों को हम अपना मॉडल मानकर नहीं चल रहे हैं। हम उनका अनुसरण नहीं कर रहे हैं। हमारी एक बड़ी समृद्ध शिक्षा व्यवस्था रही है। परंपरा रही है। हमारे बेसिक शिक्षा के स्कूलों ने अपने पैटर्न पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी है। आज मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि पूरे देश में जितने उच्च अधिकारी हैं या राजनेता हैं। अच्छे अधिवक्ता हैं, इंजीनियर हैं, उनमें से अधिकांश परिषदीय स्कूलों से निकले हुए छात्र हैं। हमारा स्ट्रक्चर ऐसा है कि किसी को कॉपी करने की जरूरत नहीं है। प्रयास बस हम इतना ही कर रहे हैं कि शिक्षक स्कूल आए पढ़ाएं। हमारा इंफ्रास्ट्रक्चर ठीक हो। बच्चों की सुविधाएं अच्छी हो। वातावरण अच्छा बने। मैं बड़े विश्वास के साथ कह रहा हूं कि हमारी योगी सरकार का कार्यकाल पूरा होगा तो उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालय अभिभावकों की पसंद बनेंगे। यह मजबूरी नहीं रहेंगे। जो स्थिति ढाई साल पहले थी कि जो कहीं भी नहीं पढ़ा सकता था वह हमारे विद्यालयों में पढ़ाने के लिए आता था। लेकिन योगी सरकार का पांच साल का कार्यकाल पूरा होते होते हमारा विद्यालय उनके लिए जरूरत बनेंगे। लोग पसंद करेंगे कि उनका बच्चा किसी बेसिक स्कूलों में पढ़े।


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