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'घर के भेदियों' ने बचाई 'विकास' की लंका, ऐसे कैसे बचेगी जवानों की जान! - लखनऊ समाचार

उत्तर प्रदेश में पुलिस पर हमलों का पुराना इतिहास है, बीके कई सालों से पुलिस पर हमले के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. इसका एक प्रमुख कारण पुलिस विभाग के अंदर अपराधियों के मुखबिरों का होना भी है. जब तक विभाग के ऐसे पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, तब तक पुलिस पर हो रहे हमलों को रोका नहीं जा पाएगा.

पुलिस सुधार की जरूरत
पुलिस सुधार की जरूरत
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Published : Jul 3, 2020, 9:56 PM IST

लखनऊ: 'घर का भेदी लंका ढाए' की कहावत उत्तर प्रदेश पुलिस और अपराधियों के भ्रष्ट गठजोड़ को चरितार्थ करती है. यूपी पुलिस के अंदर से ही कुछ लोग अपराधियों से मिलकर पुलिस की मूवमेंट की जानकारी उन तक पहुंचाते हैं. जब उन्हें पकड़ने के लिए ऑपरेशन या मूवमेंट होते हैं तो वह न सिर्फ बच निकलते हैं, बल्कि पुलिसकर्मियों की जान भी चली जाती है. कुछ ऐसा ही कानपुर में पुलिस के साथ हुआ जब वह शातिर अपराधी विकास दुबे को पकड़ने के लिए उसके घर दबिश देने गई थी. इस मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए. वहीं शातिर अपराधी अब भी पुलिस की गिरफ्त से फरार हैं.

पुलिस में सुधार की जरूरत.

पुलिस सुधार की जरूरत

इसको लेकर सुधार की बात काफी समय से होती रही है. वर्ष 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति शशिकान्त की खंडपीठ ने कहा था- 'लोगों को अपराधियों से अधिक पुलिस से लड़ना पड़ रहा है. राजनेता, अपराधी और पुलिस का गठजोड़ आम लोगों को परेशान कर रहा है. पुलिस दुधारी हथियार से भी खतरनाक साबित हो रही है. पुलिस की कार्यशैली को लेकर ये कोई पहली टिप्पणी नहीं थी. बरसों से अदालत और पुलिस विभाग के ऊंचे पदों से रिटायर होने के बाद आईपीएस अधिकारी ये बात कहते रहे हैं.

रिटायर पुलिस अधिकारी उठा रहे सवाल
शुक्रवार की सुबह शातिर अपराधी विकास दुबे के गिरोह ने कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों को गोलियों से भून डाला. इसके बाद डीजीपी पद से रिटायर पुलिस अधिकारियों ने यह सवाल फिर उठाया है कि आखिर पुलिस के सिस्टम में शामिल हो गये अपराधियों के मुखबिरों का सफाया कब होगा ?

'राजनीतिक संरक्षण से मुक्त हो पुलिस'
यूपी के पूर्व डीजीपी एके जैन का कहना है कि सबसे पहली बात तो सुप्रीम कोर्ट की जो गाइडलाइंस है, पुलिस को राजनीतिक संरक्षण से मुक्त कर देना चाहिए. सरकार का सबसे बड़ा योगदान होगा अगर उनको मुक्त कर दिया जाए. उन्होंने बताया कि पूरी जिम्मेदारी एसएसपी, डीआईजी को दे दी जाए, जिसके बाद देखिए कितनी बेहतर पुलिसिंग हो जाएगी. अपराधी सब के सब गायब हो जाएंगे. ऐसे इन सबको राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होता है.

अपराधियों को मिलता है भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का संरक्षण
हाईटेक और प्रोफेशनल पुलिसिंग को दरकिनार करके बेसिक पुलिसिंग होनी चाहिए. समाज के हर व्यक्ति के मन में भावना रहनी चाहिए कि मैं सुरक्षित हूं, अगर यह भावना नहीं है तो कितनी भी हाईटेक पुलिसिंग कर लीजिए ऐसे अपराधी बने रहेंगे. अपराधियों को भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का संरक्षण रहता है. इस मूवमेंट की जानकारी भी भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की तरफ से अपराधियों को दी गई होगी.

क्या बोले पूर्व डीजीपी यूपी महेश चंद्र द्विवेदी
पूर्व डीजीपी यूपी महेश चंद्र द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बताया कि इस दबिश से पहले अपराधियों की सूचना पुलिस को कम थी और अपराधियों को पुलिस के मूवमेंट की जानकारी थी. जब भी कोई दबिश दी जाती है तो पहला कर्तव्य होता है कि जितनी पुलिस पार्टी है वह पूरी तरह से सुरक्षित रहे. उसके लिए यह आवश्यक है कि सारे इनपुट्स पुलिस के पास पहले से होने चाहिए जैसे अपराधी कितने हैं, उनके पास कौन-कौन से हथियार हैं और वह पुलिस पर हमला तो नहीं कर सकते.

50 से अधिक भ्रष्ट पुलिसकर्मी प्रभावशाली पदों पर तैनात
अपराध और अपराधियों की शैली पर नजदीकी नजर रखने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि सत्तारूढ़ दल जब तक भ्रष्ट भेदभाव पूर्ण कार्य करने वाले अधिकारियों को प्रमुख पदों पर तैनात करते रहेंगे, तब तक अच्छे मेहनती जवानों को अपने खून से कीमत चुकानी पड़ेगी. इस समय उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिलों में कम से कम 50 से अधिक ऐसे पुलिसकर्मी प्रभावशाली पदों पर तैनात हैं, जिनके खिलाफ पुलिस एक्ट की धारा-07 के तहत कार्रवाई की प्रक्रिया चल चुकी है.


क्या है पुलिस एक्ट की धारा-07
अपराधियों से मिलीभगत, जनता के साथ भेदभाव पूर्ण कार्रवाई, अपराध में संलिपत्ता आदि जैसे संगीन इल्जामों के बाद पुलिसकर्मियों पर इस नियम के तहत कार्रवाई होती है, जिसमें दोष सिद्ध होने पर संबंधित अधिकारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है. अब सवाल यह है कि जिनके खिलाफ इन गंभीर धारा में कभी जांच हो चुकी हो उन्हें नोएडा, गाजियाबाद, कानपुर, मेरठ, इलाहाबाद, वाराणसी जैसे जिलों में तैनाती देने के लिए जिम्मेदार कौन है?

पुलिस पर लगातार बढ़े हमला
पुलिस थानों में दर्ज मुकदमों के मुताबिक वर्ष 2013 में 229, वर्ष 2014 में 265 और 2015 में 266, 2016 में 210, 2018 में लगभग 300 से अधिक बार पुलिस पर हमला हुआ. 2019 में यह औसत और बढ़ गया. पुलिस दस्तावेजों को खंगाले तो पुलिसजनों पर हमलों की संख्या तकरीबन 325 से ऊपर पहुंच चुकी है. हर वर्ष दर्जन भर से ज्यादा पुलिस थानों और चौकियों पर हमले का रिकॉर्ड है. वर्ष 2014 में हुए हमले के दौरान 11 पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. घायल होने वाले पुलिसकर्मियों की संख्या तो और भी ज्यादा है.

डीजी स्तर के एक अधिकारी बताते हैं कि इस तरह के हमलों के पीछे की बड़ी वजह पुलिस के अंदर अपराधियों के मुखबिरों की घुसपैठ है. पुलिसकर्मी भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं क्योंकि असंवैधानिक और गैरकानूनी कृत्य करने वाले पुलिसकर्मियों पर जनता क्रोधित होकर हमले कर देती है.

इन कारणों से होते हैं पुलिस पर हमले

  • पुलिस में अपराधियों के मुखबिरों की घुसपैठ और भ्रष्टचार के आरोपों से घिरे पुलिस कर्मियों की महत्वपूर्ण थानों, जिलों में तैनाती.
  • चहेतों को छुड़ाने पहुंचने वाले सत्तारूढ़ दल अथवा क्षेत्रीय दबंगों की थाने में आवभगत, सामान्य इंसानों का अपमान.
  • अक्सर पुलिस टीम पर मुल्जिमों को छुड़ाने के लिए अपराधी हमला करते हैं, जिससे निपटने की कोई कार्ययोजना नहीं है.
  • अराजकतत्वों द्वारा भीड़ एकत्र कर पथराव, तोडफ़ोड़ और आगजनी की घटनाओं में पुलिस अक्सर पक्षकार बन जाती है, जिससे हमले होते हैं.
  • बिजली, पानी और सड़क दुर्घटना आदि मौकों पर भी पुलिस उग्र भीड़ को नियंत्रित करने में हमले का शिकार हो जाती है.

पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता पशुधन विभाग में फर्जीवाडे में सामने आई, लेकिन जांच सुस्त पड़ गई. इसमें दो आईपीएस सहित कई अन्य पुलिसकर्मियों की संलिप्तता सामने आई फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई. कानपुर की घटना के बाद आज डीजीपी हितेशचंद्र अवस्थी ने कहा है कि हम जल्द ही मुखबिर को पकड़ लेंगे. जिसने पुलिस की दबिश की जानकारी अपराधी तक पहुंचाई. इसकी तेजी से जांच की जा रही है.


लखनऊ: 'घर का भेदी लंका ढाए' की कहावत उत्तर प्रदेश पुलिस और अपराधियों के भ्रष्ट गठजोड़ को चरितार्थ करती है. यूपी पुलिस के अंदर से ही कुछ लोग अपराधियों से मिलकर पुलिस की मूवमेंट की जानकारी उन तक पहुंचाते हैं. जब उन्हें पकड़ने के लिए ऑपरेशन या मूवमेंट होते हैं तो वह न सिर्फ बच निकलते हैं, बल्कि पुलिसकर्मियों की जान भी चली जाती है. कुछ ऐसा ही कानपुर में पुलिस के साथ हुआ जब वह शातिर अपराधी विकास दुबे को पकड़ने के लिए उसके घर दबिश देने गई थी. इस मुठभेड़ में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए. वहीं शातिर अपराधी अब भी पुलिस की गिरफ्त से फरार हैं.

पुलिस में सुधार की जरूरत.

पुलिस सुधार की जरूरत

इसको लेकर सुधार की बात काफी समय से होती रही है. वर्ष 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति शशिकान्त की खंडपीठ ने कहा था- 'लोगों को अपराधियों से अधिक पुलिस से लड़ना पड़ रहा है. राजनेता, अपराधी और पुलिस का गठजोड़ आम लोगों को परेशान कर रहा है. पुलिस दुधारी हथियार से भी खतरनाक साबित हो रही है. पुलिस की कार्यशैली को लेकर ये कोई पहली टिप्पणी नहीं थी. बरसों से अदालत और पुलिस विभाग के ऊंचे पदों से रिटायर होने के बाद आईपीएस अधिकारी ये बात कहते रहे हैं.

रिटायर पुलिस अधिकारी उठा रहे सवाल
शुक्रवार की सुबह शातिर अपराधी विकास दुबे के गिरोह ने कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों को गोलियों से भून डाला. इसके बाद डीजीपी पद से रिटायर पुलिस अधिकारियों ने यह सवाल फिर उठाया है कि आखिर पुलिस के सिस्टम में शामिल हो गये अपराधियों के मुखबिरों का सफाया कब होगा ?

'राजनीतिक संरक्षण से मुक्त हो पुलिस'
यूपी के पूर्व डीजीपी एके जैन का कहना है कि सबसे पहली बात तो सुप्रीम कोर्ट की जो गाइडलाइंस है, पुलिस को राजनीतिक संरक्षण से मुक्त कर देना चाहिए. सरकार का सबसे बड़ा योगदान होगा अगर उनको मुक्त कर दिया जाए. उन्होंने बताया कि पूरी जिम्मेदारी एसएसपी, डीआईजी को दे दी जाए, जिसके बाद देखिए कितनी बेहतर पुलिसिंग हो जाएगी. अपराधी सब के सब गायब हो जाएंगे. ऐसे इन सबको राजनीतिक दलों का संरक्षण प्राप्त होता है.

अपराधियों को मिलता है भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का संरक्षण
हाईटेक और प्रोफेशनल पुलिसिंग को दरकिनार करके बेसिक पुलिसिंग होनी चाहिए. समाज के हर व्यक्ति के मन में भावना रहनी चाहिए कि मैं सुरक्षित हूं, अगर यह भावना नहीं है तो कितनी भी हाईटेक पुलिसिंग कर लीजिए ऐसे अपराधी बने रहेंगे. अपराधियों को भ्रष्ट पुलिसकर्मियों का संरक्षण रहता है. इस मूवमेंट की जानकारी भी भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की तरफ से अपराधियों को दी गई होगी.

क्या बोले पूर्व डीजीपी यूपी महेश चंद्र द्विवेदी
पूर्व डीजीपी यूपी महेश चंद्र द्विवेदी ने ईटीवी भारत से बताया कि इस दबिश से पहले अपराधियों की सूचना पुलिस को कम थी और अपराधियों को पुलिस के मूवमेंट की जानकारी थी. जब भी कोई दबिश दी जाती है तो पहला कर्तव्य होता है कि जितनी पुलिस पार्टी है वह पूरी तरह से सुरक्षित रहे. उसके लिए यह आवश्यक है कि सारे इनपुट्स पुलिस के पास पहले से होने चाहिए जैसे अपराधी कितने हैं, उनके पास कौन-कौन से हथियार हैं और वह पुलिस पर हमला तो नहीं कर सकते.

50 से अधिक भ्रष्ट पुलिसकर्मी प्रभावशाली पदों पर तैनात
अपराध और अपराधियों की शैली पर नजदीकी नजर रखने वाले विशेषज्ञ कहते हैं कि सत्तारूढ़ दल जब तक भ्रष्ट भेदभाव पूर्ण कार्य करने वाले अधिकारियों को प्रमुख पदों पर तैनात करते रहेंगे, तब तक अच्छे मेहनती जवानों को अपने खून से कीमत चुकानी पड़ेगी. इस समय उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिलों में कम से कम 50 से अधिक ऐसे पुलिसकर्मी प्रभावशाली पदों पर तैनात हैं, जिनके खिलाफ पुलिस एक्ट की धारा-07 के तहत कार्रवाई की प्रक्रिया चल चुकी है.


क्या है पुलिस एक्ट की धारा-07
अपराधियों से मिलीभगत, जनता के साथ भेदभाव पूर्ण कार्रवाई, अपराध में संलिपत्ता आदि जैसे संगीन इल्जामों के बाद पुलिसकर्मियों पर इस नियम के तहत कार्रवाई होती है, जिसमें दोष सिद्ध होने पर संबंधित अधिकारी को सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है. अब सवाल यह है कि जिनके खिलाफ इन गंभीर धारा में कभी जांच हो चुकी हो उन्हें नोएडा, गाजियाबाद, कानपुर, मेरठ, इलाहाबाद, वाराणसी जैसे जिलों में तैनाती देने के लिए जिम्मेदार कौन है?

पुलिस पर लगातार बढ़े हमला
पुलिस थानों में दर्ज मुकदमों के मुताबिक वर्ष 2013 में 229, वर्ष 2014 में 265 और 2015 में 266, 2016 में 210, 2018 में लगभग 300 से अधिक बार पुलिस पर हमला हुआ. 2019 में यह औसत और बढ़ गया. पुलिस दस्तावेजों को खंगाले तो पुलिसजनों पर हमलों की संख्या तकरीबन 325 से ऊपर पहुंच चुकी है. हर वर्ष दर्जन भर से ज्यादा पुलिस थानों और चौकियों पर हमले का रिकॉर्ड है. वर्ष 2014 में हुए हमले के दौरान 11 पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. घायल होने वाले पुलिसकर्मियों की संख्या तो और भी ज्यादा है.

डीजी स्तर के एक अधिकारी बताते हैं कि इस तरह के हमलों के पीछे की बड़ी वजह पुलिस के अंदर अपराधियों के मुखबिरों की घुसपैठ है. पुलिसकर्मी भी कुछ हद तक जिम्मेदार हैं क्योंकि असंवैधानिक और गैरकानूनी कृत्य करने वाले पुलिसकर्मियों पर जनता क्रोधित होकर हमले कर देती है.

इन कारणों से होते हैं पुलिस पर हमले

  • पुलिस में अपराधियों के मुखबिरों की घुसपैठ और भ्रष्टचार के आरोपों से घिरे पुलिस कर्मियों की महत्वपूर्ण थानों, जिलों में तैनाती.
  • चहेतों को छुड़ाने पहुंचने वाले सत्तारूढ़ दल अथवा क्षेत्रीय दबंगों की थाने में आवभगत, सामान्य इंसानों का अपमान.
  • अक्सर पुलिस टीम पर मुल्जिमों को छुड़ाने के लिए अपराधी हमला करते हैं, जिससे निपटने की कोई कार्ययोजना नहीं है.
  • अराजकतत्वों द्वारा भीड़ एकत्र कर पथराव, तोडफ़ोड़ और आगजनी की घटनाओं में पुलिस अक्सर पक्षकार बन जाती है, जिससे हमले होते हैं.
  • बिजली, पानी और सड़क दुर्घटना आदि मौकों पर भी पुलिस उग्र भीड़ को नियंत्रित करने में हमले का शिकार हो जाती है.

पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता पशुधन विभाग में फर्जीवाडे में सामने आई, लेकिन जांच सुस्त पड़ गई. इसमें दो आईपीएस सहित कई अन्य पुलिसकर्मियों की संलिप्तता सामने आई फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई. कानपुर की घटना के बाद आज डीजीपी हितेशचंद्र अवस्थी ने कहा है कि हम जल्द ही मुखबिर को पकड़ लेंगे. जिसने पुलिस की दबिश की जानकारी अपराधी तक पहुंचाई. इसकी तेजी से जांच की जा रही है.


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