लखनऊ: उत्तर प्रदेश में डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को प्रोफेसर पद दिए जाने को लेकर घमासान मचा हुआ है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग पहले ही इस पर सहमति दे चुका है. कई राज्यों में इसे लागू भी कर दिया गया है. बावजूद उत्तर प्रदेश में डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को इस पद से वंचित रखा गया है. जानकारों की माने तो विश्वविद्यालय के शिक्षकों की एक बड़ी लॉबी यह कभी नहीं चाहती कि डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को भी उनकी तरह प्रोफेसर पद मिले. अगर यह व्यवस्था लागू हो जाती है, तो विश्वविद्यालय के शिक्षकों के समान डिग्री कॉलेज के शिक्षक भी कुलपति बनने से लेकर अन्य लाभ के दावेदार हो जाएंगे.
शिक्षकों को क्यों नहीं मिल पा रहा उनका हक. उत्तर प्रदेश में राज्य विश्वविद्यालयों की तरह ही डिग्री कॉलेज में भी शिक्षकों की भर्ती असिस्टेंट प्रोफेसर (प्रवक्ता) के पद पर होती है. यह पर्सनल प्रमोशन स्कीम के तहत विश्वविद्यालय के साथ-साथ डिग्री कॉलेज के शिक्षक भी एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नत हो जाते हैं. योग्यता दोनों की समान है, लेकिन डिग्री कॉलेज के शिक्षक के लिए इसके बाद सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, जबकि विश्वविद्यालय के शिक्षक पर्सनल प्रमोशन स्कीम आप पाकर आगे प्रोफेसर भी बन जाते हैं. प्रदेश के 450 से ज्यादा राजकीय और सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक बीते कई वर्षों से मांग उठा रहे हैं. इन शिक्षकों के सहारे प्रदेश की 80% उच्च शिक्षा चल रही है.विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज के डॉक्टर राजीव शुक्ला यहां एसोसिएट प्रोफेसर और हेड ऑफ द डिपार्टमेंट कॉमर्स के पद पर कार्यरत हैं. 27 जुलाई 1998 से वह एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर काम कर रहे हैं. करीब 23 साल का समय बीत चुका है, लेकिन वह उसी पद पर हैं, जबकि उनके साथ ही कैरियर की शुरुआत करने वाले विश्वविद्यालय के कई शिक्षक वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर बैठे हुए हैं.
डॉक्टर शुक्ला बताते हैं कि उनके जैसे ही हजारों शिक्षक सालों से उनका हक पाने का इंतजार कर रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ. मनोज पांडे कहते हैं कि भारत का संविधान समान योग्यता पर समान अवसर की बात करता है. 80% उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा डिग्री कॉलेजों के भरोसे चल रही है. बावजूद इसके डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को प्रोफेसर पद न देकर उनका हक छीना जा रहा है.
उनका कहना है कि अगर डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को भी प्रोफेसर पद मिलता है, तो वह कुलपति से लेकर आयोग तक के विभिन्न पदों पर दावेदार हो जाएंगे. विश्वविद्यालयों में काम करने वाले कुछ शिक्षकों की एक लॉबी नहीं चाहती है कि डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को भी यह लाभ मिले.
कई राज्य कर चुके हैं लागू
विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज के शिक्षक और शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिंदवी बताते हैं कि छठे वेतन आयोग में ही डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को प्रोफेसरशिप दिए जाने की घोषणा कर दी गई थी, लेकिन उस समय इसे सिर्फ 10% तक को ही दिए जाने की बात कही गई. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा-निर्देशों को राज्य सरकार को अपने स्तर पर लागू करना होता है. कुछ राज्यों ने इसे लागू भी कर दिया.
डॉ. मनीष हिंदवी बताते हैं कि 7वें वेतन आयोग में दोबारा इसकी बात उठाई गई. जुलाई 2018 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से जारी किए गए अधिनियम में बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया गया कि डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को प्रोफेसरशिप दी जाए और उन्होंने कुछ नियम भी बना दिए.
लखनऊ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर एसपी सिंह के नेतृत्व में तब एक समिति भी गठित की गई. समिति ने 2019 में अपनी रिपोर्ट दी. यूजीसी के दिशा निर्देशों को अंगीकृत करने की संस्तुति की गई. जब तक इस पर कोई फैसला होता 2020 में कोरोना संक्रमण की शुरुआत हो गई.
डॉ. मनीष हिंदवी का कहना है कि फरवरी में प्रदेश सरकार की तरफ से बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश शिवम द्विवेदी के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया गया है. इस समिति ने डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को शोध कराने का अधिकार देने की बात को तो स्वीकार कर लिया, लेकिन प्रोफेसरशिप का मामला अभी भी फंसा हुआ है.