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दिमागी बुखार के बाद हुआ फेफड़ों में इंफेक्शन, डॉक्टरों ने दी नई जिंदगी - kgmu

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेटरी मेडिसिन क्रिटिकल केअर यूनिट में एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें 37 दिन तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद मरीज को दोबारा नया जीवन मिल गया. डॉक्टरों के मुताबिक जिस हालत में मरीज को लाया गया था उसमें उन्हें बचा पाना काफी मुश्किल होता है.

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय
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Published : Mar 16, 2019, 12:10 PM IST

लखनऊ: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केअर मेडिसिन विभाग में 71 वर्षीय बलिहारी यादव को बेहोशी की हालत में लाया गया था. आरईसीयू के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ वेद ने बताया कि मरीज को दिमागी बुखार था. बेहोशी की हालत में उन्हें उल्टी हुई, जिसके कारण खाना फेफड़ों में चला गया. इसकी वजह से फेफड़ों में क्लॉट जम गया. ऐसे में मरीज को सांस लेने में भी परेशानी आने लगी.

जानकारी देते डॉ वेद प्रकाश.

उनकी दिल की धड़कन रुकने पर 2 बार सीपीआर दिया गया. डॉ वेद ने बताया कि दिल की धड़कन रुकने पर 15-20 मिनट तक मरीज को सीपीआर दिया गया. इसके अलावा 10 से 15 सेंटीमीटर के 3 खून के थक्के भी निकाले गए इसी वजह से मरीज के जीवन को बचाया जा सका.

मरीज को ठीक करने और उसका नया जीवन देने में आरआईसीयू की पूरी टीम शामिल रही. इस टीम में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर लक्ष्मी, डॉक्टर अंकित कुमार, डॉ सुलक्षणा गौतम, डॉ अभिषेक, डॉक्टर एहबाब, डॉक्टर कैफी, डॉ अल्पिका शुक्ला, डॉ विकास गुप्ता, डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ आकाश सिरोही, डॉ प्रियंका त्रिपाठी, डॉक्टर संतोष शर्मा और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ शामिल रहे.

डॉक्टर वैद्य ने बताया कि दिमागी बुखार के साथ यदि खाना फेफड़ों में चला जाए तो मरीज को निमोनिया हो जाता है. इसकी वजह से मरीज को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है. इसके पहले भी कई रोगियों की जान इन्हीं वजहों से चली गई थी, जिनका पता हम नहीं लगा पाए थे. नई मशीनों और तकनीक के माध्यम से अब हम इस तरह की किसी भी समस्या का निवारण कर सकते हैं और मरीज को स्वस्थ कर सकते हैं.

लखनऊ: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केअर मेडिसिन विभाग में 71 वर्षीय बलिहारी यादव को बेहोशी की हालत में लाया गया था. आरईसीयू के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ वेद ने बताया कि मरीज को दिमागी बुखार था. बेहोशी की हालत में उन्हें उल्टी हुई, जिसके कारण खाना फेफड़ों में चला गया. इसकी वजह से फेफड़ों में क्लॉट जम गया. ऐसे में मरीज को सांस लेने में भी परेशानी आने लगी.

जानकारी देते डॉ वेद प्रकाश.

उनकी दिल की धड़कन रुकने पर 2 बार सीपीआर दिया गया. डॉ वेद ने बताया कि दिल की धड़कन रुकने पर 15-20 मिनट तक मरीज को सीपीआर दिया गया. इसके अलावा 10 से 15 सेंटीमीटर के 3 खून के थक्के भी निकाले गए इसी वजह से मरीज के जीवन को बचाया जा सका.

मरीज को ठीक करने और उसका नया जीवन देने में आरआईसीयू की पूरी टीम शामिल रही. इस टीम में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर लक्ष्मी, डॉक्टर अंकित कुमार, डॉ सुलक्षणा गौतम, डॉ अभिषेक, डॉक्टर एहबाब, डॉक्टर कैफी, डॉ अल्पिका शुक्ला, डॉ विकास गुप्ता, डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ आकाश सिरोही, डॉ प्रियंका त्रिपाठी, डॉक्टर संतोष शर्मा और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ शामिल रहे.

डॉक्टर वैद्य ने बताया कि दिमागी बुखार के साथ यदि खाना फेफड़ों में चला जाए तो मरीज को निमोनिया हो जाता है. इसकी वजह से मरीज को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है. इसके पहले भी कई रोगियों की जान इन्हीं वजहों से चली गई थी, जिनका पता हम नहीं लगा पाए थे. नई मशीनों और तकनीक के माध्यम से अब हम इस तरह की किसी भी समस्या का निवारण कर सकते हैं और मरीज को स्वस्थ कर सकते हैं.

Intro:लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेटरी मेडिसिन क्रिटिकल केअर यूनिट में एक ऐसा मामला सामबे आया है जिसमें 37 दिन तकवेंटिलेटर पर रहने के बाद मरीज को दोबारा नया जीवन मिल गया। डॉक्टरों के मुताबिक जिस हालत में मरीज को लाया गया था उसमें उन्हें बचा पाना काफी मुश्किल होता है।


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किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केअर मेडिसिन विभाग में 71 वर्षीय बलिहारी यादव को बेहोशी की हालत में लाया गया था। आराईसीयू के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ वेद ने बताया कि मरीज को दिमागी बुखार था। बेहोशी की हालत में उन्हें उल्टी हुई जिसके कारण खाना फेफड़ों में चला गया। इसकी वजह से फेफड़ों में क्लॉट जम गया। ऐसे में मरीज को सांस लेने में भी परेशानी आने लगी। उनकी दिल की धड़कन रुकने पर 2 बार सीपीआर दिया गया। डॉ वेद ने बताया कि दिल की धड़कन रुकने पर 15 से 20 मिनट तक मरीज को सीपीआर दिया गया। इसके अलावा 10 से 15 सेंटीमीटर के 3 खून के थक्के भी निकाले गए इसी वजह से मरीज के जीवन को हम बचा पाए।

मरीज को ठीक करने और उसका नया जीवन देने में सफेद के साथ-साथ आर आई सी यू की पूरी टीम शामिल रही। इस टीम में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर लक्ष्मी, डॉक्टर अंकित कुमार, डॉ सुलक्षणा गौतम, डॉ अभिषेक, डॉक्टर एहबाब, डॉक्टर कैफी, डॉ अल्पिका शुक्ला, डॉ विकास गुप्ता, डॉ शैलेंद्र कुमार सिंह, डॉ आकाश सिरोही, डॉ प्रियंका त्रिपाठी, डॉक्टर संतोष शर्मा, डॉ एना श्रीवास्तव और सिस्टर इंचार्ज सुशीला वर्मा, स्टाफ नर्स मेराज अहमद, रितिका, ज्योति, संदीप, सबा, शालिनी, नेहा, सिमरन, शिवानी, टेक्निशियन अनीश, आदर्श, के के शुक्ला, हिना फिजियोथेरेपिस्ट आलिया और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ शामिल रहे।


Conclusion:डॉक्टर वैद्य ने बताया कि दिमागी बुखार के साथ यदि खाना फेफड़ों में चला जाए तो मरीज को निमोनिया हो जाता है जिसकी वजह से मरीज को बचा पाना बेहद मुश्किल होता है। इसके पहले भी कई रोगियों की जान इन्हीं वजहों से चली गई थी जिनका पता हम नहीं लगा पाए थे, लेकिन नई मशीनों और तकनीक के माध्यम से अब दिन के किसी भी समय हम इस तरह के किसी भी समस्या का निवारण कर सकते हैं और मरीज को स्वस्थ कर सकते हैं।
बाइट- डॉ वेद प्रकाश

रामांशी मिश्रा
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