ETV Bharat / state

कोरोना का इलाज: प्लाज्मा थेरेपी के प्रभाव पर छिड़ी बहस

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कोविड-19 के नेशनल डायग्नोस्टिक प्रोटोकोल से प्लाजमा थेरेपी को हटाया जा सकता है. इस मामले पर ईटीवी भारत की टीम ने कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे डॉक्टरों से बात की.

प्लाजमा थेरेपी
प्लाजमा थेरेपी
author img

By

Published : Oct 28, 2020, 5:05 PM IST

लखनऊ: इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कोविड-19 के नेशनल डायग्नोस्टिक प्रोटोकोल से प्लाजमा थेरेपी को हटा सकता है. इसके बाद से ही कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे डॉक्टरों की अलग-अलग राय सामने आई है, जिसमें चिकित्सकों ने प्लाज्मा थेरेपी को एक विकल्प के तौर पर ही बताया है और साथ ही यह भी कहा है कि प्लाजमा थेरेपी अपने एक्सपेरिमेंटल दौर से गुजर रही है.

कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने दी अपनी राय

आईसीएमआर द्वारा कोविड-19 के संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्लाजमा थेरेपी को इस कोविड प्रोटोकॉल से बाहर किया जा सकता है. कोरोना को लेकर के हुए ट्रायल में गंभीर बीमारी की स्थिति में मृत्यु दर में कमी नहीं आई है. हालांकि कई चिकित्सकों का मानना है कि इससे थोड़ा फायदा जरूर हुआ है. जब तक कोरोना का कोई बेहतर इलाज सामने नहीं आता तब तक इसको जारी रखना चाहिए वैसे और भी ऑप्शन देखते रहने होंगे क्योंकि अभी सब कुछ एक्सपेरिमेंटल दौर में है.

गंभीर मरीजों को हो रहा फायदा
केजीएमयू के ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन डिपार्टमेंट की विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने प्लाज्मा दान करने के लिए ठीक हो चुके मरीजों से संपर्क किया. इसी दौरान उनसे बातचीत में उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि "प्लाज्मा थेरेपी काफी पुरानी थेरेपी है, लेकिन जब तक वैक्सीन नहीं आता है तब तक दूसरे मेथड से ट्रीट करने की कोशिश की जाती है. हालांकि आईसीएमआर ने भी माना है कि इस थैरेपी से मरीज की हालत में सुधार देखा गया है. फिर भी आईसीएमआर जो फैसला लेगा उसी अनुसार काम करना होगा. वैसे इसके बाद भी थेरेपी जारी रख सकते हैं, तो इसको लेकर के कोई मनाही नहीं है. साथ ही इसका कोई साइड इफेक्ट भी अभी तक देखने को नहीं मिला है."

King George's Medical University
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय

कोरोना संक्रमित में मरीजों के इलाज में पड़ सकता है अंतर
कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे कई चिकित्सकों का मानना है कि शुरुआत में प्लाज्मा थेरेपी के दौरान कई गंभीर मरीजों को फायदा होता देखा गया. दावा किया गया था कि कई फीसदी मरीज इसके बाद ठीक भी हुए थे. इसके बाद दूसरे संस्थानों में भी प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत की गई. ऐसे में थेरेपी पर रोक लगने से इलाज पर असर भी पड़ सकता है.

प्लाजमा थेरेपी के लिए एंटीबॉडी का मजबूत होना जरूरी
केजीएमयू के संक्रामक रोग विभाग के इंचार्ज डॉ. डी हिमांशु ने बताया कि "शुरू से ही कहा जा रहा है कि इस थेरेपी का हर जगह इस्तेमाल नहीं होना था. केवल कुछ जगहों पर ही इसके यूज करने का फायदा था, जहां तक की आईसीएमआर की बात है तो उन्होंने ट्रायल किया था जिसमें देखा गया कि प्लाज्मा डोनर्स की एंटीबॉडी अच्छी नहीं थी. ऐसे में डोनर्स की एंटीबॉडी कितनी अच्छी है, थेरेपी उस पर डिपेंड करती है." डॉ. डी हिमांशु बताते हैं कि "प्लाजमा थेरेपी हर एक को देने की जरूरत नहीं है. आईसीएमआर के फैसले के बाद क्या असर होगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. अब हमें देखना होगा कि हमारे पास और क्या ऑप्शन बचेंगे?

King George's Medical University
अस्पताल में भर्ती मरीज

केजीएमयू ने कहा किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी
कोरोना काल के दौरान केजीएमयू में कोरोना संक्रमित मरीजों में 64 फीसदी मरीजों को प्लाजमा थेरेपी के माध्यम से ठीक किया गया. इनमें से ज्यादातर मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच गए थे. इसके बाद इन सभी को प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से स्वस्थ किया गया. वहीं केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि 64 फीसदी मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी से ठीक करने के बाद किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.

आईसीएमआर का ट्रायल मुख्यता चार बिंदु

  • थेरेपी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्लेसीड परीक्षण नाम से रेंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल किया था.
  • देश के 39 सेंटरों पर 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 464 मरीजों पर टेस्ट किया गया था.
  • सितंबर में मेडिकल जर्नल में प्रकाशित परीक्षण के परिणाम के अनुसार इससे मरीजों को फायदा नहीं हुआ.
  • अब कोरोना संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज के प्रोटोकॉल से हटाने की बात चल रही है.

लखनऊ: इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कोविड-19 के नेशनल डायग्नोस्टिक प्रोटोकोल से प्लाजमा थेरेपी को हटा सकता है. इसके बाद से ही कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे डॉक्टरों की अलग-अलग राय सामने आई है, जिसमें चिकित्सकों ने प्लाज्मा थेरेपी को एक विकल्प के तौर पर ही बताया है और साथ ही यह भी कहा है कि प्लाजमा थेरेपी अपने एक्सपेरिमेंटल दौर से गुजर रही है.

कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने दी अपनी राय

आईसीएमआर द्वारा कोविड-19 के संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली प्लाजमा थेरेपी को इस कोविड प्रोटोकॉल से बाहर किया जा सकता है. कोरोना को लेकर के हुए ट्रायल में गंभीर बीमारी की स्थिति में मृत्यु दर में कमी नहीं आई है. हालांकि कई चिकित्सकों का मानना है कि इससे थोड़ा फायदा जरूर हुआ है. जब तक कोरोना का कोई बेहतर इलाज सामने नहीं आता तब तक इसको जारी रखना चाहिए वैसे और भी ऑप्शन देखते रहने होंगे क्योंकि अभी सब कुछ एक्सपेरिमेंटल दौर में है.

गंभीर मरीजों को हो रहा फायदा
केजीएमयू के ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन डिपार्टमेंट की विभागाध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने प्लाज्मा दान करने के लिए ठीक हो चुके मरीजों से संपर्क किया. इसी दौरान उनसे बातचीत में उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि "प्लाज्मा थेरेपी काफी पुरानी थेरेपी है, लेकिन जब तक वैक्सीन नहीं आता है तब तक दूसरे मेथड से ट्रीट करने की कोशिश की जाती है. हालांकि आईसीएमआर ने भी माना है कि इस थैरेपी से मरीज की हालत में सुधार देखा गया है. फिर भी आईसीएमआर जो फैसला लेगा उसी अनुसार काम करना होगा. वैसे इसके बाद भी थेरेपी जारी रख सकते हैं, तो इसको लेकर के कोई मनाही नहीं है. साथ ही इसका कोई साइड इफेक्ट भी अभी तक देखने को नहीं मिला है."

King George's Medical University
किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय

कोरोना संक्रमित में मरीजों के इलाज में पड़ सकता है अंतर
कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे कई चिकित्सकों का मानना है कि शुरुआत में प्लाज्मा थेरेपी के दौरान कई गंभीर मरीजों को फायदा होता देखा गया. दावा किया गया था कि कई फीसदी मरीज इसके बाद ठीक भी हुए थे. इसके बाद दूसरे संस्थानों में भी प्लाज्मा थेरेपी की शुरुआत की गई. ऐसे में थेरेपी पर रोक लगने से इलाज पर असर भी पड़ सकता है.

प्लाजमा थेरेपी के लिए एंटीबॉडी का मजबूत होना जरूरी
केजीएमयू के संक्रामक रोग विभाग के इंचार्ज डॉ. डी हिमांशु ने बताया कि "शुरू से ही कहा जा रहा है कि इस थेरेपी का हर जगह इस्तेमाल नहीं होना था. केवल कुछ जगहों पर ही इसके यूज करने का फायदा था, जहां तक की आईसीएमआर की बात है तो उन्होंने ट्रायल किया था जिसमें देखा गया कि प्लाज्मा डोनर्स की एंटीबॉडी अच्छी नहीं थी. ऐसे में डोनर्स की एंटीबॉडी कितनी अच्छी है, थेरेपी उस पर डिपेंड करती है." डॉ. डी हिमांशु बताते हैं कि "प्लाजमा थेरेपी हर एक को देने की जरूरत नहीं है. आईसीएमआर के फैसले के बाद क्या असर होगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. अब हमें देखना होगा कि हमारे पास और क्या ऑप्शन बचेंगे?

King George's Medical University
अस्पताल में भर्ती मरीज

केजीएमयू ने कहा किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी
कोरोना काल के दौरान केजीएमयू में कोरोना संक्रमित मरीजों में 64 फीसदी मरीजों को प्लाजमा थेरेपी के माध्यम से ठीक किया गया. इनमें से ज्यादातर मरीज गंभीर स्थिति में पहुंच गए थे. इसके बाद इन सभी को प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से स्वस्थ किया गया. वहीं केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि 64 फीसदी मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी से ठीक करने के बाद किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.

आईसीएमआर का ट्रायल मुख्यता चार बिंदु

  • थेरेपी के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्लेसीड परीक्षण नाम से रेंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल किया था.
  • देश के 39 सेंटरों पर 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 464 मरीजों पर टेस्ट किया गया था.
  • सितंबर में मेडिकल जर्नल में प्रकाशित परीक्षण के परिणाम के अनुसार इससे मरीजों को फायदा नहीं हुआ.
  • अब कोरोना संक्रमित गंभीर मरीजों के इलाज के प्रोटोकॉल से हटाने की बात चल रही है.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.