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UP Assembly Election: पार्टी कार्यालयों पर जुटने वाली भीड़ बता रही चुनावी हाल

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दलों के पार्टी कार्यालयों पर टिकट के लिए लगने वाली भीड़ बता रही है कि जनता का रुख किधर है. जानिए यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) से पहले किस पार्टी के कार्यालय पर दावेदारों की भीड़ उमड़ रही है?

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Published : Sep 1, 2021, 6:51 PM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्य राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (BJP), समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), कांग्रेस (Congress) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के कार्यालयों पर टिकट के लिए लगने वाली भीड़ बता रही है कि जनता का रुख किधर है. टिकट के दावेदार जनता का मन भांपकर ही राजनीतिक पारी खेलने मैदान में उतरते हैं. स्वाभाविक है कि जिन पार्टियों की ओर प्रत्याशियों का ज्यादा रुझान होता है, उन पर जनता का ज्यादा भरोसा है. यही कारण है कि लोग ऐसी है पार्टियों से चुनाव लड़ने का दांव लगाते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री.

क्या है समाजवादी पार्टी का हाल
अभी जिन दो राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर टिकटार्थियों का सबसे ज्यादा रेला है, उनमें से एक दल है समाजवादी पार्टी. सपा कार्यालय पर सुबह से लेकर देर रात तक टिकट के लिए आए नेताओं और उनके समर्थकों की भीड़ लगी रहती है. इनमें समाजवादी पार्टी के वह कार्यकर्ता तो शामिल होते ही हैं, जो टिकट के दावेदार हैं. भारतीय जनता पार्टी व अन्य दलों के असंतुष्ट नेता भी टिकट के प्रयास में सपा मुख्यालय के चक्कर काटते हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कार्यक्रमों को छोड़कर अपना अधिकांश वक्त नेताओं से मिलने और चुनावी रणनीति बनाने में देते हैं. समाजवादी पार्टी के नेताओं को लगता है कि 2012 से 2017 के बीच अखिलेश सरकार द्वारा किए गए कार्यों और योगी सरकार की नाकामी के मुद्दे पर जनता इस चुनाव में अखिलेश यादव को फिर से मौका दे सकती है.

लखनऊ में भाजपा कार्यालय.
लखनऊ में भाजपा कार्यालय.
बहुजन समाज पार्टी की गतिविधियां
प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों से अलग बसपा कार्यालय पर टिकट के दावेदारों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की कोई भीड़ नहीं है. इसका कारण है यहां की स्थिति अन्य दलों से अलग होना है. क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती ही यहां सबकुछ हैं. टिकटों को लेकर भी निर्णय उन्हीं को लेना होता है. जब मायावती कोई बैठक बुलाती हैं, तभी बसपा कार्यालय में लोग एकत्र होते हैं. आम दिनों में यहां सन्नाटा ही पसरा रहता है. इस पार्टी में टिकट वितरण की व्यवस्था भी अन्य दलों से अलग है. विश्लेषक मानते हैं कि पिछले दो विधान सभा चुनावों में देखने को मिला है कि बसपा का कोर वोटर भी अब पार्टी के साथ नहीं है. 2019 में पार्टी ने सपा से गठबंधन की बदौलत जरूर जीत हासिल की, लेकिन सपा से गठबंधन टूटने के बाद इसकी स्थिति 2012 और 2017 जैसी ही हो गई है. यही कारण है कि टिकट के दावेदारों में इस पार्टी को लेकर खास रुझान नहीं है.
बसपा कार्यालय.
लखनऊ में बसपा कार्यालय.
सबसे अधिक भारतीय जनता पार्टी के पास पहुंच रही भीड़
विधान सभा चुनावों को लेकर यदि किसी पार्टी में सबसे ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है, तो वह है भारतीय जनता पार्टी. योगी सरकार की उपलब्धियां, अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण, केंद्र की जनधन खातों में सीधे योजनाओं का लाभ और जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने सहित अनेक मुद्दे हैं, जिनको लेकर पार्टी चुनावी मैदान में जाने वाली है. हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के पास बताने के लिए ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो टिकट दे दावेदारों को उनकी पहली प्राथमिकता वाला दल बनाती हैं. जनता का रुख भांपकर राजनीति के गलियारों चहलकदमी कर रहे नेता मैदान में जाने के लिए भाजपा को अपनी पसंद बना रहे हैं. इस दल में टिकट वितरण के लिए जिला स्तर से ही स्क्रीनिंग की व्यवस्था है. दावेदार जिलाध्यक्ष के माध्यम से ही राज्य मुख्यालय चयन के लिए पहुंच सकते हैं. फिर भी तमाम नेताओं का बड़े नेताओं से मिलने-जुलने और संपर्क करने के लिए पार्टी मुख्यालय पर तांता लगा रहता है.
लखनऊ में सपा कार्यालय.
लखनऊ में सपा कार्यालय.

इसे भी पढ़ें-विधानसभा क्षेत्रों में प्रबुद्धजनों को जोड़ने के लिए सम्मेलन करेगी भाजपा

दावेदारों की भीड़ ही बताती है लोकप्रियता
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि प्रजातंत्र में चुनाव एक उत्सव की तरह होते हैं. जिस तरह उत्सव की तैयारियां पहले से शुरू हो जाती है, उसी तरह चुनाव में भी तैयारियां और दावेदारों की भीड़ कार्यालयों पर पहले से उमड़ने लगती है. किस पार्टी में टिकट के दावेदारों की कितनी भीड़ है, इस आधार पर उनकी लोकप्रियता देखी जा सकती है और जनाधार का आंकलन भी किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आज की परिस्थिति में सबसे ज्यादा टिकट के दावेदार सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी में पहुंच रहे हैं. यदि इसके ठीक पीछे कोई पार्टी है, तो वह है समाजवादी पार्टी. वहां भी दावेदारों की भीड़ कम नहीं है. बहुजन समाज के विषय में सभी जानते हैं. यहां की संरचना एकदम अलग है. इस पार्टी का आंकलन उस आधार पर नहीं हो सकता है. डॉ. दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि कांग्रेस ने अपनी स्थिति ऐसी बना ली है, उनके वहां जब भीड़ होती है जब प्रियंका गांधी अथवा राहुल गांधी आते हैं. बड़ा नेता जब आता है, तभी भीड़ होती है. टिकट को लेकर जैसा उत्साह बाकी पार्टियों में देखा जा रहा है, यहां वैसा नहीं है. वहीं, भाजपा अपनी उपलब्धियों और कोरोना काल में अपनी सक्रियता को बनाए रखने के कारण यहां इनकी भीड़ ज्यादा है. इनके मुकाबले यदि कोई नजर आ रहा है, तो वह पार्टी है सपा. उन्होंने भी विपक्षी की भूमिका का निर्वहन किया है.

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्य राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (BJP), समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), कांग्रेस (Congress) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) के कार्यालयों पर टिकट के लिए लगने वाली भीड़ बता रही है कि जनता का रुख किधर है. टिकट के दावेदार जनता का मन भांपकर ही राजनीतिक पारी खेलने मैदान में उतरते हैं. स्वाभाविक है कि जिन पार्टियों की ओर प्रत्याशियों का ज्यादा रुझान होता है, उन पर जनता का ज्यादा भरोसा है. यही कारण है कि लोग ऐसी है पार्टियों से चुनाव लड़ने का दांव लगाते हैं.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री.

क्या है समाजवादी पार्टी का हाल
अभी जिन दो राजनीतिक दलों के कार्यालयों पर टिकटार्थियों का सबसे ज्यादा रेला है, उनमें से एक दल है समाजवादी पार्टी. सपा कार्यालय पर सुबह से लेकर देर रात तक टिकट के लिए आए नेताओं और उनके समर्थकों की भीड़ लगी रहती है. इनमें समाजवादी पार्टी के वह कार्यकर्ता तो शामिल होते ही हैं, जो टिकट के दावेदार हैं. भारतीय जनता पार्टी व अन्य दलों के असंतुष्ट नेता भी टिकट के प्रयास में सपा मुख्यालय के चक्कर काटते हैं. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कार्यक्रमों को छोड़कर अपना अधिकांश वक्त नेताओं से मिलने और चुनावी रणनीति बनाने में देते हैं. समाजवादी पार्टी के नेताओं को लगता है कि 2012 से 2017 के बीच अखिलेश सरकार द्वारा किए गए कार्यों और योगी सरकार की नाकामी के मुद्दे पर जनता इस चुनाव में अखिलेश यादव को फिर से मौका दे सकती है.

लखनऊ में भाजपा कार्यालय.
लखनऊ में भाजपा कार्यालय.
बहुजन समाज पार्टी की गतिविधियां
प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों से अलग बसपा कार्यालय पर टिकट के दावेदारों, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की कोई भीड़ नहीं है. इसका कारण है यहां की स्थिति अन्य दलों से अलग होना है. क्योंकि बसपा सुप्रीमो मायावती ही यहां सबकुछ हैं. टिकटों को लेकर भी निर्णय उन्हीं को लेना होता है. जब मायावती कोई बैठक बुलाती हैं, तभी बसपा कार्यालय में लोग एकत्र होते हैं. आम दिनों में यहां सन्नाटा ही पसरा रहता है. इस पार्टी में टिकट वितरण की व्यवस्था भी अन्य दलों से अलग है. विश्लेषक मानते हैं कि पिछले दो विधान सभा चुनावों में देखने को मिला है कि बसपा का कोर वोटर भी अब पार्टी के साथ नहीं है. 2019 में पार्टी ने सपा से गठबंधन की बदौलत जरूर जीत हासिल की, लेकिन सपा से गठबंधन टूटने के बाद इसकी स्थिति 2012 और 2017 जैसी ही हो गई है. यही कारण है कि टिकट के दावेदारों में इस पार्टी को लेकर खास रुझान नहीं है.
बसपा कार्यालय.
लखनऊ में बसपा कार्यालय.
सबसे अधिक भारतीय जनता पार्टी के पास पहुंच रही भीड़
विधान सभा चुनावों को लेकर यदि किसी पार्टी में सबसे ज्यादा उत्साह देखने को मिल रहा है, तो वह है भारतीय जनता पार्टी. योगी सरकार की उपलब्धियां, अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण, केंद्र की जनधन खातों में सीधे योजनाओं का लाभ और जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने सहित अनेक मुद्दे हैं, जिनको लेकर पार्टी चुनावी मैदान में जाने वाली है. हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी के पास बताने के लिए ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो टिकट दे दावेदारों को उनकी पहली प्राथमिकता वाला दल बनाती हैं. जनता का रुख भांपकर राजनीति के गलियारों चहलकदमी कर रहे नेता मैदान में जाने के लिए भाजपा को अपनी पसंद बना रहे हैं. इस दल में टिकट वितरण के लिए जिला स्तर से ही स्क्रीनिंग की व्यवस्था है. दावेदार जिलाध्यक्ष के माध्यम से ही राज्य मुख्यालय चयन के लिए पहुंच सकते हैं. फिर भी तमाम नेताओं का बड़े नेताओं से मिलने-जुलने और संपर्क करने के लिए पार्टी मुख्यालय पर तांता लगा रहता है.
लखनऊ में सपा कार्यालय.
लखनऊ में सपा कार्यालय.

इसे भी पढ़ें-विधानसभा क्षेत्रों में प्रबुद्धजनों को जोड़ने के लिए सम्मेलन करेगी भाजपा

दावेदारों की भीड़ ही बताती है लोकप्रियता
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर पैनी निगाह रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि प्रजातंत्र में चुनाव एक उत्सव की तरह होते हैं. जिस तरह उत्सव की तैयारियां पहले से शुरू हो जाती है, उसी तरह चुनाव में भी तैयारियां और दावेदारों की भीड़ कार्यालयों पर पहले से उमड़ने लगती है. किस पार्टी में टिकट के दावेदारों की कितनी भीड़ है, इस आधार पर उनकी लोकप्रियता देखी जा सकती है और जनाधार का आंकलन भी किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि आज की परिस्थिति में सबसे ज्यादा टिकट के दावेदार सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी में पहुंच रहे हैं. यदि इसके ठीक पीछे कोई पार्टी है, तो वह है समाजवादी पार्टी. वहां भी दावेदारों की भीड़ कम नहीं है. बहुजन समाज के विषय में सभी जानते हैं. यहां की संरचना एकदम अलग है. इस पार्टी का आंकलन उस आधार पर नहीं हो सकता है. डॉ. दिलीप अग्निहोत्री का कहना है कि कांग्रेस ने अपनी स्थिति ऐसी बना ली है, उनके वहां जब भीड़ होती है जब प्रियंका गांधी अथवा राहुल गांधी आते हैं. बड़ा नेता जब आता है, तभी भीड़ होती है. टिकट को लेकर जैसा उत्साह बाकी पार्टियों में देखा जा रहा है, यहां वैसा नहीं है. वहीं, भाजपा अपनी उपलब्धियों और कोरोना काल में अपनी सक्रियता को बनाए रखने के कारण यहां इनकी भीड़ ज्यादा है. इनके मुकाबले यदि कोई नजर आ रहा है, तो वह पार्टी है सपा. उन्होंने भी विपक्षी की भूमिका का निर्वहन किया है.

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