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थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों में कोरोना संक्रमण का ज्यादा खतरा

हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है. थैलेसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है, जिसके लक्षण 4 से 6 माह पर उभरते हैं. डॉक्टरों का कहना है कि थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों में कोरोना संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है.

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केजीएमयू लखनऊ.
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Published : May 8, 2021, 8:43 AM IST

लखनऊ : कोरोना वायरस थैलेसीमिया से पीड़ितों बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसका कारण यह है कि ऐसे बच्चों में रोगों के खिलाफ लड़ने की ताकत कम होती है. कमजोर इम्यूनिटी के चलते संक्रमण की आशंका भी अधिक रहती है.

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डॉ. एके त्रिपाठी.

केजीएमयू के हिमेटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ एके त्रिपाठी के मुताबिक, यह बच्चों में होने वाली एक गंभीर आनुवांशिक बीमारी है. इसके लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं. कुछ बच्चों में 5 से 10 साल के बीच भी बीमारी उभरती है. ज्यादातर बीमारी माता-पिता से बच्चों में पनपती है. थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को कोरोना वायरस के हमले से बचाने की सख्त जरूरत है. इन बच्चों में खून की कमी हो जाती है. इम्युनिटी कमजोर होती है. उनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है.

बार-बार चढ़ाना पड़ता है खून
डॉ. एके त्रिपाठी के मुताबिक, हर साल देश में लगभग 10 हजार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे जन्म लेते हैं. यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है. हीमोग्लोबिन आयरन व ग्लोबिन प्रोटीन से मिलकर बनता है. थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों में ग्लोबिन प्रोटीन बहुत कम या नहीं बनता है. ऐसे में लाल रक्त कोशिकाएं शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाती हैं.

थैलेसीमिया के लक्षण

  • थकान व कमजोरी.
  • त्वचा, आंख, जीभ व नाखून पीले पड़ना.
  • यकृत का बढ़ना.
  • गाढ़े रंग का पेशाब आना.
  • हड्डियों में दर्द होना.
  • चेहरे की हड्डियों का विकृत होना.

ये भी पढ़ें: लखनऊ यूनिवर्सिटी ने शुरू किया योग प्रशिक्षण कार्यक्रम

उपाय

  • खून की जांच कराकर बीमारी की पहचान कर सकते हैं.
  • शादी से पहले लड़के व लड़की की खून की जांच करवाएं.
  • नजदीकी रिश्तेदारी में विवाह करने से बचें.
  • गर्भधारण से चार महीने के अन्दर भ्रूण की जांच कराएं.

लखनऊ : कोरोना वायरस थैलेसीमिया से पीड़ितों बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इसका कारण यह है कि ऐसे बच्चों में रोगों के खिलाफ लड़ने की ताकत कम होती है. कमजोर इम्यूनिटी के चलते संक्रमण की आशंका भी अधिक रहती है.

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डॉ. एके त्रिपाठी.

केजीएमयू के हिमेटोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ एके त्रिपाठी के मुताबिक, यह बच्चों में होने वाली एक गंभीर आनुवांशिक बीमारी है. इसके लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं. कुछ बच्चों में 5 से 10 साल के बीच भी बीमारी उभरती है. ज्यादातर बीमारी माता-पिता से बच्चों में पनपती है. थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को कोरोना वायरस के हमले से बचाने की सख्त जरूरत है. इन बच्चों में खून की कमी हो जाती है. इम्युनिटी कमजोर होती है. उनमें संक्रमण का खतरा अधिक होता है.

बार-बार चढ़ाना पड़ता है खून
डॉ. एके त्रिपाठी के मुताबिक, हर साल देश में लगभग 10 हजार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे जन्म लेते हैं. यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है. हीमोग्लोबिन आयरन व ग्लोबिन प्रोटीन से मिलकर बनता है. थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों में ग्लोबिन प्रोटीन बहुत कम या नहीं बनता है. ऐसे में लाल रक्त कोशिकाएं शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन नहीं पहुंचा पाती हैं.

थैलेसीमिया के लक्षण

  • थकान व कमजोरी.
  • त्वचा, आंख, जीभ व नाखून पीले पड़ना.
  • यकृत का बढ़ना.
  • गाढ़े रंग का पेशाब आना.
  • हड्डियों में दर्द होना.
  • चेहरे की हड्डियों का विकृत होना.

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उपाय

  • खून की जांच कराकर बीमारी की पहचान कर सकते हैं.
  • शादी से पहले लड़के व लड़की की खून की जांच करवाएं.
  • नजदीकी रिश्तेदारी में विवाह करने से बचें.
  • गर्भधारण से चार महीने के अन्दर भ्रूण की जांच कराएं.
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