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जानिए क्यूएस रैंकिंग में आने के लिए राज्य विश्वविद्यालयों के लिए क्या है चुनौती, जानकारों ने कही यह बात

दुनिया के बेस्ट यूनिवर्सिटीज की रैंक बुधवार को जारी की गई. जिसमें आईआईटी मुंबई ने टाॅप 150 यूनिवर्सिटीज में जगह बनाई है.

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Published : Jun 29, 2023, 4:14 PM IST

Updated : Jun 29, 2023, 9:06 PM IST

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लखनऊ : बीते दिनों क्यूएस रैंकिंग ने विश्व के टॉप विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थानों की सूची जारी की. इस सूची में हमारे देश से 45 विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थान जगह बनाने में कामयाब रहे. सबसे बड़ी कामयाबी आईआईटी बॉम्बे को मिली. इस वर्ल्ड रैंकिंग में 149 रैंक हासिल कर पूरे देश को गौरवान्वित किया है. इस रैंकिंग में पहले स्थान पर अमेरिका की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी है. अगर बात की जाए तो उत्तर प्रदेश देश में सबसे बड़ा राज्य होने के साथ ही यहां पर विश्वविद्यालयों व शिक्षा संस्थाओं की संख्या भी दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है. इस रैंकिंग में उत्तर प्रदेश की तीन संस्थाओं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय व आईआईटी कानपुर ने जगह बनाई है. इसके अलावा एक भी राज्य विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है, जिसमें क्यूएस रैंकिंग में जगह पाने के लिए कोई संभावना दिख रही हो. इस पूरी रैंकिंग सिस्टम पर विशेषज्ञों का कहना है कि 'क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में आना राज्य विश्वविद्यालयों के लिए आसान नहीं है. हमारे राज्य विश्वविद्यालयों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राज्य विश्वविद्यालयों के पास केंद्रीय विश्वविद्यालयों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर व फंड मौजूद नहीं होता है.'

बेस्ट यूनिवर्सिटीज की रैंक जारी
बेस्ट यूनिवर्सिटीज की रैंक जारी


उत्तर प्रदेश सेंटर फॉर रैंकिंग एंड एक्रेडिटेशन मेंटरशिप (उपक्रम) की डायरेक्टर प्रोफेसर पूनम टंडन ने बताया कि 'बीते कुछ वर्षों में हमारे विश्वविद्यालय देश विदेश के दूसरे रैंकिंग में आना शुरू हो गए हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में संचालित करीब 29 राज्य विश्वविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है. विशेष तौर पर शोध के क्षेत्र में हमारे शिक्षक काफी पीछे हैं. क्यूएस रैंकिंग के जो मानक हैं वह काफी कठिन हैं. क्यूएस रैंकिंग जिस पब्लिकेशंस में शोध प्रकाशित होने पर विश्वविद्यालयों को तवज्जो देता है, हमारे यहां उसके अलावा दूसरे कई और प्रकाशनों में शोध प्रकाशित होने पर शिक्षकों को प्रमोशन का लाभ दिया जाता है. इसके लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के सभी विश्वविद्यालयों को क्यूएस रैंकिंग में लाने के लिए एक मानक तय करे.'

प्रोफेसर टंडन ने बताया कि 'इसके अलावा केंद्रीय विश्वविद्यालयों को जो फंड मिलता है. उसकी तुलना में राज्य विश्वविद्यालयों के पास पर्याप्त फंड नहीं होता, जिसके कारण वह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरी चीजों को वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालयों के बराबर नहीं कर पाते हैं. मौजूदा समय में राज्य विश्वविद्यालयों के पास अपने शिक्षकों व कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पूरा फंड नहीं मिलता है, वहीं इसके अलावा एक सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षक छात्र अनुपात काफी खराब है. उन्होंने बताया कि हमारे राज्य विश्वविद्यालय राज्य सरकार के नियमों के अधीन आते हैं, ऐसे में यहां पर शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है, जबकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में शिक्षकों की भर्ती व उनके चयन प्रक्रिया काफी लचीली होती है.'

तीन तरह की रैंकिंग होती है जारी : प्रो. पूनम टंडन ने बताया कि 'क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग क्वाकारेली साइमंड्स दुनिया के टॉप विश्वविद्यालयों की जो रैंकिंग जारी करता है, उसके मानक भी भिन्न हैं. यह दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों को तीन तरह की रैंकिंग जारी करता है. दुनिया की टॉप विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में आने के लिए पहले हमारे विश्वविद्यालयों को एशिया के टॉप 500 विश्वविद्यालय में शामिल होना होगा. इसके बाद ही वह क्यूएस रैंकिंग की वर्ल्ड रैंकिंग में शामिल हो सकते हैं. प्रो. टंडन ने बताया कि लखनऊ विश्वविद्यालय ने मार्च 2023 में क्यूएस रैंकिंग में टॉप एशिया रैंकिंग में जगह बनाने में कामयाब हुआ था. उस समय विश्वविद्यालय को 600 रैंक प्राप्त हुए थे. इसके अलावा क्यूएस की तरफ से जारी होने वाले सब्जेक्ट कैटेगरी में राज्य से 22 संस्थान उस रैंकिंग में जगह बनाने में कामयाब हुए हैं. प्रोफेसर टंडन ने बताया कि वर्ल्ड रैंकिंग के लिए संस्था की ओर से दुनिया के बड़े-बड़े ऑर्गेनाइजेशंस में कार्यरत लोगों से फीडबैक लिया जाता है. उस फीडबैक के आधार पर किसी विश्वविद्यालय की वर्ल्ड रैंकिंग तय होती है. पूरी रैंकिंग के मूल्यांकन में इस फीडबैक का वैल्यू 50 प्रतिशत होता है. ऐसे में जिन संस्थाओं का ग्लोबल रीच अच्छा है वह इस रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन करते हैं.'

प्रोफेसर टंडन ने बताया कि 'हमारे विश्वविद्यालयों को भी विश्व पटल पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है. बीते कुछ समय में उत्तर प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों में काफी बेहतर सुधार देखने को मिला है. जहां कुछ वर्षों पहले उत्तर प्रदेश में नैक मूल्यांकन में ए डबल प्लस विश्वविद्यालयों की संख्या न के बराबर थी, वहीं आज बीते एक वर्षों में लखनऊ विश्वविद्यालय, गोरखपुर विश्वविद्यालय, मेरठ विश्वविद्यालय नैक में ए डबल प्लस ग्रेड हासिल करने में कामयाब हुए हैं, वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में भी उत्तर प्रदेश के कई शिक्षण संस्थानों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. जहां राजधानी लखनऊ में स्थित बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने इस बार इस रैंकिंग में बीते साल की तुलना में 13 पायदान आगे बढ़ते हुए पूरे देश में 42वां रैंक हासिल किया है, वहीं आईआईएम ने इस बार 21वें रैंक हासिल किया है, जबकि लखनऊ विश्वविद्यालय ने एनआईआरएफ रैंकिंग में 80 रैंक की लंबी छलांग लगाते हुए पूरे देश में 115 स्थान प्राप्त किया है.'

यह भी पढ़ें : 2024 में पर्यटक देख सकेंगे बुंदेलखंड की विस्मृत विरासतें, चुनाव से पहले कई योजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य

यह भी पढ़ें : बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों के तबादलों को लेकर सचिव ने कही यह बात

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लखनऊ : बीते दिनों क्यूएस रैंकिंग ने विश्व के टॉप विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थानों की सूची जारी की. इस सूची में हमारे देश से 45 विश्वविद्यालय व शिक्षण संस्थान जगह बनाने में कामयाब रहे. सबसे बड़ी कामयाबी आईआईटी बॉम्बे को मिली. इस वर्ल्ड रैंकिंग में 149 रैंक हासिल कर पूरे देश को गौरवान्वित किया है. इस रैंकिंग में पहले स्थान पर अमेरिका की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी है. अगर बात की जाए तो उत्तर प्रदेश देश में सबसे बड़ा राज्य होने के साथ ही यहां पर विश्वविद्यालयों व शिक्षा संस्थाओं की संख्या भी दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है. इस रैंकिंग में उत्तर प्रदेश की तीन संस्थाओं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय व आईआईटी कानपुर ने जगह बनाई है. इसके अलावा एक भी राज्य विश्वविद्यालय ऐसा नहीं है, जिसमें क्यूएस रैंकिंग में जगह पाने के लिए कोई संभावना दिख रही हो. इस पूरी रैंकिंग सिस्टम पर विशेषज्ञों का कहना है कि 'क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में आना राज्य विश्वविद्यालयों के लिए आसान नहीं है. हमारे राज्य विश्वविद्यालयों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि राज्य विश्वविद्यालयों के पास केंद्रीय विश्वविद्यालयों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों जैसा इंफ्रास्ट्रक्चर व फंड मौजूद नहीं होता है.'

बेस्ट यूनिवर्सिटीज की रैंक जारी
बेस्ट यूनिवर्सिटीज की रैंक जारी


उत्तर प्रदेश सेंटर फॉर रैंकिंग एंड एक्रेडिटेशन मेंटरशिप (उपक्रम) की डायरेक्टर प्रोफेसर पूनम टंडन ने बताया कि 'बीते कुछ वर्षों में हमारे विश्वविद्यालय देश विदेश के दूसरे रैंकिंग में आना शुरू हो गए हैं. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में संचालित करीब 29 राज्य विश्वविद्यालयों में इंफ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है. विशेष तौर पर शोध के क्षेत्र में हमारे शिक्षक काफी पीछे हैं. क्यूएस रैंकिंग के जो मानक हैं वह काफी कठिन हैं. क्यूएस रैंकिंग जिस पब्लिकेशंस में शोध प्रकाशित होने पर विश्वविद्यालयों को तवज्जो देता है, हमारे यहां उसके अलावा दूसरे कई और प्रकाशनों में शोध प्रकाशित होने पर शिक्षकों को प्रमोशन का लाभ दिया जाता है. इसके लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देश के सभी विश्वविद्यालयों को क्यूएस रैंकिंग में लाने के लिए एक मानक तय करे.'

प्रोफेसर टंडन ने बताया कि 'इसके अलावा केंद्रीय विश्वविद्यालयों को जो फंड मिलता है. उसकी तुलना में राज्य विश्वविद्यालयों के पास पर्याप्त फंड नहीं होता, जिसके कारण वह अपने इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरी चीजों को वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालयों के बराबर नहीं कर पाते हैं. मौजूदा समय में राज्य विश्वविद्यालयों के पास अपने शिक्षकों व कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पूरा फंड नहीं मिलता है, वहीं इसके अलावा एक सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि राज्य विश्वविद्यालयों में शिक्षक छात्र अनुपात काफी खराब है. उन्होंने बताया कि हमारे राज्य विश्वविद्यालय राज्य सरकार के नियमों के अधीन आते हैं, ऐसे में यहां पर शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है, जबकि केंद्रीय विश्वविद्यालयों व भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में शिक्षकों की भर्ती व उनके चयन प्रक्रिया काफी लचीली होती है.'

तीन तरह की रैंकिंग होती है जारी : प्रो. पूनम टंडन ने बताया कि 'क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग क्वाकारेली साइमंड्स दुनिया के टॉप विश्वविद्यालयों की जो रैंकिंग जारी करता है, उसके मानक भी भिन्न हैं. यह दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों को तीन तरह की रैंकिंग जारी करता है. दुनिया की टॉप विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में आने के लिए पहले हमारे विश्वविद्यालयों को एशिया के टॉप 500 विश्वविद्यालय में शामिल होना होगा. इसके बाद ही वह क्यूएस रैंकिंग की वर्ल्ड रैंकिंग में शामिल हो सकते हैं. प्रो. टंडन ने बताया कि लखनऊ विश्वविद्यालय ने मार्च 2023 में क्यूएस रैंकिंग में टॉप एशिया रैंकिंग में जगह बनाने में कामयाब हुआ था. उस समय विश्वविद्यालय को 600 रैंक प्राप्त हुए थे. इसके अलावा क्यूएस की तरफ से जारी होने वाले सब्जेक्ट कैटेगरी में राज्य से 22 संस्थान उस रैंकिंग में जगह बनाने में कामयाब हुए हैं. प्रोफेसर टंडन ने बताया कि वर्ल्ड रैंकिंग के लिए संस्था की ओर से दुनिया के बड़े-बड़े ऑर्गेनाइजेशंस में कार्यरत लोगों से फीडबैक लिया जाता है. उस फीडबैक के आधार पर किसी विश्वविद्यालय की वर्ल्ड रैंकिंग तय होती है. पूरी रैंकिंग के मूल्यांकन में इस फीडबैक का वैल्यू 50 प्रतिशत होता है. ऐसे में जिन संस्थाओं का ग्लोबल रीच अच्छा है वह इस रैंकिंग में अच्छा प्रदर्शन करते हैं.'

प्रोफेसर टंडन ने बताया कि 'हमारे विश्वविद्यालयों को भी विश्व पटल पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए काफी कुछ किया जा रहा है. बीते कुछ समय में उत्तर प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों में काफी बेहतर सुधार देखने को मिला है. जहां कुछ वर्षों पहले उत्तर प्रदेश में नैक मूल्यांकन में ए डबल प्लस विश्वविद्यालयों की संख्या न के बराबर थी, वहीं आज बीते एक वर्षों में लखनऊ विश्वविद्यालय, गोरखपुर विश्वविद्यालय, मेरठ विश्वविद्यालय नैक में ए डबल प्लस ग्रेड हासिल करने में कामयाब हुए हैं, वहीं नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में भी उत्तर प्रदेश के कई शिक्षण संस्थानों ने बेहतर प्रदर्शन किया है. जहां राजधानी लखनऊ में स्थित बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने इस बार इस रैंकिंग में बीते साल की तुलना में 13 पायदान आगे बढ़ते हुए पूरे देश में 42वां रैंक हासिल किया है, वहीं आईआईएम ने इस बार 21वें रैंक हासिल किया है, जबकि लखनऊ विश्वविद्यालय ने एनआईआरएफ रैंकिंग में 80 रैंक की लंबी छलांग लगाते हुए पूरे देश में 115 स्थान प्राप्त किया है.'

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Last Updated : Jun 29, 2023, 9:06 PM IST
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