लखनऊ: हर साल सितंबर महीने में जानलेवा बीमारी कैंसर के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता है. कैंसर पीड़ित लोगों को जागरूक करने के लिए कई तरह के आयोजन किए जाते हैं. ऐसा ही एक आयोजन केजीएमयू के लिए कार्य करने वाली संस्था 'कैनकिड्स किड्सकैन' ने भी किया.
'कैनकिड्स किड्सकैन' ने चलाया कैंसर जागरूकता अभियान, पीड़ित बच्चों ने की 'अपने हक की बात'
लखनऊ स्थित केजीएमयू के लिए कार्य करने वाली संस्था 'कैनकिड्स किड्सकैन' ने कैंसर जागरूकता अभियान चलाया. संस्था से जुड़े कुछ कैंसर ग्रसित बच्चों ने 'अपने हक की बात' नाम से जागरूकता अभियान चलाया साथ ही अपने अनुभव भी साझा किए.
कैंसर जागरूकता अभियान.
लखनऊ: हर साल सितंबर महीने में जानलेवा बीमारी कैंसर के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता है. कैंसर पीड़ित लोगों को जागरूक करने के लिए कई तरह के आयोजन किए जाते हैं. ऐसा ही एक आयोजन केजीएमयू के लिए कार्य करने वाली संस्था 'कैनकिड्स किड्सकैन' ने भी किया.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. निशांत वर्मा कहते हैं कि सितंबर को 'चाइल्ड कैंसर अवेयरनेस मंथ' भी कहा जाता है. डॉ. निशांत ने बताया कि हर तरह के कैंसर के लिए किसी न किसी तरह का सिंबल होता है, बच्चों में होने वाले कैंसर के लिए सुनहरा रंग होता है, जिससे हम बच्चों के कैंसर को दर्शाते हैं. यह रंग कैंसर से जूझ रहे बच्चों के लिए हिम्मत और साहस के प्रतीक के रूप में माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि वह भी कैंसर से लड़कर सुनहरे रंग की तरह सामने आएंगे.
जागरूकता न होने से इलाज करना है मुश्किल
डॉ. निशांत कहते हैं कि बच्चों के कैंसर के लिए अभी भी जागरूकता की आवश्यकता है. अभी भी बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं, जो जागरूकता न होने से सही समय पर अस्पताल नहीं आ पाते और इस वजह से उनको बचाना या उनका सही इलाज करना मुश्किल होता है.
कैंसर से जूझ रहा मासूम बनना चाहता है साइंटिस्ट
ईटीवी भारत ने गोरखपुर के रहने वाले 11 वर्ष के आजैन कैंसर सरवाइवर्स से बात की, जो 9 साल की उम्र से कैंसर से जूझ रहा है. मासूम आजैन बताता है कि जब कभी उसे दर्द होता है तो मम्मी पापा उसके पास होते हैं और वे तुरंत डॉक्टर से बात कराते हैं. आजैन बड़ा होकर एक बड़ा साइंटिस्ट बनना चाहता है. 'अपने हक की बात' जागरूकता अभियान में मौजूद आजैन ने कहा कि यह मेरा बचपन है, मैं जानता हूं कि मुझे कैंसर को हराकर अपना बचपन जीना है.घर गिरवी रखकर कठिन परिस्थितियों में कराया कैंसर का इलाज
जौनपुर के कैंसर सरवाइवर विकास यादव कहते हैं कि मुझे अपने कैंसर के इलाज के लिए देशभर के 22 अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े थे. मेरे पैरेंट्स को अपना घर गिरवी रखना पड़ा था और तब जाकर मेरा इलाज हो पाया था. मुझे आंखों का कैंसर हुआ था, जिसमें मेरी आंख निकाली जा चुकी है. 'अपने हक की बात' में, मैं यह कहना चाहता हूं कि प्रदेश में भी कैंसर के इलाज की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए. उन बच्चों तक सुविधा पहुंचनी चाहिए, जहां कैंसर जैसी घातक बीमारी का पता भी नहीं चलता.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. निशांत वर्मा कहते हैं कि सितंबर को 'चाइल्ड कैंसर अवेयरनेस मंथ' भी कहा जाता है. डॉ. निशांत ने बताया कि हर तरह के कैंसर के लिए किसी न किसी तरह का सिंबल होता है, बच्चों में होने वाले कैंसर के लिए सुनहरा रंग होता है, जिससे हम बच्चों के कैंसर को दर्शाते हैं. यह रंग कैंसर से जूझ रहे बच्चों के लिए हिम्मत और साहस के प्रतीक के रूप में माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि वह भी कैंसर से लड़कर सुनहरे रंग की तरह सामने आएंगे.
जागरूकता न होने से इलाज करना है मुश्किल
डॉ. निशांत कहते हैं कि बच्चों के कैंसर के लिए अभी भी जागरूकता की आवश्यकता है. अभी भी बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं, जो जागरूकता न होने से सही समय पर अस्पताल नहीं आ पाते और इस वजह से उनको बचाना या उनका सही इलाज करना मुश्किल होता है.
कैंसर से जूझ रहा मासूम बनना चाहता है साइंटिस्ट
ईटीवी भारत ने गोरखपुर के रहने वाले 11 वर्ष के आजैन कैंसर सरवाइवर्स से बात की, जो 9 साल की उम्र से कैंसर से जूझ रहा है. मासूम आजैन बताता है कि जब कभी उसे दर्द होता है तो मम्मी पापा उसके पास होते हैं और वे तुरंत डॉक्टर से बात कराते हैं. आजैन बड़ा होकर एक बड़ा साइंटिस्ट बनना चाहता है. 'अपने हक की बात' जागरूकता अभियान में मौजूद आजैन ने कहा कि यह मेरा बचपन है, मैं जानता हूं कि मुझे कैंसर को हराकर अपना बचपन जीना है.घर गिरवी रखकर कठिन परिस्थितियों में कराया कैंसर का इलाज
जौनपुर के कैंसर सरवाइवर विकास यादव कहते हैं कि मुझे अपने कैंसर के इलाज के लिए देशभर के 22 अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े थे. मेरे पैरेंट्स को अपना घर गिरवी रखना पड़ा था और तब जाकर मेरा इलाज हो पाया था. मुझे आंखों का कैंसर हुआ था, जिसमें मेरी आंख निकाली जा चुकी है. 'अपने हक की बात' में, मैं यह कहना चाहता हूं कि प्रदेश में भी कैंसर के इलाज की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए. उन बच्चों तक सुविधा पहुंचनी चाहिए, जहां कैंसर जैसी घातक बीमारी का पता भी नहीं चलता.
Intro:लखनऊ। हर साल सितंबर महीने में बच्चों के कैंसर के लिए जागरूकता अभियान महीना कैंसर अवेयरनेस मनाया जाता है। इस महीने में कैंसर के संबंध में जागरूकता जगाने की कोशिश की जाती है और कई तरह के आयोजन किए जाते हैं। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के लिए कार्य करने वाली संस्था कैनकिड्स किड्सकैन से जुड़े कुछ कैंसर सरवाइवर्स ने अपने हक की बात की और कैंसर के मरीज होने के दौरान के अपने अनुभव भी साझा किया।
Body:वीओ1 किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ निशांत वर्मा कहते हैं कि सितंबर को चाइल्ड कैंसर अवेयरनेस मंथ भी कहा जाता है हर कैंसर के लिए किसी न किसी तरह का सिंबल होता है। बच्चों के कैंसर के लिए सुनहरा रंग होता है जिससे हम बच्चों के कैंसर को दर्शाते हैं। यह रंग कैंसर से जूझ रहे बच्चों को हिम्मत और साहस के प्रतीक के रूप में माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि वह भी सुनहरे रंग की तरह ही खेल कर सामने आएंगे। डॉ निशांत कहते हैं कि बच्चों के कैंसर के प्रति अभी भी जागरूकता की जरूरत है। वह कहते हैं कि अभी भी बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं जो सही समय पर अस्पताल नहीं आ पाते और इस वजह से उनको बचाना या उनका सही इलाज कर पाना मुश्किल होता है। ईटीवी भारत ने कुछ कैंसर सरवाइवर्स से भी बात की । गोरखपुर के रहने वाले 11 वर्ष के आज़ैन को रक्त कैंसर है। 9 वर्ष की उम्र में उसे कैंसर डिटेक्ट हुआ था। आज़ैन कहता है कि जब कभी मुझे दर्द होता है तो मेरे मम्मी पापा मेरे पास होते हैं और वह तुरंत डॉक्टर से मेरी बात करवाते हैं। आज़ैन बड़े होकर साइंटिस्ट बनना चाहते हैं। अपने हक की बात करते हुए वह कहते हैं कि मेरे हक की बात मेरा बचपन है। मैं जानता हूं कि मुझे अपना बचपन जीना है और मैं जैसे जीना चाहता हूं वैसे जियूँगा। जौनपुर के कैंसर सरवाइवर विकास यादव कहते हैं कि मुझे अपने कैंसर के इलाज के लिए देशभर के 22 अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े थे। मेरे पेरेंट्स को अपना घर बार गिरवी रखना पड़ा था और तब मेरा इलाज हो पाया था। मुझे आंखों का कैंसर हुआ था जिसमें मेरी एक आंख तक निकाली जा चुकी है। अपने हक की बात में मैं यह कहना चाहता हूं कि प्रदेश में भी कैंसर के इलाज की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए और उन बच्चों तक भी सुविधा पहुंचनी चाहिए जहां इस बात का उन्हें पता भी नहीं होता।
Conclusion:पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग में तमाम ऐसे कैंसर सरवाइवर्स जो जानते हैं कि कैंसर के दर्द से उबरना कितना मुश्किल काम है और इसलिए वह तमाम तरह के आयोजन कर यहां पर आने वाले बच्चों को खुशी के कुछ पल देने की कोशिश करते हैं। बाइट- डॉ निशांत वर्मा, प्रोफेसर पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग केजीएमयू बाइट- आज़ैन, कैंसर पेशेंट बाइट- विकास यादव, कैंसर सरवाइवर, जौनपुर रामांशी मिश्रा
Body:वीओ1 किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ निशांत वर्मा कहते हैं कि सितंबर को चाइल्ड कैंसर अवेयरनेस मंथ भी कहा जाता है हर कैंसर के लिए किसी न किसी तरह का सिंबल होता है। बच्चों के कैंसर के लिए सुनहरा रंग होता है जिससे हम बच्चों के कैंसर को दर्शाते हैं। यह रंग कैंसर से जूझ रहे बच्चों को हिम्मत और साहस के प्रतीक के रूप में माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि वह भी सुनहरे रंग की तरह ही खेल कर सामने आएंगे। डॉ निशांत कहते हैं कि बच्चों के कैंसर के प्रति अभी भी जागरूकता की जरूरत है। वह कहते हैं कि अभी भी बहुत सारे बच्चे ऐसे हैं जो सही समय पर अस्पताल नहीं आ पाते और इस वजह से उनको बचाना या उनका सही इलाज कर पाना मुश्किल होता है। ईटीवी भारत ने कुछ कैंसर सरवाइवर्स से भी बात की । गोरखपुर के रहने वाले 11 वर्ष के आज़ैन को रक्त कैंसर है। 9 वर्ष की उम्र में उसे कैंसर डिटेक्ट हुआ था। आज़ैन कहता है कि जब कभी मुझे दर्द होता है तो मेरे मम्मी पापा मेरे पास होते हैं और वह तुरंत डॉक्टर से मेरी बात करवाते हैं। आज़ैन बड़े होकर साइंटिस्ट बनना चाहते हैं। अपने हक की बात करते हुए वह कहते हैं कि मेरे हक की बात मेरा बचपन है। मैं जानता हूं कि मुझे अपना बचपन जीना है और मैं जैसे जीना चाहता हूं वैसे जियूँगा। जौनपुर के कैंसर सरवाइवर विकास यादव कहते हैं कि मुझे अपने कैंसर के इलाज के लिए देशभर के 22 अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़े थे। मेरे पेरेंट्स को अपना घर बार गिरवी रखना पड़ा था और तब मेरा इलाज हो पाया था। मुझे आंखों का कैंसर हुआ था जिसमें मेरी एक आंख तक निकाली जा चुकी है। अपने हक की बात में मैं यह कहना चाहता हूं कि प्रदेश में भी कैंसर के इलाज की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए और उन बच्चों तक भी सुविधा पहुंचनी चाहिए जहां इस बात का उन्हें पता भी नहीं होता।
Conclusion:पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग में तमाम ऐसे कैंसर सरवाइवर्स जो जानते हैं कि कैंसर के दर्द से उबरना कितना मुश्किल काम है और इसलिए वह तमाम तरह के आयोजन कर यहां पर आने वाले बच्चों को खुशी के कुछ पल देने की कोशिश करते हैं। बाइट- डॉ निशांत वर्मा, प्रोफेसर पीडियाट्रिक ऑंकोलॉजी विभाग केजीएमयू बाइट- आज़ैन, कैंसर पेशेंट बाइट- विकास यादव, कैंसर सरवाइवर, जौनपुर रामांशी मिश्रा