लखनऊ : इन दिनों आंखों में जलन और आंखें लाल होने के कई केस अस्पतालों की ओपीडी में आ रहे हैं. नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रेम दुबे के मुताबिक गर्मियों के दिनों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. कई बार ऐसा होता है कि जब हम धूप में बाहर निकलते हैं तो पसीना हमारी आंखों में चला जाता है. इन्हीं सब कारणों की वजह से आंखों में जलन होती है और आंखें लाल हो जाती हैं. बता दें कि हर वर्ष विश्व के विभिन्न देशों में नेत्रदान की महत्ता को समझाने के लिए 10 जून को विश्व नेत्रदान दिवस मनाया जाता है. इसके जरिए लोगों को नेत्रदान के प्रति जागरूक किया जाता है.
शहरों में वायु प्रदूषण चिंता का विषय बनता जा रहा है. देश में कई स्थानों पर प्रदूषण का स्तर ‘खतरनाक’ लेवल पर है. बढ़ता प्रदूषण लोगों की सेहत के लिए काफी हानिकारक बनता जा रहा है. ये तो आप जानते हैं इस जहरीली हवा से लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ रहा है. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस वायु प्रदूषण का असर सिर्फ फेफड़ों पर ही नहीं बल्कि आपकी आंखों पर भी पड़ रहा है. ऐसे में जानते हैं कि प्रदूषण आपकी आंखों के लिए किस तरह से नुकसान दायक है और अगर आपको भी हर रोज प्रदूषण का सामना करना पड़ता है तो हम आपको बताते हैं कि आप किस तरह से आंखों पर पड़ने वाले प्रदूषण के प्रभाव को कम कर सकते हैं.
वायु प्रदूषण से आ रही समस्या : बलरामपुर अस्पताल के वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में वायु प्रदूषण से प्रभावित मरीज अस्पताल की ओपीडी में अधिक आ रहे हैं. वहीं सिविल अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रेम ने बताया कि इस समय वायु प्रदूषण से प्रभावित मरीजों की संख्या अस्पताल की ओपीडी में अधिक है, ज्यादा तो जो मरीज आ रहे हैं उनकी आंखों में इंफेक्शन है जो कि प्रदूषण के कारण हुआ है, इसलिए जब भी बाहर निकले तो चश्मे का इस्तेमाल जरूर करें ताकि धूल के कण आंखों में न प्रवेश करें. रोजाना इस समय अस्पताल की ओपीडी में लगभग 200 मरीज आ रहे हैं जबकि पहले इससे कम ही मरीज वायु प्रदूषण के कारण आंखों में समस्या के साथ आते थे.
सूखेपन और एलर्जी की समस्या ज्यादा : डॉ. संजीव ने बताया कि प्रदूषण से आंखों से संबंधित बीमारियों का खतरा भी अधिक होता है. प्रदूषण के कारण आंखों में सूखेपन और एलर्जी की समस्या ज्यादा देखी जा रही है. उन्होंने कहा कि आंखों के मॉइस्चराइजेशन और पोषण के लिए पर्याप्त मात्रा में आंसू का उत्पादन न होने की वजह से ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या हो सकती है. वायु प्रदूषण, आंखों की कोशिकाओं को प्रभावित कर देता है, जिससे आंखों में सूखापन, लालिमा, दर्द, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता जैसी समस्या बढ़ जाती है. बता दें कि प्रदूषित हवा में नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड जैसे तत्व होने की वजह से आंखों को ज्यादा नुकसान हो रहा है.
प्रदूषण से परेशान मरीज पहुंच रहे अस्पताल : डॉ. संजीव के मुताबिक वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभावों के कारण आंखों की रोशनी चले जाने जैसी गंभीर समस्याओं का भी खतरा हो सकता है. कई सर्वे में सामने आ चुका है कि नॉर्थ इंडिया में एक बड़े वर्ग को डीईडी यानी ड्राई आई डिजीज होने का अंदाजा है, लेकिन साउथ इंडिया में ये आंकड़ा काफी कम है. इसमें भी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को शहरी क्षेत्र के लोगों से काफी कम दिक्कत है. ऐसे में माना जा रहा है कि धुआं, कॉन्टेक्स लैंस, वीडीटी यूज की वजह से ऐसा हो रहा है. यह सभी दिक्कतें प्रदूषण की वजह से वातावरण में मौजूद कारकों से है. उन्होंने कहा कि जहरीली हवा से आंखों को बचा कर रखना बहुत जरूरी है. इसके लिए कुछ उपायों को प्रयोग में लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इन दिनों वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है गर्मी के दिन है ऐसे में धूल कर वातवरण में रहते हैं और जब भी कोई व्यक्ति बाहर निकलता है या फिर दो पहिया वाहन का इस्तेमाल करते हुए लंबे सफर पर जाते हैं तो आंखों में सीधे धूल कण जाते हैं. आंखों में धूल जाने के कारण आंखों से पानी आना, आंखों में जलन होना यह समस्या मरीजों को होने लगती है.
डॉ. संजीव ने कहा कि आज विश्व नेत्रदान दिवस है. यह समाज सेवा का पूरी तरह से स्वैच्छिक कार्य है, जिसके लिए दानदाता या उसके परिवार को कोई पैसा नहीं दिया जाता है, क्योंकि अंगों की बिक्री या खरीद गैर-कानूनी है. दानदाता के परिवार को नजदीकी नेत्र बैंक से संपर्क करना चाहिए ताकि चिकित्सक आकर परीक्षण कर सके और आंखों को प्राप्त कर सके. इस पूरी प्रक्रिया में मुश्किल से आधा घंटे का समय लगता है. दानदाता के परिवार से नेत्रदान की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए किसी भी तरह की राशि का भुगतान करने के लिए नहीं कहा जाता है. इसके लिए सबसे पहले जिससे व्यक्ति का नेत्रदान होना है उसके परिजनों से अनुमति लेनी होती है जब उसके परिजन पूरी तरह से सहमत होते हैं तभी नेत्रदान की प्रक्रिया की जाती है. प्रदेश सरकार की समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करती हैं और सभी सरकारी अस्पतालों में जो भी मरीज आते हैं उनके तीमारदारों को नेत्रदान के लिए प्रेरित किया जाता है. आगे बढ़ कर आएं और नेत्रदान के लिए तैयार हों. समाज में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी असमय मृत्यु हो जाती है. ऐसे में उनके परिजन अंगदान के लिए प्रेरित करते हैं. अंगदान कराते भी हैं ताकि किसी अन्य मरीज की जिंदगी सामान्य हो सके.
इन लक्षणों पर दें ध्यान : अगर किसी व्यक्ति की आंखों में कोई दिक्कत हो रही है तो सबसे पहले मरीज को आंखों में जलन शुरू होगी, कई केस में देखा गया है कि प्रदूषण से प्रभावित मरीजों की आंखें लाल हो जाती हैं, बहुत से लोगों में आंखों में दर्द होने की समस्या के अलावा आंखों से लगाता पानी निकलता है, आंखों में खुजली होती है, अत्यधिक आंखों में कीचड़ आना और आंखों के कोने में खुजली का होना, सुबह सोकर उठते समय आंखों का चिपक जाना, आंख में दिक्कत होने के कारण सिर में लगातार दर्द बना रहता है.
इन बातों का रखें ख्याल
ठंडे पानी से आंखों को धुलें, बाहर से जब भी घर आए तो एक बाल्टी पानी जो पूरी भरी हो उसमें आंखें खोलकर अपने चेहरे को बाल्टी में डालें जिससे आंखों में पानी जाएगा और आंखें साफ होंगी, डॉक्टर द्वारा सुझाव दिए हुए आई ड्राप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, बहुत ज्यादा वायु प्रदूषण होने पर अनावश्यक रूप से घर से बाहर निकलने से बचें, पलकों को बार-बार झपकाते रहें, जिससे आंखों को आराम मिलता है, अगर आप लगातार कम्प्यूटर पर भी काम कर रहे हैं तो आपको पलकों को जरूर झपकाना चाहिए, आंखों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए शरीर को हाइड्रेटेड रखें, अगर बाहर जाते वक्त चश्मा आदि पहनते हैं तो आपको इसका फायदा मिल सकता है.
गोरखपुर में जरूरतमंदों को कॉर्निया दान करने वालों का इंतजार : विश्व नेत्रदान दिवस पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष डॉ. राम कुमार जायसवाल और बीआरडी के पूर्व चिकित्सक और नेत्र रोग सर्जन रजत कुमार ने लोगों से कॉर्निया दान करने की अपील की है. जरूरतमंद कॉर्निया पाने के लिए, पंजीकरण कराकर सालों से इंतजार में रहते हैं. बीआरडी मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभाग में मौजूदा समय में एक भी कॉर्निया नहीं है. डॉ राम कुमार जयसवाल ने कहा है कि मृत्यु के 6 घंटे के भीतर निकाली गई कॉर्निया आई बैंक में रखी जाती है. अधिकतम 15 दिन तक सुरक्षित रहती है. जरूरतमंद जो पहले से पंजीकरण कराए रहते हैं उन्हें उसी क्रम में कॉर्निया लगाई जाती है. कार्निया दान करने वालों को भी आई बैंक में अपना पंजीकरण कराना होता है. गोरखपुर क्षेत्र में करीब ढाई हजार लोग कॉर्निया का इंतजार कर रहे हैं. नेत्र रोग विभाग में गोरखपुर से अब तक मात्र 3 लोगों ने कॉर्निया दान किया है, जबकि केजीएमयू से 29 कॉर्निया मिली हैं. बीएचयू, मेडिकल कॉलेज प्रयागराज से कॉर्निया डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत मिली है. अब तक 35 लोगों को रोशनी दी जा चुकी है, जबकि 900 से ज्यादा लोगों ने कार्निया के लिए विभाग में अपना पंजीकरण कराया है. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कार्निया के लिए पंजीकृत 900 से अधिक लोगों में 125 लोगों को कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत है.
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