लखनऊ: हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका (Ashok Khemka Haryana cadre IAS officer) के 20 साल में 53 ट्रांसफर की कहानी तो आपने बहुत सुनी होगी, लेकिन अब हम आपको यूपी कैडर के 'अशोक खेमका' यानी आईपीएस जसवीर सिंह (IPS Jasveer Singh) की कहानी से रूबरू कराते हैं. भारतीय पुलिस सेवा (Indian Police Service) के 1992 बैच के आईपीएस जसवीर सिंह तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने वर्तमान के यूपी सीएम (तत्कालीन गोरखपुर सांसद) योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) को 2002 में गिरफ्तार कर रासुका (NSA) लगा दिया. आकड़ों के मुताबिक, सरकारों के निशाने पर रहे आईपीएस को पिछले 9 साल में 35 ट्रांसफर की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा. आखिरकार, आईपीएस जसवीर सिंह को फिर 2019 में एक बार फिर निलंबित कर दिया गया. पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर (Former IPS Amitabh Thakur) ने योगी सरकार पर आरोप लगाया है कि बदले की भावना से जसवीर को निलंबित कर दिया और उनकी बहाली पर विचार नहीं किया गया. अब पूर्व IPS अमिताभ ठाकुर की पत्नी एक्टिविस्ट नूतन ठाकुर (Activist Nutan Thakur) ने भी कहा है कि ईमानदार अफसरों की कहीं पूछ नहीं है. सरकार अपने फायदे के लिए उनका उपयोग करती है फिर दूध में मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देती है. हालांकि, नियमानुसार सरकार उन्हें ढाई साल के निलंबन के एवज में 40 लाख रुपये बतौर सैलरी चुकता कर चुकी है.
लंबे समय से भ्रष्टाचार और कालेधन (corruption and black money) के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ रहे तेज तर्रार IPS जसवीर सिंह भ्रष्ट्राचार रूपी सिस्टम पर मोटा हथौड़ा चलाने के लिए मशहूर हैं. नतीजन, नौ साल की नौकरी में जसवीर को 35 ट्रांसफरों (35 Time transfers) का कड़वा घूंट पीना पड़ा. पूरी नौकरी के दौरान जिले में महज 6 माह की पोस्टिंग मिली. जसवीर के बारे में कहा जाता है कि जसवीर सिंह जहां भी जिस विभाग में गए वहां भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. यही बड़ा कारण माना जाता है कि तत्कालीन सरकारों की आंखों में वो हमेशा खटकते रहे.
राजा भैया पर की पोटा की कार्रवाई
भारतीय पुलिस सेवा के 1992 बैच के अधिकारी जसवीर सिंह ने पहले दिन से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी थी. यही कारण है कि इन्हें डेढ़ महीने से ज्यादा कोई पोस्टिंग नहीं दी गई. देश के सबसे सूबे उत्तर प्रदेश कैडर में तैनात जसवीर सिंह वर्ष 1997 में तब सुर्खियों में आए, जब वह पुलिस अधीक्षक प्रतापगढ़ नियुक्त हुए और कुंडा के राजा विधायक रघुराज सिंह उर्फ राजा भैया पर शिकंजा कसा. जसवीर ने राजा भैया पर पोटा एक्ट के तहत कार्रवाई की और हत्या के एक मामले में उनकी गिरफ्तारी कर जेल भेज दिया. हालांकि, राजा भैया के जनसंपर्क अधिकारी गिरफ्तारी की बात का खंडन करते हुए पोटा लगाने की बात ही स्वीकार की. इस कार्रवाई से जनता तो खुश हुई, लेकिन सियासी लोगों का दाना पानी बंद होने लगा. यही कारण है कि कुछ दिनों के भीतर ही जसवीर सिंह को प्रतापगढ़ से हटा दिया गया. यहीं से जसवीर सिंह की भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग और तेज हो गई.
मुलायम सरकार में पकड़ा था देश का सबसे बड़ा खाद्यान्न घोटाला
यूपी के इस चर्चित आईपीएस अधिकारी को अच्छी पोस्टिंग तो दूर खराब पोस्ट देने के लिए प्रदेश सरकारें 100 बार सोचती थीं. यूपी में मुलायम सिंह यादव की सरकार जब बनी तो एसपी फूड सेल के पद पर जसवीर सिंह को तैनाती दी गई. कहते हैं यहां न तो बैठने के लिए कुर्सी थी और न ही चलने के लिए सरकारी वाहन. इसके बावजूद जसवीर सिंह ने इसी विभाग में अनोखा काम किया और 6 महीने के भीतर देश के सबसे बड़े खाद्यान्न घोटाले का पर्दाफाश किया. तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की पहल पर जसवीर सिंह को खाद्यान्न घोटाले की जांच का जिम्मा सौंपा गया था. जसवीर ने लखीमपुर खीरी (यूपी) में कैंप करके एक बड़े भ्रष्टाचार के खेल उजागर किया, जिसमें मंत्री, सांसद, विधायक एवं तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के करीबी शामिल थे. इस घोटाले की पूरी फाइल वर्तमान में सीबीआई के पास विचाराधीन है. यह घोटाला 1200 करोड़ रूपये से ज्यादा का था. जसवीर सिंह के हवाले से कहा जाता है कि इस घोटाले में गरीबों को दिया जाने वाला अनाज कागजों में तो लाभार्थियों के घर पहुंचा दिया गया, लेकिन हकीकत में सैकडों ट्रक सरकारी अनाज ब्लैक में बांग्लादेश एवं भारत के अन्य राज्यों में बेंच दिया गया. इस घोटाले को उजागर करने का खामियाजा जसवीर सिंह को चुकाना पड़ा. नतीजन, उन्हें न तो अच्छा पद मिला और न ही कोई सुविधा.
ब्लैकमनी को जसवीर सिंह ने उठाया
मुलायम सिंह यादव की सरकार जाने के बाद यूपी में बसपा की सरकार बनी और मायावती ने बतौर मुख्यमंत्री प्रदेश की कमान संभाली. उस दौर की तेजतर्रार मायावती से आशा थी कि वो जसवीर सिंह को ईनाम देंगी, लेकिन ऐसा कतई नहीं हुआ. वह भी इधर-उधर की पोस्टिंग पर दौड़ाती रहीं. नतीजन थक हारकर जसवीर ने देशहित से जुड़े भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर आगे बढ़ गए. जसवीर सिंह ने मायावती के राज में ही देश के दो बहुचर्चित मामलों को सुप्रीम कोर्ट में उठाया. इसमें ब्लैकमनी इनका मुख्य मुद्दा था. कालेधन के खिलाफ जो संग्राम चल रहा था, उसकी शुरुआत वर्ष 2007 में आईपीएस जसवीर सिंह ने की थी. उन्होंने सामाजिक फोरम-भारत पुनरुत्थान अभियान के अन्तर्गत जसवीर इसे सुप्रीम कोर्ट ले गए. देश की सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2010 में केस स्वीकार किया. इसके बाद जुलाई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया. साथ ही कालेधन को खत्म करने के लिए एसआईटी बनाने का आदेश हुआ. हालांकि, इसका श्रेय सरकार ले रही है, लेकिन सच्चाई यही है कि जसवीर ने अपनी नौकरी ताक पर रखकर कालेधन के लिए एसआईटी बनवाने के लिए जान लगा दी. जसवीर सिंह खुद कहते हैं कि केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार भी नहीं चाहती थी कि कालेधन पर एसआईटी बने. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार को न चाहते हुए भी मजबूरी में एसआईटी बनानी पड़ी. हालांकि, इसका खामियाजा जसवीर सिंह को भुगतना पड़ा. केंद्र सरकार ने जसवीर सिंह को आज तक प्रमोशन नहीं दिया.
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देश में कालेधन के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठाने वाले जसवीर सिंह ने नौकरी में रहते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपने हस्ताक्षर से याचिका डाली थी. इसके बदले में यूपी की मायावती सरकार ने उन्हें जमकर परेशान किया. करीब साढ़े 4 साल तक तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने प्रमोशन रोक दिया. साथ ही कई केस उन पर फाइल कराये. मायावती सरकार के तत्कालीन भ्रष्ट नौकरशाहों ने सुप्रीम कोर्ट जाने की गुस्ताखी में जसवीर को नौकरी से बर्खास्त करने की तैयारी कर ली. मायावती सरकार को कालाधान का मुद्दा उठाना कतई अच्छा नहीं लगा. यही कारण है कि जसवीर को परेशान करती रहीं. यह तो अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने जसवीर सिंह की बात को सही ठहराया और उनकी नौकरी बहाल करवाई. सुप्रीम कोर्ट के सख्त हस्तक्षेप के बाद ही जसवीर सिंह को यूपी में प्रमोशन और वेतन मिलना शुरू हुआ.
भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई इस जंग में कैश फॉर वोट स्कैम को भी जसवीर सिंह ने अदालत के जरिए पर्दाफाश करवाया. आईपीएस जसवीर सिंह की याचिका पर ही मामला तूल पकड़ा और देश के कई दिग्गज नेता जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे. इसमें समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ दिग्गज नेता भी शामिल हैं.
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भ्रष्ट्राचार के खिलाफ बनाया फोरम
जसवीर सिंह ने भ्रष्टाचार के खिलाफ साल 2007 में एक सामाजिक फोरम भारत पुनरुत्थान अभियान चलाया. इसमें देश के चर्चित अधिकारी प्रकाश सिंह, विजय शंकर पांडेय सहित दो दर्जन दिग्गज शामिल हुए. इसके अलावा सामाजिक लोग एवं पत्रकार भी इससे जोड़े गए.
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कौन हैं जसवीर सिंह ?
होशियापुर (पंजाब) स्थित एक गांव में किसान परिवार में जन्में जसवीर सिंह 1992 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं. मेरठ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले जसवीर सिंह सबसे ज्यादा प्रतापगढ़ में करीब ढाई महीने तक पुलिस अक्षीक्षक के पद पर तैनात रहे. इसके बाद 10 दिन से ज्यादा किसी और जिले में नहीं रह पाए. वर्तमान में उत्तर प्रदेश पुलिस की रूल्स एंड मैन्युअल विंग में एडीजी रहे हैं. उसी तैनाती के दौरान सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया.
सरकार घर बैठा कर दे रही वेतन, अब तक दे चुके 40 लाख
आईपीएस जसवीर सिंह फरवरी 2019 से जुलाई 2021 तक यानी 2 साल से अधिक समय से सस्पेंड चल रहे हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि नियमों के चलते एक साल बाद से सरकार जसवीर सिंह को उनकी पूरी तनख्वाह भी दे रही है. एक अनुमान के मुताबिक, सरकार अब तक सस्पेंड चल रहे जसवीर सिंह को 40 लाख रुपए तो दे चुकी है लेकिन जसवीर सिंह से एक रुपए का सरकारी काम नहीं ले पाई. अब सस्पेंड चल रहे इस आईपीएस अफसर को जल्द बहाल करने के लिए प्रधानमंत्री से गुहार लगाई गई है. समाज सेविका डॉ. नूतन ठाकुर ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है.
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ये है नियम
जानकारों की मानें तो आईपीएस अफसर का निलंबन अखिल भारतीय सेवाएं अनुशासन एवं अपील नियमावली 1969 के नियम 3 से संचालित किया जाता है. इस नियमावली में साफ लिखा है कि भ्रष्टाचार के ऐसे मामलों में सस्पेंशन की अधिकतम सीमा एक साल और भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप में 2 साल तक अधिकतम सस्पेंड किया जा सकता है..