हैदराबाद: उत्तर प्रदेश की सियासत में भाजपा की जीत की अहमियत को न तो किसी को समझने की जरूरत है और न ही किसी को समझाने की. ऐसा इसलिए क्योंकि पश्चिम बंगाल में सभी प्रयोगों के बाद भी भाजपा सत्ता हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी थी. नतीजतन ममता बनर्जी का सियासी कद बढ़ा और आज आलम यह है कि यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में सपा ममता के फॉर्मूले को फॉलो कर भाजपा को पटखनी देने की तैयारी में है. इस बीच अखिलेश ममता संग गठबंधन के लिए भी तैयार हैं. साथ ही अखिलेश अबकी चुनाव में सपा के पक्ष में ममता को चुनावी सभा और यात्रा के लिए भी तैयार कर लिए हैं. ऐसे में एक ओर ममता की सियासी मंशा जो अब मिशन 2024 में तब्दील हो गई है के विस्तार के लिए यूपी एक उचित प्लेटफॉर्म हो सकता है, जिसे दीदी अब कैश करना चाहती हैं.
लेकिन अखिलेश के साथ ही दीदी को सियासी सदमा देने के लिए आरएसएस (RSS) यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से यूपी फतह की अचूक रणनीति बनाई गई है. खैर, इसमें दो राय नहीं है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरी मजबूती के साथ मैदान में भाजपा को चुनौती दे रहे हैं, लेकिन उन्हें संघ भी अभिमन्यु बनने की तैयारी कर चुका है.
चलिए अब आपको सतही तौर पर संघ की सियासी चक्रव्यूह से अवगत कराते हैं. सूबे में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) से पहले भाजपा और संघ के दिग्गजों ने कई दौर की बैठकों के बाद जीत के लिए एक अचूक रणनीति बनाई है. इसके तहत संघ ने अपने इकाई संगठनों से स्पष्ट कहा कि वैचारिकी को आगे बढ़ाएं, विचारधारा को मजबूत करना है. साथ ही आरएसएस के पदाधिकारियों ने इस बात की भी चिंता जताई कि भाजपा के बहुत से मतदाता मतदान करने के लिए घरों से बाहर ही नहीं निकलते हैं.
ऐसे में शत प्रतिशत मतदान के लिए लोगों को एक्टिव मूड में करना होगा. इसलिए पार्टी अब एक बार फिर से हिन्दू लाइन पॉलिटिक्स के अपने पुराने मार्ग पर लौट आई है. यही कारण है कि सूबे के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने अयोध्या, काशी के बाद अब मथुरा में मंदिर बनाने की बात कह हिन्दू मतदाताओं को एकजुट करने की अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है. हालांकि, यह भी संघ की रणनीति का हिस्सा मात्र है.
वहीं, बूथ स्तर तक लोगों से संपर्क बढ़ाने की भी खास रणनीति बनाई गई है. अब भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ ही संघ प्रतिनिधि भी मंडल व शक्ति केंद्र पदाधिकारियों के साथ मिलकर काम करेंगे. साथ ही भाजपा की तरह ही संघ भी अपने सोशल मीडिया विंग को मंडल स्तर तक अलर्ट मूड में रखे हुए हैं.
काबिले गौर हो कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को गोरखपुर क्षेत्र की 62 विधानसभा सीटों में से 44 पर जीत मिली थी तो दो सीटों पर सहयोगी दल के प्रत्याशी विजयी हुए थे. ऐसे में इस बार भी भाजपा की कोशिश होगी कि वो इस इतिहास को ऐन केन प्रकारेण दोहराए.
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आरएसएस के सह कार्यवाह गोपाल कृष्ण, भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी व केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान सहित गोरखपुर क्षेत्र के चुनिंदा पदाधिकारियों की एक विशेष बैठक हुई, जिसमें पूर्वांचल की सियासी सूरत-ए-हाल पर विस्तृत चर्चा के उपरांत जीत की स्क्रैच मैपिंग की गई. दरअसल, भाजपा के इतर संघ की ओर से भी एक ट्राई फिल्टर सर्वे को हथियार बनाया गया है.
ये सर्वे किसी सर्वे कंपनी से नहीं, बल्कि संघ ने अपने प्रतिनिधियों के जरिए करवाए गए हैं. इसमें विधानसभावार सीटों की समीक्षा की गई है और संघ के पदाधिकारियों ने चुनाव से जुड़े हर बिंदु पर मंथन के बाद आगे की जमीनी तैयारियों की रुपरेखा बनाई है.
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