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इतालवी दंपत्ति ने दिव्यांग बच्चे को गोद लिया, इटली में शुरू करेगा नया जीवन - ITALIAN COUPLE ADOPTS CHILD

इतालवी दंपत्ति ने कर्नाटक के बेलगाम से एक दिव्यांग बच्चे को गोद लिया है. उन्होंने बच्चे का नाम पापू रखा है.

Italian Couple Adopts Disabled Child from Belgaum
इतालवी दंपत्ति ने दिव्यांग बच्चे को गोद लिया (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 18, 2025, 3:19 PM IST

बेंगलुरु: एक इतालवी दंपत्ति ने कर्नाटक के बेलगाम से एक दिव्यांग बच्चे को गोद लिया है. इसे बच्चों को शिशु अवस्था में ही छोड़ दिया गया था. इस बच्चे को गोद लेने वाले बुजर डेडे और डॉ कोस्टान्जा, खुद भी दिव्यांग हैं.उन्होंने बच्चे का अपने परिवार का हिस्सा बनाकर एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है.

दंपत्ति ने जिस बच्चे को गोद लिया है, वह ढाई वर्ष का है. उसे जन्म के कुछ समय बाद ही कूड़े के ढेर में पाया गया था. कथित तौर पर उसकी विकलांगता के कारण उसे छोड़ दिया गया था. स्थानीय निवासियों ने बच्चे को कूड़े में पड़ा देख अधिकारियों को सूचित किया.

मामले की सूचना मिलते ही बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) ने तुरंत हस्तक्षेप किया और यह सुनिश्चित किया कि शिशु को मेडिकल केयर के लिए बेलगावी के BIMS अस्पताल में भर्ती कराया जाए. उसका इलाज पूरा होने के बाद उसे स्वामी विवेकानंद सेवा प्रतिष्ठान द्वारा संचालित गंगम्मा चिक्कुम्बी मठ बालकल्याण केंद्र की देखभाल में रखा गया.

बच्चे का नाम रखा पापू
फ्लोरेंस सरकारी अस्पताल में फिजियोथेरेपिस्ट डॉ कोस्टांजा और दुर्घटना में अपना पैर गंवाने वाले बुजर अब विकलांग व्यक्तियों को खेलों में प्रशिक्षण देते हैं. दंपत्ति ने 2015 में शादी की थी और उनका बच्चा नहीं है. ऐसे में कपल अब बच्चे को गोद लेकर बेहद खुश है. उन्होंने बच्चे का नाम पापू रखा है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉ कोस्टांजा ने गोद लेने के पीछे की अपनी प्रेरणा शेयर की. उन्होंने कहा, "हम एक भारतीय बच्चे को गोद ले रहे हैं क्योंकि हम हर बच्चे को एक अवसर देने में विश्वास करते हैं. हम उसके भविष्य को आकार देने के अवसर के लिए आभारी हैं. अब से वह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा. हम उसे मजबूत बनाएंगे और उसे एक अच्छा जीवन प्रदान करेंगे. हम पापू को अपने देश ले जाने के लिए बहुत उत्साहित हैं."

चिक्कुम्बी मठ चाइल्ड वेलफेयर सेंटर की अध्यक्ष डॉ मनीषा भंडानाकर ने बच्चे के शुरुआती संघर्षों को याद करते हुए कहा, "वह सात महीने की उम्र में समय से पहले पैदा हुआ था, उसका वजन केवल 1.3 किलोग्राम था. उसकी हालत गंभीर थी और उसे देखने में दिक्कत थी. हमने केएलई अस्पताल में एक महीने तक उसका कराया.फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी दी र उसकी अच्छी तरह से देखभाल की.​​ अब वह चलने और बोलने लगा है."

प्रक्रिया में CARA के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया
गोद लेने की प्रक्रिया में सेंट्रल अडोप्शन रिसोर्स ओथॉरिटी (CARA) के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है. दंपति ने छह साल पहले आवेदन किया था, जिसके बाद उनके बैकग्राउंड की गहन जांच की गई और फिर इंटरव्यू हुए. अंतिम हैंडओवर मंगलवार को जिला कलेक्टर की मौजूदगी में होने जा रहा है. बच्चे का पासपोर्ट तैयार है और दंपति वीजा प्राप्त करने और इटली के लिए रवाना होने से पहले बेंगलुरु की यात्रा करेंगे.

अंतरराष्ट्रीय गोद लेने की सुविधा प्रदान करने वाली एजेंसी AFA के हसमुख ठक्कर ने कहा, "यह एक खास पल है. बुजार ने अपनी खुद की विकलांगता के बावजूद एक स्पेशल चाइल्ड को गोद लेने का फैसला किया है. वह वास्तव में एक रोल मॉडल हैं. हमें जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है कि विकलांग बच्चे भी प्यार भरे घरों के हकदार हैं. कई भावी माता-पिता केवल उन्हीं बच्चों को गोद लेते हैं, जिन्हें वे 'परफेक्ट' मानते हैं. इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है."

बता दें कि 2011 से स्वामी विवेकानंद सेवा प्रतिष्ठान ने 120 गोद लेने की प्रक्रिया को सुगम बनाया है, जिसमें 13 अंतरराष्ट्रीय मामले शामिल हैं. यह इटली में दूसरा गोद लेने का मामला है. विदेशी आवेदकों के लिए गोद लेने की प्रक्रिया CARA के समन्वय में फॉरेन अडोप्शन एजेंसी (AFA) के माध्यम से संचालित की जाती है.

यह भी पढ़ें- जापान में शिवाजी महाराज की प्रतिमा होगी स्थापित, स्पेशल फ्लाइट से भेजी जाएगी

बेंगलुरु: एक इतालवी दंपत्ति ने कर्नाटक के बेलगाम से एक दिव्यांग बच्चे को गोद लिया है. इसे बच्चों को शिशु अवस्था में ही छोड़ दिया गया था. इस बच्चे को गोद लेने वाले बुजर डेडे और डॉ कोस्टान्जा, खुद भी दिव्यांग हैं.उन्होंने बच्चे का अपने परिवार का हिस्सा बनाकर एक प्रेरणादायक उदाहरण पेश किया है.

दंपत्ति ने जिस बच्चे को गोद लिया है, वह ढाई वर्ष का है. उसे जन्म के कुछ समय बाद ही कूड़े के ढेर में पाया गया था. कथित तौर पर उसकी विकलांगता के कारण उसे छोड़ दिया गया था. स्थानीय निवासियों ने बच्चे को कूड़े में पड़ा देख अधिकारियों को सूचित किया.

मामले की सूचना मिलते ही बाल विकास परियोजना अधिकारी (CDPO) ने तुरंत हस्तक्षेप किया और यह सुनिश्चित किया कि शिशु को मेडिकल केयर के लिए बेलगावी के BIMS अस्पताल में भर्ती कराया जाए. उसका इलाज पूरा होने के बाद उसे स्वामी विवेकानंद सेवा प्रतिष्ठान द्वारा संचालित गंगम्मा चिक्कुम्बी मठ बालकल्याण केंद्र की देखभाल में रखा गया.

बच्चे का नाम रखा पापू
फ्लोरेंस सरकारी अस्पताल में फिजियोथेरेपिस्ट डॉ कोस्टांजा और दुर्घटना में अपना पैर गंवाने वाले बुजर अब विकलांग व्यक्तियों को खेलों में प्रशिक्षण देते हैं. दंपत्ति ने 2015 में शादी की थी और उनका बच्चा नहीं है. ऐसे में कपल अब बच्चे को गोद लेकर बेहद खुश है. उन्होंने बच्चे का नाम पापू रखा है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए डॉ कोस्टांजा ने गोद लेने के पीछे की अपनी प्रेरणा शेयर की. उन्होंने कहा, "हम एक भारतीय बच्चे को गोद ले रहे हैं क्योंकि हम हर बच्चे को एक अवसर देने में विश्वास करते हैं. हम उसके भविष्य को आकार देने के अवसर के लिए आभारी हैं. अब से वह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा. हम उसे मजबूत बनाएंगे और उसे एक अच्छा जीवन प्रदान करेंगे. हम पापू को अपने देश ले जाने के लिए बहुत उत्साहित हैं."

चिक्कुम्बी मठ चाइल्ड वेलफेयर सेंटर की अध्यक्ष डॉ मनीषा भंडानाकर ने बच्चे के शुरुआती संघर्षों को याद करते हुए कहा, "वह सात महीने की उम्र में समय से पहले पैदा हुआ था, उसका वजन केवल 1.3 किलोग्राम था. उसकी हालत गंभीर थी और उसे देखने में दिक्कत थी. हमने केएलई अस्पताल में एक महीने तक उसका कराया.फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी दी र उसकी अच्छी तरह से देखभाल की.​​ अब वह चलने और बोलने लगा है."

प्रक्रिया में CARA के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया
गोद लेने की प्रक्रिया में सेंट्रल अडोप्शन रिसोर्स ओथॉरिटी (CARA) के दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है. दंपति ने छह साल पहले आवेदन किया था, जिसके बाद उनके बैकग्राउंड की गहन जांच की गई और फिर इंटरव्यू हुए. अंतिम हैंडओवर मंगलवार को जिला कलेक्टर की मौजूदगी में होने जा रहा है. बच्चे का पासपोर्ट तैयार है और दंपति वीजा प्राप्त करने और इटली के लिए रवाना होने से पहले बेंगलुरु की यात्रा करेंगे.

अंतरराष्ट्रीय गोद लेने की सुविधा प्रदान करने वाली एजेंसी AFA के हसमुख ठक्कर ने कहा, "यह एक खास पल है. बुजार ने अपनी खुद की विकलांगता के बावजूद एक स्पेशल चाइल्ड को गोद लेने का फैसला किया है. वह वास्तव में एक रोल मॉडल हैं. हमें जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है कि विकलांग बच्चे भी प्यार भरे घरों के हकदार हैं. कई भावी माता-पिता केवल उन्हीं बच्चों को गोद लेते हैं, जिन्हें वे 'परफेक्ट' मानते हैं. इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है."

बता दें कि 2011 से स्वामी विवेकानंद सेवा प्रतिष्ठान ने 120 गोद लेने की प्रक्रिया को सुगम बनाया है, जिसमें 13 अंतरराष्ट्रीय मामले शामिल हैं. यह इटली में दूसरा गोद लेने का मामला है. विदेशी आवेदकों के लिए गोद लेने की प्रक्रिया CARA के समन्वय में फॉरेन अडोप्शन एजेंसी (AFA) के माध्यम से संचालित की जाती है.

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