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जांच और विवाद में फंसा अखिलेश सरकार का प्रोजेक्ट 'JPNIC'

समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण के नाम पर 8 सौ करोड़ रुपए से अधिक की लागत में जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेपीएनआईसी) का निर्माण पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार ने गोमतीनगर में कराया था. मगर, यह हाईटेक बिल्डिंग खंडहर के रूप में नजर आने लगी है. यही नहीं, सरकार बदलने के बाद एलडीए के अधिकारियों ने इसे बेचने का भी प्रस्ताव बना दिया था. जिसे शासन स्तर पर रोक दिया गया था. फिलहाल अखिलेश सरकार का ये प्रोजेक्ट जांच और विवाद में फंस गया है.

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Published : Apr 1, 2021, 7:27 AM IST

जांच और विवाद में फंसा अखिलेश सरकार का प्रोजेक्ट 'JPNIC'
जांच और विवाद में फंसा अखिलेश सरकार का प्रोजेक्ट 'JPNIC'

लखनऊ: पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार ने गोमतीनगर में समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण के नाम पर जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेपीएनआईसी) का निर्माण कराया था. करीब 8 सौ करोड़ रुपए से अधिक की लागत में एक अत्याधुनिक सेंटर बनाया गया. जिसमें तमाम तरह की सुविधाओं का भी ख्याल रखा गया, लेकिन भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक चार जांच हो चुकी हैं. न दोषियों पर कार्रवाई हो पा रही है और न ही इस सेंटर का निर्माण कार्य पूरा करा कराया जा सका है. ऐसी स्थिति में इसे जनता को भी सौंपा नहीं जा सका है.

विवाद में फंसा अखिलेश सरकार का प्रोजेक्ट 'JPNIC'


खंडहर में बदल रही है पूरी बिल्डिंग
यही नहीं इस अत्याधुनिक बिल्डिंग की बिना देखरेख की वजह से यह हाईटेक जेपीएनआईसी खंडहर के रूप में भी नजर आने लगा है. बिल्डिंग में तमाम तरह का निर्माण कार्य प्रभावित हुआ है और बिना देखरेख के यह बदहाली का शिकार पूरी बिल्डिंग हो चुकी है. इसमें हेलीकॉप्टर लैंड होने की जगह, फाइव स्टार होटल की सुविधा, हाईटेक लैब, कन्वेंशन सेंटर, पार्किंग ब्लॉक, म्यूजियम ब्लॉक, स्पोर्ट्स कांप्लेक्स बनाया गया है, लेकिन काम पूरा न होने और बिना देखरेख के यह सारे बड़े काम अब पूरी तरह से बदहाली के शिकार हो रहे हैं.



अखिलेश यादव सरकार में शुरू हुआ था काम

पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार में करीब 800 करोड़ रुपये की लागत से इसे बनवाने का काम किया गया था. लेकिन इसके काम में अफसरों ने हीलाहवाली की और समय से काम पूरा नहीं हो सका. इसके अलावा इसका बजट भी बढ़ा दिया गया. इसके बाद जब प्रदेश में 2017 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो इसकी जांच कराई गई और जांच में प्रथम दृष्टया यह सामने आया था कि सरकार बदलने के बाद भी अधिकारियों ने करीब 100 करोड़ से अधिक का खर्च इस प्रोजेक्ट पर बिना डीपीआर के करा दिया. इसके बाद से यह पूरा मामला ठंडे बस्ते में ही पड़ा है.


अफसरों ने बेचने का फैसला किया तो लगी रोक

यही नहीं, सरकार बदलने के बाद एलडीए के अधिकारियों ने इसे बेचने का भी प्रस्ताव बना दिया था. जिसे शासन स्तर पर, बाद में रोक दिया गया था. अधिकारियों का कहना है कि यह जांच पूरी होने के बाद ही इसके संचालन को लेकर फैसला किया जाएगा. हालांकि इसके शुरू करने में भी अभी करीब सवा करोड़ रुपए की जरूरत बताई गई है.


सीएम के स्तर पर होना है फैसला
अधिकारियों का कहना है कि शासन स्तर पर यह सहमति बनी है कि यह जेपीएनआइसी जैसा भी जिस हालत में है, उसी हालत में किसी संस्थान को देकर इसे शुरू कराया जाए. हालांकि अभी इस पर भी कोई फैसला नहीं हो सका है. अधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्तर पर इसके संचालन या फिर इसे शुरू करने में होने वाले कुछ काम के लिए बजट आदि जारी करने के बारे में फैसला शासन स्तर पर होगा. लेकिन कोई अधिकारी इस पर खुलकर बोल नहीं रहे हैं.


जांच और कार्रवाई भी शांत
इसके अलावा इसके संचालन और अधूरे निर्माण कार्य का फैसला न होने की वजह से यह अभी फिलहाल 800 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद शो-पीस बनकर खंडहर की तरह खड़ा हुआ है. एलडीए अफसरों की लापरवाही पर भी शासन स्तर पर जांच कराई गई, लेकिन कार्रवाई क्या होनी है उसको लेकर आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है.


बजट की भी करनी है व्यवस्था
एलडीए उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश ने मुख्य अभियंता को इसकी कुछ मरम्मत के काम शुरू कराने की बात कही है, लेकिन इसके लिए बजट की भी व्यवस्था की जा रही है. जिससे यह काम जल्दी पूरा हो सके. वहीं शासन की संस्तुति के बिना शुरू कराए गए 100 करोड़ रुपये के काम कराने के मामले में भी जांच के बाद कार्रवाई की बात अधिकारी कर रहे हैं. लेकिन कोई अधिकारी इस पर कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे हैं. फिलहाल यह पूरा प्रोजेक्ट खंडहर की तरह नजर आ रहा है.

लखनऊ: पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार ने गोमतीनगर में समाजवादी चिंतक जयप्रकाश नारायण के नाम पर जय प्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर (जेपीएनआईसी) का निर्माण कराया था. करीब 8 सौ करोड़ रुपए से अधिक की लागत में एक अत्याधुनिक सेंटर बनाया गया. जिसमें तमाम तरह की सुविधाओं का भी ख्याल रखा गया, लेकिन भाजपा सरकार बनने के बाद से अब तक चार जांच हो चुकी हैं. न दोषियों पर कार्रवाई हो पा रही है और न ही इस सेंटर का निर्माण कार्य पूरा करा कराया जा सका है. ऐसी स्थिति में इसे जनता को भी सौंपा नहीं जा सका है.

विवाद में फंसा अखिलेश सरकार का प्रोजेक्ट 'JPNIC'


खंडहर में बदल रही है पूरी बिल्डिंग
यही नहीं इस अत्याधुनिक बिल्डिंग की बिना देखरेख की वजह से यह हाईटेक जेपीएनआईसी खंडहर के रूप में भी नजर आने लगा है. बिल्डिंग में तमाम तरह का निर्माण कार्य प्रभावित हुआ है और बिना देखरेख के यह बदहाली का शिकार पूरी बिल्डिंग हो चुकी है. इसमें हेलीकॉप्टर लैंड होने की जगह, फाइव स्टार होटल की सुविधा, हाईटेक लैब, कन्वेंशन सेंटर, पार्किंग ब्लॉक, म्यूजियम ब्लॉक, स्पोर्ट्स कांप्लेक्स बनाया गया है, लेकिन काम पूरा न होने और बिना देखरेख के यह सारे बड़े काम अब पूरी तरह से बदहाली के शिकार हो रहे हैं.



अखिलेश यादव सरकार में शुरू हुआ था काम

पूर्ववर्ती अखिलेश यादव सरकार में करीब 800 करोड़ रुपये की लागत से इसे बनवाने का काम किया गया था. लेकिन इसके काम में अफसरों ने हीलाहवाली की और समय से काम पूरा नहीं हो सका. इसके अलावा इसका बजट भी बढ़ा दिया गया. इसके बाद जब प्रदेश में 2017 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो इसकी जांच कराई गई और जांच में प्रथम दृष्टया यह सामने आया था कि सरकार बदलने के बाद भी अधिकारियों ने करीब 100 करोड़ से अधिक का खर्च इस प्रोजेक्ट पर बिना डीपीआर के करा दिया. इसके बाद से यह पूरा मामला ठंडे बस्ते में ही पड़ा है.


अफसरों ने बेचने का फैसला किया तो लगी रोक

यही नहीं, सरकार बदलने के बाद एलडीए के अधिकारियों ने इसे बेचने का भी प्रस्ताव बना दिया था. जिसे शासन स्तर पर, बाद में रोक दिया गया था. अधिकारियों का कहना है कि यह जांच पूरी होने के बाद ही इसके संचालन को लेकर फैसला किया जाएगा. हालांकि इसके शुरू करने में भी अभी करीब सवा करोड़ रुपए की जरूरत बताई गई है.


सीएम के स्तर पर होना है फैसला
अधिकारियों का कहना है कि शासन स्तर पर यह सहमति बनी है कि यह जेपीएनआइसी जैसा भी जिस हालत में है, उसी हालत में किसी संस्थान को देकर इसे शुरू कराया जाए. हालांकि अभी इस पर भी कोई फैसला नहीं हो सका है. अधिकारियों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्तर पर इसके संचालन या फिर इसे शुरू करने में होने वाले कुछ काम के लिए बजट आदि जारी करने के बारे में फैसला शासन स्तर पर होगा. लेकिन कोई अधिकारी इस पर खुलकर बोल नहीं रहे हैं.


जांच और कार्रवाई भी शांत
इसके अलावा इसके संचालन और अधूरे निर्माण कार्य का फैसला न होने की वजह से यह अभी फिलहाल 800 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद शो-पीस बनकर खंडहर की तरह खड़ा हुआ है. एलडीए अफसरों की लापरवाही पर भी शासन स्तर पर जांच कराई गई, लेकिन कार्रवाई क्या होनी है उसको लेकर आज तक कोई फैसला नहीं हो पाया है.


बजट की भी करनी है व्यवस्था
एलडीए उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश ने मुख्य अभियंता को इसकी कुछ मरम्मत के काम शुरू कराने की बात कही है, लेकिन इसके लिए बजट की भी व्यवस्था की जा रही है. जिससे यह काम जल्दी पूरा हो सके. वहीं शासन की संस्तुति के बिना शुरू कराए गए 100 करोड़ रुपये के काम कराने के मामले में भी जांच के बाद कार्रवाई की बात अधिकारी कर रहे हैं. लेकिन कोई अधिकारी इस पर कुछ भी बोलने से इंकार कर रहे हैं. फिलहाल यह पूरा प्रोजेक्ट खंडहर की तरह नजर आ रहा है.

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