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Indian Air Force ने अद्भुत और साहसिक कामों को दिया अंजाम, एयरफोर्स डे पर दिखेगा शौर्य और साहसिक जज्बे का संगम

भारतीय वायुसेना अपने गौरवशाली अतीत और अद्भुत और अदम्य साहस के लिए विश्व में अलग ही पहचान रखती है. आठ अक्टूबर को भारतीय वायु सेना की 91वीं वर्षगांठ है. इस मौके पर वायु सेना के जवान परेड और एयर शो के माध्यम से अपने शौर्य और साहसिक अंदाज का प्रदर्शन करेंगे. देखें विशेष रिपोर्ट.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 7, 2023, 1:59 PM IST

Indian Air Force ने अद्भुत और साहसिक कामों को दिया अंजाम. देखें खबर

लखनऊ : इंडियन एयरफोर्स के गठन को 90 साल पूरे हो गए हैं. साल 1932 में पहली बार यूनाइटेड किंगडम की रॉयल एयरफोर्स की सपोर्टिंग एयरफोर्स के रूप में इंडियन एयर फोर्स कार्यरत हुई थी. तब से लेकर अब तक भारतीय वायु सेना के साथ ऐसे ऐसे मिशन जुड़े हैं जो अन्य किसी भी देश की सेना से भारतीय वायुसेना को अलग बनाते हैं. मिशन कोई भी हो भारत के वायुवीरों ने किला फतह जरूर किया. अब तक कई ऐसे कारनामें इंडियन एयरफोर्स के साथ जुड़े हैं जो हर भारतीय को गर्व की अनुभूति कराते हैं. इंडियन एयर फोर्स ने किसी भी तरह की त्रासदी में अपने काम को सफलता से अंजाम दिया. सर्जिकल स्ट्राइक कर दुश्मनों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा किया. जब कोविड काल आया तो इंडियन एयरफोर्स के एयरक्राफ्ट विश्व के कई देशों में भारत से वैक्सीन लेकर गए. यही नहीं कई देशों में रहने वाले अपने देशवासियों को भी देश वापस लाने का काम किया. इंडियन एयरफोर्स के अब तक तमाम ऐसे कारनामें रहे हैं जो देशवासियों के दिलों में वायुसेना के लिए अलग ही सम्मान रखते हैं.





भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.


इस ऑपरेशन से हुआ मिशन का आगाज

वह साल था 1962 जब भारत और चीन के बीच जंग छिड़ गई. विवादित हिमालय की सीमा युद्ध का मुख्य बहाना थी. 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तभी से बॉर्डर पर झड़पें शुरू हो गईं. हिमालय की सीमा से लगे 3225 किलोमीटर लंबे विवादित क्षेत्र के बारे में भारत और चीन में राजनीतिक सहमति नहीं बनी और यही चीन के लिए भारत पर हमला करने का एक बड़ा कारण बन गया. अक्टूबर 1962 में तृतीय कमांडिंग ऑफिसर स्क्वाड्रन लीडर ई डिसूजा की कमान में स्कॉर्पियो तेजपुर से ड्सॉल्ट औरेगन (तूफानी) ऑपरेट कर रहे थे. 20 अक्टूबर 1962 को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने 1000 किलोमीटर दूर दो हमले किए. पश्चिमी युद्ध क्षेत्र में पीएलए ने अक्साई चीन में चिप चैप घाटी से भारतीय बलों को पीछे हटने का प्रयास किया जबकि पूर्वी मोर्चे पर पीएलए ने नामका चू नदी के दोनों किनारों पर कब्जे का प्रयास किया. इसी पर दोनों सेनाओं में जंग छिड़ गई. करीब एक माह तक लगातार भारत और चीन के बीच युद्ध चला रहा. भारतीय वायु सेवा ने चीनी वायुसेना का मुंहतोड़ जवाब दिया. 20 नवंबर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा हुई और धीरे-धीरे विवादित क्षेत्र से सेनाओं को हटा लिया गया.

भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.


1965 के मिशन में पाक को दी सजा

भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह जो उस समय वायु सेवा प्रमुख थे, ने एक सितंबर 1965 को पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हवाई हमले का आदेश जारी किया. एक सितंबर को सूर्यास्त से ठीक पहले भारत के रक्षा मंत्री से मिलने के बाद 26 लड़ाकू बमवर्षक विमान जिसमें 45 नंबर और 220 स्क्वाड्रन के 12 वैंपायर विमान और नंबर तीन और 31 स्क्वाड्रन के 14 मिस्टेर विमान से पठानकोट के छंब सेक्टर के लिए उड़ान भर दी. भारतीय वायुसेना के पहले विमान ने पाकिस्तान टैंकों पर हमला किया. इंडियन एयर फोर्स ने पाक सेना के 10 टैंक, दो एंटी एयरक्राफ्ट गन और दर्जनों वाहनों को नेस्तनाबूद कर दिया. 2 सितंबर को भारतीय वायुसेना ने फिर से पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए कई लड़ाकू विमान से हमले किए. तीन सितंबर 1965 को पहली बार भारतीय वायु सेना ने हवा से हवा में मार करने वाले विमानों से हमला करने का दावा किया. स्क्वाड्रन लीडर ट्रेवर कीलोर अखनूर ब्रिज को पार कर रहे थे तभी नियंत्रित रडार ने दुश्मन के हवाई गतिविधि की सूचना दे इसके बाद उन्होंने 90 सेकंड से भी कम समय में 30000 फीट तक छलांग लगाई और घुसपैठियों के क्षेत्र को चिन्हित कर लिया. उन्होंने अपनी 30 मिमी तोप बंदूकों से 450 गज की दूरी से गोलियां चलाईं. एक पल में पाकिस्तान सेना के विमान का दाहिना पंख टूट गया और वह आसमान से नीचे गिर गया. भारतीय वायुसेना ने इसे अपनी पहली हवाई लड़ाई का दावा किया. स्क्वाड्रन लीडर कीलोर हवा से हवा में जीत का दावा करने वाले पहले इंडियन पायलट बन गए. 4 सितंबर को एक दूसरे विमान को भी मार गिराया गया जिसे फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीएस पठानिया उड़ा रहे थे. 1965 के इस युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेवा ने पाकिस्तान सेना को धूल चटा दी थी. इंडियन एयर फोर्स ने अपने 35 विमान के नुकसान के साथ 73 पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था. इससे पाकिस्तान सेना की कमर टूट गई थी.

भारतीय वायुसेना दिवस पर विशेष.
भारतीय वायुसेना दिवस पर विशेष.


1971 में फिर वायुवीरों ने पाकिस्तान को दिखाई जमीन

1965 में पाकिस्तान सेना को बुरी तरह हराने के बाद एक बार फिर पाकिस्तान ने 1971 में मुंह उठाया और भारतीय वायुसेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तानी वायु सेना को जमीन दिखा डाली. 22 नवंबर 1971 को दोनों देशों की वायु सेना के बीच हवाई संघर्ष शुरू हुआ था, जबकि युद्ध 12 दिन पहले ही शुरू हो चुका था. पहले पाकिस्तान सेना ने भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के ठिकानों पर बमबारी की. इसके बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी सेना को दिन में ही तारे दिखाना शुरू कर दिया. 14 दिन तक दोनों सेनाओं के बीच यह युद्ध चला जो इंडियन एयर फोर्स का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है. इसने उपमहाद्वीप में भारत की एयर पावर की प्रभावशीलता को साबित कर दिया. इस युद्ध के खत्म होने के बाद ही बांग्लादेश का निर्माण हुआ और बाद में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए. भारतीय वायु सेवा के वीर जवानों को युद्ध में उनके वीरतापूर्ण प्रदर्शन के लिए एक परमवीर चक्र, 13 महावीर चक्र और 113 वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.


कारगिल में वायुसेना ने जीता देशवासियों का दिल

1965 और 1971 मैं बुरी तरह हारने के बाद भी पाकिस्तान का दिल नहीं भरा. वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. साल 1999 में पाकिस्तान ने तीसरी बार भारतीय सीमाओं में घुसने का प्रयास किया और यही युद्ध का बड़ा कारण बन गया. 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना ने असली जौहर दिखाया. पाकिस्तान की सेना को इतनी बुरी तरह हराया कि अब शायद ही पाकिस्तान कभी भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की भी जुर्रत कर सके. इस युद्ध में हेलीकॉप्टरों के प्रयोग के साथ हवाई मदद देने के लिए पहली बार भारतीय वायुसेना ने 11 मई 1999 को संपर्क किया. इसके बाद 25 मई को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने भारतीय वायु सेवा को एलओसी पार किए बिना घुसपैठियों पर हमला करने की इजाजत दे दी. ऑपरेशन सफेद सागर जिसे कारगिल क्षेत्र में हवाई अभियान कहा जाता था.

भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.

वास्तव में भारतीय वायुसेना के इतिहास में एक मील का पत्थर था, क्योंकि यह पहली बार था कि वायु शक्ति को इस तरह से दिखाने का मौका मिला था. बड़े-बड़े पहाड़ों और पहाड़ियों के बीच एयरक्राफ्ट उड़ा पाना अपने में बहुत बड़ी बात थी, लेकिन वायु सेना ने वह सब कुछ कर दिखाया जिसके लिए वह विश्व में जानी जाती है. शुरुआत में भारतीय वायु सेना को पाकिस्तानी वायु सेना की हरकतों का अंदाजा नहीं था, जिससे दुश्मन सेना की कार्रवाई में एक लड़ाकू और एक एमआई 17 हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंच गया. इसके बाद रणनीति में बदलाव किया गया. इसका फायदा मिला कि भारतीय वायुसेना ने वह कर दिखाया जो पाकिस्तान सेना ने सपने में भी नहीं सोचा था, इसलिए भारतीय वायु सेना के लिए ऑपरेशन सफेद सागर काफी मायने रखता है. एयरफोर्स के इतिहास में ये एक महत्वपूर्ण मोड़ था. वायु सेना यह मानती है कि यह एक ऐसा ऑपरेशन था जिस पर भारतीय वायुसेना को गर्व है.

यह भी पढ़ें : 168 यात्रियों को लेकर हिंडन एयरबेस पहुंचा विमान, भारतीयों के साथ अफगानी भी शामिल

इंडियन एयरफोर्स का 'पावर सेंटर' है आगरा एयरफोर्स स्टेशन

Indian Air Force ने अद्भुत और साहसिक कामों को दिया अंजाम. देखें खबर

लखनऊ : इंडियन एयरफोर्स के गठन को 90 साल पूरे हो गए हैं. साल 1932 में पहली बार यूनाइटेड किंगडम की रॉयल एयरफोर्स की सपोर्टिंग एयरफोर्स के रूप में इंडियन एयर फोर्स कार्यरत हुई थी. तब से लेकर अब तक भारतीय वायु सेना के साथ ऐसे ऐसे मिशन जुड़े हैं जो अन्य किसी भी देश की सेना से भारतीय वायुसेना को अलग बनाते हैं. मिशन कोई भी हो भारत के वायुवीरों ने किला फतह जरूर किया. अब तक कई ऐसे कारनामें इंडियन एयरफोर्स के साथ जुड़े हैं जो हर भारतीय को गर्व की अनुभूति कराते हैं. इंडियन एयर फोर्स ने किसी भी तरह की त्रासदी में अपने काम को सफलता से अंजाम दिया. सर्जिकल स्ट्राइक कर दुश्मनों पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा किया. जब कोविड काल आया तो इंडियन एयरफोर्स के एयरक्राफ्ट विश्व के कई देशों में भारत से वैक्सीन लेकर गए. यही नहीं कई देशों में रहने वाले अपने देशवासियों को भी देश वापस लाने का काम किया. इंडियन एयरफोर्स के अब तक तमाम ऐसे कारनामें रहे हैं जो देशवासियों के दिलों में वायुसेना के लिए अलग ही सम्मान रखते हैं.





भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.


इस ऑपरेशन से हुआ मिशन का आगाज

वह साल था 1962 जब भारत और चीन के बीच जंग छिड़ गई. विवादित हिमालय की सीमा युद्ध का मुख्य बहाना थी. 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तभी से बॉर्डर पर झड़पें शुरू हो गईं. हिमालय की सीमा से लगे 3225 किलोमीटर लंबे विवादित क्षेत्र के बारे में भारत और चीन में राजनीतिक सहमति नहीं बनी और यही चीन के लिए भारत पर हमला करने का एक बड़ा कारण बन गया. अक्टूबर 1962 में तृतीय कमांडिंग ऑफिसर स्क्वाड्रन लीडर ई डिसूजा की कमान में स्कॉर्पियो तेजपुर से ड्सॉल्ट औरेगन (तूफानी) ऑपरेट कर रहे थे. 20 अक्टूबर 1962 को चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने 1000 किलोमीटर दूर दो हमले किए. पश्चिमी युद्ध क्षेत्र में पीएलए ने अक्साई चीन में चिप चैप घाटी से भारतीय बलों को पीछे हटने का प्रयास किया जबकि पूर्वी मोर्चे पर पीएलए ने नामका चू नदी के दोनों किनारों पर कब्जे का प्रयास किया. इसी पर दोनों सेनाओं में जंग छिड़ गई. करीब एक माह तक लगातार भारत और चीन के बीच युद्ध चला रहा. भारतीय वायु सेवा ने चीनी वायुसेना का मुंहतोड़ जवाब दिया. 20 नवंबर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा हुई और धीरे-धीरे विवादित क्षेत्र से सेनाओं को हटा लिया गया.

भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.


1965 के मिशन में पाक को दी सजा

भारतीय वायु सेना के मार्शल अर्जन सिंह जो उस समय वायु सेवा प्रमुख थे, ने एक सितंबर 1965 को पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हवाई हमले का आदेश जारी किया. एक सितंबर को सूर्यास्त से ठीक पहले भारत के रक्षा मंत्री से मिलने के बाद 26 लड़ाकू बमवर्षक विमान जिसमें 45 नंबर और 220 स्क्वाड्रन के 12 वैंपायर विमान और नंबर तीन और 31 स्क्वाड्रन के 14 मिस्टेर विमान से पठानकोट के छंब सेक्टर के लिए उड़ान भर दी. भारतीय वायुसेना के पहले विमान ने पाकिस्तान टैंकों पर हमला किया. इंडियन एयर फोर्स ने पाक सेना के 10 टैंक, दो एंटी एयरक्राफ्ट गन और दर्जनों वाहनों को नेस्तनाबूद कर दिया. 2 सितंबर को भारतीय वायुसेना ने फिर से पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए कई लड़ाकू विमान से हमले किए. तीन सितंबर 1965 को पहली बार भारतीय वायु सेना ने हवा से हवा में मार करने वाले विमानों से हमला करने का दावा किया. स्क्वाड्रन लीडर ट्रेवर कीलोर अखनूर ब्रिज को पार कर रहे थे तभी नियंत्रित रडार ने दुश्मन के हवाई गतिविधि की सूचना दे इसके बाद उन्होंने 90 सेकंड से भी कम समय में 30000 फीट तक छलांग लगाई और घुसपैठियों के क्षेत्र को चिन्हित कर लिया. उन्होंने अपनी 30 मिमी तोप बंदूकों से 450 गज की दूरी से गोलियां चलाईं. एक पल में पाकिस्तान सेना के विमान का दाहिना पंख टूट गया और वह आसमान से नीचे गिर गया. भारतीय वायुसेना ने इसे अपनी पहली हवाई लड़ाई का दावा किया. स्क्वाड्रन लीडर कीलोर हवा से हवा में जीत का दावा करने वाले पहले इंडियन पायलट बन गए. 4 सितंबर को एक दूसरे विमान को भी मार गिराया गया जिसे फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीएस पठानिया उड़ा रहे थे. 1965 के इस युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेवा ने पाकिस्तान सेना को धूल चटा दी थी. इंडियन एयर फोर्स ने अपने 35 विमान के नुकसान के साथ 73 पाकिस्तानी विमानों को मार गिराया था. इससे पाकिस्तान सेना की कमर टूट गई थी.

भारतीय वायुसेना दिवस पर विशेष.
भारतीय वायुसेना दिवस पर विशेष.


1971 में फिर वायुवीरों ने पाकिस्तान को दिखाई जमीन

1965 में पाकिस्तान सेना को बुरी तरह हराने के बाद एक बार फिर पाकिस्तान ने 1971 में मुंह उठाया और भारतीय वायुसेना ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तानी वायु सेना को जमीन दिखा डाली. 22 नवंबर 1971 को दोनों देशों की वायु सेना के बीच हवाई संघर्ष शुरू हुआ था, जबकि युद्ध 12 दिन पहले ही शुरू हो चुका था. पहले पाकिस्तान सेना ने भारतीय सेना और मुक्ति वाहिनी के ठिकानों पर बमबारी की. इसके बाद भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी सेना को दिन में ही तारे दिखाना शुरू कर दिया. 14 दिन तक दोनों सेनाओं के बीच यह युद्ध चला जो इंडियन एयर फोर्स का सबसे बेहतरीन समय माना जाता है. इसने उपमहाद्वीप में भारत की एयर पावर की प्रभावशीलता को साबित कर दिया. इस युद्ध के खत्म होने के बाद ही बांग्लादेश का निर्माण हुआ और बाद में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर हुए. भारतीय वायु सेवा के वीर जवानों को युद्ध में उनके वीरतापूर्ण प्रदर्शन के लिए एक परमवीर चक्र, 13 महावीर चक्र और 113 वीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.


कारगिल में वायुसेना ने जीता देशवासियों का दिल

1965 और 1971 मैं बुरी तरह हारने के बाद भी पाकिस्तान का दिल नहीं भरा. वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. साल 1999 में पाकिस्तान ने तीसरी बार भारतीय सीमाओं में घुसने का प्रयास किया और यही युद्ध का बड़ा कारण बन गया. 1999 में हुए कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना ने असली जौहर दिखाया. पाकिस्तान की सेना को इतनी बुरी तरह हराया कि अब शायद ही पाकिस्तान कभी भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की भी जुर्रत कर सके. इस युद्ध में हेलीकॉप्टरों के प्रयोग के साथ हवाई मदद देने के लिए पहली बार भारतीय वायुसेना ने 11 मई 1999 को संपर्क किया. इसके बाद 25 मई को कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने भारतीय वायु सेवा को एलओसी पार किए बिना घुसपैठियों पर हमला करने की इजाजत दे दी. ऑपरेशन सफेद सागर जिसे कारगिल क्षेत्र में हवाई अभियान कहा जाता था.

भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.
भारतीय वायुसेना की गौरवगाथा.

वास्तव में भारतीय वायुसेना के इतिहास में एक मील का पत्थर था, क्योंकि यह पहली बार था कि वायु शक्ति को इस तरह से दिखाने का मौका मिला था. बड़े-बड़े पहाड़ों और पहाड़ियों के बीच एयरक्राफ्ट उड़ा पाना अपने में बहुत बड़ी बात थी, लेकिन वायु सेना ने वह सब कुछ कर दिखाया जिसके लिए वह विश्व में जानी जाती है. शुरुआत में भारतीय वायु सेना को पाकिस्तानी वायु सेना की हरकतों का अंदाजा नहीं था, जिससे दुश्मन सेना की कार्रवाई में एक लड़ाकू और एक एमआई 17 हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंच गया. इसके बाद रणनीति में बदलाव किया गया. इसका फायदा मिला कि भारतीय वायुसेना ने वह कर दिखाया जो पाकिस्तान सेना ने सपने में भी नहीं सोचा था, इसलिए भारतीय वायु सेना के लिए ऑपरेशन सफेद सागर काफी मायने रखता है. एयरफोर्स के इतिहास में ये एक महत्वपूर्ण मोड़ था. वायु सेना यह मानती है कि यह एक ऐसा ऑपरेशन था जिस पर भारतीय वायुसेना को गर्व है.

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