लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हत्या के एक मामले में चालीस साल बाद 56 वर्षीय दोषसिद्ध अभियुक्त को किशोर घोषित किया है. न्यायालय ने पाया कि अपीलार्थी तीन साल से अधिक समय जेल में काट चुका है. ऐसे में कोर्ट ने इस अवधि के कारावास का दंड सुनाते हुए उसे जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है. यह निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने संग्राम की ओर से दाखिल अपील पर सुनाया.
अम्बेडकर नगर की एक अपर सत्र अदालत ने 25 नवंबर 1981 को अभियुक्त राम कुमार व संग्राम को इब्राहिमपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत हत्या के एक मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. घटना 8 जनवरी 1981 की थी. अपर सत्र अदालत के फैसले के खिलाफ दोनों की ओर से हाईकोर्ट में वर्ष 1981 में अपील दाखिल की गई. अपील पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने संग्राम की एक अर्जी पर अम्बेडकरनगर की जुविनाइल जस्टिस बोर्ड से उसके आयु निर्धारण पर जांच करने का कहा था.
बोर्ड ने 11 अक्टूबर 2017 को हाईकोर्ट को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया कि घटना के समय संग्राम करीब पंद्रह साल का था. इसके बाद हाईकोर्ट ने 11 अक्टूबर 2018 को अपील पर अपना फैसला सुनाया और दोनों अभियुक्तों की दोषसिद्धि बरकरार रखा. हालांकि उनकी सजा आईपीसी की धारा 302 के तहत उम्रकैद से बदलकर आईपीसी की धारा 304 की उपधारा 1 के तहत दस साल कर दी. संग्राम ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि घटना के समय वह किशोर था लेकिन हाईकोर्ट ने बिना उस पर सुनवाई किये ही अपील को निस्तारित कर दिया.
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सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 27 अगस्त 2021 को मामले को हाईकोर्ट को पुर्नसुनवाई के लिए वापस भेज दिया. इसके बाद हाईकोर्ट ने पुनः सुनवाई की और पाया कि बोर्ड ने जो रिपोर्ट 11 अक्टूबर 2017 को उसे भेजी थी, उसके खिलाफ न तो वादी ने और न ही राज्य सरकार ने कोई आपत्ति की है. न्यायालय ने कहा कि किशोर साबित होने पर अपीलार्थी को अधिकतम तीन साल की ही सजा दी जा सकती है. यह भी रिकॉर्ड से पाया कि संग्राम पहले ही तीन साल से अधिक समय की अवधि जेल में काट चुका है. न्यायालय ने बोर्ड की राय को मंजूर करते हुए अपीलार्थी को किशोर घोषित किया और कहा कि यदि वह किसी अन्य मामले में जेल में न हो तो उसे तुरंत रिहा कर दिया जाए.
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