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एक कंप्यूटर साइंटिस्ट ऐसे बना 'किसानों का मसीहा', पढ़िए चौ. अजित सिंह का सफरनामा

'छोटे चौधरी' के नाम से मशहूर चौधरी अजित सिंह का कोरोना संक्रमण से निधन हो गया. उन्होंने गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली. वे जिंदगी भर किसानों के हित के लिए संघर्ष करते रहे. देखिए ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट...

chaudhary ajit singh death
चौधरी अजित सिंह.
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Published : May 6, 2021, 12:05 PM IST

Updated : May 6, 2021, 12:15 PM IST

लखनऊ : कोरोना के कारण राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का गुरुवार सुबह गुरुग्राम के निजी अस्पताल में निधन हो गया. 86 साल के चौधरी अजीत सिंह ने जबसे होश संभाला तबसे वे अपने पिता के नक्शे कदम पर चलने लगे. किसानों के साथ उठना बैठना, उनकी समस्याओं को सुनना और उनके समाधान का रास्ता निकालना ही चौधरी साहब ने अपना ध्येय बना लिया. जिस तरह उनके पिता किसानों के बीच लोकप्रिय थे, ठीक उसी तरह उनके बेटे चौधरी अजित सिंह भी किसानों के लिए पूरी तरह समर्पित रहे.

chaudhary ajit singh death
चौधरी अजित सिंह.

किसानों ने ही चौधरी चरण सिंह को 'किसान मसीहा' की उपाधि दी थी तो चौधरी अजीत सिंह को 'छोटे चौधरी' की. उनके संघर्ष का अंदाजा इस बात से भी लगाया जाता है जा सकता है कि जीवन के आखिरी दिनों तक वे किसानों के ही साथ खड़े रहे. किसान आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका से किसानों को बल मिला. आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं तो उनकी पार्टी के नेता उनके निधन को किसानों के लिए एक युग का अंत कह रहे हैं. आइए समझते हैं कि किस तरह का रहा चौधरी अजीत सिंह का सफर.

मेरठ के भडोला में जन्मे थे चौधरी अजित सिंह
चौधरी अजित सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 में मेरठ जिले के भडोला गांव में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह के घर में हुआ था. उनकी शुरुआती शिक्षा मेरठ में हुई थी. इसके बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई की, जहां से वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए आईआईटी खड़गपुर चले गए. इसके बाद उन्होंने अमेरिका के इलिनाइस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर ऑफ साइंस कंप्लीट किया था. चौधरी अजित सिंह बचपन से सभ्य एवं शांत स्वभाव के थे. उन्होंने कभी राजनीति में आने के बारे में कभी सोचा भी नही था. वे अपने कैरियर पर फोकस रखते थे. अजित सिंह बिल गेट्स की आईबीएम कंपनी में नौकरी करने वाले पहले भारतीय थे.

पिता के नक्शे कदम पर चले 'छोटे चौधरी'
अपने पिता चौधरी चरण सिंह की ही तरह चौधरी अजित सिंह जीवन भर किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करते रहे. किसानों की आवाज बनते रहे. उनकी समस्याओं का समाधान कराने में चौधरी अजित सिंह की बड़ी भूमिका रही. वर्तमान में जो कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन चल रहा है उसमें भी चौधरी साहब ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. किसान नेताओं को लामबंद किया. राजनीतिक दलों को साथ लिया और आवाज मुखर की. पार्टी के नेता बताते हैं कि चौधरी अजीत सिंह ने अपने सियासी सफर की शुरूआत साल 1986 से की थी. ऐसा तब हुआ, जब उनके पिता और किसान मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह बीमारी से ग्रसित हो गए थे.

पहली बार सक्रिय राजनीति में दखल
इसके बाद चौधरी साहब को साल 1986 में राज्यसभा भेजा गया था. इसके बाद वर्ष 1987 से 1988 तक वह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे. साल 1989 में अपनी पार्टी का उन्होंने जनता दल में विलय कर दिया. इसके बाद वह जनता दल के महासचिव बन गए. पहली बार जब साल 1989 में चौधरी अजीत सिंह ने लोकसभा में कदम रखा तो वीपी सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री का दर्जा दिया गया. इसके बाद वे 1991 में फिर बागपत लोकसभा सीट से संसद के अंदर पहुंचे. इस बार पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने उन्हें मंत्री के पद से नवाजा गया. 1996 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. कुछ दिन बाद उन्होंने इस सीट से और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद शुरू हुआ उनकी अपनी पार्टी के निर्माण का रास्ता.

1997 में बना ली अपनी पार्टी, जीते भी, हारे भी
साल 1986 से लेकर 1996 तक यानी 10 साल चौधरी अजित सिंह विभिन्न पार्टियों के साथ रहे. संसद के अंदर पहुंचे. मंत्री भी बने, लेकिन साल 1997 में उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की. 1997 के उपचुनाव में उन्हें बागपत की जनता का पूरा समर्थन मिला और वे यहां से पहली बार अपनी पार्टी से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए. हालांकि एक साल बाद ही जब लोकसभा चुनाव हुआ तो उन्हें जोरदार झटका भी लगा. 1998 में उनके सियासत का ऐसा भी स्याह दिन आया जब उन्हें हार का सामना करना पड़ गया, लेकिन चौधरी अजित सिंह हार मानने वालों में से नहीं थे. 1999 में फिर चुनाव जीतकर उन्होंने लोकसभा के दरवाजे पर दस्तक दे डाली.

अटल से लेकर मनमोहन सरकार में भी था पूरा दखल
साल 2001 से 2003 तक पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में चौधरी अजित सिंह ने मंत्री पद हासिल किया. किसानों की तमाम समस्याओं का समाधान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से कराया. जिससे किसानों पर वे अपनी अलग ही छाप छोड़ने में सफल हुए. इसके बाद साल 2011 में वे यूपीए के साथ हो लिए. 2011 से लेकर 2014 तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया.

15 साल बाद फिर हारे चुनाव
साल 1998 में चौधरी अजीत सिंह अपनी पार्टी से लड़े तो चुनाव हारे. उसके बाद 1999 में जीते तो फिर लगातार सरकार में उनका दखल बना रहा. मंत्री पद को सुशोभित करते रहे. सात बार बागपत से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे लेकिन 15 साल बाद फिर ऐसा समय आया जब उन्हें हार का सामना करना पड़ा. साल 2014 में वह बागपत से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए. सत्यपाल मलिक ने उनको हराया था. इसके बाद पांच साल तक उन्होंने चुनाव का इंतजार किया और पूरी ताकत भी लगाई. लेकिन मोदी की आंधी में साल 2019 में उनके लिए शुभ संदेश लेकर नहीं आया. 2019 के लोकसभा चुनाव में वे फिर मुजफ्फरनगर से मैदान में उतरे, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी के नेता संजीव बालियान ने उन्हें हरा दिया.

ये भी पढ़ें: रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का कोरोना से निधन, पीएम-सीएम ने जताया दु:ख

पंचायत चुनाव में पार्टी ने किया शानदार प्रदर्शन
2014 के चुनाव से भले ही राष्ट्रीय लोक दल उस तरह से मजबूत न रह पाई हो, लेकिन चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी लगातार पार्टी को मजबूत करने में जुटे रहे. उसका नतीजा भी अब सामने है. हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल ने शानदार प्रदर्शन किया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी ने फिर ये दिखा दिया है कि यहां पर रालोद का कोई सानी नहीं है. उन्हें जंग जीतना आता है. सब कुछ सही हुआ, पार्टी मजबूत भी हुई, लेकिन पार्टी के इस शानदार प्रदर्शन को देखने के लिए चौधरी अजित सिंह नहीं रहे.

यह रहा चौधरी साहब का सियासी सफर

  • 1986 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने.
  • आठ बार सांसद रहे.
  • सात बार लोकसभा चुनाव जीतकर और एक बार राज्यसभा के सदस्य के तौर पर संसद पहुंचे.
  • चार बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे.
  • 2014 लोकसभा चुनाव में बागपत से मिली हार.
  • 2019 में लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर से मिली हार.

पश्चिमी यूपी में शोक की लहर
चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद जहां उनके पैतृक गांव में मातम पसरा हुआ है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में भी शोक की लहर है. हर कोई छोटे चौधरी के निधन पर शोक व्यक्त कर रहा है. मेरठ समेत आसपास के के जनपदों से चौधरी अजित सिंह का गहरा नाता रहा है. उन्होंने 36 बिरादरियों को एक साथ लेकर चलने का प्रयास किया. यही वजह रही कि वे लगातार 7 बार चुनाव जीते हैं. उनके नाम की हर जगह तूती बोलती थी. पश्चिमी युपी की जनता उन्हें कभी नहीं भूल पाएगी. वे हमेशा यादों में जिंदा रहेंगे...

लखनऊ : कोरोना के कारण राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का गुरुवार सुबह गुरुग्राम के निजी अस्पताल में निधन हो गया. 86 साल के चौधरी अजीत सिंह ने जबसे होश संभाला तबसे वे अपने पिता के नक्शे कदम पर चलने लगे. किसानों के साथ उठना बैठना, उनकी समस्याओं को सुनना और उनके समाधान का रास्ता निकालना ही चौधरी साहब ने अपना ध्येय बना लिया. जिस तरह उनके पिता किसानों के बीच लोकप्रिय थे, ठीक उसी तरह उनके बेटे चौधरी अजित सिंह भी किसानों के लिए पूरी तरह समर्पित रहे.

chaudhary ajit singh death
चौधरी अजित सिंह.

किसानों ने ही चौधरी चरण सिंह को 'किसान मसीहा' की उपाधि दी थी तो चौधरी अजीत सिंह को 'छोटे चौधरी' की. उनके संघर्ष का अंदाजा इस बात से भी लगाया जाता है जा सकता है कि जीवन के आखिरी दिनों तक वे किसानों के ही साथ खड़े रहे. किसान आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका से किसानों को बल मिला. आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं तो उनकी पार्टी के नेता उनके निधन को किसानों के लिए एक युग का अंत कह रहे हैं. आइए समझते हैं कि किस तरह का रहा चौधरी अजीत सिंह का सफर.

मेरठ के भडोला में जन्मे थे चौधरी अजित सिंह
चौधरी अजित सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 में मेरठ जिले के भडोला गांव में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह के घर में हुआ था. उनकी शुरुआती शिक्षा मेरठ में हुई थी. इसके बाद लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई की, जहां से वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए आईआईटी खड़गपुर चले गए. इसके बाद उन्होंने अमेरिका के इलिनाइस इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर ऑफ साइंस कंप्लीट किया था. चौधरी अजित सिंह बचपन से सभ्य एवं शांत स्वभाव के थे. उन्होंने कभी राजनीति में आने के बारे में कभी सोचा भी नही था. वे अपने कैरियर पर फोकस रखते थे. अजित सिंह बिल गेट्स की आईबीएम कंपनी में नौकरी करने वाले पहले भारतीय थे.

पिता के नक्शे कदम पर चले 'छोटे चौधरी'
अपने पिता चौधरी चरण सिंह की ही तरह चौधरी अजित सिंह जीवन भर किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करते रहे. किसानों की आवाज बनते रहे. उनकी समस्याओं का समाधान कराने में चौधरी अजित सिंह की बड़ी भूमिका रही. वर्तमान में जो कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन चल रहा है उसमें भी चौधरी साहब ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. किसान नेताओं को लामबंद किया. राजनीतिक दलों को साथ लिया और आवाज मुखर की. पार्टी के नेता बताते हैं कि चौधरी अजीत सिंह ने अपने सियासी सफर की शुरूआत साल 1986 से की थी. ऐसा तब हुआ, जब उनके पिता और किसान मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह बीमारी से ग्रसित हो गए थे.

पहली बार सक्रिय राजनीति में दखल
इसके बाद चौधरी साहब को साल 1986 में राज्यसभा भेजा गया था. इसके बाद वर्ष 1987 से 1988 तक वह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे. साल 1989 में अपनी पार्टी का उन्होंने जनता दल में विलय कर दिया. इसके बाद वह जनता दल के महासचिव बन गए. पहली बार जब साल 1989 में चौधरी अजीत सिंह ने लोकसभा में कदम रखा तो वीपी सिंह सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री का दर्जा दिया गया. इसके बाद वे 1991 में फिर बागपत लोकसभा सीट से संसद के अंदर पहुंचे. इस बार पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने उन्हें मंत्री के पद से नवाजा गया. 1996 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. कुछ दिन बाद उन्होंने इस सीट से और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद शुरू हुआ उनकी अपनी पार्टी के निर्माण का रास्ता.

1997 में बना ली अपनी पार्टी, जीते भी, हारे भी
साल 1986 से लेकर 1996 तक यानी 10 साल चौधरी अजित सिंह विभिन्न पार्टियों के साथ रहे. संसद के अंदर पहुंचे. मंत्री भी बने, लेकिन साल 1997 में उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की. 1997 के उपचुनाव में उन्हें बागपत की जनता का पूरा समर्थन मिला और वे यहां से पहली बार अपनी पार्टी से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच गए. हालांकि एक साल बाद ही जब लोकसभा चुनाव हुआ तो उन्हें जोरदार झटका भी लगा. 1998 में उनके सियासत का ऐसा भी स्याह दिन आया जब उन्हें हार का सामना करना पड़ गया, लेकिन चौधरी अजित सिंह हार मानने वालों में से नहीं थे. 1999 में फिर चुनाव जीतकर उन्होंने लोकसभा के दरवाजे पर दस्तक दे डाली.

अटल से लेकर मनमोहन सरकार में भी था पूरा दखल
साल 2001 से 2003 तक पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में चौधरी अजित सिंह ने मंत्री पद हासिल किया. किसानों की तमाम समस्याओं का समाधान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई से कराया. जिससे किसानों पर वे अपनी अलग ही छाप छोड़ने में सफल हुए. इसके बाद साल 2011 में वे यूपीए के साथ हो लिए. 2011 से लेकर 2014 तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया.

15 साल बाद फिर हारे चुनाव
साल 1998 में चौधरी अजीत सिंह अपनी पार्टी से लड़े तो चुनाव हारे. उसके बाद 1999 में जीते तो फिर लगातार सरकार में उनका दखल बना रहा. मंत्री पद को सुशोभित करते रहे. सात बार बागपत से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे लेकिन 15 साल बाद फिर ऐसा समय आया जब उन्हें हार का सामना करना पड़ा. साल 2014 में वह बागपत से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए. सत्यपाल मलिक ने उनको हराया था. इसके बाद पांच साल तक उन्होंने चुनाव का इंतजार किया और पूरी ताकत भी लगाई. लेकिन मोदी की आंधी में साल 2019 में उनके लिए शुभ संदेश लेकर नहीं आया. 2019 के लोकसभा चुनाव में वे फिर मुजफ्फरनगर से मैदान में उतरे, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी के नेता संजीव बालियान ने उन्हें हरा दिया.

ये भी पढ़ें: रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का कोरोना से निधन, पीएम-सीएम ने जताया दु:ख

पंचायत चुनाव में पार्टी ने किया शानदार प्रदर्शन
2014 के चुनाव से भले ही राष्ट्रीय लोक दल उस तरह से मजबूत न रह पाई हो, लेकिन चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी लगातार पार्टी को मजबूत करने में जुटे रहे. उसका नतीजा भी अब सामने है. हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल ने शानदार प्रदर्शन किया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी ने फिर ये दिखा दिया है कि यहां पर रालोद का कोई सानी नहीं है. उन्हें जंग जीतना आता है. सब कुछ सही हुआ, पार्टी मजबूत भी हुई, लेकिन पार्टी के इस शानदार प्रदर्शन को देखने के लिए चौधरी अजित सिंह नहीं रहे.

यह रहा चौधरी साहब का सियासी सफर

  • 1986 में पहली बार राज्यसभा सांसद बने.
  • आठ बार सांसद रहे.
  • सात बार लोकसभा चुनाव जीतकर और एक बार राज्यसभा के सदस्य के तौर पर संसद पहुंचे.
  • चार बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे.
  • 2014 लोकसभा चुनाव में बागपत से मिली हार.
  • 2019 में लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर से मिली हार.

पश्चिमी यूपी में शोक की लहर
चौधरी अजित सिंह के निधन के बाद जहां उनके पैतृक गांव में मातम पसरा हुआ है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में भी शोक की लहर है. हर कोई छोटे चौधरी के निधन पर शोक व्यक्त कर रहा है. मेरठ समेत आसपास के के जनपदों से चौधरी अजित सिंह का गहरा नाता रहा है. उन्होंने 36 बिरादरियों को एक साथ लेकर चलने का प्रयास किया. यही वजह रही कि वे लगातार 7 बार चुनाव जीते हैं. उनके नाम की हर जगह तूती बोलती थी. पश्चिमी युपी की जनता उन्हें कभी नहीं भूल पाएगी. वे हमेशा यादों में जिंदा रहेंगे...

Last Updated : May 6, 2021, 12:15 PM IST
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