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UP POLICE: खतरे में सुरक्षा देने वालों की जान, छतों-दीवारों में दरार तो कहीं गंदगी की भरमार - एसीपी पुलिस लाइन सैयद अली अब्बास

लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास पुलिसकर्मियों के लिए बने हुए हैं. इनकी मरम्मत वर्षों से नहीं हुई है. इससे ये बदहाल होने लगे हैं. इन आवासों में से 32 कंडम हैं. एक इंजीनियर की रिपोर्ट के आधार पर यह आवास रहने लायक नहीं बचे हैं.

लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास कंडम
लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास कंडम
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Published : Sep 20, 2021, 9:06 PM IST

लखनऊ: सूबे की राजधानी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पुलिसकर्मियों के जर्जर बैरक और सरकारी आवास की हालत बद से बदतर है. समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस विभाग को दी गई है, उसी विभाग के कर्मचारी हर समय खौफ के साए में रहने को मजबूर हैं. पूर्व के हादसों का संज्ञान लेकर एक बार फिर लखनऊ के पुलिसकर्मियों की सुरक्षा को लेकर पड़ताल की गई, जिसमें पाया गया कि जनता को सुरक्षा देने वालों की जान खुद खतरे में है. पुलिस लाइन और थानों में पुलिसकर्मी जर्जर सरकारी आवास और कंडम बैरकों में रहने को मजबूर हैं. बैरकों और आवासों की छतें टूटी हैं, जो कभी भी गिरने का इशारा कर रही हैं. जगह-जगह दीवारों में दरारें हैं. बैरकों के बाहर और अंदर गंदगी की भरमार है. पुलिस लाइन के जर्जर सरकारी आवास में रहने वाले फॉलोअर व पुलिसकर्मियों को भी हर समय खतरा सताता रहता है. पूर्व में यहां भी हादसा हो चुका है. कई आवास तो पांच साल पहले कंडम घोषित हो चुके हैं, फिर भी पुलिसकर्मी परिवार संग रहने को मजबूर हैं.


लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास पुलिसकर्मियों के लिए बने हुए हैं. इनकी मरम्मत वर्षों से नहीं हुई है. इससे ये बदहाल होने लगे हैं. इन आवासों में से 32 कंडम हैं. एक इंजीनियर की रिपोर्ट के आधार पर यह आवास रहने लायक नहीं बचे हैं. इसके बाद भी पुलिस लाइन के इन कंडम आवासों में परिवार रहने के लिए मजबूर है. क्योंकि इनको अभी तक दूसरा आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है. सरकारी नियम है कि पुलिसकर्मियों के एक आवास की मरम्मत के लिए 5 साल में एक बार 25000 रुपये मिलने चाहिए, लेकिन ये पैसे भी उन्हें नहीं मिल पाते. ऐसे में छोटी-छोटी टूट-फूट को पुलिसकर्मी अपने पैसे से ही ठीक कराते हैं.

लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास कंडम



नाम न बताने की शर्त पर पुलिस लाइन के एक कंडम आवास में रहने वाले पुलिसकर्मी ने बताया कि उसके आवास की हालत इतनी खराब है कि उसने अपने पास से 35,000 रुपये लगाकर मरम्मत कराई है. इसके बाद भी दीवारों से प्लास्टर गिर रहे हैं. पुलिस लाइन के खस्ता हाल आवास में रहने वाली सरिता ने बताया कि उनके आवास में पानी की सुविधा तक नहीं है.



पुलिस के आधुनिकीकरण की दिशा में सरकार काम कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी पुलिसकर्मियों के लिए बने आवासों की हालत अच्छी नहीं है. यह दुर्दशा तब है, जबकि पुलिस लाइन में ही मरम्मत विंग है. ये विंग ही पुलिस आवासों की मरम्मत का काम देखती है. इसके बाद भी मरम्मत का काम कर्मियों को अपने वेतन से कराना पड़ता है, क्योंकि उनको अपने परिवारों की सुरक्षा की चिंता है.



बीकेटी फायर स्टेशन परिसर में जर्जर बैरकों में रह रहे फायरकर्मियों की भी जान जोखिम में है. यहां टूटी बैरकों की हालात ऐसी है कि कभी भी यहां रह रहे कर्मचारियों के लिए काल बन सकती है. बरसात में टपकती छतों के नीचे सारा सामान खराब हो जाता है. कई शिकायतों के बावजूद शासन-प्रशासन की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा.

इसे भी पढ़ें-अधिकारी बर्बाद कर रहे 8000 छात्रों का भविष्य, कैसे होगा बेड़ापार



एसीपी पुलिस लाइन सैयद अली अब्बास ने बताया कि, पुलिस लाइन में आवास की मरम्मत के लिए रिपेयरिंग विंग बनी है. लाइन में 844 आवास हैं, जिसमें परिवार रह रहे हैं. इन आवासों में ब्लॉक बनाकर मरम्मत का काम हो रहा है. लाइन में 32 आवास कंडम हैं, जिनको खाली कराने की प्रक्रिया चल रही है. 14 लाख रुपये से एक बैरक की मरम्मत का काम किया गया है.

लखनऊ: सूबे की राजधानी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पुलिसकर्मियों के जर्जर बैरक और सरकारी आवास की हालत बद से बदतर है. समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस विभाग को दी गई है, उसी विभाग के कर्मचारी हर समय खौफ के साए में रहने को मजबूर हैं. पूर्व के हादसों का संज्ञान लेकर एक बार फिर लखनऊ के पुलिसकर्मियों की सुरक्षा को लेकर पड़ताल की गई, जिसमें पाया गया कि जनता को सुरक्षा देने वालों की जान खुद खतरे में है. पुलिस लाइन और थानों में पुलिसकर्मी जर्जर सरकारी आवास और कंडम बैरकों में रहने को मजबूर हैं. बैरकों और आवासों की छतें टूटी हैं, जो कभी भी गिरने का इशारा कर रही हैं. जगह-जगह दीवारों में दरारें हैं. बैरकों के बाहर और अंदर गंदगी की भरमार है. पुलिस लाइन के जर्जर सरकारी आवास में रहने वाले फॉलोअर व पुलिसकर्मियों को भी हर समय खतरा सताता रहता है. पूर्व में यहां भी हादसा हो चुका है. कई आवास तो पांच साल पहले कंडम घोषित हो चुके हैं, फिर भी पुलिसकर्मी परिवार संग रहने को मजबूर हैं.


लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास पुलिसकर्मियों के लिए बने हुए हैं. इनकी मरम्मत वर्षों से नहीं हुई है. इससे ये बदहाल होने लगे हैं. इन आवासों में से 32 कंडम हैं. एक इंजीनियर की रिपोर्ट के आधार पर यह आवास रहने लायक नहीं बचे हैं. इसके बाद भी पुलिस लाइन के इन कंडम आवासों में परिवार रहने के लिए मजबूर है. क्योंकि इनको अभी तक दूसरा आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है. सरकारी नियम है कि पुलिसकर्मियों के एक आवास की मरम्मत के लिए 5 साल में एक बार 25000 रुपये मिलने चाहिए, लेकिन ये पैसे भी उन्हें नहीं मिल पाते. ऐसे में छोटी-छोटी टूट-फूट को पुलिसकर्मी अपने पैसे से ही ठीक कराते हैं.

लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास कंडम



नाम न बताने की शर्त पर पुलिस लाइन के एक कंडम आवास में रहने वाले पुलिसकर्मी ने बताया कि उसके आवास की हालत इतनी खराब है कि उसने अपने पास से 35,000 रुपये लगाकर मरम्मत कराई है. इसके बाद भी दीवारों से प्लास्टर गिर रहे हैं. पुलिस लाइन के खस्ता हाल आवास में रहने वाली सरिता ने बताया कि उनके आवास में पानी की सुविधा तक नहीं है.



पुलिस के आधुनिकीकरण की दिशा में सरकार काम कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी पुलिसकर्मियों के लिए बने आवासों की हालत अच्छी नहीं है. यह दुर्दशा तब है, जबकि पुलिस लाइन में ही मरम्मत विंग है. ये विंग ही पुलिस आवासों की मरम्मत का काम देखती है. इसके बाद भी मरम्मत का काम कर्मियों को अपने वेतन से कराना पड़ता है, क्योंकि उनको अपने परिवारों की सुरक्षा की चिंता है.



बीकेटी फायर स्टेशन परिसर में जर्जर बैरकों में रह रहे फायरकर्मियों की भी जान जोखिम में है. यहां टूटी बैरकों की हालात ऐसी है कि कभी भी यहां रह रहे कर्मचारियों के लिए काल बन सकती है. बरसात में टपकती छतों के नीचे सारा सामान खराब हो जाता है. कई शिकायतों के बावजूद शासन-प्रशासन की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा.

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एसीपी पुलिस लाइन सैयद अली अब्बास ने बताया कि, पुलिस लाइन में आवास की मरम्मत के लिए रिपेयरिंग विंग बनी है. लाइन में 844 आवास हैं, जिसमें परिवार रह रहे हैं. इन आवासों में ब्लॉक बनाकर मरम्मत का काम हो रहा है. लाइन में 32 आवास कंडम हैं, जिनको खाली कराने की प्रक्रिया चल रही है. 14 लाख रुपये से एक बैरक की मरम्मत का काम किया गया है.

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