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थारु क्राफ्ट से मिल रही थारू महिलाओं को नई पहचान, संवर रही उनकी जिंदगी

यूपी के दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं की जिंदगी अब योगी सरकार की ओडीओपी योजना बदल रही है. महिलाएं थारू क्राफ्ट बनाकर देश-विदेश में अपना नाम कमा रही हैं.

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Published : Nov 14, 2021, 7:33 PM IST

लखीमपुर खीरीः जिले के दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं की जिंदगी अब योगी सरकार की ओडीओपी योजना में बदल रही है. महिलाएं थारू क्राफ्ट बनाकर न केवल देश-विदेश में अपना नाम कमा रही हैं, बल्कि अपने पैरों पर भी खड़ी हो रही हैं. वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोजेक्ट के तहत थारू ट्राइबल क्राफ्ट को यूपी सरकार ने खीरी जिले में गुड़ के साथ चुना था.

थारू महिला आरती राना कहती हैं कि हमारा और महिलाओं का जीवन बदल रहा है. अब महिलाओं को एक मिनट की फुर्सत नहीं है. करीब दो हजार महिलाएं ओडीओपी से जुड़कर रोजगार चला रहीं.

थारू क्राफ्ट बना रही आरती राना कुछ दिन पहले तक दुधवा टाइगर रिजर्व और जंगलों के आसपास उससे अपनी रोजी-रोटी चलाती थीं. जंगलों पर आश्रित थीं, लेकिन यूपी सरकार की ओडीओपी की योजना के तहत अब आरती को काम मिल गया है. आरती को एक मिनट की फुर्सत नहीं है. उनके सधे हुए हाथ अपने परंपरागत कला और संस्कृति से जुड़कर अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक अपनी पहचान बना रहे हैं. पारंपरिक उत्पादों को बनाकर आरती अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं. अपने जैसी तमाम महिलाओं को रोजगार से जोड़ भी रही हैं. आरती सिर्फ अकेली नहीं है. आरती जैसी करीब दो हजार महिलाओं को ओडीओपी योजना से जुड़ कर काम मिला है. कोई झूठ का काम करता है तो कोई मूँज का. महिलाओं के हाथों को काम मिला है तो उनका आत्मविस्वास भी बढ़ा है.

थारू जनजाति दुधवा टाइगर रिजर्व के आसपास बहुतायत में पाई जाती है, जनजातीय इन महिलाओं के पास पहले कोई काम नहीं था, पर इनका पारंपरिक ज्ञान इन को बखूबी आता था. अपनी कला और संस्कृति के प्रति थारू काफी जानकारी रखते थे. हस्तकला हो या दीवारों पर चित्रकारी थारू महिलाओं को खूब आती थी. रोज के कामों में डलवा बनाना उनका काम था. इस ग्रामीण और पारंपरिक कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने को योगी सरकार ने वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट(ODOP) योजना के तहत थारू क्राफ्ट को चुना. योजना के तहत ट्रेनिंग दिलाई गई.

ओडीओपी योजना के जिले में प्रभारी और जिला उद्योग अधिकारी संजय सिंह कहते हैं कि सरकार से महिलाओं को टूल किट दिलवाई गई है. महिलाएं बड़ी संख्या में जुड़ी हैं. गांव-गांव काम होने लगा. महिलाओं को मास्टर ट्रेनर भी बनाया जा रहा. प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जाकर अब महिलाएं ट्रेनिंग भी दे रही हैं.

थारू महिलाओं को अपना पारंपरिक ज्ञान तो पहले से ही था, वो तमाम हैंडीक्राफ्ट पहले से बनाती थीं. लेकिन ओडीओपी योजना के तहत इन महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिकने वाली सामग्री कैसी होती है इसकी ट्रेनिंग दी गई. उनको कुछ नए डिज़ाइन बताए गए और कुछ सरल तरीके भी बताये गए. जिससे अब इन महिलाओं को काम करने में आसानी भी हो रही है. इस काम में उन्हें मजा भी आने लगा है. अब यह कम समय में ज्यादा काम करने लगी हैं और ज्यादा उत्पाद भी बनाने लगी हैं. जो हाथ पहले सिर्फ डलवे डलिया बनाते थे, अब लांड्री बास्केट बनाने लगे हैं. पूजा बास्केट, गिफ्ट बास्केट, डिजायनर लेडीज पर्स, टोपी जूट चप्पलें और भी न जाने क्या-क्या. इन उत्पादों की बड़े शहरों से डिमांड भी आने लगी है. देश में लगने वाले महोत्सवों में इन उत्पादों को अलग पहचान मिल रही है.

थारू क्राफ्ट एक तरफ जहां जिले को देश-विदेश तक पहचान दिला रहा है, वहीं महिलाओं को स्वावलंबी भी बना रहा है. सुनीता राणा कहती हैं कि हम एक पैसा भी नहीं कमा पाते थे, हमें पता ही नहीं था कि पैसा कमाना कैसे है. लेकिन ओडीओपी ने हमारी जिंदगी बदल दी है. अब हम मास्टर ट्रेनर बन गए हैं. हमने कभी सपने में नहीं सोचा था कि हम दूसरी महिलाओं को ट्रेनिंग देंगे. मेरे पति नहीं रहे बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा था, लेकिन ओडीओपी ने मेरी जिंदगी बदल दी.

अब हम हर रोज 500 रुपये का काम तो कर ही लेते हैं. ट्रेनिंग देने जाते तो अलग से पैसे मिलते हैं. हम अब अपने बच्चों की फीस खुद भर सकते हैं. अच्छे स्कूल में बच्चो को पढ़ा रहे हैं. खीरी जिले में थारु महिलाओं के जीवन को ओडीओपी बदल रहा है. दो हजार महिलाएं ओडीओपी से जुड़ काम कर रहीं हैं. वहीं एनआरएलएम के तहत बने समूहों से भी महिलाओं को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. आरती राना के मुताबिक प्रेमवती जैसी महिलाएं एक रुपया तक नहीं कमाना जानती थीं पर अब वो क्राफ्ट बना कर कमा रही हैं. परिवार को आर्थिक सहयोग भी कर रही हैं.

इसे भी पढ़ें- मां अन्नपूर्णा की शोभा यात्रा का राम के दरबार में हुआ भव्य स्वागत

खीरी के सीडीओ अनिल कुमार सिंह कहते हैं की जंगल के किनारे रहने वाली इन थारू महिलाओं के उत्थान के लिए ही सरकार ने थारू क्राफ्ट का चयन ओडीओपी योजना के तहत किया है. हमने इन महिलाओं को ओडीओपी योजना के तहत ट्रेनिंग भी दिलाई है. टूल किट भी दिलाई है, कुछ महिलाओं को सिलाई मशीनें और तमाम सामान दिलाया गया है. कोशिश यही है कि महिलाओं के हुनर को तराश कर देश विदेश तक इनकी कला को पहुंचाया जाए. जिससे इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति संभल सके और यह रोजगार पाकर समाज को भी अपना योगदान दे सकें. सरकार की भी यही कोशिश है और हमारी भी.

ओडीओपी योजना के तहत थारू क्राफ्ट को एक नई पहचान इन महिलाओं के हुनर के चलते मिल रही है. लेकिन अभी महिलाओं के पंखों की लंबी उड़ान बाकी है. इन महिलाओं को तलाश है एक बड़े बाजार की. जिसमें ये अपने उत्पादों की बिक्री आसानी से कर सकें.

लखीमपुर खीरीः जिले के दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं की जिंदगी अब योगी सरकार की ओडीओपी योजना में बदल रही है. महिलाएं थारू क्राफ्ट बनाकर न केवल देश-विदेश में अपना नाम कमा रही हैं, बल्कि अपने पैरों पर भी खड़ी हो रही हैं. वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोजेक्ट के तहत थारू ट्राइबल क्राफ्ट को यूपी सरकार ने खीरी जिले में गुड़ के साथ चुना था.

थारू महिला आरती राना कहती हैं कि हमारा और महिलाओं का जीवन बदल रहा है. अब महिलाओं को एक मिनट की फुर्सत नहीं है. करीब दो हजार महिलाएं ओडीओपी से जुड़कर रोजगार चला रहीं.

थारू क्राफ्ट बना रही आरती राना कुछ दिन पहले तक दुधवा टाइगर रिजर्व और जंगलों के आसपास उससे अपनी रोजी-रोटी चलाती थीं. जंगलों पर आश्रित थीं, लेकिन यूपी सरकार की ओडीओपी की योजना के तहत अब आरती को काम मिल गया है. आरती को एक मिनट की फुर्सत नहीं है. उनके सधे हुए हाथ अपने परंपरागत कला और संस्कृति से जुड़कर अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक अपनी पहचान बना रहे हैं. पारंपरिक उत्पादों को बनाकर आरती अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं. अपने जैसी तमाम महिलाओं को रोजगार से जोड़ भी रही हैं. आरती सिर्फ अकेली नहीं है. आरती जैसी करीब दो हजार महिलाओं को ओडीओपी योजना से जुड़ कर काम मिला है. कोई झूठ का काम करता है तो कोई मूँज का. महिलाओं के हाथों को काम मिला है तो उनका आत्मविस्वास भी बढ़ा है.

थारू जनजाति दुधवा टाइगर रिजर्व के आसपास बहुतायत में पाई जाती है, जनजातीय इन महिलाओं के पास पहले कोई काम नहीं था, पर इनका पारंपरिक ज्ञान इन को बखूबी आता था. अपनी कला और संस्कृति के प्रति थारू काफी जानकारी रखते थे. हस्तकला हो या दीवारों पर चित्रकारी थारू महिलाओं को खूब आती थी. रोज के कामों में डलवा बनाना उनका काम था. इस ग्रामीण और पारंपरिक कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने को योगी सरकार ने वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट(ODOP) योजना के तहत थारू क्राफ्ट को चुना. योजना के तहत ट्रेनिंग दिलाई गई.

ओडीओपी योजना के जिले में प्रभारी और जिला उद्योग अधिकारी संजय सिंह कहते हैं कि सरकार से महिलाओं को टूल किट दिलवाई गई है. महिलाएं बड़ी संख्या में जुड़ी हैं. गांव-गांव काम होने लगा. महिलाओं को मास्टर ट्रेनर भी बनाया जा रहा. प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जाकर अब महिलाएं ट्रेनिंग भी दे रही हैं.

थारू महिलाओं को अपना पारंपरिक ज्ञान तो पहले से ही था, वो तमाम हैंडीक्राफ्ट पहले से बनाती थीं. लेकिन ओडीओपी योजना के तहत इन महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिकने वाली सामग्री कैसी होती है इसकी ट्रेनिंग दी गई. उनको कुछ नए डिज़ाइन बताए गए और कुछ सरल तरीके भी बताये गए. जिससे अब इन महिलाओं को काम करने में आसानी भी हो रही है. इस काम में उन्हें मजा भी आने लगा है. अब यह कम समय में ज्यादा काम करने लगी हैं और ज्यादा उत्पाद भी बनाने लगी हैं. जो हाथ पहले सिर्फ डलवे डलिया बनाते थे, अब लांड्री बास्केट बनाने लगे हैं. पूजा बास्केट, गिफ्ट बास्केट, डिजायनर लेडीज पर्स, टोपी जूट चप्पलें और भी न जाने क्या-क्या. इन उत्पादों की बड़े शहरों से डिमांड भी आने लगी है. देश में लगने वाले महोत्सवों में इन उत्पादों को अलग पहचान मिल रही है.

थारू क्राफ्ट एक तरफ जहां जिले को देश-विदेश तक पहचान दिला रहा है, वहीं महिलाओं को स्वावलंबी भी बना रहा है. सुनीता राणा कहती हैं कि हम एक पैसा भी नहीं कमा पाते थे, हमें पता ही नहीं था कि पैसा कमाना कैसे है. लेकिन ओडीओपी ने हमारी जिंदगी बदल दी है. अब हम मास्टर ट्रेनर बन गए हैं. हमने कभी सपने में नहीं सोचा था कि हम दूसरी महिलाओं को ट्रेनिंग देंगे. मेरे पति नहीं रहे बच्चों को पालना मुश्किल हो रहा था, लेकिन ओडीओपी ने मेरी जिंदगी बदल दी.

अब हम हर रोज 500 रुपये का काम तो कर ही लेते हैं. ट्रेनिंग देने जाते तो अलग से पैसे मिलते हैं. हम अब अपने बच्चों की फीस खुद भर सकते हैं. अच्छे स्कूल में बच्चो को पढ़ा रहे हैं. खीरी जिले में थारु महिलाओं के जीवन को ओडीओपी बदल रहा है. दो हजार महिलाएं ओडीओपी से जुड़ काम कर रहीं हैं. वहीं एनआरएलएम के तहत बने समूहों से भी महिलाओं को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. आरती राना के मुताबिक प्रेमवती जैसी महिलाएं एक रुपया तक नहीं कमाना जानती थीं पर अब वो क्राफ्ट बना कर कमा रही हैं. परिवार को आर्थिक सहयोग भी कर रही हैं.

इसे भी पढ़ें- मां अन्नपूर्णा की शोभा यात्रा का राम के दरबार में हुआ भव्य स्वागत

खीरी के सीडीओ अनिल कुमार सिंह कहते हैं की जंगल के किनारे रहने वाली इन थारू महिलाओं के उत्थान के लिए ही सरकार ने थारू क्राफ्ट का चयन ओडीओपी योजना के तहत किया है. हमने इन महिलाओं को ओडीओपी योजना के तहत ट्रेनिंग भी दिलाई है. टूल किट भी दिलाई है, कुछ महिलाओं को सिलाई मशीनें और तमाम सामान दिलाया गया है. कोशिश यही है कि महिलाओं के हुनर को तराश कर देश विदेश तक इनकी कला को पहुंचाया जाए. जिससे इन महिलाओं की आर्थिक स्थिति संभल सके और यह रोजगार पाकर समाज को भी अपना योगदान दे सकें. सरकार की भी यही कोशिश है और हमारी भी.

ओडीओपी योजना के तहत थारू क्राफ्ट को एक नई पहचान इन महिलाओं के हुनर के चलते मिल रही है. लेकिन अभी महिलाओं के पंखों की लंबी उड़ान बाकी है. इन महिलाओं को तलाश है एक बड़े बाजार की. जिसमें ये अपने उत्पादों की बिक्री आसानी से कर सकें.

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