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कुशीनगर: स्वतत्रंता सेनानी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर - स्वतत्रंता सेनानी का गरीब परिवार

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी राधे कोइरी का स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अहम योगदान रहा था, लेकिन आज भी उनका परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं और उन्हें शासन की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिल रही है.

स्वतंत्रता सेनानी राधे कोइरी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर.
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Published : Aug 17, 2019, 12:48 PM IST

कुशीनगर: स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाले कुशीनगर जिले के स्व. राधे कोइरी को वैसे तो जिले में सभी जानते हैं, लेकिन आज भी उनका परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर है. परिवार को सरकारी सुविधा भी नहीं मिल रही है. स्थानीय प्रशासन से कई बार परिजनों ने रहने के लिये घर की गुहार लगाई. लेकिन अब तक प्रशासन ने उनकी कोई मदद नहीं की है. हाईकोर्ट के आदेशानुसार बेटे के साथ ही बेटी के बच्चे भी अब स्वतंत्रता सेनानी के मृतक आश्रित कोटे के हकदार हैं.

स्वतंत्रता सेनानी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर.

झोपड़ी में बसर कर रहा है स्वतंत्रता सेनानी का परिवार-
कुशीनगर जिले के मुख्यालय पडरौना से महज सात किमी. दूर सिधुआ के पास जंगल बनबीरपुर गांव है. वीर स्वतंत्रता संग्राम में सिपाही राधे कोइरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है. गरीबी के बावजूद राधे कोइरी के सिर पर अपने देश को आज़ाद कराने का जज्बा सवार रहता था. वह उस लड़ाई में अपना किरदार स्वयं तय किया करते थे. शायद यही कारण था कि उनके साथी उन्हें कप्तान कहकर बुलाया करते थे, लेकिन आज व्यवस्था का आलम यह है कि प्रशासन से किसी तरह की मदद न मिलने पर इस वीर सेनानी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर है.

ताम्र पत्र से सम्मानित स्व. राधे कोइरी-
सन् 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सिपाही राधे कोइरी को ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था. सम्मान प्राप्ति के बाद पेंशन मिली, लेकिन अन्य कोई सरकारी सुविधा परिवार को नहीं मिली.

अपनी पीड़ा जिले के सभी अधिकारियों को बता रखी है, एक दो बार आदेश भी हुआ लेकिन अन्य कोई सहायता तो दूर एक अदद आवास भी मुझे नहीं प्राप्त हुआ, परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा है.

- संजय कुशवाहा, आश्रित परिजन

पढ़ें-कुशीनगर: खाद्य जागरूकता के लिए जिले में पहुंची जांच वैन

कुशीनगर: स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाले कुशीनगर जिले के स्व. राधे कोइरी को वैसे तो जिले में सभी जानते हैं, लेकिन आज भी उनका परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर है. परिवार को सरकारी सुविधा भी नहीं मिल रही है. स्थानीय प्रशासन से कई बार परिजनों ने रहने के लिये घर की गुहार लगाई. लेकिन अब तक प्रशासन ने उनकी कोई मदद नहीं की है. हाईकोर्ट के आदेशानुसार बेटे के साथ ही बेटी के बच्चे भी अब स्वतंत्रता सेनानी के मृतक आश्रित कोटे के हकदार हैं.

स्वतंत्रता सेनानी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर.

झोपड़ी में बसर कर रहा है स्वतंत्रता सेनानी का परिवार-
कुशीनगर जिले के मुख्यालय पडरौना से महज सात किमी. दूर सिधुआ के पास जंगल बनबीरपुर गांव है. वीर स्वतंत्रता संग्राम में सिपाही राधे कोइरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है. गरीबी के बावजूद राधे कोइरी के सिर पर अपने देश को आज़ाद कराने का जज्बा सवार रहता था. वह उस लड़ाई में अपना किरदार स्वयं तय किया करते थे. शायद यही कारण था कि उनके साथी उन्हें कप्तान कहकर बुलाया करते थे, लेकिन आज व्यवस्था का आलम यह है कि प्रशासन से किसी तरह की मदद न मिलने पर इस वीर सेनानी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर है.

ताम्र पत्र से सम्मानित स्व. राधे कोइरी-
सन् 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने सिपाही राधे कोइरी को ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था. सम्मान प्राप्ति के बाद पेंशन मिली, लेकिन अन्य कोई सरकारी सुविधा परिवार को नहीं मिली.

अपनी पीड़ा जिले के सभी अधिकारियों को बता रखी है, एक दो बार आदेश भी हुआ लेकिन अन्य कोई सहायता तो दूर एक अदद आवास भी मुझे नहीं प्राप्त हुआ, परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा है.

- संजय कुशवाहा, आश्रित परिजन

पढ़ें-कुशीनगर: खाद्य जागरूकता के लिए जिले में पहुंची जांच वैन

Intro:स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका का निर्वहन करने वाले कुशीनगर जिले के राधे कोइरी को वैसे तो जिले में सभी जानते हैं, उनके साथी उनकी बहादुरी को देख उन्हें कप्तान कह कर पुकारा करते थे. सन 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने उन्हें ताम्र पत्र देकर सम्मानित भी किया था, सम्मान प्राप्ति के बाद पेंशन तो मिला लेकिन उन्हें अन्य कोई सरकारी सुविधा नही मिली और व्यवस्था का आलम यह है कि आज भी इस वीर सेनानी का परिवार झोपड़ी में रहने को मजबूर है


Body:vo कुशीनगर जिले के मुख्यालय पडरौना से महज सात किमी. दूर प्रसिद्ध सिधुआ स्थान के बगल में जंगल बनबीरपुर गाँव, अपने वीर स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही राधे कोइरी के नाम से ज्यादा जाना जाता है पुराने लोग बताते हैं कि गरीबी के बावजूद राधे कोइरी के सिर पर अपने देश को आज़ाद कराने का जज्बा सवार रहता था और वो उस लड़ाई में अपना किरदार स्वयं तय किया करते थे. शायद यही कारण था कि उनके साथी उन्हें कप्तान कहकर बुलाया करते थे स्वतंत्रता संग्राम के सिपाही स्व. राधे कोइरी के इकलौती बेटी के बेटे संजय कुशवाहा ने ईटीवी भारत को बताया कि मैंने अपनी पीड़ा जिले के सभी अधिकारियों को बता रखा है, एक दो बार आदेश भी हुआ लेकिन अन्य कोई सहायता तो दूर एक अदद आवास भी मुझे नही प्राप्त हुआ, परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा है बाइट - संजय कुशवाहा, आश्रित परिजन


Conclusion:vo सरकार की तमाम सुविधा रेवड़ियों की तरह हर रोज बाँटी जा रही है, योजनाओं में घुन की तरह माफिया अपनी मनमानी भी कर रहे हैं. विकास का ढिंढोरा हम जितना चाहे पीट लें लेकिन वास्तविक सत्य यही है कि अपने प्राण की बाजी लगाकर देश को आज़ाद कराने वाले एक सेनानी का परिवार आज भी एक अदद छत के लिए मारा मारा फिर रहा है End P2C सूर्य प्रकाश राय कुशीनगर 9984001450
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