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Muharram 2022: कौशांबी के कई गांवों से नहीं उठाई गई ताजिया, जानें क्या है पूरा मामला

कौशांबी जिले के कई गांवों में तजियादारों ने ताजिया नहीं उठाया. ताजियादारों का कहना है कि जब तक रास्ते मे पड़ने वाले तार को हटाया नहीं जायेगा, तब तक ताजिया नहीं उठाया जाएगा.

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Published : Aug 9, 2022, 6:43 PM IST

कौशांबीः डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के गृह जनपद कौशांबी में तार को हटाने की जिद के चलते एक दर्जन गांव के तजियादारों ने ताजिया नहीं उठाया. तजियादारों की मांग है कि जब तक रास्ते में पड़ने वाले तार को हटाया नहीं जायेगा, तब तक ताजिया नहीं उठाया जाएगा. वहीं, जिला प्रशासन तार न हटाने पर अड़ा हुआ है. इस पूरे मामले में तजियादार और प्रशासन मीडिया के सामने कुछ नहीं बोल रहा है.

बता दें, कि पूरा मामला चायल तहसील क्षेत्र के मूरतगंज ब्लॉक का है. यहां कई गांवों के ताजियदारों ने तार नहीं हटाए जाने पर 9वीं और 10वीं को ताजिया नहीं उठाई. ताजियदारों का कहना है कि जब तक तार नहीं हटाए जाते हैं, तब तक तजिया नहीं दफनाई जाएगी. वहीं, जिला प्रशासन भी जिद पर अड़ा है कि तार नहीं हटाई जाएगी. तजिया कमेटियों का कहना है कि हर बार जिला प्रशासन तारों को हटवा देता था, लेकिन इस बार जिला प्रशासन जिद पर अड़ा है कि तार नहीं हटेगा.

Muharram 2022
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ताजिया नहीं निकालने के विवाद के बाद पुलिस विभाग पूरी तरह से अलर्ट है, जिस गांव में तजिया नहीं उठाई गई है. वहां पर पुलिस फोर्स तैनात किया गया है. साथ ही जिला प्रशासन अमन चैन कमेटी का गठन कर मामला शांत कराने में जुटा हुआ है. ताजिया नहीं दफनाए जाने से मुसलमानों में जिला प्रशासन के प्रति काफी रोष है.

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पढ़ेंः बरेली में ताजिया जुलूस के दौरान विवाद, जमकर हुआ पथराव

जानकार बताते हैं कि, ताजिया विशुद्धरूप से हिंदुस्तान की परंपरा है. इसकी शुरुआत तैमूरलंग ने की थी. तैमूरलंग मोहर्रम के दिनों में इमाम हुसैन के रौजे की जयरत (दर्शन) करने जाया करता था, लेकिन उसको दिल की बीमारी हो गयी और हकीमों ने उसको ज्यादा चलने से मना कर दिया. इसके बाद तैमूरलंग को खुश करने के लिए उस समय के कारीगरों ने इमाम हुसैन के रौजे की नकल कर ताजिया बनाई, जिससे तैमूरलंग बहुत प्रभावित हुआ. धीरे-धीरे यहां परंपरा बन गयी, जो आज भी कायम है.

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कौशांबीः डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के गृह जनपद कौशांबी में तार को हटाने की जिद के चलते एक दर्जन गांव के तजियादारों ने ताजिया नहीं उठाया. तजियादारों की मांग है कि जब तक रास्ते में पड़ने वाले तार को हटाया नहीं जायेगा, तब तक ताजिया नहीं उठाया जाएगा. वहीं, जिला प्रशासन तार न हटाने पर अड़ा हुआ है. इस पूरे मामले में तजियादार और प्रशासन मीडिया के सामने कुछ नहीं बोल रहा है.

बता दें, कि पूरा मामला चायल तहसील क्षेत्र के मूरतगंज ब्लॉक का है. यहां कई गांवों के ताजियदारों ने तार नहीं हटाए जाने पर 9वीं और 10वीं को ताजिया नहीं उठाई. ताजियदारों का कहना है कि जब तक तार नहीं हटाए जाते हैं, तब तक तजिया नहीं दफनाई जाएगी. वहीं, जिला प्रशासन भी जिद पर अड़ा है कि तार नहीं हटाई जाएगी. तजिया कमेटियों का कहना है कि हर बार जिला प्रशासन तारों को हटवा देता था, लेकिन इस बार जिला प्रशासन जिद पर अड़ा है कि तार नहीं हटेगा.

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ताजिया नहीं निकालने के विवाद के बाद पुलिस विभाग पूरी तरह से अलर्ट है, जिस गांव में तजिया नहीं उठाई गई है. वहां पर पुलिस फोर्स तैनात किया गया है. साथ ही जिला प्रशासन अमन चैन कमेटी का गठन कर मामला शांत कराने में जुटा हुआ है. ताजिया नहीं दफनाए जाने से मुसलमानों में जिला प्रशासन के प्रति काफी रोष है.

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जानकार बताते हैं कि, ताजिया विशुद्धरूप से हिंदुस्तान की परंपरा है. इसकी शुरुआत तैमूरलंग ने की थी. तैमूरलंग मोहर्रम के दिनों में इमाम हुसैन के रौजे की जयरत (दर्शन) करने जाया करता था, लेकिन उसको दिल की बीमारी हो गयी और हकीमों ने उसको ज्यादा चलने से मना कर दिया. इसके बाद तैमूरलंग को खुश करने के लिए उस समय के कारीगरों ने इमाम हुसैन के रौजे की नकल कर ताजिया बनाई, जिससे तैमूरलंग बहुत प्रभावित हुआ. धीरे-धीरे यहां परंपरा बन गयी, जो आज भी कायम है.

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