कानपुर: देश और दुनिया के तमाम दिग्गज निवेशकों ने कुछ दिनों पहले ही सूबे की राजधानी लखनऊ में आकर ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट में हिस्सा लिया और सरकार के पास समिट से करीब 33 लाख करोड़ रुपये के निवेश संबंधी प्रस्ताव आ गए हैं. इन प्रस्तावों को अगर धरातल पर क्रियान्वित कर इंडस्ट्री लगाई गईं तो निश्चित तौर पर सूबे में आर्थिक नजरिए से विकास की गंगा बह सकेगी.
फेडरेशन आफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशन (फियो) के आंकड़े बताते हैं कि यूपी में निर्यातकों का कारोबार पिछले पांच सालों में दोगुना हो चुका है. पूरे विश्व में यूपी के उत्पादों की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इसी वजह से साल 2017-18 में जो कारोबार (सालाना) 88967 करोड़ रुपये था, वह 2021-22 में एक लाख 56 हजार 897 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है जबकि साल 2022-23 के वित्तीय वर्ष को पूरा होने में महज एक माह का समय बचा है और फियो के विशेषज्ञों का दावा है कि यूपी में निर्यातकों के कारोबार का यह आंकड़ा 1.75 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा.
फियो के सहायक निदेशक आलोक श्रीवास्तव ने बताया कि मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश कोस्टल राज्यों की श्रेणी में पांचवें पायदन पर है क्योंकि, यूपी को लैंड़ लॉक्ड स्टेट माना जाता है. यहां ड्राईपोर्ट की सुविधा न होने के चलते निर्यातकों को अन्य राज्यों की अपेक्षा लॉजिस्टिक कॉस्ट अधिक देनी होती है अगर, सरकार लॉजिस्टिक कॉस्ट कम कर दे तो निश्चित तौर पर निर्यातकों के लिए यह एक बेहतर कदम साबित होगा.
इस बारे में काउंसिल फार लेदर एक्सपोर्ट के पूर्व चेयरमैन मुख्तारुल अमीन ने कहा कि सरकार को लॉजिस्टिक कॉस्ट कम करने के लिए प्रयास करना होगा. अगर निर्यातकों को सहूलियत मिलेगी तो निश्चित तौर पर वह प्रदेश के विकास में अपना अधिक से अधिक योगदान दे सकेंगे.
वहीं, इस्पात कारोबारी योगेश अग्रवाल का कहना है कि सरकार अगर सी-पोर्ट तक निर्यातकों द्वारा दिए जाने वाले भाड़े को माफ कर दे या उसका खर्च उठा ले तो निर्यातकों के लिए कारोबार काफी हद तक आसान हो जाएगा.
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