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अब नालों के बगल बनाए जाएंगे एसटीपी, गंगा-यमुना में गिरेगा साफ पानी - कानपुर शोध नाला एसटीपी

आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर विनोद तारे (Vinod Tare, senior professor of IIT Kanpur) ने नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का तरीका निकाला है. सरकार ने भी उनकी इस कनीक को क्रियान्वित करने पर सहमति दी है. आइए जानिए क्या है योजना. गंगा

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 9, 2023, 8:00 PM IST

कानपुर : देश की तमाम नदियों सालों से प्रदूषण से जूझ रही हैं. इसका एक बड़ा कारण नालों और नालियों का पानी सीधे तौर पर नदियाों तक पहुंचना भी है. केंद्र, राज्य सरकारों के साथ तमाम संस्थाएं नदियों को प्रदूषणमुक्त करने में जुटी हुई हैं, करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन नतीजा सिफर रहा. इसका स्थायी हल निकालने के लिए आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर विनोद तारे ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) और इंवायरमेंटल टेक्नोलॉजी वेरीफिकेशन प्रॉसेस (ईटीवीपी) के विशेषज्ञों संग शोध किया. जो सामने आया उससे नदियों में प्रदूषण की समस्या के खत्म होने की उम्मीद जगी है.

प्रो. तारे एनएमसीजी के अफसरों के साथ चर्चा करते हुए.
प्रो. तारे एनएमसीजी के अफसरों के साथ चर्चा करते हुए.

नालों पर एसटीपी बनाने से हल होगी समस्या

विशेषज्ञों ने शोध के बाद पाया कि अगर नाले-नालियों के पास ही एसटीपी बना दिए जाएं और वहीं पर गंदे पानी को शोधित कर लिया जाए तो नदियों, तालाबों व नहरों को जो पानी मिलेगा वह साफ होगा. पुणे में यूके की तकनीक को नए सिरे से ईजाद कर प्रो. तारे ने नाले के ऊपर ही ढाई एमएलडी का एसटीपी बनवा दिया. इसके सार्थक परिणाम देखने को मिले. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस तकनीक को क्रियान्वित करने के लिए प्रो.तारे को हरी झंडी दे दी है.

पांच पैसा प्रति लीटर खर्च, मथुरा में सबसे पहले लगेगा एसटीपी

इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत से बातचीत में प्रो.विनोद तारे ने बताया कि जब हम किसी नाले के पास एसटीपी बनाएंगे तो इसकी तकनीक ऐसी है कि इसमें बिजली का खर्च न के बराबर होगा. साथ ही जब इसका संचालन होगा तो पांच पैसा प्रति लीटर की दर से हम पानी को शोधित कर सकते हैं. बताया कि उप्र में पहला एसटीपी मथुरा में लगाया जाएगा. वहां के जिला प्रशासन ने इस एसटीपी के लिए हामी भर दी है. जबकि कानपुर में ऐतिहासिक बिठूर (जहां से गंगा कानपुर में प्रवेश करती हैं) के समीप यह एसटीपी लगेगा.बताया कि इस कवायद में नीरी नागपुर के विशेषज्ञ भी उनकी मदद करेंगे.

तीन साल तक तकनीक पर किया काम

प्रो.विनोद तारे ने पुणे में यूके की जिस तकनीक को नए सिरे से क्रियान्वित कर एसटीपी लगाया है, उस काम में उन्हें तीन साल लगे. प्रो.तारे ने बताया कि इस काम में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के विशेषज्ञों की भी हमने मदद ली. अंतत: सफलता मिल गई और केंद्र सरकार ने हमारी तकनीक को क्रियान्वित करने के लिए अपनी अनुमति दे दी.

बंजर जमीन को खेती योग्य बनाने के लिए भी कर रहे काम

प्रोफेसर विनोद तारे जहां एक ओर देश की प्रमुख नदियों को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं, वहीं, उन्होंने कुछ समय पहले ही बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाने की दिशा में कवायद शुरू कर दी थी. उनके इन दोनों महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को भी सरकार ने मंजूरी दे रखी है. प्रो.विनोद तारे पिछले कई सालों से नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स से जुड़े हैं और वह आईआईटी कानपुर से जुड़कर सी-गंगा संस्था के भी संस्थापक के तौर पर काम कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें : बनारसी साड़ियों का रंग गंगा को बना रहा मैला, जहरीली होती जा रही नदी, 35 फैक्ट्रियों को नोटिस

यह भी पढ़ें : कांच-शीशे से बनेगी खाद, बंजर जमीन पर लहलहाएंगी फसलें: किसानों के बड़े काम का है IIT-BHU का ये शोध

कानपुर : देश की तमाम नदियों सालों से प्रदूषण से जूझ रही हैं. इसका एक बड़ा कारण नालों और नालियों का पानी सीधे तौर पर नदियाों तक पहुंचना भी है. केंद्र, राज्य सरकारों के साथ तमाम संस्थाएं नदियों को प्रदूषणमुक्त करने में जुटी हुई हैं, करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन नतीजा सिफर रहा. इसका स्थायी हल निकालने के लिए आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रोफेसर विनोद तारे ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) और इंवायरमेंटल टेक्नोलॉजी वेरीफिकेशन प्रॉसेस (ईटीवीपी) के विशेषज्ञों संग शोध किया. जो सामने आया उससे नदियों में प्रदूषण की समस्या के खत्म होने की उम्मीद जगी है.

प्रो. तारे एनएमसीजी के अफसरों के साथ चर्चा करते हुए.
प्रो. तारे एनएमसीजी के अफसरों के साथ चर्चा करते हुए.

नालों पर एसटीपी बनाने से हल होगी समस्या

विशेषज्ञों ने शोध के बाद पाया कि अगर नाले-नालियों के पास ही एसटीपी बना दिए जाएं और वहीं पर गंदे पानी को शोधित कर लिया जाए तो नदियों, तालाबों व नहरों को जो पानी मिलेगा वह साफ होगा. पुणे में यूके की तकनीक को नए सिरे से ईजाद कर प्रो. तारे ने नाले के ऊपर ही ढाई एमएलडी का एसटीपी बनवा दिया. इसके सार्थक परिणाम देखने को मिले. इसके बाद केंद्र सरकार ने इस तकनीक को क्रियान्वित करने के लिए प्रो.तारे को हरी झंडी दे दी है.

पांच पैसा प्रति लीटर खर्च, मथुरा में सबसे पहले लगेगा एसटीपी

इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत से बातचीत में प्रो.विनोद तारे ने बताया कि जब हम किसी नाले के पास एसटीपी बनाएंगे तो इसकी तकनीक ऐसी है कि इसमें बिजली का खर्च न के बराबर होगा. साथ ही जब इसका संचालन होगा तो पांच पैसा प्रति लीटर की दर से हम पानी को शोधित कर सकते हैं. बताया कि उप्र में पहला एसटीपी मथुरा में लगाया जाएगा. वहां के जिला प्रशासन ने इस एसटीपी के लिए हामी भर दी है. जबकि कानपुर में ऐतिहासिक बिठूर (जहां से गंगा कानपुर में प्रवेश करती हैं) के समीप यह एसटीपी लगेगा.बताया कि इस कवायद में नीरी नागपुर के विशेषज्ञ भी उनकी मदद करेंगे.

तीन साल तक तकनीक पर किया काम

प्रो.विनोद तारे ने पुणे में यूके की जिस तकनीक को नए सिरे से क्रियान्वित कर एसटीपी लगाया है, उस काम में उन्हें तीन साल लगे. प्रो.तारे ने बताया कि इस काम में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के विशेषज्ञों की भी हमने मदद ली. अंतत: सफलता मिल गई और केंद्र सरकार ने हमारी तकनीक को क्रियान्वित करने के लिए अपनी अनुमति दे दी.

बंजर जमीन को खेती योग्य बनाने के लिए भी कर रहे काम

प्रोफेसर विनोद तारे जहां एक ओर देश की प्रमुख नदियों को संरक्षित करने का काम कर रहे हैं, वहीं, उन्होंने कुछ समय पहले ही बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाने की दिशा में कवायद शुरू कर दी थी. उनके इन दोनों महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को भी सरकार ने मंजूरी दे रखी है. प्रो.विनोद तारे पिछले कई सालों से नमामि गंगे प्रोजेक्ट्स से जुड़े हैं और वह आईआईटी कानपुर से जुड़कर सी-गंगा संस्था के भी संस्थापक के तौर पर काम कर रहे हैं.

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