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यहां होती है रावण की पूजा, सिर्फ दशहरे पर खुलते हैं मंदिर के कपाट

दशहरे पर जब लोग रावण का पुतला जलाते (burning the effigy of Ravana) हैं, कानपुर में एक मंदिर ऐसा भी है जिसके कपाट साल में एक बार सिर्फ दशहरे पर ही खुलते हैं. यहां रावण की पूजा की जाती है (Ravana is worshiped). पूजन के बाद मंदिर फिर से साल भर के लिए बंद कर दिया जाता है. क्या है इस मंदिर का इतिहास और क्यों होती है रावण की पूजा, आइए जानिए...

कानपुर
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 23, 2023, 7:54 PM IST

कानपुर में दशानन का मंदिर. साल में सिर्फ एक बार दशहरे पर इसके कपाट खुलते हैं.

कानपुर: दशहरे के दिन रावण वध की बेला में जब लोग अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व धूमधाम से मना रहे होंगे, ठीक उसी वक्त कानपुर के एक मंदिर में दशानन की पूजा आरती की जा रही होगी. देश भर से लोग यहां आते हैं और दूध, दही, शहद से अभिषेक के बाद तोरिया के फूल रावण को चढ़ाते हैं. इस मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं.

डे़ढ सौ साल पुराना है दशानन का मंदिर : पूरे देश में मंगलवार को दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा. रावण के पुतले का दहन देखने के लिए लोग शाम से ही घरों से निकलने लगते हैं. उन आयोजन स्थलों पर भारी भीड़ जुट जाती है जहां रावण का पुतला जलाया जाता है. लेकिन इन सबके बीच कानपुर स्थित शिवाला में दशानन का एक मंदिर है, जो दशहरे पर ही खुलता है. देश भर से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं. पूरे साल भर में एक बार ही इस मंदिर के कपाट खुलते हैं. रावण के पुतला दहन से पहले रात आठ बजे कपाट अगले साल तक के लिए दोबारा से बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर के संरक्षक आशू ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है.

विधि-विधान से होती है रावण की पूजा : दशहरे के दिन सुबह पांच बजे से मंदिर में रावण की पूजा पूरे विधि-विधान से शुरू हो जाती है. मंदिर में सुबह जहां रावण की दस सिर वाली प्रतिमा का दूध, दही और शहद से अभिषेक होता है, वहीं प्रतिमा के समक्ष तोरिया के फूल चढ़ाना बेहद शुभ माना जाता है. क्षेत्रीय निवासी संदीप वर्मा कहते हैं, हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का इतिहास हमें बताया. पूरे देश में केवल यह एक ऐसा मंदिर है जो दशहरे वाले दिन ही खुलता है. बाकी पूरे वर्ष भर इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं.

पूरी होती है हर मुराद: सिविल लाइंस निवासी और भाजपा नेता मोहित पांडेय ने बताया कि वह पिछले कई सालों से इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. कहा, रावण के इस मंदिर में मान्यता है कि यहां भक्तों की मुराद पूरी होती है. दरअसल, क्षेत्रीय लोग बताते हैं कि भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. अगले साल मनोकामना पूरी होने पर फिर से यहां आते हैं.

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कानपुर में दशानन का मंदिर. साल में सिर्फ एक बार दशहरे पर इसके कपाट खुलते हैं.

कानपुर: दशहरे के दिन रावण वध की बेला में जब लोग अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व धूमधाम से मना रहे होंगे, ठीक उसी वक्त कानपुर के एक मंदिर में दशानन की पूजा आरती की जा रही होगी. देश भर से लोग यहां आते हैं और दूध, दही, शहद से अभिषेक के बाद तोरिया के फूल रावण को चढ़ाते हैं. इस मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं.

डे़ढ सौ साल पुराना है दशानन का मंदिर : पूरे देश में मंगलवार को दशहरा धूमधाम से मनाया जाएगा. रावण के पुतले का दहन देखने के लिए लोग शाम से ही घरों से निकलने लगते हैं. उन आयोजन स्थलों पर भारी भीड़ जुट जाती है जहां रावण का पुतला जलाया जाता है. लेकिन इन सबके बीच कानपुर स्थित शिवाला में दशानन का एक मंदिर है, जो दशहरे पर ही खुलता है. देश भर से लोग इस मंदिर के दर्शन करने आते हैं. पूरे साल भर में एक बार ही इस मंदिर के कपाट खुलते हैं. रावण के पुतला दहन से पहले रात आठ बजे कपाट अगले साल तक के लिए दोबारा से बंद कर दिए जाते हैं. मंदिर के संरक्षक आशू ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है.

विधि-विधान से होती है रावण की पूजा : दशहरे के दिन सुबह पांच बजे से मंदिर में रावण की पूजा पूरे विधि-विधान से शुरू हो जाती है. मंदिर में सुबह जहां रावण की दस सिर वाली प्रतिमा का दूध, दही और शहद से अभिषेक होता है, वहीं प्रतिमा के समक्ष तोरिया के फूल चढ़ाना बेहद शुभ माना जाता है. क्षेत्रीय निवासी संदीप वर्मा कहते हैं, हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का इतिहास हमें बताया. पूरे देश में केवल यह एक ऐसा मंदिर है जो दशहरे वाले दिन ही खुलता है. बाकी पूरे वर्ष भर इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं.

पूरी होती है हर मुराद: सिविल लाइंस निवासी और भाजपा नेता मोहित पांडेय ने बताया कि वह पिछले कई सालों से इस मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. कहा, रावण के इस मंदिर में मान्यता है कि यहां भक्तों की मुराद पूरी होती है. दरअसल, क्षेत्रीय लोग बताते हैं कि भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं. अगले साल मनोकामना पूरी होने पर फिर से यहां आते हैं.

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