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जलीय जीवों के लिए मुसीबत बन रहा सिकुड़ता गंगा का दायरा, प्रतिवर्ष 10 फीसद जीवों की हो रही मौत

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Published : Jun 16, 2023, 7:45 PM IST

कानपुर में हर साल गर्मी की तीव्रता बढ़ने से गंगा नदी सूखी नजर आने लगती है. पिछले साल के मुकाबले इस साल जून माह में गंगा नदी का पानी सूखता जा रहा है. इस स्थिती ने विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है.

कानपुर में गंगा नदी
कानपुर में गंगा नदी
गंगा नदी पर स्पेशल रिपोर्ट.

कानपुर: गर्मी का सीजन शुरू होते ही गंगा नदी की जलधारा आधी हो जाती है. कानपुर में गंगा नदी का यह स्वरूप जल प्रेमियों के लिए कष्टमय होता है. साथ ही जलीय जीवों के लिए भी कष्टकारी हो जाता है. जलीय जीवों के लिए एक तरह से जीवन लेने वाला समय आ जाता है. इस बार भीषण गर्मी में गंगा की जलधारा में अधिक कमी हो गई है. यहां गंगा नदी के जल स्तर में कमी की वजह से शहर में पेयजल की आपूर्ति व्यवस्था पर असर पड़ा है.

कानपुर में गंगा नदी
कानपुर में गंगा नदी का आंकड़ा.

गर्मी में मरते हैं अधिक जलीय जीव: कानपुर में गंगा नदी का सिकुड़ता यह दायरा जलीय जीवों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. गंगा नदी की जलधारा में कमी होने से विशेषज्ञ भी हैरान हैं. कानपुर वन विभाग के अधिकारियों की रिपोर्ट बताती है कि गर्मी आते ही हर साल औसतन 10 फीसद जलीय जीव मर जाते हैं. इनमें सबसे अधिक मछलियां शामिल हैं. लेकिन तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने के चलते गंगा में जलीय जीवों का रह पाना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि आधे क्षेत्र में गर्म रेतीली मिट्टी और आधे भाग में सिकुड़ती गंगा नदी की जलधारा होती है.



विशेषज्ञों की राय: कानपुर जू के डॉक्टर अनुराग सिंह ने बताया कि जलीय जीवों के लिए पानी में घुलित ऑक्सीजन की मत्रा सबसे अधिक जरूरी है. जिसे हम सामान्य भाषा में डिसॉल्व ऑक्सीजन कहते हैं. इसके अलावा पानी का तापमान और पानी की गुणवत्ता भी जरूरी है. यह तीनों मानक जलीय जीवों के ठहरने और जीवित रहने के लिए जरूरी होते हैं. लेकिन जब गंगा में पानी घट जाता है तो यह तीनों ही प्रभावित होते हैं. जब पानी का बहाव अच्छा और तेज होता है तो जलीय जीवों को कोई दिक्कत नहीं होती है. लेकिन जब पानी की मात्रा कम होती है तो घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है. साथ ही पीएच का स्तर बढ़ने से तापमान अनियंत्रित हो जाता है. ऐसे में जलीव जीव सांस नहीं ले पाते और दम तोड़ने लगते हैं.



भारतीय वन्य जीव संस्थान के सदस्यों ने किया दौराः शहर में बिल्हौर से लेकर जाजमऊ तक गंगा का प्रवाह आमतौर पर मध्य स्तर का रहता है. बिल्हौर से बिठूर तक गंगा नदी के पानी का स्तर ठीक है. हालांकि बिठूर से लेकर गंगा बैराज और फिर आगे जाजमऊ तक गंगा का पानी काफी कम हो गया है. यहां हर 2 साल में भारतीय वन्यजीव संस्थान के सदस्य गंगा का दौरा करते हैं. जिसमें वह जलीय जीव-जंतु का आंकड़ा इकट्ठा करते हैं.

गंगा नदी में हैं डॉल्फिन, घड़ियाल और अन्य जीवः साल 2021 के आंकड़े के अनुसार भारतीय वन्यजीव संस्थान के सदस्यों को गंगा बैराज से लेकर बक्सर (उन्नाव) तक कुल 30 डॉल्फिन देखी थी. इसी तरह बिजनौर से कानपुर तक के रेंज में बड़ी संख्या में कछुए, घड़ियाल, मछलियां और अन्य जलीय जंतु दिखाई दिए थे. इसके अलावा कछुआ, मगरमच्छ, पानी वाला सांप, गौंच, बछुआ, चिलवा, रीठा, पढ़िन, टैंगन, चाइना, रोहू आदि सभी मछलियां भी मौजूद हैं. वहीं आईआईटी की रिपोर्ट के अनुसार हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक गंगा नदी में मछलियों की 295 प्रजातियां मौजूद हैं.


यह भी पढे़ं- गर्मी से बेहाल जनता को राहत देने एसी से बाहर निकले यूपी के ऊर्जा मंत्री

गंगा नदी पर स्पेशल रिपोर्ट.

कानपुर: गर्मी का सीजन शुरू होते ही गंगा नदी की जलधारा आधी हो जाती है. कानपुर में गंगा नदी का यह स्वरूप जल प्रेमियों के लिए कष्टमय होता है. साथ ही जलीय जीवों के लिए भी कष्टकारी हो जाता है. जलीय जीवों के लिए एक तरह से जीवन लेने वाला समय आ जाता है. इस बार भीषण गर्मी में गंगा की जलधारा में अधिक कमी हो गई है. यहां गंगा नदी के जल स्तर में कमी की वजह से शहर में पेयजल की आपूर्ति व्यवस्था पर असर पड़ा है.

कानपुर में गंगा नदी
कानपुर में गंगा नदी का आंकड़ा.

गर्मी में मरते हैं अधिक जलीय जीव: कानपुर में गंगा नदी का सिकुड़ता यह दायरा जलीय जीवों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. गंगा नदी की जलधारा में कमी होने से विशेषज्ञ भी हैरान हैं. कानपुर वन विभाग के अधिकारियों की रिपोर्ट बताती है कि गर्मी आते ही हर साल औसतन 10 फीसद जलीय जीव मर जाते हैं. इनमें सबसे अधिक मछलियां शामिल हैं. लेकिन तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने के चलते गंगा में जलीय जीवों का रह पाना मुश्किल हो जाता है. क्योंकि आधे क्षेत्र में गर्म रेतीली मिट्टी और आधे भाग में सिकुड़ती गंगा नदी की जलधारा होती है.



विशेषज्ञों की राय: कानपुर जू के डॉक्टर अनुराग सिंह ने बताया कि जलीय जीवों के लिए पानी में घुलित ऑक्सीजन की मत्रा सबसे अधिक जरूरी है. जिसे हम सामान्य भाषा में डिसॉल्व ऑक्सीजन कहते हैं. इसके अलावा पानी का तापमान और पानी की गुणवत्ता भी जरूरी है. यह तीनों मानक जलीय जीवों के ठहरने और जीवित रहने के लिए जरूरी होते हैं. लेकिन जब गंगा में पानी घट जाता है तो यह तीनों ही प्रभावित होते हैं. जब पानी का बहाव अच्छा और तेज होता है तो जलीय जीवों को कोई दिक्कत नहीं होती है. लेकिन जब पानी की मात्रा कम होती है तो घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घट जाती है. साथ ही पीएच का स्तर बढ़ने से तापमान अनियंत्रित हो जाता है. ऐसे में जलीव जीव सांस नहीं ले पाते और दम तोड़ने लगते हैं.



भारतीय वन्य जीव संस्थान के सदस्यों ने किया दौराः शहर में बिल्हौर से लेकर जाजमऊ तक गंगा का प्रवाह आमतौर पर मध्य स्तर का रहता है. बिल्हौर से बिठूर तक गंगा नदी के पानी का स्तर ठीक है. हालांकि बिठूर से लेकर गंगा बैराज और फिर आगे जाजमऊ तक गंगा का पानी काफी कम हो गया है. यहां हर 2 साल में भारतीय वन्यजीव संस्थान के सदस्य गंगा का दौरा करते हैं. जिसमें वह जलीय जीव-जंतु का आंकड़ा इकट्ठा करते हैं.

गंगा नदी में हैं डॉल्फिन, घड़ियाल और अन्य जीवः साल 2021 के आंकड़े के अनुसार भारतीय वन्यजीव संस्थान के सदस्यों को गंगा बैराज से लेकर बक्सर (उन्नाव) तक कुल 30 डॉल्फिन देखी थी. इसी तरह बिजनौर से कानपुर तक के रेंज में बड़ी संख्या में कछुए, घड़ियाल, मछलियां और अन्य जलीय जंतु दिखाई दिए थे. इसके अलावा कछुआ, मगरमच्छ, पानी वाला सांप, गौंच, बछुआ, चिलवा, रीठा, पढ़िन, टैंगन, चाइना, रोहू आदि सभी मछलियां भी मौजूद हैं. वहीं आईआईटी की रिपोर्ट के अनुसार हिमालय से बंगाल की खाड़ी तक गंगा नदी में मछलियों की 295 प्रजातियां मौजूद हैं.


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