कानपुर: 19 मार्च को पूरे देश में रंगों का उत्सव होली मनाई जाएगी. कानपुर एक ऐसा शहर है, जहां होली के दिन तो होली खेली ही जाती है, लेकिन यहां होली के बाद 6 से 7 दिन बाद अनुराधा नक्षत्र के दिन एक और होली होती है. इस दिन यहां रंगों से भरा ठेला निकलता है. इस दौरान भारी संख्या में लोग जुटकर होली खेलते हैं. खास बात यह कि ठेला अंग्रेजों के समय यानि साल 1942 से लगातार निकल रहा है और यह आजादी की क्रांति से जुड़ा हुआ है. इसे गंगा मेला का नाम दिया गया है. कानपुर के इस गंगा मेला की गूंज पूरे देश-दुनिया में होती है.
कानपुर हटिया होली महोत्सव कमेटी के संयोजक ज्ञानेंद्र विश्नोई ने इस मेले के इतिहास की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सन 42 में कानपुर के हटिया स्थित रज्जनबाबू पार्क में कुछ युवक होली खेलते हुए हम आजाद हैं, हिंदुस्तान आजाद है के नारे लगा रहे थे. इस दौरान नजदीक से कुछ अंग्रेजों की फौज निकली. नारे सुनकर नाराज अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
अंग्रेजों की इस हरकत से नाराज शहर के लोगों ने लगातार होली खेलना जारी रखा. करीब चार दिनों बाद जब ब्रिटेन की सरकार ने यह फैसला सुनाया कि किसी के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं हो सकता, तब जाकर उन नवयुवकों को जेल से रिहा किया गया. हिंदू मान्यता के अनुसार उनकी रिहाई के दिन अनुराधा नक्षत्र था. जैसे ही सभी नवयुवक आए तो शहरविसियों ने एक जुलूस की शक्ल में हटिया पार्क और पूरे रास्तेभर होली खेली. तब से लेकर आज तक गंगा मेला का पर्व होली के बाद अनुराधा नक्षत्र पर मनाया जाने लगा. उन्होंने बताया कि 80 साल हो गए, अब 81वें वर्ष में गंगा मेला का पर्व पूरे उल्लास के साथ मनाया जाएगा, सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं.
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संयोजक ज्ञानेंद्र विश्नोई ने बताया कि गंगा मेला पर हटिया स्थित पार्क में सुबह तिरंगा झंडा फहराया जाता है. यहां अंग्रेजों के समय से झंडा लगा है. झंडा पहराने के बाद रंगों का ठेला निकलता है, जो सात किलोमीटर घूमकर वापस पार्क पर खत्म होता है. शाम को पार्क में बाल मेला लगता है, जिसमें बच्चे हंसी-खुशी शामिल होते हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी के समय लोगों ने गंगा मेला पर्व को सावधानियों के साथ मनाया था. लेकिन इस बार बड़ी धूम-धाम से गंगा मेला का त्योहार मनाया जाएगा.
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