ETV Bharat / state

प्री मेच्योर डिलीवरी की संख्या में इजाफा, कंगारू मदर केयर यूनिट में हो रही नवजातों की विशेष देखभाल - PREMATURE DELIVERY

सरकारी केंद्रों पर प्री मेच्योर डिलीवरीज की संख्या में इजाफा हुआ है. प्रतिमाह 300 से अधिक बच्चों में 50 से अधिक प्री मेच्योर हो रहे हैं.

ETV Bharat
प्री मेच्योर डिलीवरी मामलों में इजाफा (pic credit; ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 18, 2025, 8:19 PM IST

गोरखपुर: शहर हो जिला, स्वास्थ्य विभाग के सरकारी केंद्रों पर प्री मेच्योर डिलीवरी के मामलों में इजाफा हुआ है. करीब 25 प्रतिशत डिलीवरी प्री मेच्योर हो रही हैं. इससे बच्चा और उसकी मां दोनों को बचाने में स्वास्थ्यकर्मियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. ऐसे बच्चों की देखभाल बहुत ही जिम्मेदारी पूर्ण हो जाती है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ो में यह पाया गया है कि 35 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाओ में ऐसी समस्या ज्यादा दिख रही है. इसके पीछे पोषण की कमी के अलावा, यूट्रस का असामान्य आकर और संक्रमण समेत कई कारण हैं. हाइपरटेंशन और शुगर भी इसके लक्षणों में शामिल हैं. जन्म लेने वाले बच्चों को कंगारू मदर केयर यूनिट में मां अपने छाती से चिपकाकर रखती है, जिससे उसके वजन में धीरे धीरे इजाफा होता है.


खजनी और गोला तहसील से आईं दो महिलाओं को प्री मेच्योर डिलीवरी हुई है. किरन मौर्या को रात में डिलीवरी पेन शुरू हुआ. परिजन उसे एक निजी अस्पताल लेकर गये जहां डॉक्टर ने जांच की तो पता चला कि बच्चा 7 महीने का है. किरन को लेबर पेन अधिक हो रहा था. फिर उसे जिला महिला अस्पताल लेकर परिजन पहुंचे. यहां के डॉक्टर और स्टाफ ने महिला की हालत को क्रिटिकल पाया. फिर भी हिम्मत जुटाकर सात माह के बच्चे की नार्मल डिलीवरी करा दी. लेकिन बच्चे का वजन एक किलो था. बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने की वजह से डॉक्टर ने उसे SNCU में भर्ती किया. फिर जब वह धीरे-धीरे ठीक होने लगा तो उसको मां के साथ कंगारू मदर केयर यूनिट में शिफ्ट किया गया. जहां वह स्वास्थ्य लाभ ले रहा है.

बाल रोग विशेषज्ञ अजय देवकुरियाल ने दी जानकारी (video credit; ETV Bharat)

कंगारू मदर केयर यूनिट से हो रही देखभाल:
इनकी देखभाल करने वाली हेड नर्स संगीता मिश्रा कहती है कि इन बच्चों को 24 घंटे में 20 घंटे मां की छाती से चिपकाकर रखना होता है. इससे उनकी सेहत को लाभ मिलता है. वजन धीरे-धीरे बढ़ने लगता है. चार-पांच दिन के ऑब्जर्वेशन में जब वजन बढ़ाने की प्रक्रिया दिखती है तो इन्हें डिस्चार्ज किया जाता है. अन्यथा इन्हें एक लंबे समय तक ट्रीटमेंट दिया जाता है. ऐसे तमाम केस हैं जिसमें जन्म लेने वाले प्रीमेच्योर बच्चों को बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग संस्थान में भर्ती किया गया है. बच्चों की संख्या काफी है. जहां पर डॉक्टर उन बच्चों का इलाज कर उनकी जान बचाने में जुटे रहते हैं.

इसे भी पढ़ें - दो महिला पुलिसकर्मी बनीं डॉक्टर; दर्द से तड़प रही गर्भवती का थाने के बाहर कराई डिलीवरी - AGRA GOOD NEWS

जिला अस्पताल के बाल रोग चिकित्सक डॉ अजय देवकुरियाल कहते हैं कि प्रीमेच्योर डिलीवरी के कई कारण हैं. डिलीवरी से पूर्व ही महिलाओं का वाटर डिस्चार्ज प्रारंभ हो जाता है. कई अन्य समस्याएं सामने दिखती हैं. जिसकी वजह से प्रीमेच्योर डिलीवरी कराई जाती है. इसमें रिस्क होता है. फिर भी हम ऐसी डिलीवरी करने में सफल हो रहे हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी से पीड़ित किरन मौर्य कहती है कि जब वह अस्पताल पहुंची तो उसकी हालत ठीक नहीं थी. लेकिन डॉक्टरों ने ऐसी कंडीशन में भी उसकी नॉर्मल डिलीवरी कराकर उसके न सिर्फ बच्चे की जान बचाई बल्कि, उसे भी इससे आराम पहुंचा है. वह और उसका बच्चा दोनों सुरक्षित है, और स्वस्थ जीवन के लिए जो जरूरी उपाय है उसको अपना रहे हैं.


ऐसे कई मामले हैं जो कंगारू मदर केयर सेंटर में भर्ती हैं और जिला अस्पताल के चिकित्सक और स्टाफ स्वास्थ्य सुविधा देने में जुटे हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण पता नहीं होता लेकिन विशेषज्ञ इसे हाइपरटेंशन, बच्चेदानी का मुंह सामान्य न होना, शुगर, ब्लड की कमी, खान-पान आदि की वजह मानते हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी में बच्चे का विकास सही से नहीं हो पाता. इस कारण उसे एसएनसीयू में भर्ती करना पड़ता है. गोरखपुर में मांताओं में कुपोषण से लेकर एनीमिया बड़ी समस्या है. मेडिकल कॉलेज और निजी अस्पताल में लगभग 25% प्री मेच्योर डिलीवरी हो रही है. यहां करीब 120 से अधिक बच्चों का इलाज चल रहा है. इनमें डॉक्टर ज्यादातर बच्चों की जान बचा ले रहे हैं.


डॉ. अजय ने बताया है कि जिन महिलाओं का प्रसव 30वेंं हफ्ते से पहले हो जाता है, उन्हें प्रसव के दौरान और भविष्य में कुछ जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. जैसे स्तनपान करवाने में समस्या और कमजोरी की वजह से शिशुओं को उठाने में समस्या, मधुमेह, मिर्गी, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, अवसाद और तनाव, कम नींद आना, ध्यान लगाने में कठिनाई होती है. इसके अलावा 18 वर्ष के तत्काल बाद या 35 वर्ष से ज्यादा उम्र के बाद की गर्भावस्था इसका प्रमुख कारण बनता है. पिछली गर्भावस्था में प्रीमेच्योर डिलीवरी का होना, गर्भ में जुड़वा और उससे ज्यादा बच्चों का होना, पोषक तत्वों की कमी समेत अन्य संक्रमण भी इसका कारण है.

प्रीमेच्योर नवजात के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते इसकी वजह से उन्हें कई बार ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. वहीं उन्हें पीलिया और कई तरह के संक्रमण होने का डर बना रहता है. ऐसे में उन्हें NICU केयर की जरूरत पड़ती है. कई बार प्रीमेच्योर डिलीवरी कराने में डॉक्टर मां को पहले से ही दवाई देना शुरू कर देता है जिससे बच्चे का लंग्स अच्छे से विकसित हो सकें.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग संस्थान के अध्यक्ष डॉ भूपेंद्र शर्मा कहते हैं कि प्रीमेच्योर डिलीवरीज की संख्या बढ़ी है. मगर ज्यादा बच्चों की जान बचाई जा रही है. प्रीमेच्योर डिलीवरी के बाद बच्चे को सांस लेने में दिक्कत, इन्फेक्शन आदि प्रॉब्लम होती है. जिसे इलाज के जरिए ठीक किया जाता है. बाल रोग संस्थान में हाईटेक सुविधा होने की वजह से ज्यादातर बच्चे ठीक हो रहे हैं. जनवरी 2025 में 299 बच्चों ने जन्म लिया जिन्हे NICU में भर्ती करना पड़ा और सब ठीक हुए.

ऐसा ही आंकड़ा हर माह के दौरान देखा जाता है. वहीं महिला जिला अस्पताल के आंकड़े की बात करें तो जनवरी 2025 में कुल 50 बच्चे प्री मेच्योर पैदा हुए. जिनका वजन एक किलो के पास था. फरवरी 2025 में 17 तारीख तक कुल 26 बच्चे प्री मेच्योर पैदा हुए. जिनको बेहतर इलाज दिया जा रहा है. इन आंकड़ों के आधार पर देखा जाये, तो प्रतिमाह महिला जिला अस्पताल में 300 से अधिक बच्चे पैदा होते हैं. जिनमे 50 से अधिक प्री मेच्योर हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें - अस्पताल के बाहर BJP नेता ने दिया धरना, मीरगंज सीएचसी पर डिलीवरी में रिश्वत लेने का आरोप - bareilly bjp leaders strike - BAREILLY BJP LEADERS STRIKE

गोरखपुर: शहर हो जिला, स्वास्थ्य विभाग के सरकारी केंद्रों पर प्री मेच्योर डिलीवरी के मामलों में इजाफा हुआ है. करीब 25 प्रतिशत डिलीवरी प्री मेच्योर हो रही हैं. इससे बच्चा और उसकी मां दोनों को बचाने में स्वास्थ्यकर्मियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है. ऐसे बच्चों की देखभाल बहुत ही जिम्मेदारी पूर्ण हो जाती है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ो में यह पाया गया है कि 35 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाओ में ऐसी समस्या ज्यादा दिख रही है. इसके पीछे पोषण की कमी के अलावा, यूट्रस का असामान्य आकर और संक्रमण समेत कई कारण हैं. हाइपरटेंशन और शुगर भी इसके लक्षणों में शामिल हैं. जन्म लेने वाले बच्चों को कंगारू मदर केयर यूनिट में मां अपने छाती से चिपकाकर रखती है, जिससे उसके वजन में धीरे धीरे इजाफा होता है.


खजनी और गोला तहसील से आईं दो महिलाओं को प्री मेच्योर डिलीवरी हुई है. किरन मौर्या को रात में डिलीवरी पेन शुरू हुआ. परिजन उसे एक निजी अस्पताल लेकर गये जहां डॉक्टर ने जांच की तो पता चला कि बच्चा 7 महीने का है. किरन को लेबर पेन अधिक हो रहा था. फिर उसे जिला महिला अस्पताल लेकर परिजन पहुंचे. यहां के डॉक्टर और स्टाफ ने महिला की हालत को क्रिटिकल पाया. फिर भी हिम्मत जुटाकर सात माह के बच्चे की नार्मल डिलीवरी करा दी. लेकिन बच्चे का वजन एक किलो था. बच्चे को सांस लेने में दिक्कत होने की वजह से डॉक्टर ने उसे SNCU में भर्ती किया. फिर जब वह धीरे-धीरे ठीक होने लगा तो उसको मां के साथ कंगारू मदर केयर यूनिट में शिफ्ट किया गया. जहां वह स्वास्थ्य लाभ ले रहा है.

बाल रोग विशेषज्ञ अजय देवकुरियाल ने दी जानकारी (video credit; ETV Bharat)

कंगारू मदर केयर यूनिट से हो रही देखभाल:
इनकी देखभाल करने वाली हेड नर्स संगीता मिश्रा कहती है कि इन बच्चों को 24 घंटे में 20 घंटे मां की छाती से चिपकाकर रखना होता है. इससे उनकी सेहत को लाभ मिलता है. वजन धीरे-धीरे बढ़ने लगता है. चार-पांच दिन के ऑब्जर्वेशन में जब वजन बढ़ाने की प्रक्रिया दिखती है तो इन्हें डिस्चार्ज किया जाता है. अन्यथा इन्हें एक लंबे समय तक ट्रीटमेंट दिया जाता है. ऐसे तमाम केस हैं जिसमें जन्म लेने वाले प्रीमेच्योर बच्चों को बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग संस्थान में भर्ती किया गया है. बच्चों की संख्या काफी है. जहां पर डॉक्टर उन बच्चों का इलाज कर उनकी जान बचाने में जुटे रहते हैं.

इसे भी पढ़ें - दो महिला पुलिसकर्मी बनीं डॉक्टर; दर्द से तड़प रही गर्भवती का थाने के बाहर कराई डिलीवरी - AGRA GOOD NEWS

जिला अस्पताल के बाल रोग चिकित्सक डॉ अजय देवकुरियाल कहते हैं कि प्रीमेच्योर डिलीवरी के कई कारण हैं. डिलीवरी से पूर्व ही महिलाओं का वाटर डिस्चार्ज प्रारंभ हो जाता है. कई अन्य समस्याएं सामने दिखती हैं. जिसकी वजह से प्रीमेच्योर डिलीवरी कराई जाती है. इसमें रिस्क होता है. फिर भी हम ऐसी डिलीवरी करने में सफल हो रहे हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी से पीड़ित किरन मौर्य कहती है कि जब वह अस्पताल पहुंची तो उसकी हालत ठीक नहीं थी. लेकिन डॉक्टरों ने ऐसी कंडीशन में भी उसकी नॉर्मल डिलीवरी कराकर उसके न सिर्फ बच्चे की जान बचाई बल्कि, उसे भी इससे आराम पहुंचा है. वह और उसका बच्चा दोनों सुरक्षित है, और स्वस्थ जीवन के लिए जो जरूरी उपाय है उसको अपना रहे हैं.


ऐसे कई मामले हैं जो कंगारू मदर केयर सेंटर में भर्ती हैं और जिला अस्पताल के चिकित्सक और स्टाफ स्वास्थ्य सुविधा देने में जुटे हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी का कारण पता नहीं होता लेकिन विशेषज्ञ इसे हाइपरटेंशन, बच्चेदानी का मुंह सामान्य न होना, शुगर, ब्लड की कमी, खान-पान आदि की वजह मानते हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी में बच्चे का विकास सही से नहीं हो पाता. इस कारण उसे एसएनसीयू में भर्ती करना पड़ता है. गोरखपुर में मांताओं में कुपोषण से लेकर एनीमिया बड़ी समस्या है. मेडिकल कॉलेज और निजी अस्पताल में लगभग 25% प्री मेच्योर डिलीवरी हो रही है. यहां करीब 120 से अधिक बच्चों का इलाज चल रहा है. इनमें डॉक्टर ज्यादातर बच्चों की जान बचा ले रहे हैं.


डॉ. अजय ने बताया है कि जिन महिलाओं का प्रसव 30वेंं हफ्ते से पहले हो जाता है, उन्हें प्रसव के दौरान और भविष्य में कुछ जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. जैसे स्तनपान करवाने में समस्या और कमजोरी की वजह से शिशुओं को उठाने में समस्या, मधुमेह, मिर्गी, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, अवसाद और तनाव, कम नींद आना, ध्यान लगाने में कठिनाई होती है. इसके अलावा 18 वर्ष के तत्काल बाद या 35 वर्ष से ज्यादा उम्र के बाद की गर्भावस्था इसका प्रमुख कारण बनता है. पिछली गर्भावस्था में प्रीमेच्योर डिलीवरी का होना, गर्भ में जुड़वा और उससे ज्यादा बच्चों का होना, पोषक तत्वों की कमी समेत अन्य संक्रमण भी इसका कारण है.

प्रीमेच्योर नवजात के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते इसकी वजह से उन्हें कई बार ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. वहीं उन्हें पीलिया और कई तरह के संक्रमण होने का डर बना रहता है. ऐसे में उन्हें NICU केयर की जरूरत पड़ती है. कई बार प्रीमेच्योर डिलीवरी कराने में डॉक्टर मां को पहले से ही दवाई देना शुरू कर देता है जिससे बच्चे का लंग्स अच्छे से विकसित हो सकें.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग संस्थान के अध्यक्ष डॉ भूपेंद्र शर्मा कहते हैं कि प्रीमेच्योर डिलीवरीज की संख्या बढ़ी है. मगर ज्यादा बच्चों की जान बचाई जा रही है. प्रीमेच्योर डिलीवरी के बाद बच्चे को सांस लेने में दिक्कत, इन्फेक्शन आदि प्रॉब्लम होती है. जिसे इलाज के जरिए ठीक किया जाता है. बाल रोग संस्थान में हाईटेक सुविधा होने की वजह से ज्यादातर बच्चे ठीक हो रहे हैं. जनवरी 2025 में 299 बच्चों ने जन्म लिया जिन्हे NICU में भर्ती करना पड़ा और सब ठीक हुए.

ऐसा ही आंकड़ा हर माह के दौरान देखा जाता है. वहीं महिला जिला अस्पताल के आंकड़े की बात करें तो जनवरी 2025 में कुल 50 बच्चे प्री मेच्योर पैदा हुए. जिनका वजन एक किलो के पास था. फरवरी 2025 में 17 तारीख तक कुल 26 बच्चे प्री मेच्योर पैदा हुए. जिनको बेहतर इलाज दिया जा रहा है. इन आंकड़ों के आधार पर देखा जाये, तो प्रतिमाह महिला जिला अस्पताल में 300 से अधिक बच्चे पैदा होते हैं. जिनमे 50 से अधिक प्री मेच्योर हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें - अस्पताल के बाहर BJP नेता ने दिया धरना, मीरगंज सीएचसी पर डिलीवरी में रिश्वत लेने का आरोप - bareilly bjp leaders strike - BAREILLY BJP LEADERS STRIKE

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.