कानपुर : दुश्मन देशों के रडार भी हमारी सेना के हेलीकॉप्टर और पनडुब्बी का पता नहीं लगा पाएंगे. आईआईटी के मैकेनिकल विभाग के वैज्ञानिक प्रो. बिशाख भट्टाचार्य ने एक ऐसी तकनीक विकसित करने का दावा किया है जो रडार से निकलने वाली ध्वनि तरंगों को पूरी तरह से अवशोषित कर लेगी. ये तरंगें लौटकर जाएंगी नहीं तो दुश्मन देशों को कोई सूचना नहीं मिलेगी.
दावा है कि डमरू के आकार में तैयार प्रोटोटाइप में बिल्डिंग ब्लॉक की मदद से ध्वनि तरंग प्रसार को नियंत्रित किया जा सकेगा. प्रो. भट्टाचार्य ने बताया कि भगवान शिवजी ने ब्रह्मांड को सचल रखने के लिए डमरू का प्रयोग किया था. इसके आकार और ध्वनि का विशेष महत्व है. इसी से प्रेरणा लेकर उन्होंने डमरू रूपी प्रोटोटाइप तैयार किया.
तीन डमरू के आकार के प्रोटोटाइप बनाए गए, जिनमें अलग-अलग बिल्डिंग ब्लॉक (मधमुक्खी के छत्ते जैसी संरचना) हैं. इस ब्लॉक से वाइब्रेटिंग (कंपन्न) माध्यम की कठोरता को बदला जा सकता है. ऐसा होने से सामने से आने वाली तरंगें अवशोषित हो जाएंगी, मतलब किसी वस्तु से टकराकर वापस नहीं हो पाएंगी.
चूंकि जब ये वापस अपने स्रोत पर जाती हैं, तभी वहां किसी प्रकार की सूचना प्राप्त होती है. ये प्रोटोटाइप हेलीकॉप्टर या पनडुब्बी में लगाएंगे तो इनकी मदद से किसी रडार से आने वाली तरंगों को पूरी तरह से अवशोषित किया जा सकेगा. इस तरह दुश्मन देश को चकमा दिया जा सकता है.
उन्होंने बताया कि यह शोध शिक्षा मंत्रालय की स्पार्क परियोजना के तहत किया गया है. इस तकनीक पर प्रो. बिशाख के अलावा पीएचडी छात्र विवेक गुप्ता और स्वानसी विश्वविद्यालय, यूके के प्रो. अनुदीपन अधिकारी ने मिलकर काम किया है. इस शोध को इंटरनेशनल जर्नल ने मंगलवार को प्रकाशित किया है.
हाई स्पीड ट्रेनों की आवाज को भी कर सकेंगे नियंत्रित
प्रो. भट्टाचार्य ने बताया कि हाई स्पीड ट्रेनें जब प्लेटफॉर्म या किसी रिहायशी इलाके से निकलती हैं तो काफी तेज आवाज होती है. इस तकनीक से यह तेज आवाज भी अवशोषित हो जाएगी. बताया कि शरीर में सूक्ष्म ट्यूमर या स्टोन का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनिक तरंगों का प्रयोग किया जाता है. इन तरंगों के काफी साइड इफेक्ट भी होते हैं. उन्होंने दावा किया कि इस तकनीक के प्रयोग से अल्ट्रासोनिक तरंगों को नियंत्रित भी किया जा सकता.