ETV Bharat / state

आखिर 38 साल बाद 1984 सिख दंगे की जांच SIT क्यों कर रही?

1984 में कानपुर में हुए सिख दंगे की जांच अभी भी जारी है. 1251 मुकदमों में 96 आरोपी बनाए गए. इनमें से 22 की मौत हो चुकी है. बीते एक हफ्ते में 11 आरोपियों की गिरफ्तारी हो चुकी है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 38 साल बाद SIT क्यों जांच कर रही है? क्या यही जांच पहले नहीं की जा सकती थी. इतने बरस बाद इस जांच से क्या दंगा पीड़ितों को वास्तविक न्याय मिल पाएगा?.

Etv bharat
एक हफ्ते में 11 आरोपी हो चुके गिरफ्तार.
author img

By

Published : Jun 23, 2022, 4:20 PM IST

Updated : Jun 23, 2022, 4:42 PM IST

कानपुर: 1984 में देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगे ने कई सिख परिवारों का जीवन तबाह कर दिया. इस दंगे का दर्द शायद ही शहर का कोई ऐसा सिख परिवार हो जो भूला होगा. कांग्रेस शासन काल में सिख दंगे की जांच की मांग तो खूब उठी लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. भाजपा शासन आते ही सिख दंगे की जांच तेज हो गई और आरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई. SIT की ओर से बीते एक हफ्ते में 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. सवाल उठ रहा है कि यही कार्रवाई क्या पहले नहीं हो सकती थी? 38 साल बाद ही क्यों SIT ने सिख दंगे की जांच शुरू की?

एसआईटी डीआईजी बालेंदु भूषण सिंह ने बताया कि 1984 का सिख दंगा शहर के नजीराबाद, गुमटी या अन्य क्षेत्रों में नहीं हुआ, क्योंकि यहां सिख एकजुट होकर रह रहे थे. दंगाइयों ने निराला नगर, किदवई नगर, बर्रा, नौबस्ता में छोटे परिवारों पर हमला किया था. आगजनी व लूट के बाद इस दंगे में 127 सिखों की हत्या कर दी गई थी. इस पूरे मामले में कुल 1251 मुकदमे दर्ज हुए हैं, जिनमें आगजनी, लूट व अन्य मामले शामिल हैं. हालांकि 40 मुकदमे ऐसे हैं, जो नरसंहार के हैं. 1251 मुकदमों में 96 आरोपी बनाए गए. इनमें से 22 की मौत हो चुकी है.

एक हफ्ते में 11 आरोपी हो चुके गिरफ्तार.

एसआईटी के डीआईजी बालेंदु भूषण सिंह बताते हैं कि वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार का गठन हुआ तो सिख संगठन के पदाधिकारियों ने इस मामले को लेकर भाजपा नेताओं से मुलाकात की. गृहमंत्री, यूपी के सीएम व समेत कई अन्य नेताओं से जांच की मांग की. जब मामले में तेजी नहीं दिखी तो साल 2018 में सिख संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल दाखिल की गई.

सुप्रीम कोर्ट ने इसे संज्ञान लिया और प्रदेश सरकार से जवाब मांगा. जवाब के रूप में प्रदेश सरकार ने एसआईटी गठित की. इसका चेयरमैन सेवानिवृत्त डीजीपी अतुल को बनाया गया. उनके अलावा शहर से सेवानिवृत्त जज सुभाष चंद्र अग्रवाल व अपर निदेशक अभियोजन (सेवानिवृत्त) योगेश्वर श्रीवास्तव को भी जिम्मेदारी सौंपी गई. मई 2019 से एसआईटी से सचिव की भूमिका में जुड़कर उन्होंने 96 आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए साक्ष्य जुटाना शुरू किए और अब लगातार आरोपियों को गिरफ्तार किया जा रहा है.

एसआईटी की ओर से एक हफ्ते में अभी तक कुल 11 आरोपियों को घाटमपुर व अन्य क्षेत्रों से गिरफ्तार किया जा चुका है. इनमें भूरा उर्फ तमर सिंह, मोबीन, जसवंत, रमेश चंद्र दीक्षित, रविशंकर मिश्रा, भोला, गंगा बख्श सिंह, योगेंद्र सिंह, विजय नारायण सिंह, अब्दुल रहमान व सफीउल्लाह शामिल हैं. इनमें अधिकतर किदवई नगर, घाटमपुर व निराला नगर के रहने वाले हैं.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

कानपुर: 1984 में देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगे ने कई सिख परिवारों का जीवन तबाह कर दिया. इस दंगे का दर्द शायद ही शहर का कोई ऐसा सिख परिवार हो जो भूला होगा. कांग्रेस शासन काल में सिख दंगे की जांच की मांग तो खूब उठी लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. भाजपा शासन आते ही सिख दंगे की जांच तेज हो गई और आरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई. SIT की ओर से बीते एक हफ्ते में 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. सवाल उठ रहा है कि यही कार्रवाई क्या पहले नहीं हो सकती थी? 38 साल बाद ही क्यों SIT ने सिख दंगे की जांच शुरू की?

एसआईटी डीआईजी बालेंदु भूषण सिंह ने बताया कि 1984 का सिख दंगा शहर के नजीराबाद, गुमटी या अन्य क्षेत्रों में नहीं हुआ, क्योंकि यहां सिख एकजुट होकर रह रहे थे. दंगाइयों ने निराला नगर, किदवई नगर, बर्रा, नौबस्ता में छोटे परिवारों पर हमला किया था. आगजनी व लूट के बाद इस दंगे में 127 सिखों की हत्या कर दी गई थी. इस पूरे मामले में कुल 1251 मुकदमे दर्ज हुए हैं, जिनमें आगजनी, लूट व अन्य मामले शामिल हैं. हालांकि 40 मुकदमे ऐसे हैं, जो नरसंहार के हैं. 1251 मुकदमों में 96 आरोपी बनाए गए. इनमें से 22 की मौत हो चुकी है.

एक हफ्ते में 11 आरोपी हो चुके गिरफ्तार.

एसआईटी के डीआईजी बालेंदु भूषण सिंह बताते हैं कि वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार का गठन हुआ तो सिख संगठन के पदाधिकारियों ने इस मामले को लेकर भाजपा नेताओं से मुलाकात की. गृहमंत्री, यूपी के सीएम व समेत कई अन्य नेताओं से जांच की मांग की. जब मामले में तेजी नहीं दिखी तो साल 2018 में सिख संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल दाखिल की गई.

सुप्रीम कोर्ट ने इसे संज्ञान लिया और प्रदेश सरकार से जवाब मांगा. जवाब के रूप में प्रदेश सरकार ने एसआईटी गठित की. इसका चेयरमैन सेवानिवृत्त डीजीपी अतुल को बनाया गया. उनके अलावा शहर से सेवानिवृत्त जज सुभाष चंद्र अग्रवाल व अपर निदेशक अभियोजन (सेवानिवृत्त) योगेश्वर श्रीवास्तव को भी जिम्मेदारी सौंपी गई. मई 2019 से एसआईटी से सचिव की भूमिका में जुड़कर उन्होंने 96 आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए साक्ष्य जुटाना शुरू किए और अब लगातार आरोपियों को गिरफ्तार किया जा रहा है.

एसआईटी की ओर से एक हफ्ते में अभी तक कुल 11 आरोपियों को घाटमपुर व अन्य क्षेत्रों से गिरफ्तार किया जा चुका है. इनमें भूरा उर्फ तमर सिंह, मोबीन, जसवंत, रमेश चंद्र दीक्षित, रविशंकर मिश्रा, भोला, गंगा बख्श सिंह, योगेंद्र सिंह, विजय नारायण सिंह, अब्दुल रहमान व सफीउल्लाह शामिल हैं. इनमें अधिकतर किदवई नगर, घाटमपुर व निराला नगर के रहने वाले हैं.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

Last Updated : Jun 23, 2022, 4:42 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.