झांसी: नदियों को बचाने के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार कई योजनाएं चला रही हैं और साफ-सफाई का हर संभव प्रयास कर रही है. लेकिन उसके बावजूद प्रदेश में कुछ नदियों का अस्तित्व खतरे में है. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच प्रवाहित होने वाली पहुंज नदी ऐसी ही एक नदी है जो कई स्थानों पर भयानक प्रदूषण की चपेट में है. नदी में कूड़े कचरे के ढेर फेंके जाने के कारण नदी प्रदूषित हो गई है. हालांकि नगर निगम की तरफ से नदियों में साफ-सफाई की बात की जा रही है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
पहुंज की उत्पत्ति
पहुंज नदी की उत्पत्ति झांसी जनपद के बैदोरा गांव से मानी जाती है. कुछ जानकार इस नदी की उत्पत्ति मध्य प्रदेश से मानते हैं. इस नदी का बुन्देलखण्ड में धार्मिक महत्व भी है मान्यता है कि पुराणों में पुष्पवती नदी नाम से इसका उल्लेख है. पहुंज नदी के पानी का उपयोग वर्तमान समय में सिंचाई और पेयजल के रूप में भी किया जा रहा है.
सांसद उमा भारती ने लिया था गोद
साल 2014 में हुए चुनाव के बाद उमा भारती झांसी से सांसद बनीं थीं और केंद्र सरकार में उन्हें जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया था. उमा भारती ने नवम्बर 2014 में पहुंज नदी को गोद लिया और इसके कायाकल्प का वादा किया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. सिंचाई विभाग और नगर निगम ने इस नदी के संरक्षण और सम्वर्द्धन के लिए कई योजनाएं तैयार की लेकिन कोई भी योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी.
दो साल पहले घाट निर्माण
केंद्र सरकार में मंत्री रहने के दौरान उमा भारती की साल 2018-19 की सांसद निधि से पहुंज नदी के एक हिस्से पर 50 लाख रुपये की लागत से घाट का निर्माण किया गया, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं मिला. घाट के पास गन्दगी का अंबार रहता है और लोग यहां कूड़ा फेंक जाते हैं. नगर निगम और सिंचाई विभाग इसकी देखरेख की व्यवस्था कर पाने में नाकाम साबित हुआ.
पहुंज नदी कई जगहों पर अतिक्रमण की चपेट में आने के कारण नाले की तरह हो चुकी है. कई जगह बिल्डर्स ने तो कई जगह अन्य लोगों ने नदी के किनारे की जमीन को कब्जा कर डूब क्षेत्र में कालोनियां विकसित कर ली और मकान बना लिए. सीपरी बाजार और नन्दनपुरा क्षेत्र में कई नालों के माध्यम से गन्दा पानी इस नदी में प्रवाहित किया जाता है. झांसी का नगर निगम और झांसी विकास प्राधिकरण ऐसे सभी मामलों में किसी तरह की कार्रवाई नहीं कर सका.
नदी के संरक्षण पर जोर
सामाजिक कार्यकर्ता और 'जल जन जोड़ो अभियान' के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह बताते हैं कि यह नदी बैदोरा गांव से निकलती है और पचनद से पहले सिंध नदी में मिलती है. यह नदी लगभग दो सौ किलोमीटर की यात्रा पूरी करती है. दुर्भाग्य है कि झांसी से निकलने के बाद यह नदी नाले के रूप में परिवर्तित हो गई है. इसमें बहुत अधिक मात्रा में गन्दा पानी जा रहा है. नदी के पानी में तमाम हानिकारक तत्वों की मात्रा बढ़ी है. भांडेर के आगे तक इस नदी की स्थिति काफी खराब है. यह 12 महीने बहने वाली नदी है. इसके पुनर्जीवन और पुनरुद्धार के लिए सरकार व समाज को बहुत अधिक काम करने की जरूरत है.
नदी से डिसिल्टिंग की जरूरत
नगर निगम के मेयर रामतीर्थ सिंघल बताते हैं कि हमारी मंशा है कि शहर के आसपास से होकर गुजरने वाली नदियां स्वच्छ रहें. लोग नदियों में कूड़ा फेंकते हैं और नाले व नालियां उनमें प्रवाहित हो रहे हैं. आज की स्थिति में पहुंज नदी बहुत उथली हो गई है. इसमें डिसिल्टिंग का बड़ा काम कराए जाने की आवश्यकता है. यह काम सिंचाई विभाग को कराना चाहिए.
एसटीपी बनाकर गंदे पानी को रोकने की कोशिश
नगर निगम ने इसी साल पहुंज नदी पर एसटीपी बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. स्मार्ट सिटी के तहत इस पर काम किया जाएगा. मेयर रामतीर्थ सिंघल बताते हैं कि नगर निगम क्षेत्र के जो नाले पहुंज नदी में गिरते हैं, उनको रोकना और चार नालों को टेप करके वहां सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाना और प्लांट के माध्यम से पानी को स्वच्छ करके नदी में डालने की योजना पर हम काम कर रहे हैं. हमारा प्रयास है कि नगर निगम क्षेत्र में जो नाले पहुंज नदी में जा रहे हैं, वे वहां गन्दा पानी लेकर न जाएं. एसटीपी के बाद स्वच्छ पानी नदी में पहुंचेगा.