झांसी: केंद्रीय खुफिया एजेंसी सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर एंटी करप्शन डा. जीके गोस्वामी ने कहा कि फोरेंसिक साइंस के जरिये ही वैज्ञानिक साक्ष्य पेशकर देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जा सकता है. डॉ. गोस्वामी गुरुवार को बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम इंस्टीट्यूट आफ फोरेंसिक साइंस एंड क्रिमिनोलाजी के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल हुए. आपराधिक न्याय व्यवस्था की चुनौतियां और नवोन्मेस विषय पर उन्होंने विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित किया.
जम्मू कश्मीर के पुलवामा के शहीदों को श्रद्धासुमन करते हुए डा. गोस्वामी ने कहा कि अब आतंकी घटनाओं से संबंधित फोरेंसिक साइंस को और विकसित करने की जरूरत है. उन्होंने पूछताछ की विभिन्न प्रक्रियाओं का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि अब थर्ड डिग्री का प्रयोग वर्जित है. ऐसे में फोरेंसिक साक्ष्यों का महत्व बढ़ गया है.
उन्होंने विविध उदाहरण पेश कर यह बात साफ की कि जांच में प्रश्नों को सही ढंग से तैयार न करने से पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ जाती है. यदि प्रश्न सही ढंग से तैयार किए जाएं तो जांच की प्रक्रिया वैज्ञानिक हो सकती है. उन्होंने देश में दिन पर दिन बढ़ रही फोरेंसिक साइंस के कार्मिकों की मांग का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि अब समय आ गया कि सभी शैक्षणिक संस्थाओं में उपलब्ध उपकरणों और मानव संसाधन का ठीक से आकलन कर समुचित नीतियां बनाई जाएं. प्रयोगशालाओं में नियुक्ति के लिए समयानुकूल प्रावधान तय किए जाएं.
वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जेवी वैशम्पायन ने कहा कि यदि देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था प्रभावी होगी तो लोगों का विश्वास लोकतंत्र में और बढ़ेगा. यदि न्याय की व्यवस्था सही न होगी तो विभिन्न प्रकार की समस्याएं जन्म लेंगी. उन्होंने कहा कि समाज में विकास के साथ ही साथ आपराधिक वारदातों की संख्या भी बढ़ी हैं. मजबूत साक्ष्य के अभाव में समुचित ढंग से न्याय नहीं हो पाता है. फोरेंसिक साक्ष्य वैज्ञानिक और सटीक हैं. इनमें चूक की संभावना कम होती है. अंत में डा. विजय कुमार यादव ने देश के विभिन्न हिस्सों से आए विशेषज्ञों और प्रतिभागियों के प्रति आभार जताया.