गोरखपुर : शौक की कोई उम्र नहीं होती. यह सच कर दिखाया है गोरखपुर के वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार पांडेय ने. शैक्षणिक कार्य के समय से ही प्राचीन और ऐतिहासिक काल के साथ-साथ मुगलों और ब्रिटिश काल के सिक्कों के कलेक्शन का अभियान शुरू किया था. जब वह रिटायर हुए तो उनके सिक्कों का काफी बड़ा कलेक्शन तैयार हो चुका है.
उनके पास से करीब ढाई हजार साल पुराने सिक्कों का अनोखा कलेक्शन है. इनमें मुगल काल के अकबर, बाबर, जहांगीर औरंगजेब, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह सूरी सभी के दौर के सिक्के हैं. इसके अलावा ब्रिटिश हुकूमत के समय चलन में आए चांदी और तांबे के सिक्के भी उनकी कलेक्शन गैलरी की शोभा बढ़ाते हैं.
प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार पांडेय के पास करेंसी (नोट) का भी अद्भुत कलेक्शन है. इनमें भारतीय नोट 1 रुपये के साथ ही वर्तमान दौर के 500 और 2000 रुपयों के साथ डॉलर, यूरो और अन्य देशों की करेंसी का भी कलेक्शन है. प्रोफेसर पांडेय ने डाक टिकटों का भी संग्रह किया है. जिसके लिए कई प्रदर्शनियों में सम्मान मिल चुका है. साथ ही प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार पांडेय ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूर्वांचल की भूमिका, क्रांति के सितारे और कई ऐसी घटनाएं को प्रदर्शित करती सात पुस्तकों की रचना और प्रकाशन किया.
इसके लिए भारतीय हिंदी संस्थान से पुरस्कार भी मिल चुके हैं. उन्होंने इसके लिए लाखों रुपए भी खर्च किए हैं, क्योंकि तमाम सिक्कों की प्रदर्शनियों में पुराने सिक्कों का मूल्य भी लगता है. जिस सिक्के की कीमत ₹1 है उसे वह 3000 से ₹10000 तक में खरीदे. यही नहीं उनके शौक का बचपना भी को देखकर तो और भी मजा आता है। अब तक कितने ब्रांड के, किस कलर और साइज के माचिस बाजार में आ चुके हैं. उसका भी कलेक्शन इनके कलेक्शन गैलरी की शोभा में प्रतिमान स्थापित करता है.
ईटीवी भारत से बातचीत में प्रोफेसर डॉ. कृष्ण कुमार पांडेय ने बताया कि जब वह डिग्री कॉलेज में बॉटनी के प्रोफेसर के रूप में अपना शैक्षणिक कार्य प्रारंभ किए तो उनका संपर्क इतिहास के प्रोफेसर के साथ काफी घनिष्ठ हुआ. इतिहास में उनकी पहले से भी बड़ी रुचि थी, लेकिन इतिहास के प्रोफेसर के साथ जुड़ते-जुड़ते और कहानियों को पढ़ने सुनने से उनके मन में ऐसी जिज्ञासा हुई कि क्यों एन इतिहास के इन पहलुओं का एक संग्रह किया जाए. जिसमें आदि और प्राचीन काल के चरण में आने वाले सिक्के तो शामिल ही हों, वह नोट और अन्य वस्तुएं भी उनके पास मौजूद हों जिसे उनके पास देखकर कोई भी वाह -वाह कर उठे.
प्रोफेसर पांडेय कहते हैं कि सिक्कों के सहेजने की कला को "न्यूमिस मैट्रिक्स" या मुद्रा शास्त्र कहा जाता है. यह शुद्ध शब्द लैटिन न्यूमिज्मर से निकला है. जिसका अर्थ धन होता है. यह शौक करीब 2000 वर्ष प्राचीन है. जब ग्रीक लोग सिक्कों का संग्रह करने लग गए थे. 12वीं सदी के खूबसूरत सिक्के एवं उनके इतिहास ने लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया. 15वीं सदी में ऑस्ट्रिया, हंगरी, फ्रांस आदि देशों के राजाओं, मंत्रियों और सभासदों में प्रचलित इस शौक ने उन्हें संपन्न राष्ट्र बना दिया. सिक्के बीते समय के प्रामाणिक दस्तावेज भी होते हैं. धातुओं के बने सिक्के टिकाऊपन के कारण पसंद किए जाते हैं. यह एक अच्छा इन्वेस्टमेंट भी है. इस शौक के कारण सिक्कों को साफ करना, देखना एवं वर्गों में विभाजित करने में अत्यधिक आनंद मिलता है. सिक्कों के संग्रह का सबसे सरल और सस्ता तरीका यह है कि आप संग्रह के शौक को उन सिक्कों से आरंभ करें जो वर्तमान में प्रचलन में हों. सिक्कों की वर्तमान स्थिति को देखकर उसे विभिन्न वर्गों में रखते हैं. जैसे प्रूफ, अनसर्कुलेटेड, फाइन, वेरी फाइन, एक्सट्रीमली फाइन, गुड, वेरी गुड,फेयर और पूअर.
प्रोफेसर पांडेय ने बताया कि उनके कलेक्शन में ईसा पूर्व चौथी से छठी सदी के "आहूत" सिक्कों से लेकर कुषाण, कनिष्क, गुप्त वंश, गुलाम वंश के बलबन, खिलजी, शेरशाह सूरी, मुगल वंश में अकबर, शाहजहां, औरंगज़ेब, मोहम्मद शाह, रंगीला, शाह आलम शामिल हैं. दिल्ली के बादशाहों के अतिरिक्त रियासतों के सिक्के जैसे हैदराबाद निजाम, मेवाड़, राणा शासन, जोधपुर, नवानगर, मैसूर, सिख राज्य, अवध के नवाब के सिक्के, कच्छ, ओरछा, होल्कर, इंदौर, ग्वालियर, छत्रपति शिवाजी, टोंक, जयपुर, दोदा रानी कश्मीर (10वीं सदी) अमीर सिंध (नवीं सदी) के दुर्लभ सिक्कों के संग्रह के साथ, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से लेकर चार्ज षटम तक के लगभग सभी सिक्के मौजूद हैं. जिसमें कुछ अति दुर्लभ जैसे विलियम चतुर्थ 1835, जॉर्ज पंचम 1911, विक्टोरिया 1887 आदि का संग्रह है. इसके अतिरिक्त स्वतंत्र भारत और विदेशी सिक्कों के साथ लगभग 900 सिक्कों का संग्रह है. विदेशी सिक्कों और करेंसी संग्रह में ऐसे देशों के भी संग्रह हैं जो देश अब अस्तित्व में नहीं हैं. जैसे मलाया जो विभाजित होकर मलेशिया, ब्रुनेई और सिंगापुर बन गए. ईस्ट अफ्रीका, पूर्वी जर्मनी, यूएसएसआर, प्राचीन रूस, सीलोन जो अब श्रीलंका बन चुका है, पूर्वी पाकिस्तान आदि इतिहास से मिट गए देश के भी संग्रह है.
डाक टिकट फिलटिली में सबसे प्रथम ब्रिटेन में 6 मई 1840 को जारी ब्लैक पैनी और भारत में 1 जुलाई 1852 को जारी सिंध डाक टिकट सबसे प्राचीन है. संग्रह में आजादी के पूर्व विभिन्न रियासतों में विभाजित अनेक स्वतंत्र रियासतों के टिकटों, पोस्टकार्ड का भी विशाल संग्रह है. जिस पर 2022 में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल उन्हें प्राप्त हुआ.
प्रोफेसर पांडेय ने गोरखपुर के इतिहास लेखन में देश की धरोहरों को "आईने गोरखपुर" पुस्तक में प्रकाशित किया है. महापुरुषों के बारे में "सरयूपार के युग पुरुष", स्वाधीनता आंदोलन में योगदान के लिए "पूर्वांचल में स्वाधीनता संघर्ष और "रियासतें गोरखपुर में" रियासतों के बलिदान, "चौरी चौरा की जन क्रांति" में उस आंदोलन के दूरगामी परिणाम और सेनानियों के उपेक्षा के दंश आदि को सामने लाया गया है. उनकी छठी पुस्तक "पूर्वांचल नामख्यान" में इस क्षेत्र के 10 जनपदों के प्राचीन स्थानो के नामकरण किस प्रकार किए गए हैं. यह सभी पुस्तकें गोरखपुर क्षेत्र के निवासियों के लिए संग्रहणीय और पठनीय हैं. इन पुस्तकों में से "सरयूपार के युग पुरुष और पूर्वांचल में स्वाधीनता संघर्ष को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से 2020 और 2021 में पुरस्कृत भी किया जा चुका है.
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