झांसी: टोड़ी फतेहपुर कस्बे के निकट स्थित हनुमान गढ़ी सरकार मंदिर को लगभग पांच सौ साल पुराना माना जाता है. मान्यता है कि यह मंदिर कभी नागा साधुओं का केंद्र रहा है. इस मंदिर के परिसर में एक पुराना कुआं है, जिसमें बारह महीने पानी भरा रहता है. प्राकृतिक वातावरण में स्थित हनुमान गढ़ी मंदिर टोड़ी फतेहपुर और लठवाड़ा के बीच स्थित है.
पूरी तरह सुरक्षित है कुआं
मंदिर परिसर में बना कुआं काफी गहरा है. स्थानीय लोगों का दावा है कि इसमें बारह महीने पानी भरा रहता है. मंदिर का निर्माण शिल्प इसे देखने वालों को बेहद आकर्षित करता है. इस कुएं का निर्माण लाल पतली ईंट से किया गया है. मंदिर की धुलाई-सफाई के लिए इसी कुएं के पानी का उपयोग किया जाता है. यह कुआं अभी भी पूरी तरह सुरक्षित है और कोई भी हिस्सा क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है.
मंदिर की दीवारों पर चित्रकारी
मंदिर के गर्भगृह के पास छत पर बनी चित्रकारी काफी पुरानी है. इसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि मंदिर के निर्माण के समय ही यह चित्रकारी की गई है. चित्रकारी को देखकर उस कालखण्ड की कई परंपराओं के बारे में भी जानकारी हासिल करने में मदद मिलती है.
स्थानीय लोगों की ये हैं मान्यताएं
मंदिर के पुजारी अवधेश पाठक कहते हैं कि यह मंदिर पांच सौ साल पुराना है. यह लठवाड़ा और टोड़ी फतेहपुर के बीच मे स्थित है. स्थानीय निवासी सन्तराम बताते हैं कि इस मंदिर का नाम हनुमान गढ़ी सरकार है. कुछ लोग इसे राजा द्वारा बनवाया गया मंदिर बताते हैं. वहीं कुछ लोग इसे नागा संतों का मंदिर मानते है. सन्त यहां एकांत में भजन करते हैं.
यहां पूरी होती हैं सभी मनोकामनाएं
स्थानीय निवासी आसाराम के मुताबिक करीब पांच सौ साल पहले जब टोड़ी फतेहपुर के किले का निर्माण हुआ था, उसी समय राजा रघुराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था. यहां दर्शन करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
इतिहासकारों का ये है मानना
इतिहासकारों का दावा नागा साधुओं पर शोध कर रहे इतिहास के जानकार डॉ. चित्रगुप्त बताते हैं कि यह मंदिर लगभग सोलहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के मध्य का है. उस समय पूरे बुन्देलखण्ड में नागा सन्यासियों के अखाड़े हुआ करते थे. उनकी संख्या हजारों में थी. प्रत्येक अखाड़े में एक हज़ार से पांच हजार तक नागा संत हुआ करते थे.
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इनके अखाड़े सेना के रेजीमेंट की तरह हुआ करते थे. तपयोग के साथ ये लोग धर्म की रक्षा के लिए हथियारों की भी ट्रेनिंग लिया करते थे. निश्चित रूप से यह मंदिर नागा संत के प्रभाव में भी रहा होगा. नागा साधु यहां पूजन के लिए पहुंचते होंगे और रुकते भी होंगे.