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सरकारी मदद की आस में शिल्पकार, दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे परिवार

यूपी के झांसी में लॉकडाउन के कारण पत्थर से सिलबट्टा, आटा पीसने वाली चक्की और अन्य सामान बनाने वाले शिल्पकारों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. यहां इन मजदूरों के सामने खाने का संकट खड़ा हो गया है. इनका कहना है कि इन लोगों को प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल रही है.

चौपट हुआ शिल्पकारों का व्यवसाय
चौपट हुआ शिल्पकारों का व्यवसाय
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Published : Apr 10, 2020, 9:21 AM IST

Updated : Apr 12, 2020, 8:54 PM IST

झांसी: कोरोना के खौफ के चलते लागू हुए लॉकडाउन में शिल्पकार मजदूरों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. इनकी दुर्दशा प्रशासनिक अमलों के दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. जहां जिलाधिकारी दावा कर रहे हैं कि सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए हर जरूरतमंद तक राशन पहुंचाया जा रहा है, वहीं शिल्पकार बस्ती में रहने वाले लोग प्रशासन के इन दावों को सिरे से नकार रहा हैं. इनका कहना है कि इन्हें खाने के नाम पर सिर्फ समाजसेवी संस्थाओं द्वारा दिए जा रहे लंच पैकेट ही मिले हैं.

सरकारी मदद की आस में शिल्पकार

पूरी तरह से चौपट हुआ शिल्पकारों का व्यवसाय

जनपद के सीपरी बाजार थाना क्षेत्र स्थित आईटीआई के पास एक ऐसी बस्ती है, जहां पत्थरों को आकार दिया जाता है. शिल्पकार समाज के ये लोग पत्थरों से बने सामान को मेला, हाट और सड़क किनारे फुटपाथ पर बेचते हैं. यही व्यवसाय इनकी जीविका का सबसे बड़ा साधन है, लेकिन पूरी दुनिया वैश्विक महामारी से जूझ रही है, भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और यहां कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 21 दिन का लॉकडाउन लागू करना पड़ा.

जिसके चलते इनका व्यवसाय पूरी तरह से चौपट हो गया. अब ये शिल्पकार दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं. इनका कहना है कि कुछ समाजसेवी संस्थाएं आती हैं जो लंच पैकेट देकर जाती हैं. इतने बड़े परिवार के लिए लंच पैकेट पर्याप्त नहीं होते हैं. शिल्पकारों ने बताया कि अभी तक इनके पास कोई सरकारी मदद नहीं पहुंची है.

परिवार चलाने में हो रही समस्या

सिलबट्टा बनाने वाली तुलसी बताती हैं कि उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. धंधा पानी बंद हो जाने की वजह से बच्चों को दूध नहीं मिल पा रहा है, जब राशन लेने जाते हैं तो दुकानदार पैसे मांगते हैं, हमारे पास पैसा है ही नहीं, तो हम कहां से दें.

शिल्पकार कम्मो ने बताया कि सरकारी अफसर मदद के लिए नहीं आए, एनजीओ वाले एक-एक लंच का पैकेट देकर जाते हैं, उन्हें बच्चे खा लेते हैं और हम लोग भूखे रह जाते हैं. कम्मो बताती हैं कि नहाने और कपड़े धोने के लिए साबुन नहीं है और शरीर में लगाने के लिए तेल तक नहीं है.

हाथ से आटा पीसने की चक्की बनाने वाले संतोष बताते हैं कि सरकार कहती है कि घर के अंदर बैठ जाओ, हम बैठ गए. अब बच्चों का खाना कहां से लाएं और खुद का पेट कैसे भरें.

वहीं बस्ती के रहने वाले सुरेश चंद्र ने बताया कि हम सब घर में हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. चुपचाप सामान बेचने की कोशिश भी करते हैं तो लोग कहते हैं भैया दूर रहो, लोग हमारा बना हुआ सामान नहीं खरीद रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमें अपना परिवार चलाने में बड़ी समस्याएं आ रही हैं. अब तो हम सिर्फ सरकारी मदद की आस लगाए बैठे हैं.

झांसी: कोरोना के खौफ के चलते लागू हुए लॉकडाउन में शिल्पकार मजदूरों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है. इनकी दुर्दशा प्रशासनिक अमलों के दावों की पोल खोलती नजर आ रही है. जहां जिलाधिकारी दावा कर रहे हैं कि सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए हर जरूरतमंद तक राशन पहुंचाया जा रहा है, वहीं शिल्पकार बस्ती में रहने वाले लोग प्रशासन के इन दावों को सिरे से नकार रहा हैं. इनका कहना है कि इन्हें खाने के नाम पर सिर्फ समाजसेवी संस्थाओं द्वारा दिए जा रहे लंच पैकेट ही मिले हैं.

सरकारी मदद की आस में शिल्पकार

पूरी तरह से चौपट हुआ शिल्पकारों का व्यवसाय

जनपद के सीपरी बाजार थाना क्षेत्र स्थित आईटीआई के पास एक ऐसी बस्ती है, जहां पत्थरों को आकार दिया जाता है. शिल्पकार समाज के ये लोग पत्थरों से बने सामान को मेला, हाट और सड़क किनारे फुटपाथ पर बेचते हैं. यही व्यवसाय इनकी जीविका का सबसे बड़ा साधन है, लेकिन पूरी दुनिया वैश्विक महामारी से जूझ रही है, भारत भी इससे अछूता नहीं रहा और यहां कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 21 दिन का लॉकडाउन लागू करना पड़ा.

जिसके चलते इनका व्यवसाय पूरी तरह से चौपट हो गया. अब ये शिल्पकार दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं. इनका कहना है कि कुछ समाजसेवी संस्थाएं आती हैं जो लंच पैकेट देकर जाती हैं. इतने बड़े परिवार के लिए लंच पैकेट पर्याप्त नहीं होते हैं. शिल्पकारों ने बताया कि अभी तक इनके पास कोई सरकारी मदद नहीं पहुंची है.

परिवार चलाने में हो रही समस्या

सिलबट्टा बनाने वाली तुलसी बताती हैं कि उनके छोटे-छोटे बच्चे हैं. धंधा पानी बंद हो जाने की वजह से बच्चों को दूध नहीं मिल पा रहा है, जब राशन लेने जाते हैं तो दुकानदार पैसे मांगते हैं, हमारे पास पैसा है ही नहीं, तो हम कहां से दें.

शिल्पकार कम्मो ने बताया कि सरकारी अफसर मदद के लिए नहीं आए, एनजीओ वाले एक-एक लंच का पैकेट देकर जाते हैं, उन्हें बच्चे खा लेते हैं और हम लोग भूखे रह जाते हैं. कम्मो बताती हैं कि नहाने और कपड़े धोने के लिए साबुन नहीं है और शरीर में लगाने के लिए तेल तक नहीं है.

हाथ से आटा पीसने की चक्की बनाने वाले संतोष बताते हैं कि सरकार कहती है कि घर के अंदर बैठ जाओ, हम बैठ गए. अब बच्चों का खाना कहां से लाएं और खुद का पेट कैसे भरें.

वहीं बस्ती के रहने वाले सुरेश चंद्र ने बताया कि हम सब घर में हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. चुपचाप सामान बेचने की कोशिश भी करते हैं तो लोग कहते हैं भैया दूर रहो, लोग हमारा बना हुआ सामान नहीं खरीद रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमें अपना परिवार चलाने में बड़ी समस्याएं आ रही हैं. अब तो हम सिर्फ सरकारी मदद की आस लगाए बैठे हैं.

Last Updated : Apr 12, 2020, 8:54 PM IST
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