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पंचायत चुनावः ग्राम प्रधान से नाखुश हैं इस गांव के लोग, नहीं हुआ विकास

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Published : Feb 12, 2021, 12:15 PM IST

यूपी में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर ईटीवी भारत की टीम गांवों की ग्राउंड रिपोर्ट प्रस्तुत कर रही है. इस दौरान टीम हाथरस के भाऊ गांव में पहुंची. टीम ने वहां पर पंचायत चुनावों को लेकर ग्रामीणों बातचीत की. गांव के विकास के बारे में क्या कहते हैं ग्रामीण, देखिये ये खास रिपोर्ट...

गंदगी में रहने को मजबूर ग्रामीण.
गंदगी में रहने को मजबूर ग्रामीण.

हाथरस: उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियां तेजी हो रही हैं. शासन और प्रशासन पंचायत चुनाव की तैयारियों में जुटा है. इसके साथ ही उम्मीदवारों ने भी चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस ली है. ईटीवी भारत की टीम ने मुरसान ब्लॉक की वर्द्धिवारी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले भाऊ गांव का दौरा किया. इस दौरान टीम ने पांच सालों के दौरान किए गए विकास कार्यों की पड़ताल की. गांव वालों से सुनिये गांव के विकास की हकीकत.

स्पेशल रिपोर्ट.

ग्रामीण बदतर जीवन जीने को मजबूर
गांव भाऊ के लोग वर्तमान में भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. गांव में तमाम तरह की समस्याएं हैं, लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं देते. जिला मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव की आबादी करीब दो हजार और वोटरों की संख्या 800 है. बातचीत के दौरान ग्रामीण निवर्तमान ग्राम प्रधान के कार्यकाल से नाखुश नजर आए. गांव वालों ने बताया कि गांव में नालियां नहीं हैं. सड़कों पर कीचड़ और पानी भरा रहता है. गांव में रास्ता तक पक्का नहीं है.

नाली न होने के चलते लोग अपने घरों के सामने पतनालों पर ड्रम आदि रखकर उनमें घरों से निकलने वाला पानी इकट्ठा करते हैं और उन्हें खेतों में डालते हैं. किसानों की खेती आवारा पशु नष्ट कर रहे हैं. वृद्धाओं और विधवाओं को किसी तरह की कोई पेंशन नहीं दिलाई गई है. यहां तक कि लोगों को पीने का पानी गांव के बाहर से कड़ी मशक्कत कर लाना पड़ता है.

गंदगी में रहने को मजबूर ग्रामीण.
गंदगी में रहने को मजबूर ग्रामीण.

पांच साल में यह हुआ है विकास
ग्रामीण धर्मेंद्र सिंह ने तंज कसते हुए कहा कि गांव में पिछले पांच सालों में प्रधान ने कीचड़ और कच्ची सड़कों को जस का तस रखने का ही कार्य किया है. उन्होंने बताया कि आज से पांच साल पहले यह रास्ता साफ था. आज स्थिति बद्तर हो चुकी है. गांव में कहीं भी नाली नहीं है. इससे घरों का सारा पानी सड़क पर आ जाता है. आज तक नहीं पता चला कि गांव के विकास के लिए आने वाला बजट कहां खर्च होता है.

गांव में पीने के पानी के लिए हैंडपंप नहीं
वृद्ध महिला द्रोपदी ने बताया कि 70 साल की उम्र में भी उनकी पेंशन नहीं बनी है. कई बार उनसे पांच-पांच सौ रुपये ले लिए गए हैं. ग्रामीण विमला ने बताया कि उनके पास न तो खेती है और न ही पेंशन बन रही है. गांव में हैंडपंप तक नहीं लगा है. लोगों को दूसरे गांव के बाहर लगे नल से पानी ढोकर लाना पड़ता है.

ग्रामीण हुकुम सिंह ने बताया कि पांच साल पहले प्रधान ने चुनाव जीतते ही उनसे क्वॉर्टर बनवाने के लिए पांच हजार रुपये ले लिए थे. वह भी अभी तक नहीं बनवाया गया है. पांच साल बाद प्रधान ने उनके पैसे वापस किए हैं. इसी तरह ग्रामीण उदयवीर से भी मकान बनवाने के लिए दस हजार रुपये लिए गए थे. उनका भी मकान नहीं बना है.

किसानों की आमदनी हुई कम
किसान रमेश ने बताया कि उनकी आमदनी तो बढ़ने के बजाय कम होती जा रही है. उनकी फसलों को आवारा पशु नष्ट कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांव में या फिर गांव के आसपास एक भी गोशाला नहीं है. इस कारण आवारा पशु फसलों को नष्ट कर रहे हैं.

घरों से निकलने वाला गंदा पानी इक्कट्ठा करना पड़ता है
ग्रामीण महिला राजेश्वरी ने बताया कि गांव में कहीं भी नाली की सुविधा नहीं की गई है. लोगों के घरों से निकलने वाला गंदा पानी सड़कों पर बहता रहता है. कच्ची सड़कों की वजह से गड्ढों में गंदा पानी इकट्ठा होकर कई दिनों भरा तक रहता है. इससे घरों से निकलना दूभर हो जाता है. गंदे पानी को डिब्बे में इकट्ठा करके खेतों में फेंकना पड़ता है. इससे काफी परेशानी होती है.

गांव की तस्वीर बदलने वाले प्रतिनिधि चाहते हैं ग्रामीण
गांव के युवा चाहते हैं कि उन्हें ऐसा जनप्रतिनिधि मिले, जो गांव की तस्वीर बदल दे. गांव में विकास करा सके. युवा वीरू सिंह ने बताया कि गांव में पानी की निकास की व्यवस्था तक नहीं है. रास्ते बंद पड़े हैं. पीने का पानी दो किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है. लोगों की पेंशन नहीं बनी है. मनरेगा में भी किसी का नाम नहीं लिखा गया है. गांव के लोग अपनी भूल सुधारना चाहते हैं. वे इस बार ऐसा प्रत्याशी चुनना चाहते हैं, जो गांव और क्षेत्र का विकास करा सके और उन्हें समस्याओं से मुक्ति दिला सके.

हाथरस: उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारियां तेजी हो रही हैं. शासन और प्रशासन पंचायत चुनाव की तैयारियों में जुटा है. इसके साथ ही उम्मीदवारों ने भी चुनावी मैदान में उतरने के लिए कमर कस ली है. ईटीवी भारत की टीम ने मुरसान ब्लॉक की वर्द्धिवारी ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले भाऊ गांव का दौरा किया. इस दौरान टीम ने पांच सालों के दौरान किए गए विकास कार्यों की पड़ताल की. गांव वालों से सुनिये गांव के विकास की हकीकत.

स्पेशल रिपोर्ट.

ग्रामीण बदतर जीवन जीने को मजबूर
गांव भाऊ के लोग वर्तमान में भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. गांव में तमाम तरह की समस्याएं हैं, लेकिन जिम्मेदार इस ओर ध्यान नहीं देते. जिला मुख्यालय से करीब 9 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव की आबादी करीब दो हजार और वोटरों की संख्या 800 है. बातचीत के दौरान ग्रामीण निवर्तमान ग्राम प्रधान के कार्यकाल से नाखुश नजर आए. गांव वालों ने बताया कि गांव में नालियां नहीं हैं. सड़कों पर कीचड़ और पानी भरा रहता है. गांव में रास्ता तक पक्का नहीं है.

नाली न होने के चलते लोग अपने घरों के सामने पतनालों पर ड्रम आदि रखकर उनमें घरों से निकलने वाला पानी इकट्ठा करते हैं और उन्हें खेतों में डालते हैं. किसानों की खेती आवारा पशु नष्ट कर रहे हैं. वृद्धाओं और विधवाओं को किसी तरह की कोई पेंशन नहीं दिलाई गई है. यहां तक कि लोगों को पीने का पानी गांव के बाहर से कड़ी मशक्कत कर लाना पड़ता है.

गंदगी में रहने को मजबूर ग्रामीण.
गंदगी में रहने को मजबूर ग्रामीण.

पांच साल में यह हुआ है विकास
ग्रामीण धर्मेंद्र सिंह ने तंज कसते हुए कहा कि गांव में पिछले पांच सालों में प्रधान ने कीचड़ और कच्ची सड़कों को जस का तस रखने का ही कार्य किया है. उन्होंने बताया कि आज से पांच साल पहले यह रास्ता साफ था. आज स्थिति बद्तर हो चुकी है. गांव में कहीं भी नाली नहीं है. इससे घरों का सारा पानी सड़क पर आ जाता है. आज तक नहीं पता चला कि गांव के विकास के लिए आने वाला बजट कहां खर्च होता है.

गांव में पीने के पानी के लिए हैंडपंप नहीं
वृद्ध महिला द्रोपदी ने बताया कि 70 साल की उम्र में भी उनकी पेंशन नहीं बनी है. कई बार उनसे पांच-पांच सौ रुपये ले लिए गए हैं. ग्रामीण विमला ने बताया कि उनके पास न तो खेती है और न ही पेंशन बन रही है. गांव में हैंडपंप तक नहीं लगा है. लोगों को दूसरे गांव के बाहर लगे नल से पानी ढोकर लाना पड़ता है.

ग्रामीण हुकुम सिंह ने बताया कि पांच साल पहले प्रधान ने चुनाव जीतते ही उनसे क्वॉर्टर बनवाने के लिए पांच हजार रुपये ले लिए थे. वह भी अभी तक नहीं बनवाया गया है. पांच साल बाद प्रधान ने उनके पैसे वापस किए हैं. इसी तरह ग्रामीण उदयवीर से भी मकान बनवाने के लिए दस हजार रुपये लिए गए थे. उनका भी मकान नहीं बना है.

किसानों की आमदनी हुई कम
किसान रमेश ने बताया कि उनकी आमदनी तो बढ़ने के बजाय कम होती जा रही है. उनकी फसलों को आवारा पशु नष्ट कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गांव में या फिर गांव के आसपास एक भी गोशाला नहीं है. इस कारण आवारा पशु फसलों को नष्ट कर रहे हैं.

घरों से निकलने वाला गंदा पानी इक्कट्ठा करना पड़ता है
ग्रामीण महिला राजेश्वरी ने बताया कि गांव में कहीं भी नाली की सुविधा नहीं की गई है. लोगों के घरों से निकलने वाला गंदा पानी सड़कों पर बहता रहता है. कच्ची सड़कों की वजह से गड्ढों में गंदा पानी इकट्ठा होकर कई दिनों भरा तक रहता है. इससे घरों से निकलना दूभर हो जाता है. गंदे पानी को डिब्बे में इकट्ठा करके खेतों में फेंकना पड़ता है. इससे काफी परेशानी होती है.

गांव की तस्वीर बदलने वाले प्रतिनिधि चाहते हैं ग्रामीण
गांव के युवा चाहते हैं कि उन्हें ऐसा जनप्रतिनिधि मिले, जो गांव की तस्वीर बदल दे. गांव में विकास करा सके. युवा वीरू सिंह ने बताया कि गांव में पानी की निकास की व्यवस्था तक नहीं है. रास्ते बंद पड़े हैं. पीने का पानी दो किलोमीटर दूर से लाना पड़ता है. लोगों की पेंशन नहीं बनी है. मनरेगा में भी किसी का नाम नहीं लिखा गया है. गांव के लोग अपनी भूल सुधारना चाहते हैं. वे इस बार ऐसा प्रत्याशी चुनना चाहते हैं, जो गांव और क्षेत्र का विकास करा सके और उन्हें समस्याओं से मुक्ति दिला सके.

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