हरदोई: जिले के ककराखेड़ा गांव में एक अनोखा तालाब मौजूद है. इस तालाब का इतिहास सन 1962 का है, जब यहां महज 3 से 4 कछुओं को एक संत ने लाया था. आज के समय में इस तालाब में हजारों कछुए संरक्षित हैं, जिनका भरण पोषण गांव के ही लोग अपने बच्चों की तरह करते हैं. पुरखों द्वारा इन कछुओं की देखभाल करने के बाद आज की पीढ़ी भी इन्हें उतने ही प्यार से पाले हुए हैं. इस अनोखे गांव का अनोखा तालाब आज भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. देश के कोने-कोने से लोग इस जगह घूमने के लिए आते हैं.
कछुआ तालाब का इतिहास
जिले की बिलग्राम तहसील में मौजूद ककराखेड़ा गांव के लोग 50 साल से अधिक समय से कछुओं का संरक्षण कर रहे हैं. गांव में मौजूद कछुआ तालाब में आज के समय में तकरीबन 5 से 6 हजार कछुओं को पाला जा रहा है. इस तालाब का इतिहास सन 1962 के आस पास का है, जब गांव के ही एक संत देवी सिंह ने 3 से 4 कछुओं के बच्चों को लाकर इस तालाब में छोड़ा था, जिसके बाद गांव के लोगों को इन कछुओं से इस कदर लगाव हो गया कि स्थानीय लोग इन कछुओं को अपने बच्चों की भांति प्रेम करने लग गए. आज के समय में इस तालाब में हज़ारों की संख्या में कछुए मौजूद हैं.
ग्रामीणों का कहना है कि उनके दादा व परदादाओं ने भी इन कछुओं का भरण पोषण किया था और अब आज की पीढ़ी भी इन कछुओं को अपने बच्चों की तरह पाल रही है. भविष्य में भी इन्हें इसी प्रकार प्रेम मिलता रहेगा और यहां कछुए संरक्षित होते रहेंगे. वहीं ग्रामीण इन कछुओं की निगरानी स्वयं करते हैं, जिससे कि कोई भी यहां आकर इन कछुओं को चुरा न सके. इस तालाब में आज भी 20 साल पुराने कछुए मौजूद हैं.
पर्यटन स्थल बना कछुआ तालाब
जिले का ये अनोखा कछुआ तालाब आज के समय में देश वासियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. देश के अलग-अलग प्रान्तों से लोग यहां इस तालाब में मौजूद कछुओं को देखने के लिए आते हैं. आज भी जब ईटीवी भारत की टीम इस तालाब में कछुओं को देखने पहुंची तो यहां तमाम पर्यटक इन कछुओं के साथ खेलते और इनका लुत्फ उठाते नजर आये.
कछुओं को देखने दूर-दूर से आते हैं लोग
उन्नाव के एक युवक ने ईटीवी भारत से हुई बातचीत में बताया कि जब उन लोगों को इस तालाब की जानकारी हुई तो आज वे यहां घूमने चले आये और यहां आकर वे भी अचंभित हुए. युवक कमरुल हसन ने बताया कि उन्होंने आज से पहले इतनी संख्या में कछुओं को एक साथ कभी कहीं भी नहीं देखा. कमरुल के साथ अन्य युवक भी उन्नाव से यहां इस पर्यटन स्थल पर घूमने आए हुए थे. इस दौरान फर्रुखाबाद से भी कुछ परिवार यहां घूमने आए थे. रोजाना आस पास के जिलों से व अन्य राज्यों से लोग यहां घूमने आते हैं.
ग्रामीणों ने जानकारी दी कि हिन्दू धर्म में भगवान ने भी कछुए के रूप अवतार लिया था. एक यह धार्मिक वजह भी है, जो इन ग्रामीणों को कछुओं की तरफ आकर्षित करती है. इसके अलावा बाप-दादाओं द्वारा शुरू की गई इस प्रथा को गांव वालों ने अपना लिया है और जीवन पर्यन्त इन कछुओं की सेवा करने का बीड़ा उठाया है.
जिलाधिकारी ने तालाब को निखारने का किया प्रयास
जिलाधिकारी पुलकित खरे ने बताया कि जिले में एक अनोखा तालाब मौजूद हैं, जहां कछुओं को पाला जाता है. नि:स्वार्थ भाव से ककराखेड़ा गांव के लोग अपने परिवार के सदस्यों की भांति ही इन कछुओं का भरण पोषण करते हैं. जब उन्हें इसके बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने यहां का निरीक्षण कर तालाब की साफ सफाई आदि कार्य करवाये. साथ ही भविष्य में यहां पर एक टूरिस्ट इंटरप्रिटेशन सेंटर बनवाए जाने की बात भी कही है, जिससे की पर्यटक यहां आकर इन कछुओं के बारे में व इनकी प्रजातियों के बारे में जान सकें.
जिलाधिकारी ने कहा कि हाल ही में इस तालाब को नमामि गंगे प्रोजेक्ट में भी शामिल किया गया था. भविष्य में इसे केंद्र की योजनाओं में भी शामिल किए जाने की तैयारी की जा रही है, जिससे कि इस अनोखे पर्यटन स्थल के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जानकारी हो सके.
हरदोई: जिले में बनेंगे चार नए पर्यटन स्थल, प्रशासन बना रहा योजना
वैसे तो इस अनोखे तालाब के हालात ज्यादा बेहतर नहीं थे, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा संज्ञान लेने के बाद इसकी स्थिति कुछ हद तक सुधरी है. हालांकि अभी भी इस कछुआ तालाब को विकसित किये जाने की आवश्यकता है, जिससे कि इन कछुओं का संरक्षण बेहतरी के साथ किया जा सके.