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मर गई मानवता : 15 हजार के लिए 75 दिन रोके रखा शव

उत्तर प्रदेश के हापुड़ में 75 दिन बाद एक लावारिस शव (unclaimed dead body) के वारिसों का पता चलने पर अंतिम संस्कार कराया गया. हालांकि, परिजन पुतला (डमी) बनाकर एक बार अंतिम संस्कार की रस्म को पूरा कर चुके थे.

75 दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार.
75 दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार.
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Published : Jul 2, 2021, 5:31 AM IST

Updated : Jul 2, 2021, 11:59 AM IST

हापुड़: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की दूसरी लहर ने देश में जबरदस्त कहर बरपाया. न जाने कितनों ने अपनों को खो दिया, न जाने कितने शवों को कंधे नसीब नहीं हुए. कहीं बेटे ने कोरोना से हुई मौत के चलते बाप के शव को रास्ते में ही छोड़ दिया. कहीं कोरोना से हुई मौत के बाद परिजन शव लेने ही नहीं आए. इन सबके बीच हापुड़ से मानवता को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है.

यहां एक अस्पताल ने कोरोना पॉजिटिव मरीज की मौत के बाद सिर्फ 15 हजार के लिए परिजनों को शव देने से मना कर दिया. गरीब महिला अपने दो मासूम बच्चों के साथ 15 हजार की व्यवस्था के लिए शहर से लेकर गांव तक भटकती रही, लेकिन पैसे की व्यवस्था नहीं हो सकी. वहीं दूसरी तरफ अस्पताल प्रशासन शव को 75 दिनों तक मॉर्चरी में रखे रहा, लेकिन महिला को उसके पति का शव नहीं दिया. जबकि अस्पताल कोरोना से मृतक का शव ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जाता, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं

जानकारी देती मृतक की पत्नी और चिकित्साधिकारी.

मोर्चरी में रखा रहा 75 दिन शव

देहात थाना क्षेत्र के मेहनत मजदूरी कर ठेला लगाकर अपनी पत्नी व दो बेटियों और एक बेटे के साथ रहने वाले नरेश की अचानक तबीयत खराब हो गई. परिजनों ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया. हालत बिगड़ने पर उसको स्वास्थ्य विभाग ने मेरठ मेडिकल के लिए रेफर कर दिया. यहां उसकी 15 अप्रैल 2021 को उपचार के दौरान मौत हो गई. वहीं, नरेश के बडे़ भाई विजय का कहना हैं कि डॉक्टरों ने शव देने के एवज में 15 हजार की मांग की.

पैसे का इंतजाम न होने पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने कहा नरेश कोरोना से संक्रमित था. लिहाजा हम ही अंतिम संस्कार कर देंगे. ये बात सुनकर अब नरेश की विधवा भी अपने घर को चली गई. हालांकि, इस बीच मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने शव को हापुड़ भेज दिया. वहां, स्वास्थ्य विभाग ने नरेश के शव को जीएस मेडिकल कॉलेज की मॉर्च्यूरी में रखवा दिया. पुलिस प्रशासन और स्वास्थ विभाग को मृतक के परिजनों की तलाश का जिम्मा सौंपा गया.

इसे भी पढ़ें-12 साल की बच्ची को जिंदा जलाया, दुष्कर्म की आशंका

सांकेतिक रूप से किया शव का अंतिम संस्कार

करीब 70 दिन बाद थाना देहात पुलिस नरेश जहां किराए पर रहता था, वहां पहुंची. उसके बारे में जानकारी की तो पता चला कि नरेश के परिजन आर्थिक तंगी और किराए का पैसा नहीं दे पाने के कारण अपने गृह जनपद बस्ती के गांव नाथपुर चले गए हैं. पुलिस ने 70 दिन बाद बस्ती में उसके परिजनों से संपर्क साधा और समस्त घटनाक्रम की सूचना परिजनों को दी. पुलिस ने अवगत कराया कि नरेश का शव आज भी मोर्चरी में रखा हुआ है. इसलिए परिजन अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जाएं. हालांकि, परिजन सांकेतिक रूप से नरेश का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार कर चुके थे.

वहीं नरेश का असली शव 70 दिनों बाद भी मोर्चरी में रखा हुआ अंतिम संस्कार की बाट जोह रहा था. जो पत्नी गुड़िया अंतिम समय में अपने पति के दर्शन नहीं कर पाई थी, अब वो परिजनों और तीनों मासूम बच्चों संग 750 किलोमीटर दूर से बुधवार को हापुड़ पहुंच गई. करीब 75 दिन बाद नरेश के लावारिश शव को उसका वारिश मिलने पर स्वास्थ्य विभाग की टीम और सामाजिक संस्था ने नरेश के शव का अंतिम संस्कार किया.

हापुड़: कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की दूसरी लहर ने देश में जबरदस्त कहर बरपाया. न जाने कितनों ने अपनों को खो दिया, न जाने कितने शवों को कंधे नसीब नहीं हुए. कहीं बेटे ने कोरोना से हुई मौत के चलते बाप के शव को रास्ते में ही छोड़ दिया. कहीं कोरोना से हुई मौत के बाद परिजन शव लेने ही नहीं आए. इन सबके बीच हापुड़ से मानवता को शर्मसार कर देने वाला मामला सामने आया है.

यहां एक अस्पताल ने कोरोना पॉजिटिव मरीज की मौत के बाद सिर्फ 15 हजार के लिए परिजनों को शव देने से मना कर दिया. गरीब महिला अपने दो मासूम बच्चों के साथ 15 हजार की व्यवस्था के लिए शहर से लेकर गांव तक भटकती रही, लेकिन पैसे की व्यवस्था नहीं हो सकी. वहीं दूसरी तरफ अस्पताल प्रशासन शव को 75 दिनों तक मॉर्चरी में रखे रहा, लेकिन महिला को उसके पति का शव नहीं दिया. जबकि अस्पताल कोरोना से मृतक का शव ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जाता, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं

जानकारी देती मृतक की पत्नी और चिकित्साधिकारी.

मोर्चरी में रखा रहा 75 दिन शव

देहात थाना क्षेत्र के मेहनत मजदूरी कर ठेला लगाकर अपनी पत्नी व दो बेटियों और एक बेटे के साथ रहने वाले नरेश की अचानक तबीयत खराब हो गई. परिजनों ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया. हालत बिगड़ने पर उसको स्वास्थ्य विभाग ने मेरठ मेडिकल के लिए रेफर कर दिया. यहां उसकी 15 अप्रैल 2021 को उपचार के दौरान मौत हो गई. वहीं, नरेश के बडे़ भाई विजय का कहना हैं कि डॉक्टरों ने शव देने के एवज में 15 हजार की मांग की.

पैसे का इंतजाम न होने पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने कहा नरेश कोरोना से संक्रमित था. लिहाजा हम ही अंतिम संस्कार कर देंगे. ये बात सुनकर अब नरेश की विधवा भी अपने घर को चली गई. हालांकि, इस बीच मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने शव को हापुड़ भेज दिया. वहां, स्वास्थ्य विभाग ने नरेश के शव को जीएस मेडिकल कॉलेज की मॉर्च्यूरी में रखवा दिया. पुलिस प्रशासन और स्वास्थ विभाग को मृतक के परिजनों की तलाश का जिम्मा सौंपा गया.

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सांकेतिक रूप से किया शव का अंतिम संस्कार

करीब 70 दिन बाद थाना देहात पुलिस नरेश जहां किराए पर रहता था, वहां पहुंची. उसके बारे में जानकारी की तो पता चला कि नरेश के परिजन आर्थिक तंगी और किराए का पैसा नहीं दे पाने के कारण अपने गृह जनपद बस्ती के गांव नाथपुर चले गए हैं. पुलिस ने 70 दिन बाद बस्ती में उसके परिजनों से संपर्क साधा और समस्त घटनाक्रम की सूचना परिजनों को दी. पुलिस ने अवगत कराया कि नरेश का शव आज भी मोर्चरी में रखा हुआ है. इसलिए परिजन अंतिम संस्कार के लिए शव को ले जाएं. हालांकि, परिजन सांकेतिक रूप से नरेश का पुतला बनाकर अंतिम संस्कार कर चुके थे.

वहीं नरेश का असली शव 70 दिनों बाद भी मोर्चरी में रखा हुआ अंतिम संस्कार की बाट जोह रहा था. जो पत्नी गुड़िया अंतिम समय में अपने पति के दर्शन नहीं कर पाई थी, अब वो परिजनों और तीनों मासूम बच्चों संग 750 किलोमीटर दूर से बुधवार को हापुड़ पहुंच गई. करीब 75 दिन बाद नरेश के लावारिश शव को उसका वारिश मिलने पर स्वास्थ्य विभाग की टीम और सामाजिक संस्था ने नरेश के शव का अंतिम संस्कार किया.

Last Updated : Jul 2, 2021, 11:59 AM IST
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